तेल ने किया पर्यावरण का तेल

जिस पेट्रोलियम को आधुनिक सभ्यता का अग्रदूत कहा जाता हैं, वह वरदान है अथवा अभिशाप है, क्योंकि इसके उपयोग से भारी प्रदूषण हो रहा है जिससे इस धरती पर जीवन चुनौतीपूर्ण हो गया। आज पेट्रोलियम तथा औद्योगिक कचरा समुद्रों का प्रदूषण बढ़ा रहा है, तेल के रिसाव-फैलाव नई मुसीबतें हैं।

इस तेल फैलाव तथा तेल टैंक टूटने से समुद्री इकोसिस्टम्स को बुरी तरह हानि पहुँचाई है। इससे सागर तटों पर सुविधाओं को क्षतिग्रस्त किया है तथा पानी की गुणवत्ता को प्रभावित किया है। वर्ष में शायद ही कोई ऐसा सप्ताह निकलता हो, जब विश्व के किसी न किसी भाग से 2000 मीट्रिक-टन से अधिक तेल समुद्र में फैलने की घटना का समाचार न आता हो। ऐसा दुर्घटना के कारण भी होता है या वृहद टैंकरों को धोने से अथवा बन्दरगाहों पर तेल को भरते समय भी होता रहता है। भारत सरकार ने हाल में भारतीय समुद्र क्षेत्र में व्यापार परिवहन में लगे जहाजों पर गहरी चिन्ता जताई है, जो देश के तटीय जल में तेल का कचरा फैलाते हैं, अन्य तरह का प्रदूषण फैलाते हैं, पर्यावरण की क्षति करते हैं तथा जीवन तथा सम्पत्ति दोनों को खतरे में डालते हैं। राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार भारत के केरल के तटीय क्षेत्रों में प्रदूषण के कारण झींगा, चिंगट तथा मछली उत्पादन 25-प्रतिशत घट गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने पहले आदेश दिया था कि प्रदूषण फैलाने वाले जल कृषि (एक्वाकल्चर) फार्म्स को तटीय राज्यों में बन्द कर देना चाहिये, क्योंकि ये पर्यावरण संदूषण के साथ भूमि क्षरण भी करते हैं।

न्यायालय ने यह भी आदेश दिया था कि पूरे देश में तटीय क्षेत्रों से 500 मीटर तक कोई भी निर्माण न किया जाए, क्योंकि औद्योगिकरण तथा नगरीकरण ने इन क्षेत्रों के पारिस्थिकीय संतुलन को खतरे में डाल दिया है। हाल ही में लगभग 1900 टन तेल के फैलाव से डेनमार्क के बाल्टिक तट पर प्रदूषण की चुनौती उपस्थित हुई थी। इक्वाडोर के गैलापेगोस द्वीपसमूह के पास समुद्र के पानी में लगभग 6,55,000 लीटर डीजल तथा भारी तेल के रिसाव ने वहाँ की भूमि, दुर्लभ समुद्री जीवों तथा पक्षियों को खतरे में डाल दिया। भूकम्प के बाद गुजरात में कांडला बन्दरगाह पर भण्डारण टैंक से लगभग 2000 मीट्रिक-टन हानिकारक रसायन एकोनाइट्रिल (एसीएन) रिस जाने से उस क्षेत्र के आस-पास के निवासियों का जीवन खतरे से घिर गया है। इससे पहले कांडला बन्दरगाह पर समुद्र में फैले लगभग तीन लाख लीटर तेल से जामनगर तट रेखा से परे कच्छ की खाड़ी के उथले पानी में समुद्री नेशनल पार्क (जामनगर) के निकट अनेक समुद्री जीव खतरे में आ गए थे।

टोकियो के पश्चिम में 317 किलोमीटर दूरी पर तेल फैलाव ने जापान के तटवर्ती नगरों को हानि पहुँचाई थी। बेलाय नदी के किनारे डले एक तेल पाइप से लगभग 150 मीट्रिक-टन तेल फैलाव ने भी रूस में यूराल पर्वत में दर्जनों गांवों के पीने के पानी को संदूषित किया है। एक आमोद-प्रमोद जहाज के सैनजुआन (पोर्टोरीको) की कोरल रीफ में घुस जाने के कारण अटलांटिक तट पर रिसे 28.5 लाख लीटर तेल से रिसोर्ट बीच संदूषित हुआ। बम्बई हाई से लगभग 1600 मीट्रिक-टन तेल फैलाव (जो नगरी तेल पाइप लाइन खराब होने से हुआ था) ने मछलियों, पक्षी जीवन तथा जन-जीवन की गुणवत्ता को हानि पहुँचाई।

