तिब्बत : विकास के नाम पर हिमालय की तबाही

16 Aug 2014
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खनन, बांधों और तेजी से पिघल रहे ग्लेशियरों से अन्य एशियाई देशों की जलवायु और इस पर निर्भर लाखों लोग होंगे प्रभावित।

.चीन की विकासकारी नीतियों के चलते तिब्बत में तबाही का मंजर भारत समेत दक्षिण-पूर्वी देशों के लिए चेतावनी का संकेत है। विकास के नाम पर चीन की अव्वल रहने की जिद्द तिब्बत के पहाड़ों, नदियों और हरियाली को दांव पर लगा रही है।

औद्योगिक जगमग में यह नजरअंदाज किया जा रहा है कि तिब्बती पठार से निकलने वाली नदियां मैली हो रही हैं, सूख रही हैं और ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार अगले सौ सालों में तिब्बत के ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे।

नक्शे पर 25 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले और 4500 मीटर की ऊंचाई पर दुनिया के सबसे ऊंचे भू-भाग तिब्बत के पर्यावरण से खिलवाड़ के मायने होंगे - भारत समेत एशिया के कई देशों के लाखों लोगों का जीवन खतरे में।

निर्वासित तिब्बती सरकार के प्रधानमंत्री लोबसांग सांगे कहते हैं, ‘भारत की नदियों में 60 फीसदी पानी तिब्बत के ग्लेशियरों का है लेकिन चीन न केवल आसपास के देशों में घुसपैठ कर रहा है बल्कि पानी पर कब्जा भी कर रहा है।’

धर्मशाला में तिब्बत पॉलिसी इंस्टीट्यूट में रिसर्च फेलो टेम्पा ग्यालस्तेन जामलाह कहते हैं, ‘आर्कटिक और अंटाकर्टिक के बात तिब्बत दुनिया का सबसे बड़ा बर्फ का भंडार है। यह दुनिया की औसत के मुकाबले तीन गुना तेजी से गरम हो रहा है और वहां के ग्लेशियर अन्य ग्लेशियरों के मुकाबले तेजी से सिकुड़ रहे हैं।‘ वैज्ञानिक तिब्बत को तीसरा ध्रुव कहते हैं क्योंकि यहां 46,000 ग्लेशियर हैं, लेकिन एशिया की कई नदियों को जीवन देने वाले ये ग्लेयशियर कुछ दशकों में पूरी तरह पिघल जाएंगे।

एल्पाइन घासकुछ रिपोर्टों के मुताबिक यहां के ग्लेशियर पिछले 40 सालों में 6,600 वर्ग किलोमीटर सिकुड़े हैं और पिछले 50 सालों में 82 फीसदी पीछे खिसक चुके हैं।’ इसका उदाहरण है माउंट एवरेस्ट के उत्तरी ढलान पर मौजूद रोंगबक ग्लेशियर। दक्षिण पूर्व तिब्बत का जेपू ग्लेशियर पिछले तीन दशकों में 100 मीटर पतला हो गया है।

इन ग्लेशियरों पर बर्फ ज्यादा देर तक जम नहीं रही है और बर्फ पिघलने की दर पहले से ज्यादा हो गई है। जामलाह के अनुसार इससे तिब्बत के निचले इलाकों की नदियों का बहाव मौसमी हो जाएगा। बाढ़ आएगी और सूखा पड़ेगा। हिमाचल प्रदेश में सतलुज और उत्तर-पूर्व में ब्रह्मपुत्र में आने वाली बाढ़ इसी का नतीजा है।

तिब्बत दुनिया की दस बड़ी नदियों का उद्गम है, जो कई देशों तक जाती हैं। लेकिन खनन की वजह से इन नदियों का पानी प्रदूषित हो रहा है और बांध बनाए जाने से नदियां सूख रही हैं। पीली नदी, यांगत्से, मेकांग, सालवीन, ब्रह्मपुत्र, कर्नाली, सतलुज, सिंधु, अरुण, मानस का स्रोत तिब्बत पठार है, जो कई देशों में बहती हैं। इन नदियों का कम और प्रदूषित पानी संबंधित देशों की आजीविका को बुरी तरह प्रभावित कर देगा। ब्रह्मपुत्र नदी का रुख मोड़ने से भारत को खासी दिक्कत होगी।तिब्बती पर्यावरण की जानकारी रखने वाले तेंजिन लैग्शैय बताते हैं कि ग्लेशियरों के पिघलने और जंगल काटने से तिब्बत के निचले पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन बढ़े हैं क्योंकि अब तिब्बत में पानी नहीं रुकता है। वर्ष 2000 से 2005 के बीच इसकी वजह से किन्नौर और शिमला जिलों में बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ। धर्मशाला में तिब्बत के पर्यावरण पर शोध के लिए बनाए गए विभाग पर्यावरण विकास डेस्क (ईडीडी) से मिली जानकारी के अनुसार अमेजन के वर्षा वनों की तरह तिब्बत के एलपाइन घास के मैदान कार्बन डाइऑक्साइड सोख कर कार्बन सिंक का काम करते हैं।

