ठोस कार्रवाई की जाए

विशेष वाद-विवाद
विषय : गंगा नदी
30 जून, 1995


वर्षा में जो पानी तेज गति से बहेगा, निश्चित तौर पर पहले से जो काम किया गया है, जो सुरक्षात्मक कार्रवाई इन्होंने की है, वहां कटाव तेज हो जाता है। बलहपुर में इन्होंने कटाव रोक दिया लेकिन बगल का गाँव महेन्द्रपुर कट रहा है, आज की तारीख तक। सुबह वहाँ जो जिला प्रशासन से बात हुई, करीब 250 परिवार वहाँ से गुप्ता लखमिनिया बाँध पर चले गए। 250 परिवार का भूमि अर्जन करके पुनर्वास हम लोगों ने कराया।

श्री शत्रुघ्न प्रसाद सिह : माननीय सभापति महोदय, इस संवेदनशील विषय पर आज हमलोग बातें कर रहे हैं। विषय ही व्यापक है। लेकिन मैं आपको गंगा कटाव से उत्पन्म समस्या तक ही सीमित रखना चाहता हूँ माननीय सभापति महोदय, गंगा का कटाव होता है और सैकडों परिवार विस्थापित हो जाते हैं। मैं धन्यवाद करना चाहूँगा जल संसाधन मन्त्री, श्री जगदानन्द सिंह और उनके विभाग के आयुक्त विजय शंकर दूबे एव अभियन्ता प्रमुख का जिन्होंने पिछली बार औद्योगिक नगर, बरौनी, बरौनी रेलवे जंक्शन, बेगूसराय मुख्यालय को बचा लिया। केवल दूरभाष, फैक्स और वितन्तु संवाद से नहीं, स्वयं तीन-तीन बार कटाव पर जाकर और कई दिनों तक रहकर, नतीजा हुआ कि करीब 5 करोड़ रुपए का बोल्डर पानी में फेंक दिया गया था और इस पर भी असामाजिक तत्वों ने बाधा पहुँचाई। इन्होंने चाक में, बलहपुर में, मधुरापुर में कटाव को रोक दिया।

पिछले दिनों जो कार्रवाई हुई, पूरे राज्य में कहीं भी वैसी कार्रवाई नहीं हुई जैसी मधुरापुर में और बलहपुर में सभापति महोदय, बलहपुर से गंगा अभी 10 किलोमीटर पुर चली गई। जब देखा बलहपुर में, तो वहाँ बालू का पहाड़ खडा हो गया। पता लगाया, क्या कारण है कि गंगा भाग गई और बालू का पहाड़ खडा हो राया? गाँव के लोगों ने अपने तजुबें के आधार पर कहा कि फरक्का है, केवल यही नहीं है। बेगूसराय से लेकर हमारे लखमिनिया-बलिया तक जो गंगा का कटाव है, एक ओर गंगा के पेट में बालू जमा हो जाता है।

अब वर्षा आ गई। पानी कहीं-न-कहीं जाएगा। वर्षा में जो पानी तेज गति से बहेगा, निश्चित तौर पर पहले से जो काम किया गया है, जो सुरक्षात्मक कार्रवाई इन्होंने की है, वहां कटाव तेज हो जाता है। बलहपुर में इन्होंने कटाव रोक दिया लेकिन बगल का गाँव महेन्द्रपुर कट रहा है, आज की तारीख तक। सुबह वहाँ जो जिला प्रशासन से बात हुई, करीब 250 परिवार वहाँ से गुप्ता लखमिनिया बाँध पर चले गए। 250 परिवार का भूमि अर्जन करके पुनर्वास हम लोगों ने कराया। फिर 250 परिवार विस्थापित हो चुके। बल्कि वहीं उसी चौथम से लेकर बलिया-लखमिनिया तक गुप्ता लखमिनिया बाँध पर 1700 परिवार पिछले 15 वर्षों से केवल महेन्द्रपुर और चाक पुनर्वास के ही नहीं, विशनुपर दियारा से लेकर चौथम दियारा तक लोग गुप्ता लखमिनिया में वर्षा में, धूप में, जाड़े में, बूढ़े, बच्चे, बीमार, औरतें भुखमरी की, परेशानी की हालत में जी रही हैं।

हम आग्रह करने। चाहेंगे कि अभी बोधनापुर का जो बनाया हुआ लॉज था, कटाव की गति तेज हो गई बजलपुर की ओर। मैंने गत् सत्र में भी प्रश्न किया था कि अब कटाव शुरू हो गया बजलपुर में। तेघड़ा बाजार सटा हुआ है, बरौनी औद्योगिक नगर सटा हुआ है। इसलिए हम चाहेंगे माननीय मन्त्री से बजलपुर के कटाव को रोकिए और मधुरापुर में जो आपने बचाया, यहाँ से वहाँ तक पत्थरों को सजा दिया है लेकिन लॉज को बहा ना दिया। अब उस जगह से पानी बजलपुर की ओर चला गया और निश्चित तौर पर फिर जंक्शन पर खतरा उपस्थित हो गया। इन्होंने पिछले सत्र में कहा था कि हम खतरा उपस्थित नहीं होने देंगे। काम शुरू कर दिया, 65 लाख का आवंटन इन्होंने निश्चित तौर पर स्वीकृत किया लेकिन पिछले सप्ताह हमने जाकर महेन्द्रपुर देखा। इन्होंने शायद पुलिस कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन को दे दिया।

पिछले दिनों इन्होंने दूसरे के द्वारा विभागीय स्तर पर कार्रवाई कराई। पन्द्रह दिनों में तत्परतापूर्वक सफलता प्रदान हो गई। अभी पुलिस कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन के काम में इतनी धीमी गति है कि कटाव तेज हो रहा है। हमारे परिवार-के-परिवार उजड़ते चले जा रहे हैं। छोटी डोंगी द्वारा पत्थर को पानी में फेंका जा रहा है। फिर वही गम्भीर बात जिससे ये डर रहे थे कि अभी पानी में पत्थर नहीं फेकेंगे, लाखों-लाख रुपए बर्बाद हो जाएँगे। वही काम महेन्द्रपुर में हो रहा है, वही काम मधुरापुर में हो रहा है कि पानी में पत्थर फेंके जा रहे है यानी लाखों-लाख रुपए पानी में बह रहे हैं। मैं अनुरोध करना चाहूँगा माननीय सभापति महोदय, आपके माध्यम से माननीय जल संसाधन मन्त्री से कि जिस मुस्तैदी से पिछले दिनों ये स्वयं गए थे, मैं बार-बार इनसे अनुरोध कर चुका हूँ, इनके कक्ष में जाकर अनुरोध कर चुका हूँ कि आप फिर से मधुरापुर जा कर देखिए, सरकारी राशि का दुरुपयोग हो रहा है।

चन्द बड़े-बड़े ठेकेदार जिनका वर्चस्व है और कुछ आपके अभियन्ताओं पर भी उनका प्रभाव है। पिछले दिनों जिन असामाजिक तत्वों को आपने हड़काया था, फिर वही सब कुछ लूटने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। दूसरा जो मैं सुझाव देना चाहूँगा, सभापति महोदय कि जिस तौर-तरीके से आप काम कर रहे हैं कि हम आपकी कोई आलोचना नहीं करते, लेकिन आप थोडी कंजूसी कर रहे हैं। कंजूसी ये कर रहे हैं कि इतना बड़ा औद्योगिक इलाका है, आप औद्योगिक इलाके की रक्षा के लिए कोई ठोस कार्रवाई कीजिए। सदन में यह वाद-विवाद उतपन्न हुआ, आपने कहा था कि केन्द्र सरकार को और खास करके माननीय श्रीमती कृष्णा शाही, जो औद्योगिक राज्यमन्त्री हैं, उनके अनुरोध पर ही सही, आठ करोड़ का एक प्रारूप बना करके, परियोजना बना करके आपने भेजने की कृपा की है। यह है कि वह परियोजना प्रारूप आपके यहाँ फिर से समीक्षा के लिए आ गया है, आप उन्हें आश्वस्त करें कि जो परियोजना पारूप आपके यहाँ फिर से समीक्षा के लिए आ गया है आप अपने स्तर पर कार्रवाई करके एक स्थाई समाधान निकालेंगे। चौथम से लेकर बलिया तक केवल महेन्द्रपुर में यदि कटाव रोक देते हैं तो फिर हमारा लखमिनिया कटना शूरू हो जाएगा, बलिया कटना शुरू हो जाएगा और लखमिनिया शहर पर और वहाँ से ले करके फिर मानसी तक खतरा उत्पन्न हो जाएगा।

गंगा प्रदूषण के लिये एक अरब रुपया केन्द्र सरकार से यहाँ आया। यहाँ जाने के बाद यहाँ की सरकार ने उसको चलाने के लिए एक बोर्ड बनाया जिसका नाम विश्वास बोर्ड दिया राया। विश्वास बोर्ड बनने के बाद उन्होंने विचार किया कि गंगा का प्रदूषण रोकने के लिए क्या करना चाहिए। इसके लिए दो प्रमुख विषय लिये गए। एक तो, जो मुर्दा जलाया जाता है तो प्राय: लोग अधजला मुर्दा गंगा में फेंक दिया करते थे। इससे प्रदूषण बढ़ता था, उसको किस तरह रोक जाए और दूसरा, सारे शहर का मैला पानी गंगा में जाता है।

माननीय सभापति महोदय, इसलिए केन्द्र सरकार के मन्त्री के साथ, केन्द्र सरकार के उच्चाधिकारियों के साथ बैठकें आयोजित करके गम्भीरतापूर्वक तात्कालिक तौर पर यदि इस समस्या का समाधान नहीं कराया जा सकेगा तो बाढ़ का जो समय आ रहा है, जो मौसम बदल रहा है, अब इसमें और तेजी से पापी का बहाव शुरू हो जाएगा। नतीजा होगा कि हमारा गुप्ता लखमिनिया बाँध तो कमजोर है ही, जो उस पर बस गए हैं उन्होंने बाँध में गड्ढा कर दिया है, उस पर सब्जी उपजा रहे हैं। चूहों ने उसमें छेद कर दिया है। कहीं तेज बहाव हुआ तो यह पुराना गुप्ता लखमिनिया बाँध टूट जाएगा और बरौनी जंक्शन, थर्मल पावर, तेल शोधक कारखाना, पूरा बेगूसराय, जिला मुख्यालय से ले करके सानसी तक प्रलय हो जाएगा। इसलिए आप गम्भीरतापूर्वक दो बातों पर केन्द्र सरकार से लड़कर भी राशि मुहैया करें।

