ताल में तिलिस्म नहीं

नैनीताल अपने सुंदर तालों और लुभावनी पर्वतमालाओं के लिए जाना जाता है। लेकिन देखरेख की कमी और बढ़ते प्रदूषण की वजह से इस पर्यटननगरी की सुंदरता छीज रही है। इसके बारे में बता रहे हैं राजेंद्र उपाध्याय।

झीलों का जलस्तर गिरने से शिकारी सक्रिय हो गए हैं। महाशीर प्रजाति की कभी पचास पौंड की मछली जिम कार्बेट ने पकड़ी थी। अब इस प्रजाति की मछलियां दुर्लभ हो गई हैं। पहाड़ के सैंकड़ों पहाड़ी स्रोत सूख गए हैं। किसानों को फसलों के लिए, गृहस्थों को पीने के लिए पानी नहीं मिल रहा है जबकि होटलों में स्विमिंग-पूल चल रहे हैं। प्राकृतिक सौंदर्य से लबालब इस पर्यटक स्थल के चारों ओर हरे-भरे जंगल और पहाड़ियां होने से देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों को यह स्थान खूब भाता है। आज जाने का दिन है। तीन दिन यहां रहा। नैनीताल क्लब में। कुछ शांति मिली। अगल-बगल के कमरों से छोटे बच्चों के शोर मचाने की आवाजों को छोड़ कर। मोबाइल पर जोर से बात करते बाबुओं को छोड़कर। कुछ अच्छे चेहरे देखे। कुछ लोग तरह-तरह के विभिन्न जातियों, विचारों, व्यवहारों और कारोबार वाले लोग। सब एक साथ नाश्ते की मेज पर आलू पराठा-ब्रेड-आमलेट खाते चाय-कॉफी पीते। घूमने जाने न जाने की बातें करते हरदम होटलों का रेट पता करते। होटल सब हाउसफुल हैं।

नैनीताल में इन दिनों पैदल चलना भी मुश्किल हो गया है। कोई भी राह चलते आपको पकड़ सकता है कि ‘आइए! अच्छे होटल में ले चलें। होटल सब फुल हैं। जगह-जगह घरों में भी लोगों ने होटल खोल लिए हैं। इस बार मैदानी इलाकों में इतनी गरमी है कि ‘फ्लैट’ पर गाड़ियों की भीड़ इकट्ठी हो गई है। पार्किंग में भी जगह नहीं है।’ सैलानियों का हुजूम उमड़ पड़ा है। छोटे-बड़े-स्त्री-पुरुष बच्चे सब घूमने चले आए हैं। मॉलरोड पर जैसे मेला-सा लगा है। कोई कभी भी किसी से भी टकरा सकता है। इतनी तरह की बातें सुनने में आती हैं। इतने तरह के कपड़े जूते, व्यंजन वगैरह। तिब्बती मॉर्केट में तरह-तरह की चाइनीज चीजें- चाऊमीन, मोमो, छोले भटूरे, पाव भाजी, डोसे, चाट, दही भल्ले। तरह-तरह की पानी की बोतलें।

टैक्सी का कल आधे दिन का लेक-टूर लिया था। नौकुचिया ताल, भीमताल, सातताल की परिक्रमा की। राक्षसताल और खुर्याताल तो रह ही गया। नैनीताल में भी झील है नैनी झील पर बोलते उसे भी ताल ही हैं। नैनीताल में मल्लीताल और तल्लीताल हैं। ठंडी सड़क है। चिड़ियाघर से नैनीताल का अच्छा नजारा देखने को मिलता है। जिस नैनीताल क्लब में ठहरा हूं- वह भी अब नैनीताल क्लब नहीं रहा। अब राज्य-अतिथिगृह हो गया है। अंग्रेजों के जमाने में 1877-80 में रहा होगा नैनीताल क्लब। 1892 में भव्य नैनीताल क्लब, 27 नवंबर 1977 को चिपको आंदोलन के दौरान इसमें आग लगा दी गई थी- यह तहस-नहस हो गया था। यहां लकड़ियों की नीलामी होती थी, जिसे रुकवाने की मांग चिपको आंदोलनकारियों ने की। जिसे न मानने पर यह सख्त कदम आंदोलनकारियों ने उठाया। 1980-81 में राजकीय निर्माण कराया गया। इसमें अड़तालीस कक्ष, तीन डॉरमेटरी है और मानस कुंज में पांच कुटीर हैं- गगन, समीर, ज्योति, नीर और अवनि नाम के। हम लोग बाबुओं वाले कमरे में ठहरे हैं। ये भी अच्छे हवादार प्रकाशमान कमरे हैं। कमरे दो दरवाजों वाले हैं। दोनों दरवाजों से आना-जाना होता है।

