तालाब जल का उपयोग (Use of pond water)

Use of pond water
Use of pond water


जल के उपयोग की विशेषताएँ विशिष्ट प्रकृति की होती हैं। जल की समस्याओं की स्थिति स्थानीय या प्रादेशिक होती है। प्रत्येक स्थान पर स्वच्छ जल की आपूर्ति स्थानीय स्तर पर उपलब्ध जल के द्वारा करना पड़ता है तथा स्थान के अनुसार जल के उपयोग का स्तर निर्धारित होता है। किसी भी स्थान पर जल के उपयोग का एक या दो प्रकार ही प्रमुख होता है अन्य उपयोग कम महत्त्वपूर्ण होता है। जल की उपयोगिता घरेलू पेयजल एवं सिंचाई के लिये महत्त्वपूर्ण होता है।

मनुष्य के पीने के लिये, खाना बनाने के लिये, सिंचाई के लिये एवं उद्योगों के लिये एवं विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये जल की आवश्यकता होती है। ‘जल ही जीवन है’ पृथ्वी पर जीवन जल से ही सम्भव है। जल के बिना मानव के जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती।

निस्तारी कार्य में तालाब-जल का उपयोग - ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब-जल का उपयोग मुख्यतः निस्तारी कार्यों में किया जाता है, जैसे- नहाने-धोने, साफ-सफाई आदि। प्राचीन समय में तालाब-जल का उपयोग लोग भोजन पकाने और पीने के लिये भी करते थे लेकिन वर्तमान में जल के अन्य स्रोत उपलब्ध हो जाने के कारण एवं तालाब जल प्रदूषण युक्त होने से इसका उपयोग मुख्य रूप से बाह्य कार्यों में उपयोग किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में निवासरत मानव का 95 प्रतिशत लोग तालाब-जल का उपयोग किसी न किसी रूप में करते हैं, चाहे नहाने-धोने का कार्य हो या शौच का कार्य हो (पार्क जे. व्ही. 1983, 143) के अनुसार ‘‘स्वच्छ जल की आपूर्ति मानव के लिये मूलभूत आवश्यकता है। प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति 150 से 200 लीटर पानी (35 से 40 गेलन) मानवीय आवश्यकताओं के लिये पर्याप्त है। पानी की खपत जलवायु तथा व्यक्ति के जीवन-स्तर के अनुसार कम या अधिक होती है। शुद्ध जल की आपूर्ति मनुष्य के स्वास्थ्य के लिये अत्यन्त आवश्यक है।’’ रायपुर जिले की जनसंख्या 3016930 है। यह जनसंख्या 09 नगरों एवं 2133 ग्रामों में आबाद है। लगभग 70 प्रतिशत (2099312) जनसंख्या ग्रामीण अधिवासों में एवं 30 प्रतिशत जनसंख्या नगरीय क्षेत्रों में निवास करती है।

इस अध्याय में ग्रामीण जनसंख्या द्वारा तालाब-जल के उपयोग को स्पष्ट करना है। यद्यपि पेयजल के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में हैण्डपम्प एवं कुएँ हैं इस कारण तालाबों के पानी का उपयोग अन्य घरेलू कार्याें में किया जाता है। रायपुर जिले में 9370 तालाब हैं। ये तालाब बहुआयामी उपयोग में आते हैं। प्रत्येक ग्रामीण क्षेत्र में तालाब सिंचाई के कार्यों एवं घेरलू निस्तारी कार्यों के उपयोग में लाए जाते हैं। तालाबों का घनत्व जनसंख्या एवं कृषि-घनत्व के साथ संगर्भित होते हैं। महानदी-खारुन-दोआब में तालाबों का घनत्व अधिक मिलता है। रायपुर उच्चभूमि के क्षेत्रों में तालाबों का घनत्व तुलनात्मक रूप से कम है। पर्यावरण, पारिस्थतिकी एवं मानव के मध्य अनुकूलन तालाबों के रूप में दृष्टिगत होता है। ग्रामीण क्षेत्रों के तालाब के पानी के उपयोग को इस प्रकार सूची बद्ध किया जा सकता है।

1. नहाने के लिये: लगभग पूरी ग्रामीण जनसंख्या तालाबों का उपयोग नहाने के लिये करती है।

2. सफाई के लिये: घरेलू कपड़ों को चाहे वह गंदे हो या बच्चों के मल से युक्त हों।

3. घरेलू बर्तन एवं घरों की सफाई के लिये।

4. कभी-कभी भोजन पकाने के कार्यों के लिये।

5. मल-विसर्जन के पश्चात हाथों एवं शरीर की सफाई के लिये। कभी-कभी बच्चे मल निष्कासन तालाब के अंदर ही कर देते हैं।

6. घरेलू पशुओं के पेयजल एवं सफाई के लिये। इन पशुओं द्वारा तालाब के अंदर मल विसर्जन कर दिया जाता है।

7. जूट के रेशे को अलग करने के लिये तालाबों में पानी के भीतर 15 दिनों तक डुबाकर रखा जाता है।

8. खेतों में दवाई छिड़काव के बाद स्प्रेयर, कृषि उपकरणों को तालाब के पानी में साफ किया जाता है।

9. त्योहारों में मूर्ति-विसर्जन, पूजा के फूलों का विसर्जन भी तालाबों में किया जाता है।

उपरोक्त कार्यों को सर्वेक्षण के समय अवलोकन करने के पश्चात तालाब के पानी के प्रमुख उपयोग को निम्नांकित सारणी में दर्शाया गया है।

सारणी 4.1

चयनित तालाबों का निस्तारी कार्यों में उपयोग की जाने वाली तालाबों की संख्या

क्र.

विकासखंड

चयनित ग्राम

चयनित तालाब

निस्तारी कार्य

प्रतिशत

1

आरंग

05

29

22

7.72

2.

अभनपुर

05

24

21

7.36

3.

बलौदाबाजार

04

21

16

5.61

4.

भाटापारा

04

33

26

9.12

5.

बिलाईगढ़

04

24

22

7.72

6.

छुरा

04

21

18

6.31

7.