जब तक आप महेन्द्रपुर के कटाव को बचाने के लिये मधुरापुर, बजलपुर के कटाव को बचाने के लिए 65 लाख की राशि बढ़ाएँगे नहीं, जो गति धीमी है उस धीमी गति में तेजी नहीं लाएँगे तब तक नहीं हो सकता है। जिस प्रकार आप स्वयं और आपके विभाग के आयुक्त श्री विजय शंकर दूबे ने तत्परता और सतर्कता दिखलाई, बीरपुर में जाकर देखा था और पैन्ट पहन कर आपके विभाग के आयुक्त और इंजीनियर ने धूप में खडे होकर बीरपुर को बचा लिया और कटाव होने नहीं दिया। कोई भी जाकर देख सकता था कि मुस्तैदी से आपने कटाव बचाया था।

आप पर भरोसा है लेकिन अभी जिन बिन्दुओं पर हमने ध्यान आकृष्ट किया है, खासकर 65 लाख को बता कर दीजिए और स्वयं अपने विभागीय आयुक्त के साथ, मुख्य अभियन्ता के साथ जाइए, लूट शुरू हो गई है। पिछले दिनों आपने लूट रोकने में सफलता प्राप्त की। समस्याओं के समाधान के लिए केन्द्र सरकार से आठ करोड़ मिले। चाहे जैसे संघर्ष करने की ज़रूरत हो, हम सभी लोग आपके सहयोग के लिए खड़े रहेंगे। इस इलाके की रक्षा कीजिए और मुस्तैदी के साथ 65 लाख रुपया को 1 करोड़ तक बता दीजिए, जिससे कटाव रुके और जो बाँध टूट रहे हैं उनकी मरम्मत करा दीजिए, जिससे बाँध पर कोई खतरा नहीं हो। वहाँ जो गरीब लोग है उनके पुनर्वास की व्यवस्था कीजिए। बहुत-बहुत धन्यवाद

श्री रुद्र प्रताप षाड़ंगी : माननीय सभापति महोदय, आज गंगा पदूषण पर जो वाद-विवाद हो रहा है, आपने उसके लिये मुझे समय देकर बडी कृपा की है। गंगा पदूषण को लेकर आज तक उसके माम पर जिस तरह अरबों रुपए की लोगों ने लूट बने है, है उसके सम्बन्ध में बातें आपके माध्यम से सदन में रखना चाहूँगा। 1985-86 की बात है।

उस समय गंगा प्रदूषण के लिये एक अरब रुपया केन्द्र सरकार से यहाँ आया। यहाँ जाने के बाद यहाँ की सरकार ने उसको चलाने के लिए एक बोर्ड बनाया जिसका नाम विश्वास बोर्ड दिया राया। विश्वास बोर्ड बनने के बाद उन्होंने विचार किया कि गंगा का प्रदूषण रोकने के लिए क्या करना चाहिए। इसके लिए दो प्रमुख विषय लिये गए। एक तो, जो मुर्दा जलाया जाता है तो प्राय: लोग अधजला मुर्दा गंगा में फेंक दिया करते थे। इससे प्रदूषण बढ़ता था, उसको किस तरह रोक जाए और दूसरा, सारे शहर का मैला पानी गंगा में जाता है। इसको रोकने के लिये व्यवस्था की गई। सभापति महोदय, इस तरह बिजली ज्ञावदाह गृह बनाने में 4 जिलों को चुना गया, पटना, छपरा, मुंगेर और भागलपुर। पटना को 15 करोड़ रुपया दिया गया और दो शवदाह गृह बने जिनमें एक बिजली शवदाह घर वर्षों से खराब है। उसको बनाने का कोई नाम नहीं लेता एक बिजली शवदाह घर यहाँ चल रहा है।

लेकिन मुंगेर को सभापति जी..

श्री शिवनन्दन प्रसाद सिंह : हुजूर, माननीय सदस्य ज्ञावदाह गृह और लाश। फेंकने जैसी बात कर रहे हैं, जो अशुभ सूचक लग रहा है।

(हंसी)
श्री रुद्र प्रताप षाड़ंगी : सभापति जी, पटना में तो कुछ काम भी हुआ है। छपरा में इन लोगों ने चार करोड़ रुपया दिया विद्युत शवदाह गृह बनाने के लिए, मुंगेर को चार करोड़ रुपया दिया गया, भागलपुर को सात करोड़ रुपया दिया राया। भागलपुर 'को सात करोड़ देने का कारण यह है कि भागलपुर में पानी लोगों के पीने के काम में आए। लेकिन छपरा. मुंगेर और भागलपुर में जो शवदाह गृह बने है, उन्हें एक दिन भी चलाया नहीं गया। इनकी गारण्टी पीरियड भी खत्म हो गई है, लेकिन वह यूँ ही मुर्दा की तरह खड़ा है और तीस करोड़ रुपया यों ही पानी की तरह बहा दिया गया है।

आवाजें : मुर्दा नहीं मिलता था।

श्री रुद्र प्रताप षाड़ंगी : मुर्दा तो बहुत मिलता था, लेकिन ये लोग यों ही 30 करोड़ रुपया वहाँ दिए। अब दूसरी बात यह है कि पानी साफ करने के लिए बनाया गया ट्रीटमेंट प्लांट। ट्रीटमेंट प्लांट यह है हुजूर कि जो मैला पानी जाता है उसमे, ट्रीटमेन्ट भी बिछाया गया, इसमें मैनहोल भी लगाया गया, लेकिन ठसका पाइप कूड़ा-करकट से भर गया, जिससे पानी तो जा नहीं पाता है। अब कूडा-करकट से भरा जो पाइप है, उसको विभाग के लोगों ने चोरी करके बेच दिया और थाने में दायर कर दिया कि चोरी हो गई, तो इस प्रकार (53 करोड़ रुपया पानी में बहा दिया इन लोगों ने प्रदूषण के नाम पर।

गंगा का जब अवतरण इस पृथ्वी पर हुआ था तो गंगा की धारा प्रचण्ड थी। सम्भावना थी कि वह धारा अगर धरती पर चली आए तो धरती बह जाएगी, पृथ्वी बह जाएगी इसलिए भागीरथ ने प्रसन्न किया शिवजी को और शिवजी की जटा से होकर यह गंगा इस धरती पर उतरी। इसलिये धरती पर गंगा के विनाशकारी रूप का अनुभव हम नहीं कर सके।

सभापति जी, इन सब चीजों के ऊपर करीब 70-80 करोड़ रुपया उई कर दिया, लेकिन उसको रिजल्ट बिलकुल निल। सिर्फ पटना में जो शवदाह गृह है, उनमें से एक खराब है और एक चल रहा है और पहले से जो जो मुंगेर और भागलपुर में हुआ, उसकी गारण्टी पीरियड भी खत्म है। एक बार चलाकर भी ये लोग देखे नहीं कि यह ठीक है या नहीं और इसमें जो लूट-खसोट हुई और कहा जाता है कि केन्द्र से रुपया नहीं आता है, केन्द्र से रुपया आए उसका जो यूज किया उसमें दो-दो अधिकारी सम्मिलित है, उनका नाम भी मैं यहाँ ले रहा हूँ। एक भ्रष्ट अधिकारी के चीफ सेक्रेटरी को लिखने के बाद भी क्या हश्र हुआ, यह मैं आपके सामने अभी दूँगा। एक हैं एस.पी.एन. सिन्हा, ये तीन साल तक बोर्ड में अध्यक्ष थे और के.एच. सुब्रहमण्यम, ये ढाई साल तक अध्यक्ष थे और अभी यहाँ प्रबन्ध निदेशक हैं। मदनमोहन सिंह जो दिसम्बर, 1 994 तक, थे और दयानन्द यादव, ये विश्वास बोर्ड में 1991 से आज तक जमे हुए हैं।

(व्यवधान)

सभापति जी, इन लोगों के समय में यह एक अरब रुपया जो मैंने कहा, इस एक अरब रुपये को किस तरह से, गलत ढंग से इन लोगों ने खर्च किया है, इसको आज तक न तो उस सरकार ने देखा और न इस सरकार ने कि उचित रूप से खर्च हुआ या नहीं? इसको जानने की फुर्सत किसी को नहीं है, न किसी ने जानने की कोशिश ही की है और इन सब चीजों को उजागर करने बाद...

(व्यवधान)

महोदय, मैं यह कह रहा था कि इन सबके बाद जो पैसे बचे, उसमें भी विश्वास बोर्ड के अधिकारियों ने अपने मन मुताबिक 135 कर्मचारियों की बहाली कर ली और दस गाड़ियाँ खरीदीं। इन दस गाड़ियों में कम-से- कम 10 लाख रुपए खर्च हुए और इन दस गाड़ियों की क्या आवश्यकता है? दो गाड़ी प्रबन्ध निदेशक के पास हैं तो इस प्रकार छ: गाड़ी हुई और नियम के विरुद्ध सचिव के पास भी एक गाड़ी है, जो नहीं रहना चाहिए था और पहली वाली दो गाड़ियाँ कहाँ गईं, यह पता नहीं है। मैं माननीय मन्त्री से आग्रह करूँगा कि यह गाड़ी ये लोग रखे हुए हैं इसको देखा जाए और सभापति जी, ऑडिट रिपोर्ट इसकी जो हुई है इसको अगर आप मँगाकर देखेंगे तो इसके असली रूप का पता चल जाएगा तो मैं सभापति जी कह रहा था कि मैं खत्म कर रहा हूँ और...