‘मेरा घर सब ओर से खुला है चाहे जिधर से भी आओ (जाओ)’ (अज्ञेय) पीछे के दरवाजे से- जो दरअसल आगे का लगता है-से बाहर निकलों तो झील दिखती है। जो दूर से तो खामोश दिखती है- पर नजदीक जाने पर उसमें काफी हलचल दिखाई देती है। सांस लेती मछिलयां हैं, पर्वतमालाएं हैं। इस झील में ऑक्सीजन छोड़ी गई है तब से साफ हो गई है। झील में चलती नावें नई-पुरानी रंगीन-सादी सब एक जैसी दिखती हैं। इसमें बैठे लोग नहीं दिखते तीन पर्वतमालाओं के बीच एक बहती नदी फंस गई है और झील बन गई है। तीन पहाड़ों ने एक नदी को अपनी गोद में बैठा लिया। नदी को लील लिया। नदी भी उनके प्यार में ठहर गई। ठिठक गई। आगे जाने का रास्ता ही भूल गई। दिशाओं ने रोक लिया। नैनीताल में ‘ताल’ न होता तो क्या होता? कुछ भी नहीं। केवल शिमला जैसी एक पहाड़ी ही रहती। ताल में झांक कर देखा झील उदास थी मछलियां उदास थीं। छोटी-बड़ी सब।

कल भवाली में झयरोग आरोग्य संस्थान देखा। पीली क्षयरोगग्रस्त इमारत। देखते ही जिसको क्षयरोग न हो, उसको भी क्षयरोग हो जाए। रवींद्रनाथ ठाकुर भवाली से तेरह किलोमीटर दूर गागर के पास एक दौर में न सिर्फ रहे बल्कि गीतांजलि के कुछ गीत भी लिखे। उनका वह घर आग में भस्म हो चुका है।

भवाली होकर अल्मोड़ा, कौसानी, रानीखेत, बागेश्वर, चंपावत, कहीं भी जाया जा सकता है। हल्द्वानी गेटवे ऑफ कुमाऊं है। भवाली में आने जाने के रास्ते हैं। बसों की, ट्रकों की आवाजाही पर्याप्त है। सड़कें-सकंरी, पतली हैं। नदी की बांक जैसी हैं। ऊपर से सात ताल देखा अद्भुत दृश्य लगा। ताल-तलैया, सरोवर, झरने, सोते सूख रहे हैं। पशु-पक्षी, पेड़-पौधे बेचैन हैं। वर्षा ऋतु के आगमन के लिए पलक पांवड़े बिछाए बैठे हैं।

