स्वच्छता पर गांधी जी के विचार

11 Nov 2019
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स्वच्छता पर गांधी जी के विचार
स्वच्छता पर गांधी जी के विचार

दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद दो वर्ष तक पूरे देश की यात्रा करते हुए गांधी जी को महसूस हुआ कि सफाई और सामाजिक स्वच्छता बड़ी और अजेय समस्या है। जानकारी का अभाव इसका इकलौता कारण नहीं था, वह मानसिकता भी इसका एक कारण थी, जो लोगों को स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर प्रभाव डोलने वाली इस सबसे गंभी समस्या पर सोचने से रोकती थी। दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी ने स्वीकार किया कि भारतीयों को सफाई और स्वच्छता से दिक्कत है, जैसा आरोप अंग्रेज लगाते रहे हैं। लेकिन उन्होंने विरोध करते हुए यह बात सफलतापूर्वक सामने रखी कि रंग को लेकर पूर्वाग्रह और प्रतिस्पद्र्धा का खतरा ही भेदभाव का मुख्य कारण है। लेकिन उनके अपने ही देश में वह जहां भी गए, उन्हें गंदगी, धूल, कचरा और सफाई करने वाले समुदाय के साथ जुड़ी वर्जना, कलंक और शौषण दिखाई दिया। गांधी जी 1909 में हिंद स्वराज लिख चुके थे। स्वशासन के रूप में ग्राम स्वराज और हिंद स्वराज की उनकी योजना में देश की राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए लड़ा अलग बात नहीं हो सकती थी और उन्होंने इसके सिद्धांत तथा कार्य बताए। बाद में इसे आश्रम के अनुपालन और रचनात्मक कार्य के रूप में प्रस्तुत किया गया। इस तरह सफाई एवं स्वच्छता तथा छुआछूत दूर करना दो बड़े रचनात्मक कार्यक्रम हो गए। 

चंपारण में गांधी जी

गांधी जी और उनके साथियों के सामने देश में ग्रामीणों के बीच सफाई और स्वच्छता की समस्या की गंभीरता तब स्पष्ट हो गई, जब उन्होंने चंपारण में कार्य शुरू किया। सबसे पहले यह बात गांधी जी के ध्यान में आई कि समुचित ग्रामीण शिक्षा के बगैर स्थायी कार्य असंभव है। चंपारण के गांवों में सफाई मुश्किल काम था। गांधी जी ने कहा कि भूमिहीन श्रमिक परिवार भी अपना मैला खुद उठाने को तैयार नहीं थे। चंपारण के दल में शामिल हुए डाॅ. देव ने नियमित रूप से सड़कों और मैदानों में झाडू लगाई, कुएं साफ किए और तालाब भरे। धीरे-धीरे गांव की सफाई के मामले में आत्मनिर्भरता का वातावरण तैयार होने लगा। 

किसी कार्य से परिचित कराने और उसके प्रति झुकाव पैदा करने के लिए शिक्षा, प्रशिक्षण एवं व्यवहार की जरूरत के बारे में अपनी दृढ़ता के कारण गांधी जी ने चंपारण तथा सत्याग्रह आश्रम स्कूलों में सफाई तथा स्वच्छता की शिक्षा देनी शुरू की। चंपारण दल की महिलाओं को बताया गया कि सफाई, स्वच्छता और सदाचार की शिक्षा को साक्षरता से भी अधिक प्राथमिकता दी जाए। गौरतलब है कि उसके बाद से सफाई एवं स्वच्छता सभी राजनीतिक कार्यक्रमों एवं समाज सुधारों के अभिन्न अंग और आधार बन गए। 