अब एक अधिकारी जिसने इन सारी चीजो को उजागर करके चीफ सेक्रेटरी को लिखकर दिया। 26 सितम्बर को और 27 या 28 सितम्बर को उसर्का बदली कर दी गई और वह आदमी अभी सस्पेन्ड है। तो यह सरकार है जिस पर गाँव के लोग और देहात के लोग भरोसा किए हुए हैं। यदि आपका यही रवैया रहा तो लोगों का भरोसा टूट जाएगा। इसलिए मैं आपसे अनुरोध करुँगा कि सरकार को आप कहें कि कम-से-कम गंगा प्रदूषण के लिये एक अरब रुपया आया है उसकी जाँच रिपोर्ट मँगाकर देखें और दोषी व्यक्तियों को दण्ड दें।

डॉ. रामचन्द्र पूर्वे : माननीय सभापति जी, गंगा से सम्बन्धित विषय पर आपने वाद-विवाद कराने की कृपा की है, उसके लिये हम आपके प्रति शुक्रगुजार हैं। इस वाद-विवाद को कराने से ऐसा लगता है आपके मन में जो गंगा की संस्कृति के बारे में धारणा है, जो संस्कृति के तौर पर गंगा आपके मन में जुड़ी हुई है और जब मैं इस विषय पर सोच रहा था तो मुझे अचानक याद आया कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करने के फलस्वरूप उत्तराखण्ड में जो भूकम्प आया था और उसका कुप्रभाव उत्तरकाशी पर पड़ा और करीब 48 घण्टे तक पहाड़ों के गिरने के चलते गंगा अवरुद्ध हो गई थी।

आप माननीय मुख्यमन्त्री के साथ उस समय गए थे, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमन्त्री कल्याण सिंह जी से मिले थे वहाँ के भूकम्प पीड़ितों के प्रति अपना सौलिडैरिटी को, बिहार राज्य का सोलिडेरिटी को जताने के लिये और आने के क्रम में जब उत्तरकाशी का निरीक्षण लिया तो शायद गंगा का जो सदियों का इतिहास रहा है, गंगा पहली बार अवरुद्ध हुई और गंगा अवरुद्ध इसलिए हुई कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की गई। सभापति महोदय, आपका एक आर्टिकल भी इस सम्बन्ध में निकला था। हम चाहेंगे कि उस आर्टिकल को आप माननीय सदस्यों को परिचारित करा दे।

सभापति महोदय, गंगा का जब अवतरण इस पृथ्वी पर हुआ था तो गंगा की धारा प्रचण्ड थी। सम्भावना थी कि वह धारा अगर धरती पर चली आए तो धरती बह जाएगी, पृथ्वी बह जाएगी इसलिए भागीरथ ने प्रसन्न किया शिवजी को और शिवजी की जटा से होकर यह गंगा इस धरती पर उतरी। इसलिये धरती पर गंगा के विनाशकारी रूप का अनुभव हम नहीं कर सके। उस समय गंगा की धारा पृथ्वी के लिए खतरनाक थी लेकिन आज गंगा को भय है इस धरती पर रहने वाले चेतन और अचेतन प्राणियों से सभापति महोदय, माननीय सदस्य श्री शत्रुघ्न प्रसाद सिंह ने गगा के कटाव की चर्चा की है।

गंगा के पदूषण से हिन्दुस्तान के करोड़ों लोगों का जो सांस्कृतिक कटाव हो रहा है, उसी तरफ मैं अपने को केन्द्रित रखूँगा। सभापति महोदय, हमारे नेता डॉ. राममनोहर लोहिया, समाजवादी चिन्तक ने अपनी पुस्तक ‘धरती माता भारत माता’ में लिखा है और कोई इस गलतफहमी में नहीं रहे कि हम भगवान में विश्वास करने लगे हैं। भारत का वर्तमान जीवनक्रम और अतीत किसी-न-किसी नदी से जुड़ा हुआ है। यही हाल सारी दुनिया का है। बहुत अधिक, यदि मैं राजनीति करने के स्थान पर अध्ययन के क्षेत्र में होता तो इस सम्बन्ध में गहरी जाँच करने में समर्थ होता। राम की अयोध्या सरयू के किनारे थी।

कुरु, मौर्य और गुप्त साम्राज्य गंगा के किनारे ही पनपे। मुगल और सौरसेनी नगर की राजधानियाँ यमुना के किनारे बसीं। शायद पूरे वर्ष भर पानी की आवश्यकता भी एक कारण हो सकता है। लेकिन सांस्कृतिक कारण भी हो सकते हैं। क्या हमें नदियों को गन्दा किए जाने के विरुद्ध आन्दोलन करना पड़ेगा? यदि ऐसा आन्दोलन सफल हो जाता है तो इसका नतीजा होगा कि काफी रुपया बचेगा।

एक अध्ययन में कहा कि प्रतिवर्ष करीब 30 अधजली लाश गंगा में गिरती है और 300 टन राख गंगा में गिरती है। सभापति महोदय, बिहार में बक्सर से लेकर राजमहल तक, 550 किलोमीटर में यह गंगा करीब 15 छोटे और बड़े शहरों को अपनी तरफ बसाए हुए हैं। सभापति महोदय, इस गंगा के लिए गंगा सफाई योजना चलाई गई थी जिसके लिए करीब करोड़ों रुपया मिला हम विशेष नहीं कहना चाहते हैं, 15 नगरों के कारखानों की बात वन एवं पर्यावरण विभाग से जुड़ी हुई है।

गन्दा पानी गंगा और कावेरी में गिराने के बजाय दस या बीस मील के नाले बनाकर खेतों में गिराया जाए। खाद जमा करने के गड्ढे बनाए जाएँ। यह काम खर्चीला लगता है, परन्तु इससे जो आर्थिक एवं सांस्कृतिक लाभ होगा, उसे रुपयों में नहीं आँका जा सकता है। यह कथन डॉ. राममनोहर लोहिया का है। सभापति महोदय, गंगा हमारी अस्मिता और संस्कृति का प्रतीक है। और इसलिए पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने अपने ‘विल एण्ड टेस्टामेन्ट’ में गंगा का बड़े ही अच्छे ढंग से वर्णन किया है। आप अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं, समझ सकते हैं। पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने अपने टेस्टामेन्ट में कहा है कि-

“The Ganga especially, is the river of India, beloved of her people round which are interwined her racial memories, her hopes and fears, her songs of triumph, her victories and her defeats. Sun has been a symbol of India’s age long culture and civilization ever changing, ever flowing and yet ever the same Ganga.”

लेकिन सभापति महोदय, आज वह गंगा जो करीब 2025 किलोमीटर गंगोत्री से लेकर फरक्का तक गुजरती है, उसका 600 किलोमीटर का हिस्सा प्रदूषित हो गया है। गंगा की सबसे बड़ी विशेषता यह रही है कि दुनिया की सभी नदियों में स्वशुद्धिकरण की प्रक्रिया, क्षमता नहीं है लेकिन मानव का अत्याचार, गंगा से जीवन प्राप्त करने वाले लोगों का अन्याय और अत्याचार गंगा के ऊपर हो रहा है। उसका प्रतिफल यह है कि उसकी क्षमता, स्वशुद्धिकरण की जो क्षमता है उसका भी ह्रास हो रहा है। उसके सम्बन्ध में सभापति महोदय, एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर उसको बचाया नहीं गया तो गंगा के पवित्र जल को लोग घरों में संयोजित नहीं कर सकते हैं। सभापति महोदय, इस गंगा नदी के किनारे 13 बड़े-बड़े कारखाने हैं। आश्चर्य है सिर्फ 12 कारखानों में प्रदूषित पदार्थों को संशोधित करने वाला संयन्त्र लगा है।

सभापति महोदय, हमारे षाड़ंगी जी ने लाश की चर्चा की है। वाली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बी.जी. त्रिपाठी ने एक अध्ययन में कहा कि प्रतिवर्ष करीब 30 अधजली लाश गंगा में गिरती है और 300 टन राख गंगा में गिरती है। सभापति महोदय, बिहार में बक्सर से लेकर राजमहल तक, 550 किलोमीटर में यह गंगा करीब 15 छोटे और बड़े शहरों को अपनी तरफ बसाए हुए हैं। सभापति महोदय, इस गंगा के लिए गंगा सफाई योजना चलाई गई थी जिसके लिए करीब करोड़ों रुपया मिला हम विशेष नहीं कहना चाहते हैं, 15 नगरों के कारखानों की बात वन एवं पर्यावरण विभाग से जुड़ी हुई है। लेकिन बक्सर से लेकर राजमहल तक जो नगरों द्वारा शोषण और दोहन गंगा का हो रहा उसके सम्बन्ध में हमारे माननीय नगर विकास मन्त्री को संवेदित होना चाहिए।

सभापति महोदय, सवाल यह है कि पटना शहर का 7 फॉल हैं और उन सातों फॉल आउट से प्रतिदिन करीब 200 लाख गैलन गन्दा पानी गिरता है। डॉ. लोहिया ने ठीक ही कहा था कि अगर इसको डाइवर्ट करके 10-15 किलोमीटर कहीं ले जाया जाए, जमा कर खाद का निर्माण करें तो एक बहुत बड़ा काम हो सकता है। इसलिए नगरों से गंगा के प्रदूषित होने की समस्या है, वह समस्या सीवर, फॉल आउट के जल को डाइवर्ट करने, पम्पिंग स्टेशनों को ठीक करने की और ट्रीटमेन्ट प्लांट की रही है, उस कटाव को रोकने के लिए नगर विकास मन्त्री, पर्यावरण विभाग के लोग इसको देखें सभापति महोदय, आप गंगा मुक्ति आन्दोलन से जुड़े रहे हैं।

एक छात्र ने गंगा मुक्ति के बारे में जैसा कहा है कि गंगा का पानी अविरल रूप में नहीं बहेगा और नतीजा होगा कि सास्कृतिक मन गन्दा रहेगा, जिससे बहुत बड़ा विनाश होगा। इसलिये संवेदित रहे हैं, मुंगेर में पढ़े हैं, लिटरेचर के बहुत से कवियों ने कबिता की है और हिन्दी लिटरेचर से बहुत से कवि इस नदी के पैदा हुए हैं। इसलिये गंगा को अक्षुण्ण रखें, अविरल रखें। इसमें न सिर्फ धार्मिक भावना बल्कि राज्यहित और देशाहित का भी भाव है। धन्यवाद