देवभोग

04

18

15

5.26

8.

धरसीवां

04

20

19

6.66

9.

गरियाबंद

04

21

17

5.96

10.

कसडोल

04

17

17

5.96

11.

मैनपुर

04

20

17

5.96

12.

पलारी

04

14

13

4.56

13.

राजिम

02

06

06

2.10

14.

सिमगा

02

06

06

2.10

15.

तिल्दा

03

11

08

2.80

कुल

15

57

285

243

85.26

स्रोत: व्यक्तिगत सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त आंकड़ा।

उपर्युक्त सारणी 4.1 से स्पष्ट है कि अध्ययन क्षेत्र में चयनित 57 ग्रामीण क्षेत्रों के चयनित 285 तालाबों में से निस्तारी कार्यों में उपयोग की जाने वाली तालाबों की संख्या 243 (85.26 प्रतिशत) पाये गये। विकासखंडानुसार सर्वाधिक निस्तारी वाले तालाबों की संख्या आरंग, अभनपुर, भाटापारा, बिलाईगढ़, छुरा, धरसीवां अन्तर्गत 128 (44.91 प्रतिशत), बलौदाबाजार, देवभोग, गरियाबंद, कसडोल, मैनपुर, पलारी अन्तर्गत 95 (33.33 प्रतिशत) एवं राजिम, सिमगा, तिल्दा विकासखंड अन्तर्गत 20 (7.01 प्रतिशत) पाये गये।

नहाने के लिये तालाब का उपयोग: अध्ययन क्षेत्र में चयनित तालाब का उपयोग नहाने के लिये किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर लोग तालाब में ही नहाते हैं, क्योंकि तालाबों में नहाने-धोने की उचित व्यवस्था होती है। साथ ही सर्वसुविधायुक्त होने के कारण इसकी उपयोगिता अधिक होती है। अतः चयनित तालाबों में नहाने वालों की संख्या एवं नहीं नहाने वालों की संख्या को विकासखंडानुसार सारणी 4.2 में प्रस्तुत किया गया है।
 

सारणी 4.2

तालाब का नहाने एवं नहीं नहाने वाले लोगों की संख्या

क्र.

विकासखंड

चयनित ग्रामों की संख्या

चयनित तालाबों की संख्या

तालाब में नहाने वालों की संख्या

तालाब में नहीं नहाने वालों की संख्या

नहाने

%

नहीं नहाने

%

1

आरंग

05

29

6,680

7.53

1,668

1.88

2.

अभनपुर

05

24

10,050

11.33

1,974

2.23

3.

बलौदाबाजार

04

21

9,700

10.94

1,091

1.23

4.

भाटापारा

04

33

4,950

5.58

427

0.48

5.

बिलाईगढ़

04

24

4,600

5.19

521

0.58

6.

छुरा

04

21

6,800

7.67

930

1.05

7.

देवभोग

04

18

11,900

13.42

1,042

1.17

8.

धरसीवां

04

20

3,550

4.00

372

0.42

9.

गरियाबंद

04

21

3,700

4.17

253

0.28

10.

कसडोल

04

17

2,550

2.87

292

0.33

11.

मैनपुर

04

20

3,160

3.56

436

0.49

12.

पलारी

04

14

2,940

3.32

193

0.22

13.

राजिम

02

06

1,800

2.03

339

0.38

14.

सिमगा

02

06

2,700

3.04

249

0.28

15.

तिल्दा

03

11

3,480

3.92

326

0.36

 

कुल

57

285

78,560

88.60

10,113

11.40

स्रोत: व्यक्तिगत सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त आंकडा


तालाब जल का उपयोगसारणी 4.2 से स्पष्ट है कि अध्ययन-क्षेत्रों में चयनित तालाबों में नहाने वालों की संख्या 78560 (88.60 प्रतिशत) एवं तालाब-जल में नहीं नहाने वालों की संख्या 10113 (11.40 प्रतिशत) विकासखंडानुसार पाये गये। तालाबों में नहाने वालों की सर्वाधिक संख्या आरंग, अभनपुर, बलौदाबाजार, छुरा, देवभोग विकासखंड अन्तर्गत 45,730 (57.44 प्रतिशत), भाटापारा, बिलाईगढ़, मैनपुर, पलारी अन्तर्गत 16,800 (21.38 प्रतिशत) एवं धरसीवां, गरियाबंद, कसडोल, मैनपुर, पलारी राजिम, सिमगा, तिल्दा विकासखंड अन्तर्गत 16,630 (21.17 प्रतिशत) नहाने वालों की संख्या पाये गये।

तालाबों में नहीं नहाने वालों की संख्या, भाटापारा, बिलाईगढ़, धरसीवां गरियाबंद, कसडोल, मैनपुर, पलारी, राजिम, सिमगा, तिल्दा विकासखंड अन्तर्गत 3,408 (33.67 प्रतिशत) तथा आरंग, बलौदाबाजार, छुरा, देवभोग, अन्तर्गत 4,731 (46.78 प्रतिशत) एवं अभनपुर विकासखंड अन्तर्गत 1,974 (19.52 प्रतिशत) नहीं नहाने वालों की संख्या ज्ञात किये गये जिनमें सर्वाधिक 46.78 प्रतिशत एवं न्यूनतम 19.52 प्रतिशत पाये गये।

सिंचाई कार्य तालाब-जल का उपयोग: किसी भी क्षेत्र में सिंचाई-कार्य हेतु जल की आवश्यकता अन्य उपयोगों से अधिक होती है। रायपुर जिले में जल के कुल उपयोग का 9/10 भाग सिंचाई के लिये होता है। उपलब्ध कुल वर्षा का 95.93 प्रतिशत भाग वर्षाकाल के 4 महीनों में ही संकेन्द्रित होता है, तथा वर्षा की उपलब्ध होने वाली मात्रा अनिश्चित होती है। जिले की कुल जनसंख्या का 4/5 भाग अपने जीवनयापन के लिये कृषि पर निर्भर है। कृषि पर निर्भर जनसंख्या की मात्रा सिंचाई के महत्त्व का द्योतक है। पौधों के विकास के लिये कृत्रिम विधि से जल प्रदान करने की विधि को सिंचाई कहते हैं।

