स्वस्थ गंगा: अविरल गंगा: निर्मल गंगा

स्वस्थ गंगा: अविरल गंगा: निर्मल गंगा
स्वस्थ गंगा: अविरल गंगा: निर्मल गंगा

स्वस्थ गंगा:अविरल गंगा:निर्मल गंगार (फोटोःइंडिया वाटर पोर्टल )

20 जुलाई 2021 को गंगा भक्त डा. जी. डी. अग्रवाल (स्वामी ज्ञान स्वरूपजी सानन्द) के 89 वें जन्म दिन पर एक वीडियो मीटिंग आयोजित की गई थी। उस समाचार ने गंगा नदी परिवार की चिन्ता करने वाले अनेक लोगों को एक बार पुनः प्रेरित किया कि वे इस मुद्दे पर लोगों का ध्यान आकर्षित करें। यह आलेख उसी कडी का हिस्सा है। सभी जानते हैं कि वह, देश की लगभग 43 प्रतिशत आबादी की आवश्यकताओं की पूर्ति का पर्याय है।
 
गंगा के स्वस्थ बने रहने का अर्थ है उसके कछार, उसकी सहायक नदियों, समूचे नदीतंत्र की जैव-विविधता और कछार में पल रहे जीवन का स्वस्थ रहना। अर्थात यदि गंगा अस्वस्थ है तो जाहिर है उसका कछार, उसकी सहायक नदियाँ और उसकी जैवविविधता पर खतरा है। उल्लेखनीय है कि गंगा नदी के तंत्र को स्वस्थ रखने का काम बरसाती पानी, कछार का भूगोल, भूजल तथा ग्लेसियरों का योगदान करता है। इस योगदान को प्रकृति नियंत्रित करती है। सभी जानते हैं कि गंगा कछार की हर छोटी बड़ी  नदी का प्राकृतिक दायित्व है - गाद और घुलित रसायनों को समुद्र को समर्पित करना। यह काम साल भर चलता रहता है। इस व्यवस्था के कारण धरती का अवांछित कचरा समुद्र में पहुँच जाता है। यही काम गंगा नदी का तंत्र भी करता है। वह हिमालय, अरावली तथा विन्ध्याचल पर्वत माला से कचरा (मुख्यतः गाद) एकत्रित कर गंगा की मुख्य धारा को सौंप देता है। गंगा की मुख्य धारा उसे बंगाल की खाड़ी को सौंप देती है। गंगा कछार की उथली परतों की साफ-सफाई का काम भूजल करता है। उसी के योगदान के कारण गंगा और उसकी सहायक नदियों की धारा अविरल रहती हैं।

गंगा नदी तंत्र का कैचमेंट हिमालय, अरावली और विन्ध्याचल पर्वतमाला में स्थित हैं। भारत सरकार द्वारा 1990 में प्रकाशित नेशनल वाटरशेड एटलस के अनुसार गंगा नदी तंत्र में 836 वाटरशेड, 126 सहायक केचमेंट और 22 केचमेंट हैं। उन कैचमेंटों से निकलने वाली नदियाँ, अपने से बड़ी नदी से मिलकर अन्ततः गंगा में समा जाती है। यह सही है कि गंगातंत्र की कुछ नदियाँ के पानी का का स्रोत हिमालयीन ग्लेसियर है तो कुछ के पानी का स्रोत  मानसूनी वर्षा।  हिमालय, अरावली तथा विन्ध्याचल पर्वत माला से निकलने वाली नदियों का पूरा तंत्र मिलकर उसे स्वस्थ, अविरल और निर्मल बनाता है। मौजूदा समय में गंगा नदी के समूचे नदी तंत्र की सेहत, गैरमानसूनी विरलता और निर्मलता पर संकट है। बरसात के लगभग चार माह छोडकर बाकी आठ माहों में ये सभी संकट लगातार बढ़ रहे हैं। कछार संवारें: गंगा संवरेगी भारत सरकार ने सन 1986 में गंगा एक्सन प्लान (प्रथम) प्रारंभ किया था। उस समय देश के अधिकांश लोगों द्वारा सोचा गया था कि गंगा तट पर बसे, उत्तरप्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के 25 शहरों की गंदगी को गंगा नदी में मिलने से रोकने मात्र से, गंगा नदी का पानी स्नान योग्य हो जावेगा। अनेक सीवर ट्रीटमेंट प्लान्ट बने पर बात नहीं बनी। 

