ताकि प्यासे न रह जाएं भारत के शहर

10 Sep 2011
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पानी का बढ़ता संकट
पानी का बढ़ता संकट

धरती पर पानी के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। लेकिन यही वह चीज है, जिसके बारे में हम सबसे कम चिंता करते हैं। ग्लोबल वार्मिंग, ओजोन होल, कॉर्बन डाइऑक्साइड और घटती हुई हरियाली जैसे विषयों ने पानी को नेपथ्य में धकेल दिया है लेकिन दूसरी तरफ पानी के संकट ने खतरे की घंटी भी बजानी शुरू कर दी है। जैसे-जैसे पृथ्वी पर लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे पानी की प्रति व्यक्ति उपलब्धता घटती जा रही है। मानव विकास सूचकांक के मुताबिक भारतीय शहरों में केवल 74 फीसदी और गांवों में केवल 25 फीसदी घरों में ही पानी सप्लाई किया जाता है। बाकी घरों में लोग हैंड पंप या कुएं जैसे दूसरे स्रोतों से पानी प्राप्त करते हैं।

 

 

घग्घो रानी कितना पानी


आज भारत की शहरी आबादी यहां की कुल जनसंख्या की एक तिहाई है। सोचने की बात है कि सन् 2020 में क्या हालत होगी, जब देश की 50 फीसदी आबादी शहरों में रहने लगेगी। अभी तो हम दूर-दूर से पानी लाकर शहरों में पानी की जरूरतें पूरी करने की कोशिश कर रहे हैं। दिल्ली के लिए 300 किलोमीटर दूर टिहरी डैम से पानी लाया जाता है जबकि चेन्नई इसे 200 किलोमीटर दूर कृष्णा नदी से और बेंगलूरु में 100 किलोमीटर दूर कावेरी नदी से ले आया जाता है। आइजॉल में एक किलोमीटर नीचे घाटी से पानी लाना पड़ता है। इतनी जद्दोजहद के बाद भी शहरों में पानी की जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं।

 

 

 

 

सरक चुका है टेबल


विश्व बैंक ने एशिया के 27 शहरों की प्रतिदिन जल उपलब्धता की एक सूची बनाई। इसमें ऐसे शहरों को शामिल किया गया जिनकी आबादी 10 लाख से अधिक है। इसमें सबसे खराब स्थिति दिल्ली और चेन्नई की है। दूसरे नंबर पर मुंबई और चौथे पर कोलकाता है। भारतीय शहरों में पानी आम तौर पर नदी या झील से सप्लाई किया जाता है और जरूरत पड़ने पर इसके लिए भूमिगत जल का भी उपयोग किया जाता है। इसका दुष्प्रभाव वॉटर टेबल लगातार नीचे सरकने के रूप में देखा जा रहा है। भारत दुनिया में भूमिगत जल के उपयोग के मामले में सबसे आगे है। विश्व बैंक के मुताबिक पूरे दुनिया में जितने भूमिगत जल का उपयोग किया जाता है, उसमें एक चौथाई हिस्सेदारी भारत की है। एक ओर भूजल का दोहन बढ़ रहा है, दूसरी ओर इसे रिचार्ज करने का साधन खासकर शहरों में लगातार सिकुड़ता जा रहा है। शहरी जमीन पर बिछ रहा कंक्रीट बारिश के पानी को सतह के नीचे जाने ही नहीं देता।

शहरों में जो बारिश का पानी संचित करने के पारंपरिक तरीके लगभग नष्ट हो चुके हैं। 60 के दशक में बेंगलूर में 262 झीलें थीं, जो अब घटकर मात्र दो रह गई हैं। अहमदाबाद में 137 झीलें सूचीबद्ध हैं लेकिन इनमें से 65 के ऊपर कॉलोनियां बस चुकी हैं। दिल्ली में 508 वॉटर बॉडीज की पहचान की गई है, लेकिन इनमें से कोई भी पूरी तरह संरक्षित नहीं है। दरअसल विकास की दौड़ में हम उन चीजों का महत्व नहीं समझ पा रहे हैं जिनका हमारे जीवन से गहरा संबंध है। जरूरत इस बात की है हमारे पूर्वजों की विरासत जो भी बची हुई है, उसे बचाए रखने में अपनी पूरी ताकत लगा दें।

जहां तक शहरों में पानी के संकट के समाधान का सवाल है तो इसके लिए कुछ ही विकल्प हैं। सबसे पहला विकल्प तो यह है कि हम बारिश का पानी जमा करें। हर कॉलोनी में एक ऐसा जगह बनाने की आवश्यकता है जहां बारिश के पानी को एकत्रित किया जा सके और इसे बाद में उपयोग किया जाए। दूसरा विकल्प यह है कि हम उपयोग किए हुए पानी को रिसाइकिल कर उसका दोबारा उपयोग करें। सिंगापुर में यह क्षमता है कि वह जितने पानी का उपयोग करता है उस सारे पानी को रिसाइकिल कर सकता है। यह अलग बात है कि वह केवल 10 फीसदी रिसाइकिल्ड पानी का उपयोग पेय जल के रूप में करता है। इसे वहां नया पानी बोला जाता है। भारत में इधर मुंबई में कुछ ऐसे सराहनीय प्रयास चर्चा में आए हैं और इससे शहर में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता बढ़ी है।

ऐसे उदाहरणों को देश के सारे महानगरों में दोहराए जाने की जरूरत है। यह बात और है कि मानसिक रूप से लोगों को रिसाइकिल्ड पानी के उपयोग का आदी बनाने में काफी समय लगेगा। पानी के संकट को गंभीरता से नहीं लिया गया तो भविष्य में इसकी किल्लत की वजह से शहरों में सामाजिक अशांति फैल सकती है। कई शहरों में इस तरह की घटनाएं अभी ही दिखने लगी हैं। शहरों में पानी के उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सबसे पहले हमें यह देखना होगा कि हमारे देश में पानी के पारगमन और वितरण की व्यवस्था की उचित देखरेख हो पा रही है या नहीं।

 

 

 

 

कारों को कम नहलाएं


कार धोने में पानी का इस्तेमाल कम करेंकार धोने में पानी का इस्तेमाल कम करेंहकीकत यह है कि पाइप फटने की वजह और लीकेज के कारण 25 से 30 फीसदी पानी घरों में पहुंचने के पहले ही बर्बाद हो जाता है। इस तंत्र को दुरुस्त करना जरूरी है ताकि रास्ते में पानी की बर्बादी कम से कम हो। इस समस्या से निपटने में आम लोगों की भागीदारी भी काफी महत्वपूर्ण है। जैसे नल को बेवजह खुला नहीं छोड़ें और कारों को सीधे पाइप से नहलाने के बजाय उसे भीगे कपडे़ से पोंछे। 1960 के दशक के पहले अमेरिका को भी पानी के संकट का सामना करना पड़ रहा था। वहां पानी को बेहतर तरीके से उपयोग करने का प्रयास किया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि 1980-2000 के दौरान अमेरिका में प्रति व्यक्ति पानी की खपत में 20 फीसदी की कमी आई। ऐसा प्रयास भारत में भी किया जा सकता है। जरूरत सिर्फ इस बात की है कि हम पानी का मूल्य समझें और इसके प्रति संवेदनशील बनें।

 

 

 

 

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