रायपुर जिले में तालाब मानव-पर्यावरण-पारिस्थतिकी का जीवंत स्वरूप है जो ग्रामीण जीवन के लिये जीवनदायिनी है। धरातलीय स्वरूप तालाब-निर्माण के लिये उपयुक्त है। जलसंग्रहण की पर्याप्त सम्भावना उपलब्ध है। यद्यपि वर्षा का जल संग्रह किया जाता है तथापि प्रत्येक तालाब का अपवाह क्षेत्र से यह 500 मीटर से लेकर 2 किमी. तक होता है। यह भिन्नता स्थानीय ढाल एवं सूक्ष्म जल विभाजक-रेखा से नियंत्रित होती है।

तालाबों का आकार और सिंचाई-क्षमता के अनुसार जलाशयों से लेकर डबरी तक भिन्न-भिन्न रूपों में मिलते हैं। इनकी संख्या में स्थानिक भिन्नता मिलती है। प्रत्येक अधिवास न्यूनतम 2 तालाब युक्त है, इनकी संख्या धरातलीय अनुकूलता तथा कृषि क्षेत्र के अनुसार 10 तक पहुँचती है। अधिकतर तालाबों की गहराई कम है। 2 मीटर की गहराई वाले तालाब बहुसंख्यक है तथा इसकी मात्रा 5 मीटर की गहराई तक विस्तृत होती है। जल के भराव के लिये ये तालाब मानसून की वर्षा पर निर्भर है। कुछ तालाबों को शासकीय स्तर पर नहरों के द्वारा जोड़ दिया गया है, ताकि ग्रीष्म कालीन जलाभाव की दशा में निवासियों को निस्तार के उद्देश्य से जल की प्राप्ति हो सके, फिर भी अल्प वर्षा के वर्षों में स्थिति दयनीय हो जाती है।

रायपुर जिले में तालाबों के द्वारा सिंचित क्षेत्र 82,370 हेक्टेयर है। यह कुल फसल-क्षेत्रफल का 12.47 प्रतिशत है। जिले में सिंचाई कार्यों में प्रयुक्त तालाबों की कुल संख्या 9,370 है। इन तालाबों में 40 हेक्टेयर से अधिक सिंचाई क्षमता वाले तालाब 1,388 तथा 40 हेक्टेयर से कम सिंचाई क्षमता वाले तालाब 7,982 हैं।

सारणी 4.3

तालाब से सिंचित कृषि-क्षेत्र

विकासखंड

सिंचाई तालाबों की संख्या

कुल फसल क्षेत्रफल (हेक्ट.)

तालाब से सिंचित क्षेत्रफल (हेक्ट.)

कुल फसल क्षेत्रफल प्रतिशत

धरसीवां

722

44,594

4,013

9.0

आरंग

947

82,633

3,305

4.0

अभनपुर

595

47,427

1,422

3.0

तिल्दा

875

51,670

18,084

35.0

राजिम

616

41,414

1,657

4.0

बलौदाबाजार

724

56,189

1,686

3.0

पलारी

886

56,910

1,138

2.0

भाटापारा

579

35,411

7,082

20.0

सिमगा

788

45,638

9,128

20.0

कसडोल

332

44,964

5,845

13.0

बिलाईगढ़

870

40,254

8,050

20.0

गरियाबंद

314

21,834

8,734

40.0

छुरा

368

28,288

2,828

10.0

मैनपुर

338

35,748

5,005

14.0

देवभोग

414

27,441

4,391

16.0

योग

9,370

6,60,415

82,368

12.47

स्रोत: कृषि सांख्यिकी पुस्तिका, 2004

कुल सिंचित फसल के क्षेत्रफल में तालाबों से सिंचित फसलों का न्यूनतम 2 प्रतिशत, पलारी विकासखंड में अधिकतम 40 प्रतिशत सिंचिंत क्षेत्रफल गरियाबंद विकासखंड में है। तालाबों के द्वारा सिंचित क्षेत्रफल में एक स्थानिक भिन्नता मिलती है। इस भिन्नता के कारणों में नहरों के द्वारा सिंचित क्षेत्रफल जिम्मेदार कारक है। यद्यपि तालाबों की संख्या पर्याप्त है, फिर भी नहर-सिंचाई ने तालाबों के सिंचाई-उपयोग को परिवर्तित कर मत्स्य पालन उपयोग में परिवर्तित कर दिया है।

महानदी-खारुन-दोआब का नहर सिंचित क्षेत्र के लिये उल्लेखनीय है। इस क्षेत्र में तालाबों के द्वारा सिंचित क्षेत्रफल धरसीवां 9 प्रतिशत (4013 हेक्टेयर), आरंग 4 प्रतिशत (33.05 हेक्टेयर), अभनपुर 3 प्रतिशत (1422 हेक्टेयर), बलौदाबाजार 3 प्रतिशत (1,686 हेक्टेयर), पलारी 2 प्रतिशत (1,138 हेक्टेयर) प्रमुख हैं। यहाँ तालाबों के द्वारा सिंचाई उपयोग मत्स्य पालन उपयोग के लिये परिवर्तित हुआ है, लेकिन इन्हीं धरातलीय स्वरूप वाले तिल्दा विकासखंड में तालाब सिंचाई का 35 प्रतिशत (18,084 हेक्टेयर), भाटापारा 20 प्रतिशत (7,082 हेक्टेयर), सिमगा 20 प्रतिशत (9,127 हेक्टेयर) है। कार्य कारण का स्पष्ट संबंध इन विकासखंडों में परिवर्तित होता है। इन विकासखंडों की धरातलीय स्थिति इस प्रकार भी है कि नहरों की पहुँच कम है या नहर-सिंचित-क्षेत्रफल न्यूनतम है। अतः तालाबों की क्षमता का पूर्ण उपयोग हो रहा है।

