स्वच्छता के लिये जरूरी है मनोवृत्ति में बदलाव


स्वच्छता ,स्वास्थ्य और देश का विकास एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। हमारे देश में स्वच्छता गम्भीर चुनौती है क्योंकि संसार में सबसे अधिक लगभग 60 प्रतिशत लोग खुले में शौच करते हैं। अस्वच्छता से अतिसार, बच्चों में कुपोषण और शारीरिक विकास में कमी व अन्य खतरनाक बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं जिनसे मनुष्य के जीवन को बहुत बड़ा खतरा है।

स्वच्छता से स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य से समृद्धि के अतिरिक्त स्वच्छता एवं सफाई से देश विश्व में पर्यटन मानचित्र पर अपनी असल पहचान बनाता है। अस्वच्छता के कारण देश की उत्पादक क्षमता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है क्योंकि बीमारी के कारण ‘मानव पूँजी’ का उचित निर्माण नहीं हो पाता है।

यही वजह है कि वर्ष 2006 में 2.44 खरब रुपए या प्रति व्यक्ति 2180 रुपए का नुकसान होने का अनुमान लगाया गया था। यह नुकसान सकल घरेलू उत्पाद के 6.4 प्रतिशत के बराबर है। अस्वच्छता की गम्भीरता को देखते हुए ही भारत सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन शुरू किया है ताकि भारत राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की वर्ष 2019 में 150वीं जयन्ती पर सम्पूर्ण स्वच्छ हो।

यह पुस्तक इसी बात को ध्यान में रखकर लिखी गई है। इसके प्रत्येक पृष्ठ पर बताया गया है कि स्वच्छता क्या है? स्वच्छता हमारे लिये क्यों जरूरी है? स्वच्छता के विभिन्न आयाम क्या-क्या हैं? स्वच्छता मिशन क्या है और पंचायतों एवं नगरपालिकाओं की स्वच्छता को आगे बढ़ाने में क्या भूमिका है। सफाई के प्रति आम लोगों में व्यवहारात्मक बदलाव कैसे लाया जा सकता है।

यह पुस्तक बताती है कि अस्वच्छता गाँव एवं शहरों दोनों में गम्भीर समस्या है। लेकिन इस समस्या को दो तरह अर्थात हार्डवेयर एवं ‘सॉफ्टवेयर’ दोनों तरीके से समाधान करने की जरूरत है। ‘हार्डवेयर’ से अर्थ है शौचालय बनाना, कचरे के निबटान के लिये जगहों/स्थानों को निश्चित करना। लेकिन इनसे महत्त्वपूर्ण है ‘सॉफ्टवेयर’ अर्थात लोगों की मानसिक प्रवृति में बदलाव।

अगर शौचालय आदि बना दिये गए लेकिन लोग उनका इस्तेमाल न करें तो क्या फायदा शौचालय बनाने के लिये इतना खर्चा करने का। इसलिये जरूरी है लोगों की स्वच्छता के प्रति परम्परागत सोच को बदलना। इसके लिये शिक्षा व्यवहार परिवर्तन एवं सम्प्रेषण जरूरी है। उपयुक्त सभी विषयों को पुस्तक के दस अध्यायों में बाँटा गया है। प्रथम अध्याय में स्वच्छता से अभिप्राय एवं लाभों पर चर्चा की गई है। अध्याय दो में कचरा प्रबन्धन पर प्रकाश डाला गया है।

अध्याय तीन में स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण व नगरीय) के मुख्य दिशा-निर्देश दिये गए हैं। अध्याय चार में स्वच्छता अभियान में पंचायतों की भूमिका पर चर्चा की गई है। अध्याय पाँच में स्वच्छता अभियान में नगरपालिकाओं की भूमिका पर चर्चा की गई है। अध्याय छः में स्कूलों एवं आँगनवाड़ी केन्द्रों में स्वच्छता क्यों जरूरी है और इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है। इन्हीं बातों का समावेश है।