नैनीताल झील अब संकट में है। उसके कई किनारे सूख गए हैं। उसमें कूड़ा-करकट फेंकने पर सौ-दो सौ रुपए का जुर्माना है। फिर भी घरों और होटलों का गंदला पानी सब झील में दिन-रात समा रहा है। नैनी झील के सभी प्राकृतिक स्रोत सूख गए हैं। हमने आधे दिन का जो लेक-टूर नौकुचियाताल, भीमताल, और सातताल का लिया था, उसमें भी नौकुचियाताल का कमलताल सूखा मिला। करीब दो किलोमीटर क्षेत्रफल में फैली भीमताल की भीमेश्वर झील उचित रखरखाव के अभाव में दिनों दिन प्रदूषित होती जा रही है। नैनीताल क्लब के मैनेजर मिथिलेश पांडेय नाट्य गतिविधियों से जुड़े रहे हैं। हाल ही में हुए नाटक ‘तुगलक’ में तुगलक बने थे। वे अभिनेता निर्मल पांडेय के भाई हैं और भी नाटक करना चाह रहे हैं। उनसे चर्चा होती है। कल गांधी चौक पर शेखर पाठक मिले थे। उनके साथ ठंडी सड़क से आते हुए बटरोही मिल गए जहूर आलम की कपड़े की दुकान में बैठे ‘परिहार’ मिल गए जो ‘तुगलक’ में अजीज बने थे। साहित्यिक सांस्कृतिक चर्चा चल पड़ी। शेखर पाठक ने कहा, ‘शेखर जोशी का अस्सीवां मनाना चाहिए। ‘दाज्यू’ पर नाटक करो।’ पीसी जोशी नब्बे के हो रहे हैं। उनका मानना है कि ‘गिर्दा’ भी अभी होते तो अस्सी के होते। ‘गिर्दासमग्र’ मुझे दिया जो ‘पहाड़पोथी’ नाम से छपा है। जहूर की कपड़े की दुकान से बल्लीसिंह चीमा का काव्य संग्रह खरीदा। शेखर पाठक ने भी। ‘बया’ में बटरोही का उपन्यास आया है। शेखर ने हमको यहां की प्रसिद्ध दही-जलेबी खिलाई। शेखर पाठक ‘पहाड़’ निकालते हैं। कपड़े की दुकान में बैठकर लिखकर अपनी किताबें दीं- पूरनचंद्र जोशी का कविता संग्रह ‘हिमाद्रि को देखा’, नैनीसिंह रावत की जीवनी ‘पंडितों का पंडित’ और ‘गिर्दा समग्र’- जिसमें उनके नाटक भी हैं। लोक संस्कृति की छाप लिए। बातों-बातों में जहूर आलम ने कहा- नैनीताल का तो सत्यानाश हो गया है, जिसकी फोटोस्टेट की दुकान थी उसने होटल खड़ा किया है। सब जगह व्यापार की बोली जा रही है, कोई भी साहित्य-कला-संस्कृति की बात नहीं करता। यहां बरसों-बरस पढ़ाई कर चुकी कमला ने कहा, ‘यहां एक चायवाला बैठता था। कहां गया अब कौन चायवाला कहां? सब कुछ गया पुराना, नया हो गया।’ कोई किसी की परवाह नहीं करता। कलाकारों को रिहर्सल के लिए फुर्सत नहीं मिलती है। सब कलाकार नौकरी करते हैं और ‘पार्टटाइम’ शौकिया अभिनय।

नैनीताल बैंक में मैनेजर रहे कथाकार गंभीर सिंह पालनी से मिलने गया तो पता चला कि वे एक महीने पहले शिवपुर-रुद्रपुर बैंक में सीनियर मैनेजर बनकर चले गए। मिलना नहीं हुआ। उनकी ‘मेंढक’ कहानी की काफी चर्चा हुई थी। नैनीताल झील भी संकट में है। उसके कई किनारे सूख गए हैं। उसमें कूड़ा-करकट फेंकने पर सौ-दो सौ रुपए का जुर्माना है। फिर भी घरों और होटलों का गंदला पानी सब झील में समा रहा है दिन-रात। नैनी झील के सभी प्राकृतिक स्रोत सूख गए हैं। हमने आधे दिन का जो लेक-टूर नौकुचियाताल, भीमताल, और सातताल का लिया था, उसमें भी नौकुचियाताल का कमलताल सूखा मिला। कमल कीचड़ में खिले थे, जंगली घास के बीच।

अज्ञेय के ‘नदी के द्वीप’ में जिस नौकुचियाताल का वर्णन मिलता है वह कहां है? उसके नौ कोने कहां हैं? जैनेंद्र कुमार की अमर कहानी ‘अपना-अपना भाग्य’ और यशपाल की ‘कुली’ का नैनीताल कहां है? ‘कटीपतंग’ फिल्म का राजेश खन्ना-आशा पारेख का नैनीताल कहां है- ‘जिस गली में तेरा घर न हो बालमा....।’ करीब दो किलोमीटर क्षेत्रफल में फैली भीमताल की भीमेश्वर झील उचित रखरखाव के अभाव में दिनों दिन प्रदूषित होती जा रही है। भीमताल से ग्यारह किलोमीटर दूर सात ताल है। एक दूसरे से सटी सात झीलों की वजह से ही इस जगह का नाम सातताल पड़ा है। इनमें चार झीलें राम, लक्ष्मण, सीता ताल एक साथ और गरुण ताल कुछ दूरी पर है। भरत, शत्रुघ्न और हनुमान ताल सूख गए हैं।