ट्रान्स-महानदी-मैदान में स्थित बिलाईगढ़ एवं कसडोल विकासखंड में तालाब से सिंचित क्षेत्र क्रमशः 20 प्रतिशत (8050 हेक्टेयर) एवं 13 प्रतिशत (5845 हेक्टेयर) है। इन विकासखंडों में नहर-सिंचाई का प्रतिशत कम है तथा इनका 1/3 भाग वन-भूमि एवं अवशिष्ट पहाड़ी आन्छादित है।

रायपुर उच्चभूमि में स्थित राजिम 4 प्रतिशत (1656 हेक्टेयर) क्षेत्र तालाब द्वारा सिंचित है, जहाँ का अधिकांश कृषि पैरी-पिकअप-वेयर की नहर प्रणाली से सिंचित है। छुरा विकासखंड में तालाब द्वारा सिंचित भूमि 10 प्रतिशत (2828 हेक्टेयर) है। पहाड़ी क्षेत्र से घिरे होने के कारण यहाँ तालाब के द्वारा सिंचाई का प्रतिशत अधिक है। रायपुर जिले के दक्षिण पूर्व में स्थित सघन वनों में आच्छादित मैनपुर 14 प्रतिशत (5005 हेक्टेयर) गरियाबंद 40 प्रतिशत (8734 हेक्टेयर) एवं देवभोग 16 प्रतिशत (4390 हेक्टेयर) कृषि-भूमि तालाबों के द्वारा सिंचित होती है। उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र में अधिकांश बड़े बाँध हैं, लेकिन धरातलीय असमानता के कारण बाँध से नहरों के द्वारा सिंचाई का लाभ नहीं मिल पाता।

व्यक्तिगत सर्वेक्षण से सिंचाई-उपयोग में प्रयुक्त तालाबों का निदेशनात्मक अध्ययन किया गया। रायपुर जिले में 15 विकासखंडों के 57 ग्रामों में 285 तालाबों का निरीक्षण करने के पश्चात 143 तालाबों को सिंचाई-कार्यों के लिये उपयोग करते हुए देखा गया। जिसे सारणी 4.4 में स्पष्ट किया गया है।
 

सारणी 4.4

चयनित तालाबों जल का सिंचाई कार्यों में उपयोग

क्र.

विकासखंड

चयनित ग्रामों की संख्या

चयनित तालाबों की संख्या

सिंचाई वाले तालाबों की संख्या

प्रतिशत

1

आरंग

05

29

10

3.50

2.

अभनपुर

05

24

13

4.56

3.

बलौदाबाजार

04

21

12

4.21

4.

भाटापारा

04

33

18

6.31

5.

बिलाईगढ़

04

24

08

2.80

6.

छुरा

04

21

12

4.21

7.

देवभाग

04

18

11

3.85

8.

धरसीवां

04

20

14

4.91

9.

गरियाबंद

04

21

11

3.85

10.

कसडोल

04

17

09

3.15

11.

मैनपुर

04

20

09

3.15

12.

पलारी

04

14

05

1.75

13.

राजिम

02

06

03

1.05

14.

सिमगा

02

06

03

1.05

15.

तिल्दा

03

11

05

1.75

 

कुल

57

285

143

50.17

स्रोत: व्यक्तिगत सर्वेक्षण द्वार प्राप्त आंकड़ा

सारणी 4.4 से स्पष्ट है कि चयनित 285 तालाबों में से सिंचाई-कार्य में उपयोग की जाने वाली तालाबों की संख्या 143 (50.17 प्रतिशत) पाये गये हैं। विकासखंडानुसार सर्वाधिक सिंचाई में उपयोग की जाने वाली तालाब अभनपुर, बलौदाबाजार, भाटापारा, छूरा, धरसीवां अन्तर्गत चयनित ग्रामीण क्षेत्रों में 69 (24.21 प्रतिशत), आरंग, बिलाईगढ़, देवभोग, गरियाबंद, मैनपुर, अन्तर्गत चयनित ग्रामीण क्षेत्रों में 58 (20.35 प्रतिशत) एवं न्यूनतम तालाबों द्वारा सिंचाई पलारी, राजिम, सिमगा, तिल्दा विकासखंड अन्तर्गत चयनित ग्रामीण क्षेत्रों में 16 (5.16 प्रतिशत) तालाबों का उपयोग सिंचाई कार्यों में किया जाता है।
 

तालाब-जल का पशुओं के लिये उपयोग


देश की अर्थ-व्यवस्था में पशुओं का स्थान महत्त्वपूर्ण है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में पशुओं का कितना महत्त्व है। यह डाॅ. डाॅलिग के शब्दों से स्पष्ट होता है। वे कहते हैं कि ‘‘इनके बिना खेत बिना जुते-बोये पड़े रहते हैं। खलिहान खाद्यान्नों के अभाव में खाली पड़े रहते हैं तथा एक शाकाहारी देश में इससे अधिक दुखदायी क्या हो सकती है कि यहाँ पशुओं के अभाव में घी, दूध आदि पौष्टिक पदार्थों का उपयोग स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत ही कम है।’’

पशुओं का उपयोग मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि-कार्यों में किया जाता है, साथ ही खाद (गोबर), दूध आदि की प्राप्ति की जाती है। मुख्य रूप से हल खींचने, बोझा ढोने के लिये बैलों तथा अन्य पशुओं का उपयोग किया जाता है। अनुमान है कि भारतीय कृषि-कार्य में लगभग 1,185 करोड़ कार्यशील घण्टे प्रतिवर्ष पशु शक्ति से प्राप्त किए जाते हैं। कृषि का मशीनीकरण होने के बाद भी अधिकांशतः ग्रामीण क्षेत्रों में कृषक अपने कृषि-कार्यों को पशुओं द्वारा ही पूर्ण करते हैं। विशेषकर लघु और सीमान्त कृषक पशुओं द्वारा ही कृषि कार्य करते हैं।

अध्ययन-क्षेत्रों के चयनित ग्रामीण क्षेत्रों में पशुओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है एवं उचित ढंग से देखभाल व रख-रखाव किया जाता है, क्योंकि पशुओं के द्वारा ही सभी प्रकार के कार्यों को पूर्ण करते हैं। साथ ही विभिन्न प्रकार के पौष्टिक खाद्य पदार्थों की प्राप्ति करते हैं। अतः मानव-जीवन का पशुओं के साथ घनिष्ट सम्बन्ध रहा है। अध्ययन क्षेत्र में चयनित 285 तालाब में पशुओं द्वारा उपयोग की जाने वाली तालाबों की संख्या विकासखंडानुसार सारणी 4.5 में प्रस्तुत है।

सारणी 4.5

चयनित तालाब-जल का पशुओं के लिये उपयोग

क्र.

