उत्तराखण्ड में कम हुई प्रवासी पक्षियों की संख्या


हल्द्वानी। हिमालय की वादियों में हजारों-लाखों किलोमीटर दूर से अस्थाई प्रवास के लिये उत्तराखण्ड के सुरम्य क्षेत्रों में आने वाले मेहमान पक्षी सुरक्षित नजर नहीं आ रहे हैं। इन निरीह प्राणियों का चोरी-छिपे शिकार किया जा रहा है। आजकल उत्तराखण्ड की हसीन वादियों व जलाशयों में इन मेहमानों ने अपने कलरव से चार चाँद लगाए हैं, फिर भी अत्यधिक संख्या में ये पक्षी यहाँ मौजूद हैं। विगत वर्षों की अपेक्षा इस वर्ष इनकी संख्या काफी कम बताई जा रही है।

सर्दियाँ शुरू होते ही मेहमान पक्षियों का उत्तराखण्ड की रमणीक वादियों में आना शुरू हो जाता है। आमतौर पर इन पक्षियों का देवभूमि में आगमन नवंबर माह के प्रथम सप्ताह से हो जाता है और यह सिलसिला दिसम्बर माह के दूसरे सप्ताह तक चलता रहता है। मार्च व अप्रैल में गर्मी शुरू होने के साथ ही यह मेहमान पक्षी अपने घरों को लौटने लगते हैं।

उल्लेखनीय है कि मेहमान पक्षियों का उत्तराखण्ड के मैदानी इलाकों के जलाशयों व नदियों के तटों पर आने का यह सिलसिला काफी पुराना है। इन पक्षियों में मुख्यतः जलीय मुर्गी, साइबेरियन बत्तखें, सारस, बहरी चिड़ियाँ, गुलाबी मैना, सुर्खाव, कूट्स आदि हैं। इन पक्षियों के यहाँ आने का प्रमुख कारण उत्तरी यूरोप व मध्य एशिया तथा अन्य पश्चिमी देशों में ठण्ड का बढ़ना व तापमान शून्य तक पहुँच जाना व अनुकूल वातावरण की तलाश है। तापमान शून्य तक पहुँच जाने से यहाँ बर्फ जमने लगती है और इन पक्षियों को भोजन मिलना दुर्लभ हो जाता है।

पेट की आग बुझाने व बर्फबारी से बचने के लिये ये पक्षी गर्म देशों की शरण में आते हैं, जहाँ कुछ समय मेहमानदारी में बिताने के बाद जब इनके अपने मुल्कों में ठण्ड कम हो जाती है और भोजन आसानी से प्राप्त होने की संभावना बढ़ जाती है तो यह अपने घरों को लौट जाते हैं। इतनी लम्बी उड़ान भरकर बिना भूले-भटके ये पक्षी अपने गंतव्य स्थल तक पहुँचते हैं। रंग-बिरंगे इन पक्षियों की सबसे बड़ी खूबी यह है कि ये अपनी यात्रा रात्रि में करना ज्यादा पसंद करते हैं।

बुजुर्ग बताते हैं कि जब ये वापस लौटते हैं तो नर पहले रवाना होते हैं और जब आते हैं तो मादा आगे होती हैं। यात्रा के दौरान रात्रि में ये पक्षी तारों व चन्द्रमा की स्थिति से मार्ग का निर्धारण करते हैं। इन पक्षियों का मुख्य भोजन पानी के अन्दर पाई जाने वाली वनस्पतियाँ, मछलियाँ व नदी किनारे उगने वाली मुलायम घास है। श्रवण शक्ति के भी ये पक्षी धनी माने जाते हैं। प्रदूषित वातावरण से बचने की क्षमता भी इनमें काफी बताई जाती है।