सातताल अज्ञेय मोटर से नहीं, पैदल भवाली-नैनीताल से दस-पंद्रह किलोमीटर चलकर गए थे। तब यहां डाक बंगले में बिजली नहीं थी। कुली से सामान उठवाना पड़ता था। ‘नदी के द्वीप’ में रेखा और भुवन सातताल और नौकुचियाताल जाते हैं। वहां का वर्णन अज्ञेय के शब्दों में देखिए, ‘दिन ढलने लगा था। आकाश के विस्तार में एक हल्की सी धुंध छाने लगी थी। अभी थोड़ी देर में इसी धुंध में सांझ का ताम्रलोहित रंग बस जाएगा.. आस-पास की पहाड़ियां क्रमशः नीचे होती गई थीं और धुंध के बीच में, जैसे किसी जौहरी ने संभालकर रुई के गाले पर कोई मूल्यवान रत्न रखा हो, एक झील चमक रही थी... क्या सचमुच सातताल है!’

‘जरूर है-लेकिन जादू के बगैर नहीं दीखते। यों शायद तीन हैं- बल्कि अढ़ाई... ’ ‘वहां एक तिलिस्मी झील है, और उसके अलग-अलग नौ कक्ष हैं। सब कभी एक साथ नहीं दीखते। रोज एक देखना होता है... इस झील का नाम है नौकुचियाताल।’ (नदी के द्वीप, 1951) हम सब जगह गए, सातताल भी और नौ कोने वाले ताल भी। कहीं कोई तिलिस्म नहीं, कहीं कोई रहस्य नहीं। रहस्य के सौंदर्य नहीं और सौंदर्य के रहस्य नहीं।

झीलों का जलस्तर गिरने से शिकारी सक्रिय हो गए हैं। महाशीर प्रजाति की कभी पचास पौंड की मछली जिम कार्बेट ने पकड़ी थी। अब इस प्रजाति की मछलियां दुर्लभ हो गई हैं। शिकारी मछलियों को कम पानी वाले क्षेत्र में भोजन मिलता है इसलिए वे वहां आ जाती हैं और शिकारी उसका आसानी से आखेट कर लेते हैं। सब तरफ सब जगह खुला आखेट चल रहा है।

पहाड़ के सैंकड़ों पहाड़ी स्रोत सूख गए हैं। किसानों को फसलों के लिए, गृहस्थों को पीने के लिए पानी नहीं मिल रहा है जबकि होटलों में स्विमिंग-पूल चल रहे हैं। प्राकृतिक सौंदर्य से लबालब इस पर्यटक स्थल के चारों ओर हरे-भरे जंगल और पहाड़ियां होने से देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों को यह स्थान खूब भाता है। यहां एक हिडिंबा चोटी भी है। मान्यता है कि महाभारत में भीम का इसी स्थान पर हिडिंबा से प्रेम-प्रसंग चला था। इस स्थान पर आज वनखंडी महाराज आश्रम है। भीमताल से चार किलोमीटर दूर नलदमयंती ताल का भी पौराणिक महत्व है। हरिश ताल, मलुवाताल भी भगवान भरोसे हैं।

वनाग्नि अलग कहर ढा रही है। दावानल खतरनाक हो रहा है। भोले-भाले ग्रामीण इसकी चपेट में आ जाते हैं। मवेशी झुलस जाते हैं। वीआईपी लोगों का हुजूम अलग वन्यप्राणियों की नींद हराम किए दे रहा है। जब देखों तब वीआईपी ‘विजिट’ पर आ जाते हैं। और अकेले नहीं पूरे लावलश्कर के साथ। सबके लिए चाय, नाश्ते, भोजन के प्रबंध में वन विभाग का महकमा जुट जाता है। वन्य जीवों की रक्षा क्या करेगा? दूर देश से आई बंदूकें अंधाधुंध शिकार कर रही हैं। अब यहां हर कोई शिकार और शिकारा में लगा है।

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