तीन करोड़ लीटर पानी की एफडी

14 Jan 2016
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पानी की कमी तथा अन्य कारणों से खेती लगातार घाटे का सौदा बनती जा रही है। ऐसी हालत में यह सबसे जरूरी है कि हर किसान पानी के मामले में आत्मनिर्भर हो। उसके अपने खेत पर पानी का अपना स्रोत हो, जिसका इस्तेमाल वह अपनी फ़सलों की सिंचाई के लिये कर सके। वे मानते हैं कि अब भी हमारे देश में पानी बचाने और इसके भूजल भण्डारों को सहेजने की दिशा में कोई ठोस और ज़मीनी काम नहीं हो पा रहा है। यही वजह है कि हमें गर्मी के दिनों में हर साल पानी की कमी के संकट से रूबरू होना पड़ रहा है। क्या आपने कभी सुना है कि पानी की भी बैंकों में रुपयों की तरह फिक्स डिपॉजिट होती है, पहले पहल मुझे भी कुछ अजीब सा ही लगा था लेकिन जब आँखों से देखा तो विश्वास करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।

एक किसान ने यहाँ सचमुच करीब तीन करोड़ लीटर पानी को अपने खेत के एक हिस्से में सहेजकर उसके चारों ओर काँटेदार तारों की बागड़ लगाकर ताला जड़ दिया है। किसान का कहना है कि इस पानी का उपयोग वह गर्मी के दिनों में करेगा, जबकि इलाके में पानी की बहुत कमी हो जाती है।

तो आप भी बेताब होंगे इस पहेली को सुलझाने के लिये। इसे समझने के लिये तो इसे समझने के लिये हमें मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर से करीब एक सौ किमी दूर शाजापुर जिले के छोटे से गाँव रामपुरा मेवासा चलाना पड़ेगा।

दरअसल यह इलाक़ा कभी मालवा के समृद्ध इलाकों में से गिना जाता रहा है पर बीते कुछ सालों में मालव भूमि गहन–गम्भीर, पग–पग रोटी, डग–डग नीर के लिये पहचाने जाने वाला यह इलाक़ा भी अब पानी के लिये मोहताज बन चुका है।

यहाँ का जलस्तर साल-दर-साल कम से कमतर होता जा रहा है। जलस्रोत गर्मी का मौसम शुरू होते ही साथ छोड़ना शुरू कर देते हैं। जैसे–जैसे दिन गर्म होने लगते हैं, वैसे–वैसे पानी की हाहाकार बढ़ने लगती है।

खेतों में फसल के लिये तो दूर पीने तक के लिये पानी का कोहराम मच जाता है। इन्हीं स्थितियों के मद्देनज़र यहाँ के एक किसान ने यह अनूठी युक्ति अपनाई है।

यहाँ के किसान कन्हैयालाल पाटीदार के पास मेवासा गाँव में ही करीब 50 बीघा (करीब 15 हेक्टेयर) खेती की ज़मीन है। उन्होंने कुछ सालों पहले अपने खेत में सिंचाई के लिये ट्यूबवेल भी करवाया था पर थोड़े ही दिनों में जलस्तर नीचे चले जाने पर उनके सामने विकट स्थिति बन गई। यहाँ तक कि ज़मीन से दो फसलें ले पाना भी उनके लिये मुश्किल हो गया।

पाटीदार बताते हैं कि दिसम्बर महीने तक तो ट्यूबवेल में पानी रहता है लेकिन जनवरी के बाद से कम होते होते फरवरी–मार्च में पूरी तरह सूख जाता है। इसी का निदान सोचते हुए यह बात जेहन में आई कि यदि किसी तरह दिसम्बर में ही पानी को संग्रहित कर सुरक्षित रख लिया जाये तो यह पानी उन्हें भीषण गर्मी में उपयोग आ सकता है।

इसके लिये उन्होंने कई दिन सोच में गुजार दिये। इस बीच उन्होंने कई प्रगतिशील और नवाचारी किसानों से भी बात की और कृषि विशेषज्ञों भी राय ली। तब कहीं जाकर उन्होंने इस योजना को मूर्त रूप दिया।

उन्होंने अपने खेत पर पालीथीन वाला तालाब बनाया है। इस पालीथीन वाले तालाब को देखने इलाके और दूर–दूर के कई किसान यहाँ पहुँच रहे हैं। किसान श्री पाटीदार ने अपने खेत पर 300 फीट लम्बा, 200 फीट चौड़ा और 40 फीट गहरा तालाब बनाया है।

इसकी खासियत यह है कि इस पूरे तालाब में एक ख़ास तरह की मोटी परत पालीथिन की बिछाई गई है। इस तालाब में करीब तीन करोड़ लीटर पानी इकट्ठा किया जा सकता है। इसमें नीचे की ओर पालीथीन की मोटी परत होने से पानी अधिक दिनों तक यथावत संग्रहित रह सकता है। इसमें पानी के जमीन में रिसने की सम्भावना नहीं रहती है।