विकासखंड

चयनित ग्रामों की संख्या

चयनित तालाबों की संख्या

पशुओं द्वारा उपयोग की जाने वाली तालाबों की संख्या

प्रतिशत

1

आरंग

05

29

24

8.42

2.

अभनपुर

05

24

28

9.82

3.

बलौदाबाजार

04

21

16

5.61

4.

भाटापारा

04

33

29

10.17

5.

बिलाईगढ़

04

24

12

4.21

6.

छुरा

04

21

19

6.66

7.

देवभोग

04

18

17

5.96

8.

धरसीवां

04

20

17

5.96

9.

गरियाबंद

04

21

18

6.31

10.

कसडोल

04

17

17

5.96

11.

मैनपुर

04

20

16

5.61

12.

पलारी

04

14

09

3.15

13.

राजिम

02

06

03

1.05

14.

सिमगा

02

06

06

2.10

15.

तिल्दा

03

11

08

2.80

 

कुल

57

285

239

83.85

स्रोत: व्यक्तिगत सर्वेक्षण द्वार प्राप्त आंकड़ा।

सारणी क्रमांक 4.5 से स्पष्ट है कि चयनित 57 ग्रामीण क्षेत्रों में चयनित 285 तालाबों में से पशुओं के लिये उपयोग की जाने वाली तालाबों की संख्या 239 (83.85 प्रतिशत) पाये गये हैं, जिनमें सर्वाधिक पशुओं द्वारा उपयोग की जाने वाली तालाबों की संख्या आरंग, अभनपुर, भाटापारा, छुरा, गरियाबंद, विकासखंड अन्तर्गत चयनित ग्रामों में 118 (41.40 प्रतिशत), बलौदाबाजार, बिलाईगढ़, देवभोग, धरसीवां, कसडोल, मैनपुर, पलारी अन्तर्गत चयनित ग्रामों में 104 (36.49 प्रतिशत) एवं न्यूनतम राजिम, सिमगा, तिल्दा अन्तर्गत चयनित ग्रामों में 17 (5.95 प्रतिशत) तालाबों का उपयोग पशुओं के लिये किया जाता है।

तालाब जल का उपयोगचयनित ग्रामीण क्षेत्रों में पशुसंख्या: अध्ययन-क्षेत्रों के चयनित ग्रामीण-क्षेत्रों में पशुओं की संख्या ज्ञात किया गया है, जिनकी संख्या विकासखंडानुसार गाँवों की संख्या तालाबों की संख्या सारणी 4.6 में प्रस्तुत है।
 

सारणी 4.6

ग्रामीण क्षेत्रों में पशुओं की संख्या

क्र.

विकासखंड

चयनित ग्रामों की संख्या

चयनित तालाबों की संख्या

चयनित ग्रामीण क्षेत्र में पशु संख्या

संख्या

प्रतिशत

1

आरंग

05

29

3,596

7.53

2.

अभनपुर

05

24

3,519

11.33

3.

बलौदाबाजार

04

21

3,617

10.94

4.

भाटापारा

04

33

3,908

5.58

5.

बिलाईगढ़

04

24

3,423

5.19

6.

छुरा

04

21

3,842

7.67

7.

देवभोग

04

18

2,972

13.42

8.

धरसीवां

04

20

3,423

4.00

9.

गरियाबंद

04

21

1,536

4.17

10.

कसडोल

04

17

1,748

2.87

11.

मैनपुर

04

20

1,918

3.56

12.

पलारी

04

14

1,733

3.32

13.

राजिम

02

06

820

2.03

14.

सिमगा

02

06

1,055

3.04

15.

तिल्दा

03

11

2,072

3.92

 

कुल

57

285

39,182

100

स्रोत: व्यक्तिगत सर्वेक्षण द्वार प्राप्त आंकड़ा।

सारणी 4.6 से स्पष्ट है कि अध्ययन-क्षेत्रों में चयनित 57 गाँवों में कुल पशु संख्या 39,182 पाये गये, जिसमें पशुओं की सर्वाधिक संख्या आरंग, भाटापारा, बिलाईगढ़ विकासखंड अन्तर्गत चयनित ग्रामों में 14,769 (37.69 प्रतिशत), धरसीवां, गरियाबंद, कसडोल, मैनपुर, पलारी, राजिम, सिमगा, तिल्दा अन्तर्गत 14,305 (36.51 प्रतिशत) एवं अभनपुर, बलौदाबाजार, देवभोग अन्तर्गत, 10,108 (25.80 प्रतिशत) पशु पाये गये हैं।

रायपुर जिले में पशुओं की संख्या: रायपुर जिले में पशुओं की संख्या क्रमशःनुसार सारणी 4.7 में प्रस्तुत किया गया है-
 

सारणी 4.7

रायपुर जिले में पशुओं की संख्या

क्रमांक

पशु

संख्या

प्रतिशत

1.

व्यस्क बैल

3,00,007

22.48

2.

व्यस्क गाय

3,34,272

25.04

3.

बच्चे बछड़े एवं बछड़ी

3,76,992

28.26

 

योग

10,11,271

75.78

1.

व्यस्क भैंसा

1,40,257

10.51

2.

व्यस्क भैंस

52,333

3.92

3.

बच्चे

65,438

4.98

 

योग

2,58,028

19.33

1.

भेंड़ी एवं भेंड़ी

35,543

2.66

2.

बकरे एवं बकरियाँ

15,676

1.17

 

योग

51,219

3.83

1.

सुअर

13,526

1.01

2.

घोड़े एवं टट्टू

353

-

3.

गदहे

78

-

 

योग

13,34,475

-

1.

मुर्गा एवं मुर्गियाँ

7,70,933

-

2.

