सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र: आस्था, आध्यात्मिकता एवं जल संपदा का संगम

14 Nov 2022
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सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार

उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में आदि गंगा गोमती के तट पर स्थित वह पुरातन तीर्थ है जो हमें भारतीय संस्कृति की विरासत से जोड़ता है। यहीं पर आदि काल में मनु-शतरूपा ने तपस्या की थी जिसके वरदान स्वरूप कालान्तर में अयोध्या के राजा दशरथ के घर में भगवान राम का अवतरण हुआ। यहीं पर महर्षि वेदव्यास ने पुराणों की रचना की। यहीं पर सनकादि 88 हजार ऋषियों ने एकत्रित होकर भारतीय समाज की आचर संहिता का चिन्तन-मन्थन किया। यहीं पर देवासुर संग्राम के समय देवत्व की रक्षा के लिये महर्षि दधीचि ने अस्थिदान का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। यहाँ पर जब महर्षि दधीचि ने अस्थिदान का संकल्प लिया तो सम्पूर्ण भारत के तीर्थ नैमिषारण्य आए जो आज भी यहाँ की चौरासी कोसी परिक्रमा पथ पर स्थित हैं। इस क्षेत्र में चक्र तीर्थ सहित अनेक भूगर्भ जल स्रोत हैं जो गोमती को निरन्तर अमृत जल प्रदान करते रहते हैं। सघन अरण्य यहाँ की विशेषता रही है, जहाँ ऋषि गण निरन्तर साधना के साथ सामाजिक ज्ञान के प्रकाश के लिए गुरुकुल का संचालन करने थे।

नैमिषारण्य एक पवित्र तीर्थ स्थल है जहां पर महापुराण लिखे गए थे और पहली बार सत्यनारायण की कथा की गई थी। इस धाम का: वर्णन पुराणों में भी पाया जाता है। इसलिए नैमिषारण्य की यात्रा के बिना चार धाम की यात्रा भी अधूरी मानी जाती है। इस स्थान को नैमिषारण्य, नैमिष या नीमषार के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि नैमिषारण्य वो स्थान है जहां पर ऋषि दधीचि ने लोक कल्याण के लिए अपने वैरी देवराज इन्द्र को अपनी अस्थियां दान की थीं। ये भी मान्यता है कि जब महर्षि दधीचि ने अस्थिदान का संकल्प लिया तो सम्पूर्ण भारत के तीर्थ नैभिघारण्य आए जो आज भी यहाँ की चौरासी कोसी परिक्रमा पथ पर स्थित हैं। इस क्षेत्र में चक्र तीर्थसहित अनेक भूगर्भजल स्रोत हैं जो गोमती को निरन्तर अमृत जल प्रदान करते रहते हैं

नैमिषारण्य का नाम नैमिष नामक वन के कारण रखा गया है। इसके पीछे कहानी ये है कि महाभारत युद्ध के बाद साधु-संत कलियुग के प्रारंभ को लेकर काफी चिंतित थे। इसलिए उन्होंने ब्रह्माजी से किसी ऐसे स्थान के बारे में बताने के लिए कहा जो कलियुग के प्रभाव से अछूता रहे। इसके बाद बह्माजी ने एक पवित्र चक्र निकाला और उसे पृथ्वी की तरफ घुमाते हुए बोले कि जहां भी ये चक्र रुकेगा, वो स्थान कलियुग के प्रभाव से मुक्त रहेगा। फिर ब्रह्माजी का चक्र नैमिष वन में आकर रुका। इसीलिए साधु-संतों ने इसी स्थान को अपनी तपोभूमि बना लिया।

कहा ये भी जाता है कि ब्रह्माजी ने स्वयं भी इस स्थान को ध्यान योग के लिए सबसे उत्तम बताया था। जिसके बाद प्राचीन काल में करीब 88 हजार ऋषि-मुनियों ने इस स्थान पर तप किया था। इसके अलावा रामायण में उल्लेख है कि इसी स्थान पर भगवान श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ पूरा किया था और महर्षि वाल्मीकि, लव-कुश से उनका मिलन भी इसी स्थान पर हुआ था। इसके अलावा महाभारत काल में युधिष्ठिर और अर्जुन भी इस जगह आए थे।