आश्रमों में 

गांधी जी और उनके साथ रहने वालों के लिए सफाई के सबक दक्षिण अफ्रीका के फीनिक्स आश्रम में आरंभ हुए। बीसवीं शताब्दी के आरंभ में फ्लश वाले शौचालय काफी प्रचलित हो चुके थे और मल से होने वाले प्रदूषण के प्रभावों से लोग अच्छी तरह परिचित थे। लेकिन समुचित नालियों और निस्तारण प्रणाली से जुड़े फ्लश शौचालयों को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त एवं सुनिश्चित जलापूर्ति बहुत जरूरी थी। ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसा कर पाना बहुत कठिन था। सही विज्ञान एवं समुचित तकनीक फीनिक्स में गांधी जी के सामने चुनौती थी। मानव मल को पर्याप्त सूखी मिट्टी से ढकना और उसे इकट्ठा कर सुरिक्षत रूप से उसका निस्तारण करना सभी माॅडललों में स्थापित प्रचनल था। सभी प्रयोग में मल को अंत में खेतों में भेल दिया जाता था और जैविक उर्वरक के रूप में प्रयोग किया जाता था। प्रभुदास गांधी ने लिखा है कि गांधी जी के आश्रमों का इतिहास सतर्कतापूर्वक देखा जाए तो पता चलेगा कि शौचालयों में प्रयोगों को अनूठा स्थान है। यदि इस प्रक्रिया को आरंभ से अंत तक बारीकी से लिखा जाए तो शौचालय निर्माण एवं प्रयोग पर प्रामाणिक एवं उपयुक्त पुस्तिका तैयार हो सकती है।

गांधी के लिए सफाई और स्वच्छता भारत में महत्वपूर्ण काम था। भारतीय समाज से अस्पृश्यता का धब्बा हटाने की गांधी जी की इच्छा ने उन्हें शौचालयों और स्वचछता पर काम करने के लिए प्रेरित किया। उन्हें समाज की यह परंपरा स्वीकार नहीं थी कि कुछ लोग सफाई का काम करें और वे सही काम करने तथा करते रहने के लिए अभिशप्त हों। सफाई के प्रति संकल्प समाज सुधार का मुख्य तत्व है। आश्रम में इस बात पर विशेष जोर दिया गया कि इस का के लिए बाहर से किसी को नहीं बुलाया जाए। सदस्य स्वयं ही बारी बारी पूरी सफाई करते थे। आश्रमवासियों को ध्यान रखना होता था कि सड़कों और गलियारों में पीक या थूक आदि से गंदगी नहीं फैलाई जाए। गांधी जी राष्ट्रवादी उत्साह से भरे उन जोशीले और संकल्पबद्ध युवाओं का स्वागत करते थे, जो आश्रम से जुड़ना चाहते थे। लेकिन वह चेतावनी भी देते थे कि उन्हें शौचालय की बाल्टी साफ करने की परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी।

वर्धा में जमनालाल बजाज द्वारा स्थापित एवं सहायता प्राप्त आश्रम में रहते हुए मीराबेन -सुश्री स्लेड ने उन्हें बताया कि जब वह सुबह टहलने गई तो उन्होंने पड़ोसी गांव सिंदी के लोगों को सड़ेक पर खुले में शौच करते देखा। गांधी जी ने उन्हें रोज गांव जाने और सड़कें साफ करने का सुझाव दिया। सफाई और स्वच्छता सेगवाग्राम आश्रम के एजेंडा में भी थी, जहां गांधी जी अप्रैल 1936 से अगस्त 1946 तक रहे। ‘सेवाग्राम आश्रम के नियमों’ में कहा गया था कि पानी की बर्बादी नहीं होनी चाहिए। पीने के लिए उबले पानी का उपयोग होता है। थूकना या नाक छिनकना सड़क पर नहीं होना चाहिए बल्कि ऐसी जगह होना चाहिए, जहां लोग चलते नहीं हों।

मल-मूत्र त्याग निर्दिष्ट स्थानों पर ही करना चाहिए। ठोस पदार्थों के डिब्बे शौच के तरल पदार्थ के डिब्बों से अलग होने चाहिए। मल को सूखी मिट्टी से इस तरह ढका जाना चाहिए कि मक्खियां नहीं आएं और केवल सूखी मिट्टी नजर आए। शौचालय की सीट पर सावधानी से बैठना चाहिए ताकि सीट गंदी न हो। अंधेरा हो तो लालटेन जरूर होनी चाहिए। जिस पर मक्खियां आएं, उसे पूरी तरह ढक देना चाहिए।

जनसभाओं एवं नागरिक समारोहों में

गांधी जी ने कई जनसभाओं, बैठकों, छोटे समूहों, स्वयंसेवकों, महिलाओं एवं आश्रमवायियों को संबोधित किया। कई नगरपालिकाओं ने उनका नागरिक अभिनंदन किया। ऐसे अधिकतर अवसरों पर उनहोंने सफाई एवं स्वच्छता की बात की। कांग्रेस के लगभग प्रत्येक बड़े सम्मेलन में गांधी जी अपने भाषण में सफाई का मुद्दा जरूर उठाते थे। गांधी जी के लिए गंदगी बुराई थी। उन्होंने कहा था-बुराईयों की तिकड़ी है- ‘‘गंदगी, गरीबी और आलस-जिसका सामना आपको करना है, और आप झाडू, कुनीर तथा अरंडी का तेल और मेरा यकीन करें तो चरखा लेकर उससे लड़ेंगे।