ठीक इसी प्रकार बंगाल की खाड़ी में क्षतिग्रस्त तेल टैंकर से रिसे तेल ने निकोबार द्वीप समूह तथा अन्य क्षेत्रों में मानव तथा समुद्री जीवन को नुकसान पहुँचाया। लाइबेरिया आधारित एक टैंकर से रिसे 85,000 मीट्रिक-टन कच्चे तेल ने स्कॉटलैण्ड को गंभीर रूप से प्रदूषित किया तथा द्वीप समूह के पक्षी जीवन को घातक हानि पहुँचाई। सबसे बुरा तेल फैलाव यू.एस.ए. के अलास्का में प्रिंसबिलियम साउण्ड में एक्सन वाल्डेज टेंकर से हुआ था। अनुमान है कि एक्सन वाल्डेज तेल फैलाव के बाद प्रथम 6 महीनों की अवधि में 35,000 पक्षी, 10,000 औटर तथा 15 व्हेल मर गईं थीं। मगर यह इराक द्वारा खाड़ी युद्ध में पम्प किए गए तेल तथा अमरीका द्वारा तेल टैंकरों पर की गई बमबारी से फैले तेल की मात्रा के सामने बौना है। एक आकलन के अनुसार 110 लाख बैरल कच्चे तेल फारस की खाड़ी में प्रवेश कर गया है तथा कई पक्षी किस्में विलुप्त हो गईं हैं।

प्रदूषण से मानव पर भी प्रभाव पड़ता है। विश्व में 63 करोड़ से अधिक वाहनों में पेट्रोलियम का उपयोग प्रदूषण का मुख्य कारण है। विकसित देशों में प्रदूषण रोकने के नियम होने के बावजूद 150 लाख टन कार्बन मोनोऑक्साइड, 10 लाख टन नाइट्रोजन ऑक्साइड तथा 15 लाख टन हाइड्रोकार्बन्स प्रति वर्ष वायुमंडल में बढ़ जाते हैं। जीवाश्म ईंधन के जलने से वायुमंडल प्रति वर्ष करोड़ों टन कार्बन डाइऑक्साइड आती है। विकसित देश वायुमंडल प्रदूषण के लिये 70-प्रतिशत जिम्मेदार हैं। भारत प्रति वर्ष कुछ लाख टन सल्फर डाइड्रोकार्बन्स, कार्बन मोनो ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड तथा हाइड्रोकार्बन्स वायुमंडल में पहुँचाता हैं। इन प्रदूषकों से अनेक बीमारियाँ, जैसे फेफड़े का कैंसर, दमा, ब्रोंकाइटिस, टी.बी. आदि हो जाती है।

वायुमंडल में विषैले रसायनों के कारण कैंसर के 80-प्रतिशत मामले होते हैं। मुम्बई में अनेक लोग इन बीमारियों से पीड़ित हैं। दिल्ली में फेफड़ों के मरीजों की संख्या देश में सर्वाधिक है। इसकी 30-प्रतिशत आबादी इसका शिकार है। दिल्ली में सांस तथा गले की बीमारियाँ 12 गुना अधिक है। इराक के विरुद्ध 2003 के युद्ध ने इराक तथा उस के आस-पास के क्षेत्र को बुरी तरह विषैला कर दिया है जिससे पानी, हवा तथा मिट्टी बहुत प्रदूषित हुये तथा लोगों का जीवन खतरे में पड़ गया। इससे पहले 1991 के खाड़ी युद्ध ने संसार में पर्यावरण संतुलन को विनाश में धकेल दिया। वहाँ जो मानव तथा पर्यावरण की हानि हुई, वह संसार में हुये हिरोशिमा, भोपाल तथा चेरनोबिल से मिलकर हुई बर्बादी से कम नहीं है।

कुवैत के तेल कुआं, पेट्रोल रिफाइनरी के जलने तथा तेल के फैलने से कुवैत के आस-पास का विशाल क्षेत्र धूल, गैसों तथा अन्य विषैले पदार्थों से प्रदूषित हुआ है। इराक जहरीला रेगिस्तान बन गया है, जहाँ एक वृहद क्षेत्र में महामारी फैली है। पेट्रोलियम अपशिष्ट ने समुद्री खाद्य पदार्थों को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। प्रदूषित पानी से ओंस्टर (शेल फिश) कैंसरकारी हो जाती है। समुद्री खाद्य पदार्थों का मनुष्य द्वारा उपयोग करने पर उनमें होठों, ठोड़ी, गालों, उंगलियों के सिरों में सुन्नता, सुस्ती, चक्कर आना, बोलने में असंगति तथा जठर आंत्रीय विकार होने लगते हैं। विश्व के सामने अपने वायुमंडल को बचाने की कड़ी चुनौती खड़ी है। सबक है कि पेट्रोलियम की भयंकर तबाही के परिणामों के मद्दे नजर कम विकसित देशों को अपनी औद्योगिक प्रगति के लिये अन्य सुरक्षित- ऊर्जा स्त्रोत विकसित करने चाहिये।
 

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