श्री माधव सिन्हा : सभापति महोदय, मैं सर्वप्रथम आपको धन्यवाद देना चाहता हूँ कि आपने ऐसे महत्वपूर्ण बिषय पर वाद-विवाद रखा है। सभापति महोदय, मैं भी गंगा क्षेत्र से आता हूँ और गंगा की जो विशालता है, उसका जो सौन्दर्य है और उसका जो नाट्य रूप है, इन तीनों से हम बचपन से परिचित रहे हैं। सभापति महोदय, इसमें कोई मतभेद नहीं है कि गंगा हमारी संस्कृति से जुड़ी हुई है। आर्यों की सभ्यता इसी के किनारे जन्मी, पनपी और प्रफुल्लित हुई।

अध्यक्ष महोदय, पहले तो ये पुराण और वेद की बात थी जिस समय पूरे विश्व की जनसंख्या लाखों में थी और अब जनसंख्या के दबाब से जो संस्कृति पर आघात हुआ है जिसकी चर्चा पूर्वे जी ने की, वह एक विशेष प्रश्न है। गंगा का मूल समस्याएँ भी दो हैं। एक तो जिसकी चर्चा हमारे शत्रुघ्न बाबू ने की उसके विनाश का रूप और दूसरा जो उसका प्रदूषण हो रहा है, जिसके चलते व्यापक प्रभाव पड़ रहा है जन-जीवन पर, उसकी बात करें। जगदा बाबू जब कभी बोलते हैं तो बड़े व्यापक रूप से बोलते हैं। आज मैं उनसे सहमत हूँ कि जो गंगा की समस्या है, वह केवल बिहार का समस्या नहीं है और उसके बीच हुई राज्यों से गुजरकर खासकर उत्तर प्रदेश में बहुत बड़ा भाग इसका है और उत्तर प्रदेश में जिस तरह से इसका दुरुपयोग हुआ है, यह चिन्ता का विषय है।

एक कानपुर शहर में गंगा के किनारे इतने उद्योग स्थापित किये गए हैं और उससे इसका प्रदूषण हुआ है। अगर आप कानपुर से गंगा के किनारे जाएँ तो पहचानने में आपको कठिनाई होगी। अगर उसे प्रदूषण का एक अंश भी बिहार में चला आता है तो वह इस सरकार के बूते के बाहर है कि उसको रोक दे। अध्यक्ष महोदय, नई संस्कृति में उद्योग का स्थान महत्वपूर्ण है, ये मैं मानता हूँ लेकिन उद्योग इसलिए स्थापित होता है कि मनुष्य का कल्याण हो। अगर महत्वपूर्ण है, ये मैं मानता हूँ लेकिन उद्योग इसलिए स्थापित होता है कि मनुष्य का कल्याण हो। अगर कोई उद्योग उसका विपरीत उद्देश्य उत्पन्न करता है तो उद्योग को छोड़ना पड़ेगा क्योंकि मनुष्य का जो पोषण है, जो उसका रख-रखाव है वह उद्योग है अधिक महत्वपूर्ण है। इसलिए बराबर यह चर्चा हुई कि डेवलपमेंट की बात करो। ऐसा रिकार्ड करो जिससे प्रदूषण का प्रभाव न पड़े और जनजीवन पर उसका विपरीत असर न हो।

गंगा प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड बना जिसमेँ बिहार सरकार भी सदस्य हैं और मैं मानता हूँ कि इन लोगों ने कहा भी क्योंकि इनके बहुत अच्छे-अच्छे पदाधिकारी उसमें प्रतिनिधि के रूप में जाते हैं लेकिन आज तक उस पर कोई कारगर कार्रवाई नहीं हुई। शवदाह गृह की बात आई। सभापति महोदय, शव को जलाना है और यह हमारे सरकार से जुड़ा हुआ है। अभी भी जिस तरह की मनोवृति है, दिमाग में कि क्रिमेटोरियम में जलाना अपने पूर्वजों के प्रति अन्याय होगा।

सभापति महोदय, कितनी ही चर्चाएँ हुईं लेकिन आज तक न तो भारत सरकार ने, न तो किसी राज्य सरकार ने कोई ऐसा कानूना बनाया कि गंगा के किनारे इस तरह का उद्योग लगाया जा सकता है जब कानपुर में कारखाने बन्द किए गए सुप्रिम के आदेश से, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाँ, कारखाना आवश्यक है परन्तु गंगा को प्रदूषित करके नहीं इसलिये उसको हटाओ, इसलिए आज मेरी स्पष्ट अनुशंसा होगी कि भारत सरकार या बिहार सरकार जो हो, वो दोनों सरकारें मिल करके उत्तर प्रदेश र्का सरकार से समन्वय स्थापित करें।

गंगा प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड बना जिसमेँ बिहार सरकार भी सदस्य हैं और मैं मानता हूँ कि इन लोगों ने कहा भी क्योंकि इनके बहुत अच्छे-अच्छे पदाधिकारी उसमें प्रतिनिधि के रूप में जाते हैं लेकिन आज तक उस पर कोई कारगर कार्रवाई नहीं हुई। शवदाह गृह की बात आई। सभापति महोदय, शव को जलाना है और यह हमारे सरकार से जुड़ा हुआ है। अभी भी जिस तरह की मनोवृति है, दिमाग में कि क्रिमेटोरियम में जलाना अपने पूर्वजों के प्रति अन्याय होगा। इसलिए अगर आप बांसघाट जाएँ तो हर रोज देखेंगे कि सैकडों चिताएँ जली हुई हैं। अब इसको तो धीरे-धीरे मिटाना होगा। अब केवल मनुष्य के शव से सम्बन्ध नहीं है। आप अगर गंगा किनारे किसी दिन खड़े हों, तो देखेंगे कि पशु-पक्षी सबका कंकाल बहता रहा है। इसलिए मैं कहता हूँ कि इस समस्या की ओर ध्यान देना चाहिए।

(सदन में लाल बत्ती)

महोदय, थोड़ा और समय दिया जाए, क्योंकि हम गंगा पर बोल रहे हैं, हम भी उस एरिया से जाते हैं।

प्रो. जाबिर हुसैन, कार्यकारी सभापति : और माननीय सदस्यों को बोलना है।

श्री माधव सिन्हा : ठीक है, हम खत्म कर देते हैं जब आप कहते हैँ। तो यह प्रदूषण की बात आई तो प्रदूषण के लिए महोदय, एक समेकित योजना बनाने की जरूरत है। जहाँ तक बाढ़ नियंत्रण का प्रश्न है, आवश्यकता इस बात की है कि इसमें भी एक समेकित योजना बने। अभी बिल्कुल एडहॉक योजनाएँ हैं। जहाँ कटाव होता है मन्त्री पर दबाब पाता है, सरकार पर दबाव पड़ता है, वहाँ उस क्षेत्र को बचाने के लिए कुछ कार्रवाई हो जाती है।

महेन्द्रपुर को बचाया जा रहा है, बहुत अच्छी बात है। फिर बेगुसराय को बचाना आवश्यक है, क्योंकि उसका प्रभाव यह भी पड़ा है कि दूसरी ओर नदवी चौकी में धुँआधार कटाव हो रहा है, उस ओर कभी ध्यान नहीं दिया गया। सूर्यगढ़ा में एक बाँध बनाया गया। आपने देखा होगा सड़क के किनारे-किनारे बाँध जाता है, उस बाँध की वही दुर्दशा है जिसका उल्लेख शत्रुघ्न बाबू ने किया है। उस बाँध पर कोई अनुशासन है भी नहीं। इसलिये मैं जल संस्थान विकास मन्त्री से अनुरोध करुँगा कि वो पूरे बाँध का निरीक्षण कराएँ और जहाँ-जहाँ उसका अतिक्रमण हुआ है या उसको नष्ट करने की कार्रवाई की गई, उन लोगों पर कार्रवाई की जाए और मरम्मती की भी व्यवस्था करें। जहाँ तक बाढ़ की विभीषिका का सवाल है...

प्रो. जाबिर हुसैन, कार्यकारी सभापति : अब समाप्त करें।

श्री माधव सिन्हा : महोदय, दो मिनट और बाढ़ की विभीषिका से भी हम पूर्णत: परिचित हैं और हमारे यहाँ प्रतिवर्ष हजारों एकड़ जमीन बाढ़ से क्षतिग्रस्त होती है और अगर कुल आँकड़ा लिया जाए, वर्षों-वर्षों का जोड़कर तो पूरे हिन्दुस्तान के बजट से कई गुणा अधिक राशि की क्षति हुई है। बिहार में और यह बिहार को क्रेडिट है कि इसके बाबजूद भी बिहार है और रहेगा। लेकिन मैं माननीय मन्त्री जी से अनुरोध करना चाहूँगा कि ये पूरी स्टडी कराएँ बक्सर से लेकर जहाँ तक इनका जुरिस्डिक्शन पड़ता है।

बाढ़ का नियन्त्रण सबसे ज्यादा है, उसको आप देखेंगे या देखे होंगे। अगर आप मुंगेर जाते होंगे तो आपने देखा होगा कि गंगा का जो पुराना किनारा है उसको छोड़कर 3-4 किलोमीटर उत्तर की ओर बह रही है, शत्रुघ्न बाबू की ओर। उसको भी कुछ करना होगा, ड्रेजिंग की भी आवश्यकता पड़ सकती है ताकि गंगा को ढंग से बहाया जा सके। महोदय, मैं एक सुझाव यही देना चाहूँगा कि इसके लिए जल संसाधन विकास मन्त्री एक सेल बनाएँ जो उसका सतत अध्ययन को और जहाँ जिस बात की आवश्यकता हो, वह करें और इसकी एक कंसोलिडेट, इन्टट्रीग्रेटेड स्कीम बने। अब मैं समाप्त करता हूँ।