गांधी जी ने शहर और नगर पालिकाओं द्वारा किए गए अभिनंदन समारोहों में अपनी बात रखी और गंदगी की तरफ ध्यान आकर्षित कर सफाई की स्थिति सुधारने का आह्वान किया। वह सफाई के काम को नगर पालिकाओं का सबसे महत्वपूर्ण काम मानते थे। जब कांग्रेस ने नगर पालिका चुनावों में हिस्सा लेने की इच्छा जताई तो उन्होंने सलाह दी कि पार्षद बनने के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं को अच्छा सफाईकर्मी बनना चाहिए। सफाई के मामले में वह पश्चिम के नगरपालिका प्रशासन की सराहना करते थे। 21 दिसंबर, 1924 को बेलगाम में  एक नागरिक समारोह में उन्होंने कहा, पश्चिम से हम एक चीज सीख सकते हैं, और सीखना चाहिए वह है, नागरिक सफाई का विज्ञान। हमें ग्रामीण जीवन की आदत है, जहां सामूहिक सफाई की जरूरत ज्यादा महसूस नहीं होती। लेकिन पश्चिम की सभ्यता भौतिकवादी है और इसीलिए उसका झुकाव गांवों को अनदेखा कर शहरों के विकास की ओर है। पश्चिम के लोगों ने सामूहिक सफाई का विज्ञान विकसित किया है और उससे हमने बहुत कुछ सीखा है। हमारी संकरी और कष्टप्रद गलियां, हमारे घुटन भरे मकान, पेयजल के स्त्रोतों की अपराधियों जैसी अनदेखी को सुधारना होगा। लोगों से सफाई के कानूनों का पालन कराना ही नगरपालिका की ओर से सबसे बड़ी सेवा होगी।

पत्र-पत्रिकाओं में

गांधी जी ने कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया और उनमें लेख लिखे। उन्होंने नवजीवन और यंग इंडिया और बाद में हरिजन में सफाई तथा स्वच्छता के बारे में खूब लेख लिखे। देश में गांवों और शहरी बस्तियों में गंदगी की बात उनके दिमाग में थी। खेड़ा सत्याग्रह के दौरान उन्होंने सफाई तथा स्वच्छता के मामले में घरों, तालाबों और खेतों की स्थिति पर नवजीवन में लिखा। उन्हें इस बात की पीड़ा थी कि किसान और उनके परिवार अनभिज्ञता और बेफिक्री के कारण गंदी और अस्वच्छ स्थितियों में रह रहे हैं।

खुले में शौच के लिए आजकल राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्टों में अंग्रेजी में ‘ओपन डेफिकेशन’ शब्द इस्तेमाल होता है, लेकिन गांधी जी ने उसके लिए अधिक परिमामय ‘ओपन इवैक्यूएशन’ शब्द का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि शौचालयों का प्रयोग नहीं करने और खुले में शौच नहीं करने से कई बीमारियां होती हैं। परिवारों तथा बस्तियों में बुजुर्ग, बच्चे, रोगी और कमजोर व्यक्ति शौच के लिए बाहर नहीं जा सकते, इसलिए आंगन, गलियां और मकान ही शौचालयों में तब्दील हो जाते हैं और जगह गंदी हो जाती है और हवा दूषित हो जाती है। उसके बाद उन्होंने सुझाव दिया कि लोग सादा शौचालय बनाएं या डिबें की व्यवस्था करें, जिसमें मल को सूखी मिट्टी से ढका जाए।

गांधी जी हरेक अवसर पर सफाई और स्वच्छता के बारे में लिखते रहे। हालाकि वे कभी इस बात से सहमत नहीं हुए मर वह समझते थे कि बेसहारा, गरीब और दलित वर्ग के लोग गंदगी को अपने जीवन का हिस्सा मान बैठे हैं। गांधी जी के शब्दों में सफाई और स्वच्छता की समस्या ‘सामूहिक’ स्तर पर थी। उन्होंन यह भी कहा कि भारतीय अपने घर-आंगन को धूल, कीड़ों और छिपकलियों से मुक्त रखते हैं, लेकिन सब कुछ अपने पड़ोसी के आंगन में फेंकने में नहीं हिचकिचाते! इस बुराई को हम लोग आज भी खत्म नहीं कर पाए हैं। 