बत्तक एवं बतकी

7,83,424

-

 

योग

15,54,357

-

स्रोत: कृषि सांख्यिकी पुस्तिक 2004 छत्तीसगढ़

रायपुर जिले में कुल पशुधन 13,34,475 है। इसमें 22.48 प्रतिशत (300007) व्यस्क बैल 25.04, व्यस्क गाय (334272), बछड़े एवं बछड़ियाँ 28.26 प्रतिशत (376992) हैं। इनका कुल पशुधन में 75.78 प्रतिशत (1011271) स्थान है। पशुधन में द्वितीय स्तर पर भैंस एवं भैंसों की संख्या है। व्यस्क नर भैंस 10.51 प्रतिशत (140257), वयस्क मादा भैंस 3.92 प्रतिशत (52333) एवं बच्चों की संख्या 65438 अर्थात 4.98 प्रतिशत है। इनकी कुल संख्या 19.33 प्रतिशत (258028) है। तृतीय स्तर पर भेंड़ एवं भेंड़ी 2.66 प्रतिशत (35543) बकरे एवं बकरियाँ 1.77 प्रतिशत (15676) हैं। इनकी कुल संख्या 3.83 प्रतिशत (51219) है। अन्य पशुओं में सुअर 1.01 प्रतिशत (13520), घोड़े 22353 तथा गदहों की संख्या 78 है। मुर्गे एवं मुर्गियों की संख्या 770933 तथा बतक एवं बतकियों की संख्या 783424 हैं।

उक्त पशुधन रायपुर जिले की कुल मानवीय जनसंख्या का 44.23 प्रतिशत है अर्थात प्रत्येक 2 व्यक्तियों के पीछे एक पशुधन है। समस्त पशुधन अपने नहाने-धोने के लिये ग्रामीण रायपुर जिले में तालाबों पर निर्भर हैं। इनको पेयजल भी तालाबों के पानी के रूप में उपलब्ध है। सामान्य ग्रामीण परिवेश में उक्त पशुओं को दिन में कम से कम एक बार तालाब के पानी में ले जाकर सफाई की जाती है।
 

तालाब जल का मत्स्य पालन में उपयोग:-


उपलब्ध जल-साधन में मत्स्य पालन एक महत्त्वपूर्ण उपयोग है। स्वच्छ-जल मत्स्य-पालन में छत्तीसगढ़ राज्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यद्यपि छत्तीसगढ़ की अधिकतर जनसंख्या शाकाहारी है, तथापि मत्स्य-पालन से होने वाली आय ने यहाँ के लोगों को आकर्षित किया है। मत्स्य-पालन के लिये उपलब्ध तालाबों की संख्या आर्थिक विकास की संभावनाओं को गति प्रदान की है।

रायपुर जिले में 1,413 जलाशय (3,082 हेक्टेयर) तथा 7,331 ग्रामीण तालाब (18,542 हेक्टेयर) मत्स्य पालन हेतु उपलब्ध हैं, लेकिन ग्रामीण तालाबों एवं जलाशयों को विभिन्न सिंचाई एवं औद्योगिक व नगरीय पेयजल के लिये भी जल आपूर्ति करनी होती है। इन तकलीफों के कारण पिछले 3 वर्षों में उपलब्ध जलाशयों एवं तालाबों में 5,918 जलाशय एवं तालाब (15,460 हेक्टेयर) मत्स्य-पालन के लिये उपयोग में लाये गये हैं। इन तालाबो एवं जलाशयों से प्रतिवर्ष लगभग 30,000 टन मत्स्य उत्पादन किया जा रहा है। मत्स्य उत्पादन की उपर्युक्त मात्रा आय की सम्भावनाओं को स्पष्ट करता है। प्रति हेक्टेयर जल क्षेत्र में 2 टन मछली का उत्पादन सामान्य परिस्थितियों में प्राप्त होता है। अगर ग्रामीण तालाबों का पूर्ण उपयोग किया जाए तो मत्स्य उत्पादन में भी वृद्धि अवश्य प्राप्त होगी। संयुक्त संचालक मत्स्योद्योग विभाग के द्वारा रायपुर जिले में 38 मत्स्य बीज-उत्पादन-प्रक्षेप का संचालन किया जा रहा है। इनमें लगभग 75 लाख मत्स्य-बीज का वितरण मत्स्य उत्पादक-समितियों को दिया जाता है, शेष बीज का उपयोग बाजार पर निर्भर करता है। यहाँ स्थानीय मत्स्य बीच के अतिरिक्त आधारित मत्स्य बीज पूर्तिकर्ताओं में आयात किया जाता है।

मत्स्य-पालन में प्रति हेक्टेयर लगभग 2 टन मछली का उत्पादन होता है। 2 टन मछली से 20000 की न्यूनतम आय प्राप्त होती है। मत्स्य उत्पादन में अगर समस्त खर्चों को अलग कर दिया जाए तो, प्रति हेक्टेयर 15,000 रुपये की शुद्ध आय प्राप्त होती है। रायपुर जिले में कुल मत्स्य पालन के लिये उपयुक्त पाए गए तालाबों की संख्या तथा शुद्ध मत्स्य पालन में उपयोग किए गए तालाबों की संख्या क्षेत्रफल के अनुसार सारिणी 4.8 में प्रस्तुत किया गया हैः-

सारणी क्रमांक 4.8

रायपुर जिले में संभावित जल क्षेत्र एंव मत्स्य उत्पादन हेतु उपलब्ध तालाब

विकासखंड

संभावित जल क्षेत्र      

मत्स्य उत्पादन हेतु उपलब्ध

 

तालाब

क्षेत्रफल

तालाब

क्षेत्रफल

अभनपुर

503

956.058

379

620.732

आरंग

821

1646.688

402

687.438

धरसीवां

633

1317.892

338

951.171

सीमगा

499

780.266

109

253.711

तिल्दा

682

1138.631

309

725.082

पलारी

597

974.594

195

565.455

बलौदाबाजार

388

635.255

206

377.242

कसडोल

517

651.000

107

234.938

बिलाईगढ

566

752.925

226

327.411

भाटापारा

444

745.081

77

188.985

राजिम

319

582.138

152

435.915

छुरा

283

378.827

207

303.743

गरियाबंद

178

192.224

104

140.176

मैनपुर

176

228.197

116

210.114

देवभोग

351

450.022

99

347.254

शा. जलाशय

374

7093.00

2,892

9160.00

योग

7,331

18742.80

5,918

15460.00

स्रोत: मत्स्य विभाग रायपुर (छ.ग.)