: इस तीर्थस्थान पर धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृश्टि से महत्वपूर्ण अनेक स्थल हैं। इनमें चक्रतीर्थ, भेतेश्वरनाथ मंदिर, व्यास गद्दी, हवन कुंड, ललिता देवी का मंदिर, पंचप्रयाग, शेष मंदिर, क्षेमकाया, मंदिर, हनुमान गढ़ी, शिवाला-मैरव जी 9 पिर, पंच पांडव मंदिर, पंचपुराण मंदिर, मां आनंदमयी आश्रम, नारदानन्द सरस्वती आश्रम-देवपुरी मंदिर, रामानुज कोट, अहोबिल मंठ और परमहंस गौड़ीय मठ आदि शामिल हैं।

इसी कारण नैमिषारण्य तीर्थ की कीर्ति भारत पर्यंत तक फैली हुई है। यहां पर दक्षिण भारत से असंख्य परिवार प्रतिवर्ष अपनी और अपने परिवार की मनोकामना पूर्ति हेतु आते हैं। हम यह भी कह सकते हैं कि नैमिषारण्य उत्तर भारत को दक्षिण भारत से जोड़ने का एक परम आस्था केन्द्र है। ऐसी अनेक विशेषताओं से युक्त नैमिषारण्य अपने पुनर्जीवन की प्रतीक्षा कर रहा है।

लोक भारती इस कार्य में 2010 निरन्तर लगी है। नैमिषारण्य का मां गोमती से अटूट संबंध है। अतः गोमती नदी की दशा सुधारने के लिए लोक भारती द्वारा गोमती अध्ययन यात्रा का आयोजन किया गया। नैमिषारण्य 84 कोसी देव वृक्ष अभियान 108 गांव की 28 दिवसीय पद यात्रा द्वारा सामाजिक जागरुकता अभियान संचालित किया गया। देव वृक्ष भंडारे का आयोजन भी हुआ। सम्पूर्ण परिक्रमा पथ एवं क्षेत्र में 8 हजार देव वृक्ष रोपण अभियान चलाया गया। तीर्थ पुरोहित, पंडा, पुजारी सम्मेलन का आयोजन भी लोक भारती द्वारा कराया गया। गोमती अलख यात्रा द्वारा सामजिक जागरुकता एवं गोमती मित्र मण्डल गठन किया गया। नैमिशारण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतों का अध्ययन एवं उनके पुनर्जीवन पर सतत कार्य चल रहा है। वर्षा जल संरक्षण एवं सम्भरण हेतु तालाबों के पुनर्जीवन अभियान के अंतर्गत 16 तालाबों का पुनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से संपन्‍न हुआ है। गोमती के तटवर्ती धौम्य ऋषि आश्रम धोबिया घाट के प्राकृतिक जल स्रोत के संरक्षण का प्रयास एवं वहां स्वच्छता अभियान संचालित किया गया है।

गोमती की सहायक नदी कठिना के पुनर्जीवन हेतु सीतापुर जिले के 40 ग्रामों में जागरुकता यात्रा, सघन वृक्षारोपण, जल प्रबंधन पर कार्य किया जा रहा है। कठिना नदी के निकटवर्ती अरण्प क्षेत्र में जलाशय निर्माण, पर्यटन वाटिका विकास, 11 हजार वृक्षों का रोपण एवं हरिशंकरी रोपण अभियान भी लोक भारती द्वारा चलाया जा रहा है। दिनांक 25 सितम्बर, 2022 से गौ आधारित प्राकृतिक खेती के व्यापक अभियान का कठिना
नदी के पूजन के साथ शुभारम्भ हुआ है, जो मार्च 2023 तक निरन्तर चलेगा। बैल आधारित कृषि करने वाले और देशी गौ पालकों का प्रदर्शन एवं सम्पूर्ण नैनिषारण्य तीर्थ क्षेत्र के गौरव को जाग्रत कहने एवं इसे प्रभावी व प्रेरक बनाने के संकला के अंतर्गत लोक भारती द्वारा परिक्रमा पथ के 100 से अधिक गांवों में ग्रामोदय अभियान प्राएम्भ किया गया है एवं इस हेतु सभी गांवों में संपर्क एवं टोली निर्माण किया गया है।