श्री रघुनाथ गुप्ता : सभापति महोदय, जब से गंगा इस पृथ्वी पर है, बिहार की आधी आबादी का जीवन-मरण का प्रश्न गंगा से जुड़ा हुआ है। लेकिन अब सुना जा रहा है गंगा के अस्तित्व पर भी संकट उपस्थित हो गया है। कहीं ऐसा नहीं हो कि बिहार की भावी पीढ़ी जो आने वाली है इस प्रदेश में, वह गंगा को लोकश्रुति के रूप में देखे, क्योंकि आज गंगा के अस्तित्व पर संकट है।

बांग्लादेश के बन जाने के बाद से और इस सम्बन्ध में माननीय मन्त्री जगदा बाबू ने एक दिन चर्चा की थी कि नेपाल की नदियों से जो बिहार को संकट पैदा होता है, उस को नियन्त्रित करने के लिए हम नेपाल से सन्धि करना चाहते हैं तो नेपाल को भी गंगा में कुछ सुविधा देनी पडेगी। इसलिए अन्तरराष्ट्रीय नदी के रूप में इसका एक महत्व बनता है और मैं समझता हूँ कि एक सेंट्रल गंगा कंट्रोल बोर्ड बनना चाहिए जिसमें उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल के प्रतिनिधि हों, जो इन तमाम विषयों को देखकर गंगा का संचालन कैसे हो, इस बारे में तय करें।

कानपुर में बराज बनाया जा रहा है उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा और वह बराज गंगा के पानी को रोक देगा, पानी के बहुत बड़े भाग को और उस स्थिति में बिहार, बंगाल और बांग्लादेश जिसका गंगा के पानी पर अधिकार है, ये उससे वंचित हो सकते हैं। इसलिए सरकार को चाहिए कि गंगा के पानी पर उसका हक बरकरार रहे, इसके लिए बिहार की सरकार सचेष्ट रहे, यह हमें-उम्मीद है कि जगदानन्द बाबू योग्य मन्त्री हैं। मैं एक स्मरण दिलाना चाहूँगा कि 1978 में बांग्लादेश को गंगा का पानी मिलने में कठिनाई हो रही थी और उस समय में मौलाना भसानी वहाँ के नेता थे और उन्होंने फरक्का बाँध को तोड़ने का प्रयास किया था, तो इसके लिए भी बिहार सरकार को उससे बात करनी चाहिए ताकि बिहार को गंगा का वाजिब हक मिले।

प्रो. जाबिर हुसैन, कार्यकारी सभापति : माननीय सदस्य, श्री परमानन्द सिह 'मदन' दो मिनट

श्री परमानन्द सिंह 'मदन' : सभापति महोदय, गंगा हमारी भारतीय सभ्यता और संस्कृति की मेज है और विश्व की एकमात्र विशिष्ट नदी है जिसका जल काफी दिनों तक सुरक्षित रहता है। इसलिए लोगों की चिन्ता है ताकि इसका प्रदूषण नहीं हो। लेकिन गंगा एक वरदान है, और वरदान कैसे रहे, इसके लिए चिन्तित होना है। इस सम्बन्ध में हम कहना चाहेंगे कि गंगा कोई एक अन्तरराज्यीय नदी नहीं बल्कि एक अन्तरराष्ट्रीय नदी है।

बांग्लादेश के बन जाने के बाद से और इस सम्बन्ध में माननीय मन्त्री जगदा बाबू ने एक दिन चर्चा की थी कि नेपाल की नदियों से जो बिहार को संकट पैदा होता है, उस को नियन्त्रित करने के लिए हम नेपाल से सन्धि करना चाहते हैं तो नेपाल को भी गंगा में कुछ सुविधा देनी पडेगी। इसलिए अन्तरराष्ट्रीय नदी के रूप में इसका एक महत्व बनता है और मैं समझता हूँ कि एक सेंट्रल गंगा कंट्रोल बोर्ड बनना चाहिए जिसमें उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल के प्रतिनिधि हों, जो इन तमाम विषयों को देखकर गंगा का संचालन कैसे हो, इस बारे में तय करें। नहीं तो स्वयं मन्त्री जी ने अपनी आँखों से देखा है, आगरा में यमुना की क्या हालत है? आगरा यमुना के किनारे के लिए प्रसिद्ध है, ताजमहल में भेज दिया जाता है और आगरा में यमुना दिखलाई ही नहीं पड़ती, केवल प्रदूषित जल ही उसमें रह गया है।

तो सागर सचमुच कानपुर में कुछ बन गया या उधर ही पानी को रोक दिया गया या गंगा नहर जो यूपी. में है, उसको ही अधिक पानी चला गया और बिहार को पर्याप्त पानी नहीं मिला तो जैसे सरस्वती नदी लुप्त हो गई और राजस्थान रेगिस्तान बन गया, जिसको फिर से मरुभूमि से हम हरियाली में लाने का प्रयास कर रहे है, वही स्थिति बिहार की हो जाएगी इसलिए गंगा में पर्याप्त पानी रहे, इसके लिए बिहार को सचेष्ट होना होगा और मेरी माँग है कि सेंट्रल गवर्नमेंट के अंडर में गंगा कंट्रोल बोर्ड बने, जिसमें बिहार का उचित प्रतिनिधित्व हो, तभी हम इन समस्याओं का निदान कर सकते हैं।

गंगा के सौंदर्यीकरण र्का दृष्टि से, नगर विकास विभाग के मन्त्री भी यहाँ बैठे हुए हैं इलाहाबाद और वाराणसी के बाद सबसे महत्वपूर्ण शहर और इतिहास की दृष्टि से उन दोनों से महत्वपूर्ण पाटलिपुत्र गंगा के किनारे ही है और शायद पतन होने के कारण भी इसका नाम पटना पड़ा। एक कारण इसका यह है कि नौकायन की दृष्टि से उस समय यहाँ से बड़ी-बड़ी नाव या जहाज, जिसको उस समय कहते थे, जाते थे।

गंगा को उस लायक इलाहाबाद तक बनाने का प्रयास है तो उसमें भी बिहार का श्रेय होना चाहिए और गंगा के किनारे मैरीन ड्राइव की जो बात रही है कि गंगा के किनारे जो शहर हमारे हैं, उनको हम खूबसूरत बना सकें। तो उन कामों को हम अगर सभी विभागों के को-आर्डिनेशन से कर सकें तो आज जो गंगा है, उससे हम लाभ उठा सकते है और अन्त में, माननीय गौतम सागर राणा जी ने ठीक ही कहा, हम भाजपा के साथियों से कहना चाहेंगे कि साल भर पाप करके एक दिन गंगा प्रदूषित करने से न इनका पाप धुलने वाला, न गंगा का प्रदूषण बचने वाला है। इसलिए गंगा को प्रदूषण से बचाएँ और अपना सब पाप भी उसमें नहीं धोएँ।

श्री रामप्यारे लाल : महोदय, माननीय परमा बाबू क्रो सिर्फ वोल्गा नदी की चिन्ता है।

प्रो. जाबिर हुसेन, कार्यकारी सभापति : शान्ति, शान्ति, माननीय मन्त्री जल संसाधन विभाग, मेरा आग्रह होगा कि प्रदूषण से सम्बन्धित जिन विषयों का उल्लेख माननीय सदस्यों ने किया है, उनकी भी समीक्षा करें, जिस हद तक हो सके, 11 बजकर 5 मिनट तक।

श्री जगदानन्द सिंह (मन्त्री) : महोदय, सच तो यह है कि आज जो मैं बताना चाहता था सदन को आपके माध्यम से, न केवल सदन को बल्कि इसके माध्यम से पूरे बिहार की जनता को, उसके लिए थोड़ा-सा समय मुझे देना चाहिए था। जो माननीय सदस्यों ने कहा, कोई विषय अछूता नहीं है। केवल उन्हीं विषयों को छूने का प्रयास हुआ है जो इस देश के जन्मकाल से और आज तक उस विषय को लोग छूते रहे है। देश के लिए गंगा का क्या महत्व है मैं इसकी बात नहीं कर रहा हूँ। महोदय, मेरे पास समय कम है। इसलिए इन सारे विषयों को जानना नहीं चाहता हूँ।

गंगा नदी से फरक्का में जल का एक निश्चित जलस्राव बांग्लादेश को उपलब्ध कराने हेतु हुगली नदी की सफाई हेतु आवश्यक जलापूर्ति उपलब्ध कराने के लिए भारत सरकार वचनबद्ध है। यह तभी सम्भव होगा जब कि गैर मानसून मौसम में पर्याप्त जल गंगा नदी में उपलब्ध रहे। दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हो रहा है, गंगा एवं उसकी सहायक नदियों से सूखे मौसम में उपलब्ध जल का प्राय: पूर्ण उपयोग ऊपरी राज्यों द्वारा किया जा रहा है। इस प्रकार बिहार राज्य में विभिन्न उपयोग हेतु जल की उपलब्धत्ता में काफी ह्रास हुआ है।

जिन चीजों की जानकारी देना चाहता हूँ। यदि यह सचमुच सत्य है, जो आप कह रहे हैं, तो उस पर जो खतरा मँडरा रहा है, मैं उसके बारे में केवल बता देना चाहता हूँ। महोदय, मैं जल संसाधन विभाग का इंतजाम कर हूँ। बिहार की जनता की तरफ से और इंतजामकार की हैसियत से मेरा दायित्व बनता है कि इंतजाम करते हुए जो कठिनाइयाँ हमने देखी हैं, जो खतरे निकट भविष्य में आने वाले हैं, मैं उनकी जानकारी सदन को दूँ। मैं बिल्कुल साहित्य और किंवदन्ती से अलग उस कठोर धरातल का परिचय देना चाहता है जो आज़ सामने है। मैं एक पत्र पढ़ रहा हूँ, जो इसमें सरकार कर रही है और जो समस्याएँ हैं, उनका जिक्र है। यह पत्र 21/7/94 को हमने लिखा है भारत सरकार के जल संसाधन मन्त्री को, मैं उसको पढ़कर इसलिए सुनाना चाहता हूँ, इसको छिटफुट ढंग से कह सकता हूँ, लेकिन वह बात बनेगी नहीं। इस पत्र के माध्यम से समस्याओं की जानकारी हो जाएगी।
प्रिय शुक्ल जी,

मैं आपका ध्यान गंगा नदी के जल के उपयोग हेतु उत्तर प्रदेश द्वारा निर्माणधीन अथवा निर्माण हेतु प्रस्तावित विभिन्न परियोजनाओं की ओर आकृष्ट करते हुए इस सम्बन्ध में बिहार सरकार की चिन्ता को अवगत् कराना चाहता हूँ। कहना न होगा कि जिस प्रकार गंगा जल का अन्धाधुन्ध व्यवहार हो रहा है उससे राज्य के तटीय अधिकारों (पेरिफेरल राइट्स) के हनन की पूरा आशंका उत्पन्न होती है। साथ ही, इस बात पर भी प्रश्नचिन्ह लग गया है कि इस राज्य की आवश्यकताओं के लिए गंगा नदी से पर्याप्त जल प्राप्त हो सकेगा अथवा नहीं एवं अन्तरराष्ट्रीय ड़करारनामों से सम्बन्धित दायित्वों का निर्वाह भारत सरकार किस प्रकार करेगी?