उत्तराखण्ड के मैदानी जिलों में नदियों की तलहटी व जलाशयों में हजारों किलोमीटर की यात्रा कर आए इन पक्षियों का कोलाहल है। विगत वर्षों की अपेक्षा हरिपुरा जलाशय में इस वर्ष इन मेहमान पक्षियों की संख्या काफी कम है। इसका कारण जलाशय में पानी व भोजन की कमी बताया जाता है। बताया जा रहा है कि मेहमान पक्षी प्रवास के दौरान अण्डे देकर उत्पन्न बच्चों का पालन पोषण कर अपने साथ ले जाते हैं। दिनभर भोजन की तलाश में भटकना और रात को झुंड के रूप में रहना ही इनकी दिनचर्या होती है।

शिकारियों द्वारा इनका अवैध शिकार भी जमकर किया जाता है। झुंड में रहने के कारण इन्हें बिछुड़ने का डर तो नहीं रहता, लेकिन शिकारियों की गुलेल या जाल का भय हमेशा बना रहता है। वैसे पानी में तेजी से तैरकर भागने और हल्की सी आहट का खतरा भाँपने की प्राकृतिक क्षमता इन पक्षियों में होती है, फिर भी कई पक्षी शिकारियों की निर्दयता के कारण अपनी जान गँवा बैठते हैं।

बताया जाता है कि विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिये इन पक्षियों के माँस को उबालकर सूप के रूप में प्रयोग किया जाता है तो लकवा व अन्य बीमारियों से बचा जा सकता है। इसी धारणा के चलते शिकारियों द्वारा इन पक्षियों का चोरी छिपे शिकार किया जाता है। इस धारणा में कितनी सत्यता है यह कहा नहीं जा सकता, लेकिन इसके कारण मेहमान पक्षियों को अपनी जान अवश्य गँवानी पड़ती है।

इन पक्षियों की सुरक्षा व इनके आगमन को ध्यान में रखते हुए इनके संरक्षण के ठोस प्रयास करने की आवश्यकता है, ताकि ये पक्षी स्वच्छंद व निर्भीक होकर जलक्रीड़ा कर सकें।

यूँ तो इन पक्षियों का अवैध रूप से शिकार करने वालों पर वन विभाग व प्रशासनिक अधिकारियों की कड़ी नजर रहती है, फिर भी चोरी-छिपे शिकार हो ही जाता है। पर्यावरण में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण के कारण अब जीव-जन्तुओं के प्राकृतिक आवासों पर भी असर पड़ने लगा है।

गौरतलब है कि प्रति वर्ष शरद ऋतु के आगमन के साथ ही यहाँ पर प्रवासी पक्षियों का आना शुरू हो जाता था। अब स्थिति लगातार घट रही है। इन परिस्थितियों के कारण पर्यावरविदों व पक्षी प्रेमियों का चिंतित होना स्वाभाविक है।

यहाँ पर यूरोप, साइबेरिया, रूस मिस्र आदि देशों के पक्षी प्रतिवर्ष भारी मात्रा में आते हैं। पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, रानीखेत, चकराता, भटवाड़ी आदि क्षेत्रों में ज्यादातर प्रवासी पक्षी देखने को मिलते हैं। इसके अलावा पानी की झीलों व गढ़वाल में बहने वाली नदियों के आस-पास इनको देखा जाता है। ये पक्षी यहाँ पर गर्मी का मौसम आते ही अपने देश को रुख करते हैं।

प्रवासी पक्षियों की दुनिया भी अद्भुत है। पूरे विश्व में पिछले 30 सालों में पक्षियों की 21 प्रजातियाँ लुप्त हो गईं, जबकि पहले औसतन सौ साल में एक प्रजाति लुप्त होती थी। यह आँकड़ा भले ही हमें आश्चर्य में डाल दे, पर यह सच है। यदि हम जल्द ही इन्हें बचाने के लिये कोई कदम नहीं उठाते हैं तो हम प्रकृति की इस अमूल्य रचना को खो देंगे।