नैमिषारण्य एवं मिश्रिख नगर पालिकाओं मे कार्यकारी टोली का यूजन, समन्वय एवं कार्य योजना बनाई गई है

सम्मान कार्यक्रम आयोजित हुआ। मिश्रिख एवं नैमिषारण्य क्षेत्र के विद्यालयों, आश्रमों में हरिशंकरी रोपण एवं पर्यावरण मित्र टोली गठन अभियान चलाया गया है। सम्पूर्ण नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र के गौरव को जाग्रत करने एवं इसे प्रभावी व प्रेरक बनाने के संकल्प के अंतर्गत लोक भारती द्वारा परिक्रमा पथ के 100 से अधिक गांवों में ग्रामोदय अभियान प्रारम्भ किया गया है एवं इस हेतु सभी गांवों में संपर्क एवं टोली निर्माण किया गया है। नैमिषारण्य एवं मिश्रिख नगर पालिकाओं मे कार्यकारी टोली का सृजन, समन्वय एवं कार्य योजना बनाई गई है। सम्पूर्ण क्षेत्र में सघन वृक्षारोपण एवं बागवानी द्वारा हरित पट्टी के विकास का अभियान निरंतर जारी है।

अरप्य क्षेत्रों का पुन्जीवन करते हुए पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने का प्रयास सतत चल रहा है। गौ आधारित प्राकृतिक कृषि क्षेत्र का विकास किया जा रहा है। तीर्थ पुरोहित संगठन, विकास एवं प्रशिक्षण व्यवस्था के विकास के साथ-साथ गुरुकुल एवं शिक्षण केंद्र का विकास किया जा रहा है। सभी ग्रामों में अमृत सरोवर, ग्राम वन एवं हरिशंकरी रोपण अभियान निरंतर चल रहा है। वर्षा जल संरक्षण के विविध उपायों का प्रयोग किया जा रहा है। इस क्रम में लोक भारती द्वारा दक्षिण भारतीय तीर्थ यात्रियों से संपर्क एवं उनका सम्मान किया जा रहा है। होली के अवसर पर आयोजित 15 दिवसीय पुरातन रामदल यात्रा की सुव्यवस्था की गई। परिक्रमा पथ पर स्थित सभी तीर्थों की व्यवस्था में सुधार के लिए अनेक स्तरों पर कार्य चल रहा है। यात्रियों को गौ आधारित प्राकृतिक कृषि उत्पादित विभिन्‍न उत्पाद प्रसाद रूप में उपलब्ध हो सकें इसकी व्यवस्था विकसित की जा रही है। लोक भारती का प्रयास है कि इस क्षेत्र में नदी के निकट गौ अभयारण्य बने जो गोमती गाय के संवर्धन के
केन्द्र के रूप में विकसित हो।

उपरोक्त सम्पूर्ण कार्य के लिए टोली का विकास एवं प्रशिक्षण के कार्यक्रम निरंतर चलाए जा रहे हैं। इस अभियान को क्रियान्वित करने के लिए डह जयवीर सिंह अपनी सम्पूर्ण शक्ति, बुद्धि एवं समय लगाते हुए संयोजक के दायित्व का निर्वहन करेंगे। इस अभियान को गति प्रदान करने के लिए प्रभारी के रूप में क्षेत्रीय एमएलसी पवन सिंह चौहान ने दायित्व स्वीकार किया है। सीतापुर नगर, इस अभियान से पारिवारिक भाव से जुड़े, इसे हेतु पूर्व बैंक मैनेजर कमलेश पांडे ने दायित्व स्वीकार किया। 

लेखक लोकभारती के सह संगठन मंत्री हैं।
 

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