अध्याय सात में स्वच्छता को कामयाब बनाने के लिये पानी के संरक्षण एवं भण्डारण के ऊपर प्रकाश डाला गया गया है। अध्याय आठ में स्वच्छता के लिये जागरुकता एवं व्यवहारात्मक बदलाव की विस्तृत चर्चा की गई है। अध्याय नौ में कुछ सफलता की मिसालें दी गई हैं। अध्याय दस में स्वच्छता अभियान की कैसे मॉनिटरिंग की जाये एवं कैसे इसका मूल्यांकन किया जाय इसका अध्ययन किया गया है।

पुस्तक के अन्त में निष्कर्ष दिया गया है। पुस्तक को उपयोगी बनाने के लिये कुछ अनुबन्ध भी दिये गए हैं। पुस्तक में स्वच्छता से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण तथ्य बाक्स में दिये गए हैं। स्वच्छता विषय पर पुस्तकों का अभाव है। उपर्युक्त सारे बिन्दुओं का समावेश करने वाली कोई पुस्तक शायद ही हिन्दी व अंग्रेजी में हो। अतएव यह पुस्तक शोधकर्ताओं, अध्यापकों, विद्यार्थियों, पंचायत एवं नगर पंचायतों/नगरपालिकाओं के चयनित सदस्यों व अध्यक्षों, स्वयंसेवी संस्थाओं में कार्यरत व्यक्तियों तथा सामान्यजन के लिये उपयोगी सिद्ध होगी, इस आशा के साथ यह प्रयास किया गया है। पुस्तक सरल भाषा शैली में लिखी गई है।

महात्मा गाँधी जी ने लगभग 90 वर्ष पहले ‘नवजीवन’ के मई 24, 1925 के अंक में लिखा था कि हमारी कई बीमारियों का कारण हमारे शौचालयों की स्थिति और किसी जगह व हर जगह शौच करने की बुरी आदत है। बाद में उन्होंने यह भी कहा कि जहाँ स्वच्छता होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। शायद इसी सत्य को ध्यान में रखकर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का स्वच्छ भारत अभियान देश को स्वच्छ बनाने के मुद्दे पर दिखाई गई एक दिशा और इस समस्या के समाधान का एक प्रयास है।

पुस्तक के पहले अध्याय में स्वच्छता से क्या अभिप्राय है, स्वच्छता एवं सफाई स्वास्थ्य में कैसे योगदान करती है, स्वच्छता कैसे बनाकर रखी जाये, मानव मल किस प्रकार हानिकारक है एवं खुले में शौच जाने से क्या नुकसान है आदि पर चर्चा की गई है। अगले अध्याय में बताया गया है कि जल, स्व्चछता, स्वास्थ्य, पोषण और मानव के बीच सीधा सम्बन्ध है।

सन्दूषित पेयजल का उपयोग करना, मानव मल का सही ढंग से निपटान न किया जाना, वैयक्तिक तथा भोजन की साफ-सफाई की कमी होना और ठोस एवं तरल अपशिष्ट पदार्थ प्रबन्धन का समुचित निपटान न किया जाना, भारत जैसे विकासशील देशों में अनेक बीमारियों के मुख्य कारण रहे हैं।

यद्यपि, देश में सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान (टीएससी) के अन्तर्गत पिछले दशक में ग्रामीण स्वच्छता के क्षेत्र में बहुत अधिक कार्य किया जा चुका है, फिर भी स्वच्छता कवरेज जो सुरक्षित स्वास्थ्य के लिये जीवन की एक शैली होनी चाहिए, अभी भी अपर्याप्त है। भारत में खुले में शौच करने की प्रथा के अनेक कारक हैं जिनमें से सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कारक परम्परागत व्यवहारिक पद्धति तथा स्वास्थ्य जोखिमों से जुड़ी लोगों की जागरुकता की कमी है। जनगणना 2011 के अद्यतन आँकड़ों के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में मात्र 32.7 प्रतिशत परिवारों को स्वच्छता सुविधाएँ प्राप्त हैं।