उल्लेखनीय है कि गंगा नदी से फरक्का में जल का एक निश्चित जलस्राव बांग्लादेश को उपलब्ध कराने हेतु हुगली नदी की सफाई हेतु आवश्यक जलापूर्ति उपलब्ध कराने के लिए भारत सरकार वचनबद्ध है। यह तभी सम्भव होगा जब कि गैर मानसून मौसम में पर्याप्त जल गंगा नदी में उपलब्ध रहे। दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हो रहा है, गंगा एवं उसकी सहायक नदियों से सूखे मौसम में उपलब्ध जल का प्राय: पूर्ण उपयोग ऊपरी राज्यों द्वारा किया जा रहा है। इस प्रकार बिहार राज्य में विभिन्न उपयोग हेतु जल की उपलब्धत्ता में काफी ह्रास हुआ है।

हाल ही में समाचार पत्रों से यह भी सूचना प्राप्त हुई है कि यमुना नदी के कुल जल के बँटवारे के सम्बन्ध में इस घाटी के सभी राज्यों के बीच एक अनुबन्ध हो गया है। फलस्वरूप सूखे मौसम में इस राज्य में गंगा नदी के जल में कमी आ गई। इसी सन्दर्भ में आपका ध्यान सन् 1982 है केन्द्रीय जल आयोग द्वारा किए गए अध्ययन की ओर आकृष्ट करना चाहूँगा जिसमें फरक्का बराज के फरवरी एवं अप्रैल माह में 75 प्रतिशत विश्वसनीयता के आधार पर 1500 घन मीटर प्रति सेकेंड उपलब्धता का आकलन किया गया है।

इस अध्ययन में गया में विभिन्न शहरों एवं इसकी सहायक नदियों से अन्तिम बिन्दुओं पर उपलब्ध जल का आकलन करते हुए दिया गया है। यह न्यूनतम जल हर स्थान पर उपलब्ध होने पर ही फरक्का बराज पर 1500 घन मीटर प्रति सेकेंड जल प्राप्त हो सकेगा। परन्तु, इस राज्य सरकार द्वारा गठित सिंचाई आयोग के द्वारा जो अध्ययन किया गया है, उससे यह निष्कर्ष निकलता है कि इस राज्य में विभिन्न बिन्दुओं पर जल की उपलब्धता केन्द्रीय जल आयोग आकलित मात्रा से काफी कम है।

इस मात्रा में कालान्तर में और भी कमी आने की सम्भावना है जबकि गंगा की सहायक नदियों पर निर्मित अथवा प्रस्तावित सिंचाई योजनाओं का पूर्ण विकास कर लिया जाएगा। अत: आवश्यकता इस बात की है कि ऊपरी भाग में भविष्य में योजनाएँ निर्मित करके, उसके बिषय में नीचे के राज्यों, यथा बिहार एवं पश्चिम बंगाल से भी विचार-विमर्श कर उनकी सहमति प्राप्त करने के उपरान्त ही निर्माण कार्य प्रारम्भ किया जाए। परन्तु, खेदपूर्वक कहना पड़ता है कि बिहार और पश्चिम बंगाल पर सम्भावित कुप्रभावों की छानबीन के बिना तथा इन राज्यों की बिना सहमति के अभी तक गंगा नदी के जल के उपयोग की योजनाएँ राज्यों द्वारा भारत सरकार की सहमति से हाथ में ली जा रही है।

इस प्रकार की योजनाएँ हैं : उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गंगा नदी पर कानपुर में प्रस्तावित बराज, यह मुख्य रूप से उल्लेखनीय है। इस राज्य ने यह भी अनुरोध पत्र भेजा था कि कानपुर में प्रस्तावित बराज की स्वीकृति देने के पूर्व इस राज्य की सहमति प्राप्त कर ली जाए और इन बिन्दुओं पर आयोजित बैठकों में इस राज्य को भी शामिल किया जाए। पर इस राज्य का यह अनुरोध केन्द्रीय जल संसाधन मन्त्रालय द्वारा यह कहकर नकार दिया गया कि कानपुर बराज का उद्देश्य कानपुर शहर में पेयजल आपूर्ति हेतु जल स्तर ऊपर उठाना मात्रा है तथा इसमें किसी नए जल प्रयोग का प्रावधान न होने के कारण इन बैठकों में बिहार को सम्मिलित किए जाने का कोई आधार नहीं है।

जब तक गंगा नदी में जल की कुल उपलब्धता, विभिन्न उपयोग हेतु इसकी आवश्यकता आदि का आकलन कर घाटी राज्यों के बीच इनकी हिस्सेदारी निर्धारित नहीं कर दी जाती है तब तक केन्द्र सरकार द्वारा गंगा नदी पर उत्तर प्रदेश राज्य में किसी भी नई योजना की स्वीकृति स्थगित रखी जाए। इस प्रकार का निर्णय गंगा की सहायक नदियों गंगा, जमुना या इसकी सहायक नदियों गोती, घाघरा आदि के विषय में भी लेना वांछनीय होगा।

केन्द्रीय जल संसाधन मन्त्रालय का यह कथन कदापि मान्य प्रतीत नहीं होता क्योंकि कानपुर बराज के स्थल पर जल स्तर के ऊपर उठाए जाने से अतिरिक्त जल उपयोग की सम्भावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। जहाँ तक योजना के उद्देश्य का प्रश्न है, इस सम्बन्ध में बिहार का यह अनुभव रहा है कि योजना के निर्माण हो जाने के बाद इसके संचालन में मनमाना परिवर्तन कर दिया जाता है। सोन घाटी में इसी प्रकार जल उत्पादन, जल विद्युत उत्पादन हेतु निर्मित रिहन्द से कालान्तर में बड़े पैमाने पर ताप विद्युत गृहों के इस्तेमाल हेतु जलापूर्ति के लिए बिहार में लाया जाने लगा, जिससे प्रभावित सोन नहर की प्रणाली की समस्याओं के समाधान हेतु बिहार सरकार के दो दशकों के प्रयास के बावजूद इस समस्या का कोई सन्तोषजनक हल अभी तक निकल पाया है।

उपर्युक्त वर्णित पृष्ठभूमि में यह आवश्यक है कि जब तक गंगा नदी में जल की कुल उपलब्धता, विभिन्न उपयोग हेतु इसकी आवश्यकता आदि का आकलन कर घाटी राज्यों के बीच इनकी हिस्सेदारी निर्धारित नहीं कर दी जाती है तब तक केन्द्र सरकार द्वारा गंगा नदी पर उत्तर प्रदेश राज्य में किसी भी नई योजना की स्वीकृति स्थगित रखी जाए। इस प्रकार का निर्णय गंगा की सहायक नदियों गंगा, जमुना या इसकी सहायक नदियों गोती, घाघरा आदि के विषय में भी लेना वांछनीय होगा। गंगा बेसिन में विभिन्न राज्यों का हिस्सा निर्धारित कैसे हो, यह निर्णय कर लेना आवश्यक होगा कि गंगा की सहायक नदियों द्वारा गंगा के मिलन स्थल पर कितना जल इन नदियों द्वारा गंगा में छोड़ा जाए, साथ ही गंगा की मुख्य धारा में महत्वपूर्ण बिन्दुओं की पहचान कर न्यूनतम छोडे जाने वाले जलस्राव को भी स्पष्ट करना वांछनीय होगा।

इन निर्णयों के कार्यान्वयन हेतु एक पद की स्थापना आवश्यक होगी जिसका जिक्र माननीय माधव बाबू ने किया कि कोई एक आयोग बने जो इन सारी चीजों को नियन्त्रित करे। मैं आशा करता हूँ कि आप बिन्दुओं पर गम्भीरतापूर्वक विचार कर यथोचित कार्रवाई शीघ्रतापूर्वक करने की कृपा करेंगे। मेरे द्वारा वर्णित बिन्दुओं पर विचार-विमर्श एवं निर्णय हेतु गंगा घाटी के सभी राज्यों की बैठक अपने स्तर पर शीघ्र बुलाई।

महोदय, मैंने इसकी इसलिए चर्चा की कि आज हम जिस सत्य को झेल रहे हैं और आने वाले दिनों में जो खतरा इन राज्यों पर मँडरा रहा है, मैं ड़सकी तरफ केवल इशारा कर रहा हूँ, बाकी चीज शायद हिन्दुस्तान की धरती पर पैदा हुए इंसान को बताने की कोई आवश्यकता नहीं। यहाँ का तो इंसान माँ की गोदी में गंगा की लोरी सुनता है, गंगा को देखने की जिज्ञासा लिये हुए गंगा लाभ कर जाता है। उसके जीवन-मरण से सम्पूर्ण गंगा का रिश्ता जुडा हुआ है।