अगस्त 2009 में यमुना, महानदी, गोमती और दामोदर की सफाई को जोड़कर गंगा एक्सन प्लान (द्वितीय ) प्रारंभ किया गया। जुलाई 2013 की केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल की रिपोर्ट बताती है कि गंगोत्री से लेकर डायमण्ड हार्बर तक समूची गंगा मैली है। इसके अतिरिक्त, हिमालयीन इलाके की जल विद्युत योजनाओं द्वारा रोके पानी और मैदानी इलाकों में सिंचाई, उद्योगों और पेयजल के लिये, विभिन्न स्रोतों से उठाये पानी के कारण गंगा तक के प्रवाह पर संकट के बादल हैं। 
कहा जा सकता है कि सन 1986 में प्रारंभ किये गंगा एक्शन प्लान का नजरिया सीमित था पर हालिया विमर्शों तथा सामाजिक संगठनों के सुझावों के कारण, गंगा नदी तंत्र से जुड़े गंभीर मुद्दों की समझ बेहतर हुई है। अनेक नये और प्रासंगिक आयाम सामने आये हैं। योजना प्रबन्धकों की समझ बेहद परिष्कृत हुई है। लेकिन सब जानते हैं, बिना पूरा कछार संवारे, गंगा नहीं संवरेगी। उसके कैचमेंट की वन भूमि को अभियान का अभिन्न अंग बनाए बिना प्रवाह वृद्धि का लक्ष्य परवान नहीं चढ़ेगा।

विदित है, गंगा कछार में पनपने वाली प्राकृतिक गंदगी तथा मानवीय गतिविधियों के कारण उत्पन्न सभी प्रकार के दृष्य और अदृष्य प्रदूषण को हटाने का काम बरसात करती है। इस व्यवस्था के कारण, हर साल, भारत की 43 प्रतिशत आबादी को प्रभावित करने वाली धरती और नदी-नालों में जमा गन्दगी काफी हद तक साफ हो जाती है। बिना कुछ खर्च तथा प्रयास किये, लाखों टन गंदगी, करोड़ों टन सिल्ट और प्रदूषित मलवा बंगाल की खाड़ी में जमा हो जाता है। यह भी सही है कि उसका कुछ हिस्सा बांधों के पीछे जमा होता है और बाढ़ पैदा करता है। सरकार की चुनौती बरसात बाद गंगा नदी तंत्र में मिलने वाले प्रदूषण को ठीक करने की है। यह काम एवं उपचारित पानी का पुनःउपयोग केन्द्र सरकार के प्रदूषण नियंत्रण मंडल द्वारा निर्धारित कायदे-कानूनों (मानकों) के अनुसार हो सकता है। इसके लिये ट्रीटमेंट प्लान्टों को चैबीसों घंटे पूरी दक्षता एवं क्षमतानुसार चलाना होगा। ठोस अपशिष्टों की शत-प्रतिशत रीसाइकिलिंग करना होगा। कछार की प्रदूषित मिट्टी और पानी को गन्दगी मुक्त बनाना होगा। गंगा और उसकी सहायक नदियों के पानी की गुणवŸाा की मानीटरिंग और रिपोर्ट कार्ड व्यवस्था लागू करना होगा।  पानी की गुणवत्ता पर निगरानी के लिए समाज को भी लामबद्ध करना होगा। उन्हें देशज तरीकों से की जाने वाली प्रदूषण निगरानी से जोड़ना होगा। देशज तरीकों में जलीय जीव-जन्तुओं की उपस्थिति तथा पानी के उपयोग के साइड-इफेक्ट, उत्पादन, स्वाद तथा बीमारियाँ अच्छे इंडीकेटर सिद्ध होते है।  