भारत का ग्रामीण स्वच्छता से सम्बन्धित पहला राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम, ग्रामीण विकास मंत्रालय में केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम (सीआरएसपी) के नाम से सन 1986 में शुरू किया गया था जिसका उद्देश्य ग्रामीण लोगों की जीवनशैली के स्तर को बेहतर बनाना और महिलाओं को निजता और गरिमा प्रदान करना था। इस कार्यक्रम के तहत गरीबी रेखा से नीचे के (बीपीएल) परिवारों के लिये स्वच्छ कार्यक्रम आपूर्ति पर आधारित, अत्यधिक मात्रा में आर्थिक सहायता प्राप्त था और इस कार्यक्रम के तहत एकल निर्माण मॉडल पर बल दिया गया था।

सितम्बर 1992 में राष्ट्रीय स्वच्छता पर हुए राष्ट्रीय सेमिनार की अनुशंसाओं के आधार पर, इस कार्यक्रम में पुनः संशोधन किया गया। संशोधित कार्यक्रम के तहत ग्रामीण स्वच्छता के प्रति समेकित दृष्टिकोण अपनाने का लक्ष्य रखा गया। सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान (टीएससी), ‘समुदाय नीत’ और ‘जनकेन्द्रित’ दृष्टिकोण के साथ दिनांक 1.4.1999 से शुरू किया गया था। सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान राज्य-वार आबंटन के सिद्धान्त से हटकर ‘‘माँग-जनित’’ दृष्टिकोण की ओर बढ़ा।

इस कार्यक्रम में स्वच्छता सुविधाओं के लिये प्रभावी ढंग सृजित करने के लिये सूचना, शिक्षा और सम्प्रेषण (आईईसी) पर बल दिया गया है। इस कार्यक्रम के तहत जीवन की प्रारम्भिक अवस्था से ही स्वच्छता से जुड़े व्यवहारों को अपनाने के लिये आचार एवं व्यवहारगत परिवर्तन लाने के लिये स्कूली स्वच्छता और व्यक्तिगत साफ-सफाई से जुड़े शिक्षण पर भी बल दिया गया है। पुस्तक की खासियत है कि वह स्वच्छता अभियान की सफलता के पानी की पर्याप्त उपलब्धता, पानी के संरक्षण व इसमें पारम्परिक जल संसाधनों के संरक्षण, सबलीकरण का सन्देश भी देती है।

पुस्तक के लेखक डॉ. महीपाल, कई दशकों तक ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार में विभिन्न पदों पर काम करते हुए सन 2015 में निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं और उसके बाद समाज सेवा के कार्य में व्यस्त हैं। उन्होंने सन 1987 में अर्थशास्त्र में पीएचडी की उपाधि प्राप्त करने के बाद 1992-94 में इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंसेज, नई दिल्ली से विकेन्द्रिकृत योजना एवं पंचायती राज विषय पर पोस्ट-डॉक्टोरल शोध कार्य किया । हिन्दी व अंग्रेजी की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इनके लेख प्रकाशित होते रहते हैं । इनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ हैं - पंचायती राज चुनौतियाँ एवं सम्भावनाएँ, विकेन्द्रीकृत योजना एवं विकास, भारतीय कृषि में भूमि उत्पादकता एवं रोजगार, ग्रामीण क्षेत्रा में पूँजी निर्माण व रोजगार सृजन, पंचायतों के स्तर पर आवश्यकताओं व साधनों में अन्तर तथा पंचायती राज: अतीत वर्तमान व भविष्य।

भारत में स्वच्छता अभियान : कार्यनीति और क्रियान्वयन
डा. महीपाल,
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास,भारत, नई दिल्ली 110070
पृ.162,
रू. 170.00

 

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