पक्षियों की, खासतौर से प्रवासी पक्षियों की, हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। प्रवासी पक्षी अपनी लम्बी यात्रा से विभिन्न संस्कृतियों और परिवेशों को जोड़ने का काम करते हैं। उन्हें किसी सीमा में नहीं बाँधा जा सकता। अपनी लम्बी यात्रा में वे प्रत्येक साल पहाड़, समुद्र, रेगिस्तान आदि को बहादुरी से पार कर एक देश से दूसरे देश का सफर करते हैं।

इस सफर में उन्हें तूफान, बारिश एवं कड़ी धूप का भी सामना करना पड़ता है। इनकी दुनिया भी अद्भुत है। सबकी अपनी-अपनी विशेषता है। पक्षियों की ज्ञात प्रजातियों में 19 फीसदी पक्षी नियमित रूप से प्रवास करते हैं, इनके प्रवास के समय और स्थान भी अनुमानित होते हैं। प्रवासी पक्षी हमारी दुनिया की जैव विविधता का हिस्सा हैं और कई बार उनके आचार-विचार से हमें यह पता लगाने में आसानी होती है कि प्रकृति में संतुलन है या नहीं।

उल्लेखनीय है कि पक्षियों का रुझान कम होने के पीछे पर्यावरण का दूषित होना, पेड़ों का अंधाधुंध कटान और जंगलों में आग लगने की घटनाएँ हैं। पहाड़ों में पहले प्राकृतिक आवास होते थे लेकिन धीरे-धीरे मानवीय हस्तक्षेप के कारण ये नष्ट हो गए। पर्यावरणविदों का कहना है कि ये पक्षी अब भारत से अपना रुख बदलकर चीन आदि देशों को उड़ान भर रहे हैं।

चीन में पर्यावरण के प्रति चेतना को देखते हुए वहाँ हरे-भरे जंगलों का विकास किया जा रहा है, जिससे पक्षियों का रुझान वहाँ की ओर बढ़ रहा है। पहाड़ों में जिस प्रकार प्रवासी पक्षियों का आना कम हो रहा है उससे पहाड़ के बुजुर्ग लोग भी काफी आहत हैं।

बुजुर्गों का कहना है कि पहले यहाँ पर सैकड़ों प्रकार के रंग-बिरंगे प्रवासी पक्षियों का झुंड नजर आता था जो सुन्दर और अपने निराले अंदाज के कारण काफी प्रिय लगते थे, लेकिन अब यह स्थिति बदल गई है और धीरे-धीरे प्रवासी पक्षियों का रुझान उत्तराखण्ड की ओर कम होने लग गया है।

अनेक क्षेत्रों में कई लोग इन पक्षियों का शिकार करने में लगे हैं। ये लोग पक्षियों को मारकर 30 से 40 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेच देते हैं। मेहमान पक्षियों के अवैध शिकार की शिकायत लम्बे समय से मिल रही थी। वन विभाग के गश्ती दलों को इस सम्बन्ध में सतर्क किया गया है। हर क्षेत्र में टीमें इस दिशा में काफी सतर्क हैं। साइबेरियन पक्षी वन विभाग की अनुसूची चार के पक्षी हैं इनको नुकसान पहुँचाने या शिकार करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाती है।

यूँ तो इन पक्षियों का अवैध रूप से शिकार करने वालों पर वन विभाग व प्रशासनिक अधिकारियों की कड़ी नजर रहती है। फिर भी चोरी-छिपे शिकार हो ही जाता है। अवैध शिकार में लिप्त कई लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है। इसके बावजूद भारी तादाद में पक्षियों के शिकार के बाद इनके सुरक्षित विचरण करने पर स्वतः ही प्रश्नचिन्ह लग जाता है।

इन प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा के लिये यदि तत्काल कोई कड़े कदम नहीं उठाए गए तो कुछ सालों बाद हम इन संकटग्रस्त पक्षियों को खो देंगे। इन संकटग्रस्त प्रवासी पक्षियों को बचाने के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण काम यह होगा कि हमें इनके प्राकृतिक पर्यावास को बचाने के साथ-साथ नए पर्यावास विकसित करने होंगे।

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