उपयोगी सहजन

19 Jun 2015
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भारतीय मूल की वनस्पतियों में सहजन ढेर सारी विशेषताओं से युक्त है। एक ओर जहाँ इस वृक्ष की ढेर सारी औषधीय उपयोगिताएँ हैं, वहीं इसकी फली में पोषक तत्वों की प्रचुरता भी पाई जाती है।भारतीय मूल की वनस्पतियों में से सहजन ढेर सारी विशेषताओं से युक्त है। एक ओर औषधीय उपयोगिताएँ हैं, वहीं इसकी फली में पोषक तत्वों की प्रचुरता भी पाई जाती है। सहजन की पत्ती, फल और फूल को सब्जी, रायता एवं सूप के रूप में नियमित प्रयोग करने से शरीर में खून की कमी नहीं होती और शारीरिक शक्ति एवं स्फूर्ति में बढ़ोत्तरी होती है।

सहजन में पाए जाने वाले औषधीय गुण


सहजन में पाए जाने वाले औषधीय तत्वों के कारण यह अनेक रोगों में अत्यन्त उपयोगी साबित हुआ है। इसकी तासीर गर्म होती है जिससे इसमें उत्तम वीर्यवर्द्धक गुण पाए जाते हैं। इसमें पाया जाने वाला लौह तत्व रक्तजनित विकारों में अत्यन्त उपयोगी प्रमाणित हुआ है। बढ़ी हुई तिल्ली वाले मरीजों के लिए सहजन काफी उपयोगी है। दुनिया के अनेक देशों में हुए शोधों से सहजन के विषय में ढेर सारे अन्य रोग निवारक तथ्यों की जानकारी प्राप्त हुई है। अलग-अलग रोगों में सहजन के गुणकारी प्रभाव निम्नलिखित हैं :

.वात रोग में : आयुर्वेद में सहजन को वातनाशक के रूप में दर्शाया गया है। यह शरीर के जोड़ों जैसे- कमर, घुटनों के दर्द में उपयोगी है। वायु विकार में भी इसका प्रयोग रहता है। जोड़ों के दर्द में सहजन के फूल, पत्ती और छाल सभी उपयोगी होते हैं। सहजन के तने की छाल का काढ़ा या पाउडर वातजनित रोगों में उपयोगी है। इसकी पत्तियों से निकाला गया रस शक्कर में मिलाकर कुछ समय नियमित प्रयोग करने से पेट का वायु गोला ठीक हो जाता है। पेट में गड़न होने पर इसकी पत्तियों का काढ़ा उपयोगी रहता है।

पाचन जनित विकारों में : सहजन में 4.8 प्रतिशत रेशा पाया जाता है, यह पाचन क्रिया को गतिशील बनाने वाला, आँतों की स्वच्छता में वृद्धि करने के साथ ही कब्ज और गैस जनित विकारों को दूर करता है। बच्चों के दस्त और उल्टी में सहजन की पत्तियों का रस अत्यन्त लाभकारी होता है।

नेत्र रोगों में : सहजन में नेत्र रोगों के लिए जरूरी विटामिन 'ए' की मात्रा प्रत्येक 100 में 4.07 मिलीग्राम पाई जाती है, जो आँतों में पहुँचकर 'प्रोया रेटिनाल' में बदल जाती है, जो नेत्रों के लिए श्रेष्ठ टॉनिक और उपयोगी तत्व है। इससे आँखों के अन्धेपन, मोतियाबिन्द और रतौंधी आदि रोगों से छुटकारा मिलता है।

गुर्दे व मूत्राशय की पथरी में : सहजन की पत्तियों की सब्जी बनाकर कुछ समय लगातार खाने से या इसके तने की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से गुर्दे व मूत्राशय की पथरी टूट-टूटकर स्वतः निकल जाती है। इससे पेशाब ज्यादा होता है जो मूत्र मार्ग की पथरी को साफ कर देता है।

हृदय के लिए उपयोगी : सहजन के फल, फूल, पत्ती और छाल में रक्त की धमनियों के विकास और फैलाव के गुण होते हैं। इसमें पाए जाने वाले उत्तेजनामूलक गुणों से रक्त संचार सुचारू रूप से होता है। रक्त वाहिकाओं में जमा कोलोस्ट्रॉल साफ हो जाता है, इससे हृदयघात एवं पक्षाघात की सम्भावनाएँ क्षीण हो जाती हैं।

ज्वर में उपयोगी : सहजन के फल-फूल एवं पत्तियों के काढ़े एवं सब्जी के रूप में प्रयोग से पसीना खूब आता है जिससे पेशाब खुलकर आता है और बुखार से राहत मिल जाती है।

गले के रोगों में : सहजन के तने की छाल का काढ़ा बनाकर उससे गरारा करने और इस छाल से रस निकालकर उसमें एक-चौथाई शहद मिलाकर प्रयोग करने से गले के तमाम रोगों से मुक्ति मिलती है।

बालों की रूसी में : सहजन की पत्तियों का रस निकालकर लगाने से बालों में रूसी समाप्त हो जाती है।

चर्म रोग में : इसकी जड़ को गोमूत्र के साथ पीसकर दाद और इसी तरह के अन्य चर्म रोगों में लगाने पर लाभ होता है।

फोड़े-फुंसी में : यदि फोड़े में मुँह बन जाने के बाद भी मवाद न निकल रहा हो, चुभन और दर्द हो रहा हो तो सहजन की पत्तियों की पुल्टिस बाँधने से फोड़ा फूटकर बह जाता है और दर्द से राहत मिलती है।

सिर दर्द और मानसिक कमजोरी में : सहजन के फल और पत्तियों में फास्फोरस की पर्याप्त उपस्थिति के कारण सहजन मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करता हैं। इसके प्रयोग से स्मरण शक्ति तथा मेधा का विकास और मानसिक रोगों के इलाज में फायदा होता है।

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