उजड़ते जंगल के लिए मिशाल बना : वन वाड़ी

महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में पश्चिमी घाट की पहाड़ियों की गोद में मुंबई-पुणे मार्ग से लगभग तीस किलोमीटर की दूरी पर अपने साथियों के सहयोग से भरत मंसाता द्वारा बसाया गया 'वन वाड़ी' प्राकृतिक प्रेम का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। लगभग डेढ़ दशक पहले कुछ लोगों ने मिलकर इस इलाके में दो मराठा जमींदारों से पूरे 64 एकड़ जमीन खरीदकर फॉरेस्ट फार्म बनाने का मन बनाया। प्रारंभ में इसका नाम 'विजन एकड़' रखा गया। लेकिन पांच साल बाद नाम बदलकर स्थानीय नाम 'वन वाड़ी' कर दिया गया, जिसका मतलब है फॉरेस्ट सेटलमेंट या फॉरेस्ट फार्म। वन वाड़ी के संस्थापक सदस्य भरत मंसाता का कहना है कि इतने बड़े इलाके की प्राकृतिक दशा को बचाते हुए सुनियोजित ढंग से विकास करना आसान भी नहीं था।

उजड़ते जंगल के लिए मिशाल बना : वन वाड़ी -2




उजड़ते जंगल के लिए मिशाल बना : वन वाड़ी -3



वन वाड़ी को बचाने के लिए सबसे बड़ी समस्या इलाके की घेराबंदी की थी। फिर नजदीक के आदिवासी लोग भी अपने मवेशी लेकर इलाके में घूमते रहते थे। ऐसे में पेड़-पौधों को बचाना मुश्किल था। इसलिए इन्होंने कुछ आदिवासियों को भी वन वाड़ी के विकास में साथ ले लिया। फायदा यह हुआ कि इन आदिवासियों को काम मिला। साथ ही इन्हें जीने का नया मकसद भी मिला। घेरेबंदी के लिए दीवार के अलावा वहां बहुतायत मात्रा में उगने वाले काथी, कलक, निर्गुदी, सबरी, चंद्रज्योति, करवंदा, रत्नज्योति और सगरगोटा जैसे कंटीली झाड़ी, बांस, चिकित्सकीय पौधे और लताएं लगायी गयीं। वन वाड़ी में एक बड़े भाग पर तरह-तरह के पेड़ पौधे हैं।

उजड़ते जंगल के लिए मिशाल बना : वन वाड़ी -4




उजड़ते जंगल के लिए मिशाल बना : वन वाड़ी -5



आदिवासियों की मदद से इस इलाके में पाये जाने वाले सौ से भी अधिक प्रकार के पौधों की प्रजातियों की खोज की गयी। वन वाड़ी में लगभग चालीस हजार पेड़ हैं। इनमें आम, सीताफल, ड्रमस्टिक, चीकू, नारियल, अमरूद, आंवला, करंज, काजू, पीपल, बरगद, पलाश, चंपा और कई तरह के फलदार और लकड़ी वाले पेड़ हैं। यहां आने वाली पर्यटक सुजाता गुहा का कहना है कि जंगल में समय बिताने का मजा ही अलग है। टीवी और मोबाइल से दूर यहां प्रकृति को करीब से देखने का अवसर मिलता है।

More Videos