जनवरी 1935 की एक शाम को दिल्ली के सेंट स्टीफंस काॅलेज के प्रोफेसर विनसर ने एक दर्जन छात्रों के साथ गांधी जी से मुलाकात की। ग्रामीणों को चिकित्सा मदद के बारे में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए गांधी जने ने कहा कि उन्हें बताना चाहिए कि एहतियात और इलाज के बाद की देखभाल के रूप में सफाई और स्वच्छता कितनी महत्वपूर्ण है। मलेरिया की एक हजार गोलियां बांटना अच्छा है, लेकिन प्रशंसनीय नहीं है। मल के गड्ढे भरकर, गंदा पानी निकालकर, कुओं और टैंकों की सफाई कर बीमारियों से बचने की शिक्षा अधिक प्रशंसनीय होगी। हरिजनों के लिए स्कूल में पढ़ने के बारे में निर्देश मांगे जाने पर गांधी जी ने सफाई और स्वच्छता के बारे में शिक्षा को प्राथमिकता देने की बात दोहराई। उन्होंने कहा कि, आप निश्चिंत रहें कि आपकी प्रयोग में करने, दोबारा प्रयोग करने और रीसाइकल करने की शिक्षा सफाई और स्वच्छता की अच्छी शिक्षा के सामने कुछ भी नहीं है... किताबी प्रशिक्षण का बहुत फायदा नहीं है। मैंने बताया कि उसका ध्यान रखिए। याद रखें कि अशिक्षित लोगों को बड़े राज्यों पर शासन करने में कोई दिक्कत नहीं हुई है। उन्हें अपनी शिक्षा कर तरह से दें, लेकिन उस शिक्षा की अंधभक्ति न कराएं।

गांधी जी विद्यार्थियों और कार्यकर्ताओं  को सफाई के महत्व के बारे में बताते रहे और उन्हें पहला काम यही करने का सझाव दिया। 1946 से जनवरी 1948 तक उन्होंने सफाई और स्वच्छता की शिक्षा पर और अधिक जोर दिया। उनके मुताबिक रेलेव और जहाज से यात्रा के दौरान सफाई एवं स्वच्छता पर सार्वजनिक शिक्षा के सबसे अवसर होते हैं। गांधी जी के दिमाग में सफाई और स्वच्छता बहुत अधिक छाई थी, क्योंकि आजादी के फौरन बाद शारणार्थी शिविरों में वह जो देख रहे थे, उससे बहुत अधिक विचलित हुए थे। 13 अक्तूबर, 1947 को उन्होंने कहा कि शरणार्थी शिविरों में सफाई की समस्या और स्वच्छता की स्थिति को वह बहुत महत्व देते हैं। उन्होंने कहा कि हालाकि भारतीयों को मेले, धार्मिक समारोह और कांग्रेस के सत्र तथा सम्मेलन आयोजित करने का अनुभव है, लेकिन सामान्य जन के रूप में हमें शिविरों के जीवन की आदत नहीं है। भारतीयों में सामाजिक स्वच्छता का भाव नहीं है, जिससे गंदगी खतरनाक स्तर तक पहुंच जाती है, और संक्रामक एंव संचारी रोग फैलने का खतरा पैदा हो जाता है।

अपनी शहादत से एक दिन पहले 29 जनवरी 1948 को उन्होंने प्रस्तावित लोक सेव संघ का संविधान तैयार किया। बाद में उसे गांधी जी की अंतिम वसीयत माना गया। इस दस्तावेज में सेवक का छठा काम यहं था:

उसे ग्रामीणों को सफाई और स्वच्छता की शिक्षा देनी होगी और उन्हें खराब सेहत तथा बीमारियों से बचाने के लिए एहतियात के सभी उपाय करने होंगे। 

सफाई और स्वच्छता गांधी जी के पूरे जीवन में और जीवन के अंत तक प्राथमिकता बनी रही। 

( ‘इन द फुटस्टेप ऑफ महात्मा गांधी एंड सैनिटेशन’ पुस्तक (प्रशाशन विभाग, 2016) के अंश)
 

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