तिब्बत पठार की मृदा जैविक कार्बन का एक तिहाई यानी 37 फीसदी इन्हीं घास के मैदानों में मौजूद है। अमेजन के वर्षा वन की तरह यह इलाका रेगिस्तान बनने के कगार पर है। जामलाह के अनुसार तिब्बत के मौसम में बदलाव होने का मतलब भारत के मॉनसून का प्रभावित होना भी है। तिब्बत की अहमियत इसे वैज्ञानिकों द्वारा दिए गए नाम तीसरा ध्रुव, एशिया की जल मीनार, दुनिया की छत और एशिया का बैरोमीटर नामों से साफ है। लेकिन यहां विकास के नाम पर जंगलों का सफाया और बड़े स्तर पर खनन हो रहा है।

लोबसांग सांगे के अनुसार तिब्बत दुनिया की दस बड़ी नदियों का उद्गम है, जो कई देशों तक जाती हैं। लेकिन खनन की वजह से इन नदियों का पानी प्रदूषित हो रहा है और बांध बनाए जाने से नदियां सूख रही हैं। पीली नदी, यांगत्से, मेकांग, सालवीन, ब्रह्मपुत्र, कर्नाली, सतलुज, सिंधु, अरुण, मानस का स्रोत तिब्बत पठार है, जो कई देशों में बहती हैं।

तिब्बत के वेटलैंडसांगे के अनुसार इन नदियों का कम और प्रदूषित पानी संबंधित देशों की आजीविका को बुरी तरह प्रभावित कर देगा। ब्रह्मपुत्र नदी का रुख मोड़ने से भारत को खासी दिक्कत होगी।

वर्ल्ड कमीशन ऑफ डैम्स के अनुसार चीन सरकार ने बड़े बांधों की तादाद 1950 में 22 से बढ़ाकर वर्ष 2000 तक कई हजार कर दी है। ईडीडी के शोधानुसार तिब्बत में शैटॉन्गमैन में हो रहे खनन की वजह से तिब्बत में ब्रह्मपुत्र (यारलंग त्सांगजो) और उसकी सहयोगी नदियां प्रदूषित हो जाएंगी।

रिपोर्ट है कि चीन के कब्जे वाले तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर कई बांध बनाए जा रहे हैं। इस वजह से इस नदी में पानी कम हो जाएगा। नतीजतन भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों की खेती प्रभावित होगी। तिब्बत का 70 फीसदी इलाका समुद्र तल से औसतन 4,500 मीटर की ऊंचाई पर है। इसमें से 60 फिसदी एलपाइन घास के मैदान हैं लेकिन चीन की नीतियों के कारण इन्हें कीटनाशकों की मदद से खेती की जमीन में बदला जा रहा है। ये मैदान तिब्बत के मौसम को प्रभावित करते हैं। यहां एक लाख 33 हजार वर्ग किलोमीटर में ताजे पानी के वेटलैंड और हजारों झीलें हैं। वह भी सूख रही हैं।

तिब्बत के नदियों पर बांधचीन की अकेडमी ऑफ साइंस के मुताबिक पिछले 40 सालों में तिब्बत के पठार के वेटलैंड दस फीसदी सिकुड़ चुके हैं। जामलाह के अनुसार तिब्बत में पर्यावरण संतुलन इसलिए जरूरी है क्योंकि यह कई एशियाई देशों की नदियों का जीवन है और जलवायु बदलाव का केंद्र है। इस समस्या का हल के लिए भारत, पाकिस्तान, थाईलैंड, वियतनाम, लाओस, कंबोडिया और बर्मा राष्ट्रहित में आगे आना चाहिए।

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