इसके लिये मजबूत किस्म की पालीथिन लगाई गई है जो अगले 5 से 7 सालों तक की गारंटी देती है। लगातार पानी और धूप में रहने के बाद भी यह पालीथीन लम्बे समय तक फटेगा नहीं।

श्री पाटीदार बताते हैं कि किसान की पहली प्राथमिकता होती है कि किसी तरह उसके खेत को पानी मिल सके। इसके लिये वह कठिन-से-कठिन मेहनत और लाखों रुपए खर्च करने को भी तैयार रहता है। वे बताते हैं कि इसमें संग्रहित पानी से भीषण गर्मी के दौर में भी खेतों को सिंचाई लायक पानी मिल सकेगा। उन्होंने इसके लिये करीब 300x200 फीट का 40 फीट गहरा गड्ढा पोकलेन मशीन के जरिए करवाया।

इसके बाद तालाब में संग्रहित पानी को ज़मीन में रिसने से बचाने के लिये करीब 500 माइक्रोन की मोटी और काले रंग की पालीथीन की परत बिछाई गई है। इसे ख़ासतौर से पूना से करीब 6 लाख रुपए में बुलवाया गया है। पालीथीन की 5 से 7 साल तक की गारंटी भी है कि इस अवधि में पालीथीन खराब नहीं होगी।

श्री पाटीदार के मुताबिक़ इसकी कुल लागत करीब 18 लाख रुपए आई है। इसके आसपास सुरक्षा के लिये 2 लाख रुपए की लागत से काँटेदार तारों की बागड़ भी लगाई गई है। उन्होंने अभी इसमें ट्यूबवेल से पानी भरकर तारों की बागड़ और गेट पर ताला लगाकर अगले गर्मी के मौसम के लिये इस पानी को फिक्स डिपॉजिट कर दिया है।

हालांकि यह बहुत महंगी प्रक्रिया है और आम किसान इसका इस्तेमाल शायद ही कर सकें पर यह दिखाता है कि हमने पानी बचाने और सहेजने के जिन परम्परागत सहज और सस्ते तरीकों को भुला दिया उनकी एवज में आज हमें कितने महंगे और श्रमसाध्य तरीकों पर निर्भर रहना पड़ता है।

वे बताते हैं कि इसकी प्रेरणा उन्हें महाराष्ट्र के नासिक और उसके आसपास के कुछ खेतों से मिली। यहाँ बड़ी तादाद में इस तरह के पालीथीन के तालाब बने हुए हैं। हालांकि मालवा क्षेत्र के लिये इस तरह के तालाब अब भी अजूबे की तरह ही हैं।

इन तालाबों को देखने तथा वहाँ के किसानों से बात करने पर उनके मन में भी विचार आया कि क्यों न ऐसा ही तालाब उनके खेत पर भी हो ताकि गर्मी के दिनों में भी सिंचाई के लिये कोई परेशानी नहीं हो और न ही इस बात की आशंका कि पानी नहीं होगा तो क्या होगा।

हालांकि अब तक इलाके के कृषि विभाग के अधिकारियों ने इसमें किसी तरह की कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है और न ही अब तक इसका जायजा ही लिया है। इनका अधिकारियों को निरीक्षण कर यह पता लगाना चाहिए कि यह नवाचार किसानों और पर्यावरण के हित में है या नहीं। यदि हितकारी है तो इसे मॉडल के रूप में विकसित किया जा सकता है और यदि नहीं तो इसके बारे में किसानों को आगाह करना चाहिए।

श्री पाटीदार आश्वस्त हैं कि इससे इस साल करीब 40 बीघा जमीन में सिंचाई हो सकेगी। इसका लाभ बरसात का पानी भर जाने से बरसाती फसल के लिये भी किया जा सकेगा। इसके अलावा इसमें मछली पालन भी किया जा सकता है।

इससे किसानों को अतिरिक्त रोजगार का साधन मिल सकेगा। इसके अलावा तालाब के लबालब भरे होने से इससे सायफन आधारित सिंचाई हो सकेगी तो बिजली या डीजल का खर्च भी बच सकेगा।

वे बताते हैं कि पानी की कमी तथा अन्य कारणों से खेती लगातार घाटे का सौदा बनती जा रही है। ऐसी हालत में यह सबसे जरूरी है कि हर किसान पानी के मामले में आत्मनिर्भर हो। उसके अपने खेत पर पानी का अपना स्रोत हो, जिसका इस्तेमाल वह अपनी फ़सलों की सिंचाई के लिये कर सके।

वे मानते हैं कि अब भी हमारे देश में पानी बचाने और इसके भूजल भण्डारों को सहेजने की दिशा में कोई ठोस और ज़मीनी काम नहीं हो पा रहा है। यही वजह है कि हमें गर्मी के दिनों में हर साल पानी की कमी के संकट से रूबरू होना पड़ रहा है। यही हालत रही और पानी लगातार कम होता गया तो अगले कुछ सालों में किसान खेती करने लायक भी नहीं बचेंगे।

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