विदित है कि गंगा कछार में स्थित कल-कारखानों तथा बसाहटों इत्यादि का अनुपचारित प्रदूषित जल का कुछ हिस्सा धरती में रिस कर भूजल भंड़ारों को प्रदूषित करता है। भूजल भंड़ारों का पानी धरती के नीचे-नीचे चल कर गंगा और उसकी सहायक नदियों को मिलता है। उसे रोकने की आवश्यकता है। कुछ प्रदूषण गंगा कछार में हो रही रासायनिक खेती के कारण है। यह अदृश्य किन्तु बेहद व्यापक खतरा है। यह खतरा, सीमित स्थानों या प्वाईंट सोर्स पर होने वाले खतरे की तुलना में अधिक खतरनाक है। यह खतरा नंगी आँखों से नहीं दिखता। अधिकांश लोगों की समझ में भी नहीं आता लेकिन प्रदूषित भूजल, कछार की मिट्टी को जहरीला बना, सहायक नदियों के मार्फत अन्ततः गंगा और बंगाल की खाड़ी को मिलता है। आर्गेनिक खेती और जैविक कीटनाशकों की मदद से ही गंगा कछार की प्रदूषित होती मिट्टी, पानी और खाद्यान्नों को समस्यामुक्त करना संभव है। 

अनेक स्थानीय एवं प्राकृतिक कारणों से, गंगा सहित उसकी सभी सहायक नदियों में गैर-मानसूनी प्रवाह कम हो रहा है। इसका पहला कारण बाँध हैं। बाँधों के कारण जल प्रवाह अवरुद्ध होता है। उसकी निरन्तरता पर असर पड़ता है। इसके अलावा, नदियों से सीधे पानी उठाने के कारण भी जल प्रवाह घटता है। यह नदियों में जल प्रवाह के घटने का पहला कारण है। दूसरे, बरसात बाद गंगा नदी की अधिकांश नदियों के कैचमेंट तथा जंगलों से मिलने वाले पानी के योगदान में कमी आ रही है। इसका मुख्य कारण, कैचमेंट में हो रहा भूमि कटाव है। भूमि कटाव के कारण कैचमेंट की मिट्टी की परतों की मोटाई घट रही है। कहीं कहीं वह समाप्त हो गईं है। मोटाई घटने के कारण भूजल संचय घट रहा है। संचय घटने के कारण कैचमेंट की क्षमता घट गई है। क्षमता घटने के कारण, पानी देने वाले एक्वीफर, बरसात बाद, बहुत जल्दी खाली हो रहे है। यह नदियों में जल प्रवाह घटने या सूखने का मुख्य कारण है। तीसरे, गंगा कछार में भूजल का दोहन बढ़ रहा है। भूजल दोहन के बेतहाशा बढ़ने के कारण भूजल स्तर, नीचे तेजी से उतर रहा है। उसके नदी तल के नीचे पहुँचते ही नदी का प्रवाह रुक जाता है।
  
अन्त में, गंगा और उसकी सहायक नदियों की प्राकृतिक व्यवस्था को बहाल करने के लिये गंगा नदी तंत्र की सभी नदियों के प्रवाह में बढ़ोतरी  करना होगा। उनके प्रवाह को अविरल और नदियों को बारहमासी बनाना होगा। घटते जल प्रवाह को बढ़ाने के लिये गंगा नदी घाटी की चारों बेसिनों, उनके सभी 22 कैचमेंटों, 126 उप-कैचमेंटों और 836 वाटरशेडों में समानुपातिक भूजल रीचार्ज, कटाव रोकने तथा मिट्टी की परतों की मोटाई के उन्नयन के काम को लक्ष्य प्राप्ति तक करना होगा।  प्रदूषण मुक्ति के काम को युद्ध स्तर पर करना होगा। प्रदूषण करने वालों की जिम्मदारी और भूमिका तय करनी होगी। समय सीमा में काम करना होगा। समाज को प्रयासें में भागीदार बनाना होगा। तभी गंगा का कछार संवरेगा, तभी गंगा संवरेगी। तभी उसकी निर्मलता और पवित्रता लौटेगी। तभी वह स्वस्थ होगी। 
 

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