रायपुर जिले में मत्स्य-उत्पादन के कार्यों में लगभग 3000 मत्स्य-पालक-परिवार तथा 1500 मत्स्य पालन सहकारी समिति कार्यरत हैं। यह संख्या शासकीय मत्स्य पालन में संलग्न कर्मचारियों से अलग है। मत्स्य शिकार का कार्य वर्ष में 3 बार किया जाता है। दिसम्बर, मार्च एवं मई-जून के माह में मछली पकड़ने का कार्य होता है।

तालाब के जल में मत्स्य-पालन की सार्थकता के लिये रायपुर जिले के चयनित तालाबों का विवरण प्राप्त किया गया है जिसे सारणी 4.9 में व्यक्त किया गया है।
 

सारणी 4.9

चयनित तालाब-जल का मत्स्य पालन में उपयोग   

क्र.

विकासखंड

चयनित ग्रामों की संख्या

चयनित तालाबों  की संख्या

मत्स्य पालन की जाने तालाब की संख्या

प्रतिशत

1

आरंग

05

29

15

5.26

2.

अभनपुर

05

24

10

3.50

3.

बलौदाबाजार

04

21

10

3.50

4.

भाटापारा

04

33

21

7.36

5.

बिलाईगढ़

04

24

08

2.80

6.

छुरा

04

21

17

5.96

7.

देवभोग

04

18

14

4.91

8.

धरसीवां

04

20

19

6.66

9.

गरियाबंद

04

21

14

4.91

10.

कसडोल

04

17

10

3.50

11.

मैनपुर

04

20

15

5.26

12.

पलारी

04

14

08

2.80

13.

राजिम

02

06

04

1.40

14.

सिमगा

02

06

05

1.75

15.

तिल्दा

03

11

06

2.10

कुल

57

285

176

61.75

स्रोत: व्यक्तिगत सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त आंकड़ा।

सारणी 4.7 से स्पष्ट है कि अध्ययन क्षेत्रों के चयनित 57 ग्रामीण क्षेत्रों के चयनित 285 तालाबों में से 176 (61.75 प्रतिशत) तालाबों में मत्स्य-पालन किया जाता है, जिनमें सर्वाधिक मत्स्य पालन आरंग, अभनपुर, बलौदाबाजार, छुरा, देवभोग, गरियाबंद, कसडोल, मैनपुर विकासखंड अन्तर्गत चयनित ग्रामीण क्षेत्रों में 105 (36.84 प्रतिशत) भाटापारा, धरसीवां विकासखंड अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में 40 (14.03 प्रतिशत) एवं न्यूनतम बिलाईगढ़, पलारी, राजिम, सिमगा, तिल्दा, विकासखंड अन्तर्गत चयनित ग्रामीण क्षेत्रों में 31 (10.87 प्रतिशत) तालाबों का उपयोग किया जाता है।
 

स्वामित्व के अनुसार मत्स्य-पालन वाले तालाब:


चयनित ग्रामीण क्षेत्रों के तालाबों में स्वामित्व के अनुसार मत्स्य-पालन किया जाता है। चयनित तालाबों के स्वामित्व भी अलग-अलग पाये गये है। इनमें से कुछ तालाब शासकीय ग्राम पंचायत एवं निजी स्वामी के होते हैं, जिनमें मत्स्य पालन भी इसी के अनुसार किया जाता है, जिनकी संख्या स्वामित्व के अनुसार सारणी 4.10 में प्रस्तुत किया गया है।

सारणी 4.10

चयनित तालाबों में स्वामित्व के अनुसार मत्स्य-पालन वाले तालाब की संख्या

क्रमांक

विकासखंड

चयनित ग्रामों की संख्या

चयनित तालाबों की संख्या

स्वामित्व मत्स्य पालन

 

शासकीय

ग्राम पंचायत

निजी

1.

आरंग

05

29

09

03

03

2.

अभनपुर

05

24

06

02

02

3.

बलौदाबाजार

04

21

05

04

01

4.

भाटापारा

04

33

10

07

04

5.

बिलाईगढ़

04

24

04

03

01

6.

छुरा

04

21

09

05

03

7.

देवभोग

04

18

06

05

03

8.

धरसीवां

04

20

07

10

02

9.

गरियाबंद

04

21

05

06

03

10.

कसडोल

04

17

03

06

01

11.

मैनपुर

04

20

05

07

03

12.

पलारी

04

14

03

04

01

13.

राजिम

02

06

02

02

-

14.

सिमगा

02

06

03

02

-

15.

तिल्दा

03

11

03

03

00

कुल

57

285

80

69

27

स्रोत: व्यक्तिगत सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त आंकड़ा।

सारणी 4.10 से स्पष्ट है कि चयनित 285 तालाबों में मत्स्य-पालन स्वामित्व के अनुसार ज्ञात किया गया है, जिनमें सर्वाधिक मत्स्य-पालन वाले तालाबों में शासकीय तालाबों की संख्या 80 (28.07 प्रतिशत), ग्राम पंचायत अंतर्गत तालाबों की संख्या 69 (24.21 प्रतिशत) एवं निजी तालाबों की संख्या 27 (9.47 प्रतिशत) पाये गये।

तालाब-जल का अन्य कार्यों में उपयोग:- ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब-जल का उपयोग मुख्य रूप से निस्तारी, सिंचाई-पशुओं एवं मत्स्य-पालन के साथ ही साथ अन्य प्रकार के कार्यों में भी होता है, जो इस प्रकार है-

1. धार्मिक कार्यों में तालाब जल का उपयोग।
2. भवन (मकान)-निर्माण-कार्यों में तालाब-जल का उपयोग।
3. ईंट-निर्माण-कार्यों में तालाब जल का उपयोग।