महोदय, इसका जिक्र यहाँ पर नहीं कर रहा हूँ लेकिन ये रिश्ता टूटने वाला है। ये माँ का रिश्ता जो इंसान के साथ था, इसमें कोई दो राय नहीं। मैं कोई जल का जिक्र नही करता, जो माँ पालती है तो कभी तमाचा भी मारेगी। गंगा, जो हमारी सदियों से जीवनरेखा है कभी-कभी हम उसके कटाव से भी सुस्त होते हैं। खतरे मँडराते हैं तो मामले का हम हल कर लेंगे, वो कोई समस्या नहीं, महोदय। लेकिन गंगा सूख जाएगी तो इस राज्य का क्या होगा, ये प्रश्न है महोदय। मैं और किसी प्रश्न को यहीं छेड़ने नहीं जा रहा हूँ। इस पत्र के माध्यम से मैने जो जिक्र किया, मैं शुक्ला जी की दो-तीन लाइन, क्योंकि पत्रों को पढ़ने लगूँगा तो समय लगेगा, बड़ा कम समय आपने दिया महोदय, शुक्ल जी के उस पत्र को पढ़ना चाहता हूँ मैं, उसका एक-दो पारा पढ रहा हूँ :

केन्द्रीय जल आयोग के अन्तर्गत पूर्ववर्ती गंगा बेसिन जल अध्ययन संगठन द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट ‘गंगा बेसिन जल संसाधन विकास' एक परिप्रेक्ष्य योजना पर बिहार की जनवरी, 1988 में प्राप्त टिप्पणी में कहीं भी यह उल्लेख नहीं किया गया कि गंगा में विभिन्न स्थलों एवं इसकी सहायक नदियों के विभिन्न बिन्दुओं पर आत्म जल की मात्रा में उपलब्ध जल कम है।

यदि बिहार राज्य ने इस सम्बन्ध में कोई अध्ययन किया है, तो मेरा अनुरोध है कि इस विषय में रिपोर्ट सम्प्रति अध्यक्ष, केन्द्रीय जल आयोग को उपलब्ध कराए ताकि इसके सभी पहलुओं पर विस्तार से विचार किया जा सके। महोदय, अफसोस है कि जो अध्ययन हुआ था, भारत सरकार ने जो बिहार की टिप्पणी के लिए भेजा 1988 में, बस गंगा के प्रति इतनी...

श्री पद्मदेव नारायण शर्मा : मन्त्री लोग थोड़े ही अध्ययन करते हैं, अध्ययन तो करते है पदाधिकारी लोग!

श्री जगदानन्द सिह (मन्त्री) : महोदय, मैं आरजू करता हूँ कि छोड़छाड़ नहीं की जाए, समय कम है और मैं कहाँ किसी पर आरोप लगा रहा हैं?

श्री पद्मदेव नारायण शर्मा : आपको जो कहना है, दोषारोपण छोड़ करके जो कहना है कहें।
श्री जगदानन्द सिंह (मन्त्री) : मैं फिर कह रहा हूँ कि वे दोषारोपण नहीं है, में फिर कह रहा हूँ।
श्री पद्मदेव नारायण शर्मा : आपने सर्वांगीण रूप से विचार नहीं किया है।

श्री जगदानन्द सिह (मन्त्री) : महोदय, बिहार सरकार, सवाल है हमने जो कहा, जरा जान लेगे तब न आरोप की बात करेंगे। हमने कहा जो पत्र बाद में लिखा, उसका भी एक पैरा बताऊँगा। यह सच है कि ‘गंगा बेसिन जल संसाधन बिकास : एक परिप्रेक्ष्य योजना' पर जनवरी, 1988 में बिहार द्वारा टिप्पणी में गंगा के विभिन्न स्थलों और इसकी सहायक नदियों को विभिन्न बिन्दुओं पर आँका गया। जल की मात्रा कम उपलब्ध होने का उल्लेख नहीं किया जा सकता है। महोदय, जो हमने कहा, वास्तव में यह समस्या बिहार राज्य सिंचाई आयोग द्वारा गंगा एवं इसकी सहायक नदियों में विभिन्न बिन्दुओं पर वास्तविक जल उपलब्धता से सम्बन्धित अध्ययन के उपरान्त प्रकाश में आई है।

कल की गंगा और आज की गंगा में फर्क है। कल ही गंगा जीने का आधार थी, आने वाले कल की गंगा भी जीने का आधार बनी रहे यही चिन्ता है। आज जो मैं आपके माध्यम से बिहार की जनता को बता रहा हूँ महोदय, आखिर ये 1500 क्यूसेक पानी आएगा कहाँ से, कौन देगा इसको, क्योंकि बक्सर में जो पानी की कमी होती जा रही है, मैं बहुत बड़े आँकड़े के जाल में आपको नहीं ले जाना चाहता हूँ क्योंकि कभी विषय नीरस हो जाता है।

वर्ष 1981 में गठित इस आयोग ने 1994 वर्ष के अन्त में अपना प्रतिवेदन समर्पित किया था। मैं कहाँ दोष दे रहा हूँ शर्मा जी, किसी बात पर घबरा नहीं जाना चाहिए। सरकार एक कंटीन्यूअस प्रोसेस है, कोई आकलन हमारे किसी इंस्टीच्यूशन के द्वारा उस दिन नहीं हुआ था तो आप कहाँ से उसका जबाब देते। मैं कोई दोष नहीं दे रहा हूं। 1988 में जो नहीं हुआ, वह अब नहीं हो, यह गलत हो जाएगा। 1988 में जो ज्ञान हमारे पास उपलब्ध धा, हमारे वैज्ञानिक के द्वारा दिया गया ज्ञान जिस पर कोई पोलिटिकल डिसिजन होता है वो ज्ञान हमारे पास नहीं उपलब्ध था, लेकिन उसी जमाने में सिंचाई आयोग बनाने की कल्पना थी, मैं आपके प्रयासों को कहाँ इनकार कर रहा हूँ, वे प्रयास सफल हुए। जब ये वर्तमान सरकार आई तो सिंचाई आयोग का गठन हुआ और सिंचाई आयोग का प्रतिवेदन मैं माननीय नेताओं को उपलब्ध करा रहा हूँ।

महोदय, कितनी वृहद वैज्ञानिक खोज की बात पर एक चर्चा करूँगा कि बिहार के अभियन्ताओं ने, प्रशासकों ने हमारा जो वर्तमान ढाँचा है, इतना बड़ा दस्तावेज बिहार की हुकूमत को सौंपा है कि आने वाले दिनों में बिहार के खेतों की सुरक्षा करने में ये दस्तावेज कारगर होंगे महोदय, हमसे पूर्व में क्यों गलतियाँ हुईं अध्ययन नहीं था मैं फिर कह रहा हूँ कि भावना के स्तर पर किसी चीज की उपयोगिता की बात और तथ्य के आधार पर, दोनों में बड़ा फर्क होता है। इन भावनाओं के स्तर पर गंगा से जुड़े, लेकिन कठोर सत्य जो आज हमारे सामने आ रहा है, हमारी खोज, हमारे दस्तावेज, हमारे आयोग के प्रतिवेदनों पर, तब हमारी आँख खुल रही है। हमने तो गंगा को मान लिया था अक्षय भण्डार है, ये भण्डार कभी सूखने वाला नहीं है। यही हमारे पुरखों ने बताया था, यही हम आज तक जानते थे, लेकिन अब ये बात हो रही है कि अक्षय भण्डार नहीं, गंगा बक्सर में सूख गई है।

महोदय, गंगा में यमुना का योगदान होना है, चम्बल का होना है, गोमती का होना है, डान्स नदी का होना बक्सर से ही ऊपर नदियों का होना है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा को साझेदारी निभानी है, बक्सर के बिन्दु पर इसलिए कि फरक्का में 1500 क्यूसेक पानी देना है, क्योंकि कोलकाता बन्दरगाह को चलाते रहना है। ये तो हमारे पुरखों ने बताया था कि ये गोमुख से लेकर समुद्र तक जो गंगा की यात्रा है, ये पूरे हिन्दुस्तान की संस्कृति की यात्रा इसी में अलग-अलग है।

महोदय, प्रदूषण के बारे में बड़ी जानकारी देना चाहता था, लेकिन अफसोस कि समय कम है, आप पाँच मिनट और अपने देने वाले हैं। महोदय, मैं इसलिए कह रहा हूँ, कल हम माननीय सदस्य नहीं होंगे, कल जो थे मैं किसी की लापरवाही और गलती नहीं कह रहा हूँ। लेकिन अक्षय भंडार कभी कम होगा, एक किवदन्ती है कि सीखी हुई चीज के बारे में किसी ने कभी ध्यान नहीं दिया, लेकिन आज जो तथ्य है यदि मैं नहीं बताऊँ एक इन्तजामकार की हैसियत से तो, आने वाली पीढ़ी के साथ विश्वासघात होगा महोदय, इस समस्या की मैं जानकारी दे रहा हूँ, हो सकता है हमलोगों के जीवनकाल में इस समस्या का हल नहीं निकले, लेकिन समस्या पैदा हो चुकी है।

कल की गंगा और आज की गंगा में फर्क है। कल ही गंगा जीने का आधार थी, आने वाले कल की गंगा भी जीने का आधार बनी रहे यही चिन्ता है। आज जो मैं आपके माध्यम से बिहार की जनता को बता रहा हूँ महोदय, आखिर ये 1500 क्यूसेक पानी आएगा कहाँ से, कौन देगा इसको, क्योंकि बक्सर में जो पानी की कमी होती जा रही है, मैं बहुत बड़े आँकड़े के जाल में आपको नहीं ले जाना चाहता हूँ क्योंकि कभी विषय नीरस हो जाता है। महोदय, लेकिन मैं थोड़ी बात बता दूँ कि बक्सर को जितना लीन पीरियड में पानी चाहिए महोदय, उसमें करीब 223 क्यूसेक की कमी हो रही है।