तालाब जल का उपयोग

धार्मिक कार्यों में तालाब-जल का उपयोग


ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब-जल का उपयोग धार्मिक कार्यों में किया जाता है। तालाबों में अधिंकाशतः मंदिरों का निर्माण किया जाता है, जिसमें शिव, शीतला एवं हनुमान जी की मूर्ति स्थापित होते हैं। लोग नहाने के पश्चात श्रद्धापूर्वक तालाब जल शिव, शितला को समर्पित करते हैं, जिससे मन को शांति मिलती है। साथ ही अन्य साधनों से जल लेकर घर लौटते हैं और घरों में निर्मित तुलसी-देवी में भी जल-अर्पण कर पूजा सम्पन्न करते हैं। अतः तालाब जल को धार्मिक कार्यों में भी महत्त्वपूर्ण माना गया है।

भवन (मकान) निर्माण कार्यों में तालाब-जल का उपयोग


ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब-जल का उपयोग भवन (मकान) निर्माण कार्यों में भी किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध जलस्रोतों में सर्व-सुविधा युक्त साधन तालाब होता है और तालाब से ही आवश्यकतानुसार जल की प्राप्ति होती है। इस प्रकार के निर्माण-कार्यों में जल की अत्यधिक आवश्यकता पड़ती है जिसे तालाब जल से पूर्ण किया जाता है। जल के अभाव में इस तरह के कार्यों को पुरा नहीं किया जा सकता। अतः मकान-निर्माण कार्यों में भी तालाब-जल उपयोगी है।

ईंट-निर्माण-कार्यों में तालाब जल का उपयोग:- ग्रामीण क्षेत्रों में निर्मित तालाब अधिकांशतः कृषि एवं अधिवास के मध्य स्थित होने के कारण तालाब-जल का उपयोग मानव-जीवन में अधिक से अधिक होता है। तालाब-जल की सहायता से ईंट का निर्माण भी करते हैं जो मकान आदि बनाने के काम में आते हैं, इस प्रकार के कार्यों को गरीब वर्ग के लोगों के द्वारा किया जाता है, जिससे उसके आर्थिक जीवन में सुधार आता है। तालाब-जल मानव के सभी पक्षों को प्रभावित करता है। अतः ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब-जल की उपयोगिता महत्त्वपूर्ण है।

ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब एवं अधिवास:-


जिले में विकासखंडानुसार चयनित ग्रामीण क्षेत्रों में चयनित तालाब एवं अधिवास के मध्य दूरी का भी अध्ययन किया गया है। फलस्वरूप यह पाया गया कि ग्रामीण क्षेत्रों में निर्मित तालाब प्रायः अधिवास एवं कृषि-क्षेत्रों के मध्य निर्मित होते हैं। अधिवास समीप तालाबों का उपयोग अधिक किया जाता है, जबकि कृषि-क्षेत्रों में निर्मित तालाबों का उपयोग सीमित होता है। अतः ग्रामीण क्षेत्रों में अधिवास एवं तालाब एक दूसरे के पूरक माना जाता है एवं दूरी के अनुसार तालाब का उपयोग किया जाता है।

अतः अध्ययन क्षेत्रों के चयनित 57 ग्रामीण क्षेत्रों में चयनित 285 तालाबों की अधिवास से दूरी ज्ञात किया गया है, जो सारणी 4.11 में प्रस्तुत है।

सारणी 4.11

चयनित तालाबों का अधिवास से दूरी (मीटर में)

क्रमांक

विकासखंड

चयनित ग्रामों की संख्या

चयनित तालाबों की संख्या

तालाब से अधिवास की दूरी (मी.) में

50 से कम

50-100

100-150

150 से अधिक

1.

आरंग

05

29

13

08

02

06

2.

अभनपुर

05

24

10

09

03

02

3.

बलौदाबाजार

04

21

12

06

01

02

4.

भाटापारा

04

33

21

08

01

03

5.

बिलाईगढ़

04

24

15

07

01

01

6.

छुरा

04

21

14

04

01

02

7.

देवभोग

04

18

13

01

02

02

8.

धरसीवां

04

20

11

03

04

02

9.

गरियाबंद

04

21

14

02

02

03

10.

कसडोल

04

17

12

03

01

01

11.

मैनपुर

04

20

08

06

04

02

12.

पलारी

04

14

07

05

01

01

13.

राजिम

02

06

05

01

-

-

14.

सिमगा

02

06

04

01

01

-

15.

तिल्दा

03

11

05

03

03

-

कुल

57

285

164

67

27

27

स्रोत: व्यक्तिगत सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त आंकड़ा।

सारणी 4.11 से स्पष्ट है कि चयनित 285 तालाबों में सर्वाधिक तालाब 50 से कम दूरी के मध्य निर्मित पाये गये जिनमें तालाबों की संख्या 164 (57.54 प्रतिशत), 50-100 मीटर की दूरी में निर्मित तालाबों की संख्या 67 (23.57 प्रतिशत), 100-150 मीटर दूरी में निर्मित तालाबों की संख्या 27 (9.47 प्रतिशत) एवं 150 मीटर से अधिक दूरी में निर्मित तालाबों की संख्या 27 (9.47 प्रतिशत) पाये गये हैं।

तालाब जल का उपयोग

शोधगंगा

(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।)

1

रायपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों का भौगोलिक अध्ययन (A Geographical Study of Tank in Rural Raipur District)

2

रायपुर जिले में तालाब (Ponds in Raipur District)

3

तालाबों का आकारिकीय स्वरूप एवं जल-ग्रहण क्षमता (Morphology and Water-catchment capacity of the Ponds)

4

तालाब जल का उपयोग (Use of pond water)

5

तालाबों का सामाजिक एवं सांस्कृतिक पक्ष (Social and cultural aspects of ponds)

6

तालाब जल में जैव विविधता (Biodiversity in pond water)

7

तालाब जल कीतालाब जल की गुणवत्ता एवं जल-जन्य बीमारियाँ (Pond water quality and water borne diseases)

8

रायपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों का भौगोलिक अध्ययन : सारांश

 

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