1500 क्यूसेक वहाँ और बक्सर, जो सबों की हिस्सेदारी है, महोदय, उसमें आज के दिन 330 क्यूसेक की कमी हो रही है और उसमें अकेले बक्सर में 223 लीन पीरियड में और महोदय, ये हमारे आँकड़ा था फरवरी का और मार्च मेँ जा करके करीब 250 क्यूसेक की कमी होने जा रही है। महोदय, और अप्रील में 155 क्यूसेक, महोदय, क्या नतीजा होगा? कल एक-एक बूंद पानी ऊपर वाले ले लेंगे। बांग्लादेश को पानी देना और कोलकाता एयरपोर्ट को पानी देना, इस दायित्व है अलग हम नहीं भाग सकते। तो महोदय, अन्त में नतीजा क्या होगा? हमारी गण्डक और कोसी भी बिक जाएगी। इसका पानी हमारे जीवन के लिए आधार है, उत्तर बिहार बाढ़ की त्रासदी को झेलता है लेकिन उसके जीवन को बचाए रखने के लिए उनको खेती की आवश्यकता है। हमको अन्तिम में उसकी कटौती करनी पड़ेगी। जाने-अनजाने और इस परेशानियों के कारण, पैसे के अभाव के कारण, हमने पूरे इस सोर्स को डेवलप नहीं किया है। शुक्ला जी की चिट्ठी में एक इंडिकेशन है कि आप जल्दी से सोर्स को डेवलप कर लीजिए, वरना हम कल आपके अधिकारों को शायद नहीं मान पाएँगे।

महोदय, यदि कोई परिवार हो और कोई आदमी गरीबी के कारण कोई चीज नहीं कर पाए तो दुनिया में कोई इसकी हिस्सेदारी लेता क्या? तो हम तो भारत सरकार से एक ही बात कहते हैं कि पूरी गंगा को एक आयोग के सुपुर्द करो। तुमने कहा है, गंगा को फलां-फलां सोर्सेज से पानी मिलेगा। महोदय, अफसोस की बात है हमारा 16 प्रतिशत कैचमेंट एरिया है पूरी गंगा का और आज के दिन 1500 में अकेले 600 पानी हमें देना है। माननीय सदस्यगण, 16 प्रतिशत पानी जब हमको मिलता तो हमको पानी में से 45 फीसदी पानी कैसे दिलवा देंगे, ये किया जा चुका है लेकिन मैं उसके पीछे नहीं जाता, जाने-अनजाने जो चीजें हो जाती है अन्त में हमको उसको ढोना पड़ता है। लेकिन आगे तो बात हो और 1500 क्यूसेक जो हमें पानी देना है उसमें से कोई हमने छीन ले 600 क्यूसेक पानी लेकिन आज जो मामला आगे बढ़ता रहा है, अन्त में 1500 क्यूसेक पानी हमको ही देना पड़ेगा। तब क्या नतीजा होगा, महोदय?

दो सालों से गण्डक और कोसी से हम गरमा की खेती कर रहे हैं। शर्मा जी जो कह रहे थे, हमको पता नहीं था। माननीय सदस्य जो उस दिन कह रहे थे कि रेगिस्तान, राजस्थान का है, उसमें गरमा की खेती होती है लेकिन आप क्यों नहीं खेती करते हैं? उत्तर बिहार में हमने जो खेती शुरू कराई है, महोदय और तीन पीरियड में हम एक-एक बूँद कोसी का पानी। खेतों के भीतर डाल रहे हैं, लीन पीरियड मेँ आठ हजार क्यूसेक है ज्यादा पानी नहीं होता है। एक-एक बूँद पानी कुल मिलाकर 20 हजार के आसपास होता है, इसकी भी एक बूँद हमने खेतों की तरफ मोड़ दिया है लेकिन कल हमसे कहा जाएगा कि तुम ये गरमा की खेती बन्द करो। मतलब, बाढ़ हमारी जिम्मेदारी और खेती पर हमारा कोई इन्तजाम क्या किया? मैने इस समस्या को उठाने का काम किया, इसका अध्ययन करने का काम किया, उसे एक वैज्ञानिक आधार हमने दिया। कोई मैं जबानी जमा-खर्च नहीं बोल रहा हूँ।

शुक्ला जी ने माँग की है कि हमने कोई अध्ययन किया है तो हमको सुपुर्द करो, मैंने इरिगेशन कमीशन की रिपोर्ट उनको भी दी है और कहा है, हो सकता है मेरे आकलन में कोई गलती हो। ये उसका आकलन आज जो है, उनके ऊपर आधारित है, हमने अलग से अब्जर्वेशन के आधार पर कहा कि आपका अब्जर्वेशन कहता है आप सारे पानी को रोक रहे हैं। महोदय, गंगा का पानी हरिद्वार में आपने रोक लिया। बराज आपने लिया आपने रामगंगा-बराज को बना लिया, आपने ओखला में यमुना का बराज बनाया, कानपुर में बराज आप बना रहे हैं, आप आगरा में बराज बनाने की बात कर रहे हैं। मतलब ये, कोई भी पानी जो हिमालय से निकलता है वो बिहार को सीमा में नहीं है।

चलो, हो सकता है इस पानी के तुम्हीं मालिक हो लेकिन उतना तो आने दो लेकिन महोदय, इसका इन्तजाम किया जा सकता है। मैं बाढ़ के बारे में और नहीं कहूँगा। हमने माँग की है कि टिहरी के फ्लड क्युशन क्रिएट करो। अभी तो तुम बना रहे तो क्रिएट करों कि तो बाढ़ से हमें बचाए। पूरे डीवीसी को बनाकर वेस्ट बंगाल को बचाया जा सकता है। उन दिनों जो हमारा पानी था हमने विस्थापन किया। हमने जमीन खोई और हमने पहाड़ और जंगल को खोया, हमने बंगाल को बचाया। टिहरी में बाँध जो बन रहा है उसमें इतना पानी छोड़ रखो कि बाढ़ न आने पाए और इतना पानी रखो कि फरक्का के लिए पानी दे सको।

महोदय, हमने कहा है कि यदि लुम कनाली, पंचकेशर और एक बाँध जो बना रहे हैं कनाली में अब ये बनाना ही चाहते हैं, तो फरक्का के पानी का इन्तजाम करो और फ्लड की व्यवस्था करो। महोदय, मैं यहीं उनसे कह रहा हूँ कि हम हिन्दुस्तान र्का भावना के खिलाफ बिहार में कोई काम करें, ऐसा नहीं है। लेकिन कोई जल विज्ञान है उसको भी छोड़ने का काम किसी को नहीं करना चाहिए। यहीं मैं आग्रह कर रहा हूँ। महोदय, अन्तिम बात कह रहा हूँ।

श्री शत्रुघ्न प्रसाद सिह : नदी के कटाव को रोकने के सम्बन्ध में भी कहिए।

श्री जगदानन्द सिंह (मंत्री) : उसको मत कहिए, उससे बड़ी बात कह रहा हूँ। मैंने कहा है कि एक-एक तमाचे का उपाय हो जाएगा। गंगा आज मर रही है उसके प्रति जिज्ञासा कीजिए। फिर कोई समय जाएगा तब हम उसकी फिक्र करेंगे। एक-एक दस्तावेज है लेकिन समय कम है। समय यदि दिया गया होता महोदय, मैं आग्रह करता। मुझे तो सुनना चाहिए था। इसलिए मैं पहले न्यायलय में अपने मामले को रखता तब न बहस होती। ये तो मामला न्यायलय में आया भी नहीं, बहस भी हो गई।

श्री परमेश्वर : हुजूर, 10 मिनट और समय दिया जाए अच्छी जानकारी मिल रही है।

श्री जगदानन्द सिंह (मन्त्री) : और आप काम करिए, महोदय, केवल अन्तिम बात, सारी चीजे का इलाज हमारा कोसी हाई डैम है। कोसी हाई डैम यदि बन जाए तो सारी चीज का इलाज हो जाए। बांग्लादेश को पानी, हुगली को पानी, गंगा में नेवेगेशन, कोसी में नेवीगेशन, बाढ़ से बचाव, हमारे पास 45 हजार मिलियन क्यूसेक पानी कोसी में सरप्लस है। हम सूखा दें गंगा को, हमारे केसी बाँध को बना दें, इस पूरे रीजन की जो इंटरनेशनल प्रॉब्लम है, जो नेशनल प्रॉब्लम है, सारा सॉल्व हो जाता। महोदय, लगता है कि आपको व्यग्रता है दूसरे कार्यक्रम चलाने की लेकिन हमने जो इशारा किया और कोई जानकारी माननीय सदस्यों को चाहिए निजी रूप से, अलग से लिखकर के दस्तावेज के माध्यम से हम देंगे और सेकेंड एरिगेशन कमीशन की रिपोर्ट है, उसको देखा जाए। केवल यही कहते हुए बात समाप्त करता हूँ।

महोदय, मैं फिर कह रहा हूँ कि प्रदूषण के बारे में जो सारे मामले थे, जो आरोप लगाया षाड़ंगी जी ने सरासर गलत है, गैर जानकारी के आधार पर, लेकिन मैं फिर कह रहा हूँ, गंगा का पानी रुकेगा तो गंगा मैली होगी महोदय, पाल्यूशन रिलेटेड है कंसंट्रेशन से, सघनता बढ़ती जाएगी, और जब पानी कम हो जाएगा सघनता बढ़ती जाएगी, गंगा की पवित्रता खत्म हो जाएगी, ये भी मामला उसी से जुड़ा हुआ है। पानी तुमने रोका, फल हम भुगत रहे हैं। पवित्र गंगा को अपवित्र तुमने किया, क्या हम भुगत रहे हैं। मैं समझता हूँ महोदय, थोड़े से समय में आपने जो हमको मौका दिया और आपके राज्य के एक सेवक इन्तजामकार की हैसियत से, जो समस्याएँ थीं, मैने बताने का काम किया। लेकिन इस बिन्दु पर राज्य को आगे बढ़ना होगा, नहीं तो अनर्थ होने वाला है, महोदय

श्री परमानन्द सिंह 'मदन' : सभापति महोदय, मेरा निवेदन यह है कि आज जो डिबेट गंगा पर हुई और बिहार के हित की जो चर्चा हुई आपके माध्यम से, बिहार के इस सदन की भावना भारत सरकार को भी भेज दी जाए कि गंगा के सम्बन्ध में कोई भी निर्णय लेने के पूर्व बिहार के हित की अनदेखी नहीं की जाए और एक सेंट्रल बोर्ड बने।

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