उत्तराखण्ड स्थित मध्य हिमालयी क्षेत्रों में भोटिया व गंगवाल जनजातियों द्वारा प्रयुक्त औषधीय जड़ी-बूटियाँ (Herbal based traditional practices used by the Bhotias and Gangwal a tribals of the central Himalayan region of Uttarakhand)


सारांश:


स्थानीय औषधीय जड़ी-बूटियाँ व उनके उत्पादों का अपनी विशेष क्षमता, दुष्प्रभाव रहित गुणों व सकारात्मक विश्वास के साथ-साथ देशी पारंपरिक ज्ञान का महत्व लगातार बढ़ रहा है। भारत का त्तराखण्ड स्थित मध्य हिमालयी भू-भाग अपनी जैवविविधता और पारंपरिक स्वास्थ्य ज्ञान के लिये जाना जाता है। उत्तराखण्ड प्राचीन काल से ही प्राथमिक स्वास्थ्य, देखभाल व निराकरण का धनी रहा है। प्रस्तुत अध्ययन के इस क्षेत्र में आवास करने वाली भोटिया व गंगवाल जनजातियों पर जड़ी-बूटियों के पारम्परिक ज्ञान से संबंधित है। भोटिया जनजातीय समुदाय के लोग उच्च हिमालय स्थित पिथौरागढ़ व चमोली जनपदों में रहते हैं और गंगवाल लोग जनपद टिहरी स्थित खतलिंग ग्लेशियर के पास वास करते हैं। इस अध्ययन हेतु असहभागी प्रेक्षण विधि का प्रयोग किया गया, साथ ही साक्षात्कार विवरणिका का प्रयोग स्थानीय वैद्यों व जानकारों द्वारा बताई गई बातों व विधियों को लिखने हेतु किया गया। प्रस्तुत शोध पत्र में कुल 78 पादप प्रजातियों के 39 कुलों के 61 वंश सम्मिलित हैं ये पादप 68 प्रकार के रोगों के निदान में प्रयुक्त किये जाते हैं। कुल 78 पादप प्रजातियों में से 26 जड़ी-बूटियों के जड़ व कंद, 20 की पत्तियाँ, 03 के फल, 10 के सम्पूर्ण भाग जड़ सहित, 07 के बीज, 07 के फूल, 01 का तना, 04 के जड़ रहित वायुवीय भाग, 01 का प्रकंद, 02 का वनस्पति दूध (लेटेक्स), व 01 का गोंद औषधि के रूप में प्रयोग में लाये जाते हैं। लगभग 07 जड़ी-बूटियों का प्रयोग घावों में, 05 का मौसमी बुखार, 05 का सिर दर्द, प्रत्येक 04 का उपयोग गर्भधारण से संबंधित, मोच, पेशाब की समस्या और सर्दी-जुकाम हेतु किया जाता है। इक्कीस पादप प्रजातियों का उपयोग एक से अधिक रोगों के निदान हेतु किया जाता है सत्तावन पादप प्रजातियों का उपयोग केवल एक-एक बीमारी के उपचार हेतु किया जाता है। इनमें से बारह पादप प्रजातियों का उपयोग रंगाई, मसाले, खुशबू व भोज्य पादप के रूप में भी किया जाता है, जोकि क्षेत्र की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह अध्ययन, दूसरे अनुसंधान कार्यों के लिये मूल सूचना अभिलेखाकरण, पारंपरिक औषधि ज्ञान के संरक्षण, जोकि ग्रामीण समाज के उत्थान में महत्त्वपूर्ण हो सकता है, के लिये प्रयोग किया जा सकता है आज यह अति आवश्यक हो गया है कि इस ज्ञान का संरक्षण, संसाधनों की वृद्धि, पौधों को उनके प्राकृतिक वास में संरक्षण व अनुकूल पर्यावास में रोपण कर इन्हें बचाया जाए। इस प्रकार प्रस्तुत अध्ययन के द्वारा यह निष्कर्ष निकाला गया है कि भोटिया व गंगवाल जनजाति के लोग जड़ी-बूटियों के संबंध में बहुत अच्छी जानकारी रखते हैं और सफलतापूर्वक सदियों से इनका उपयोग करते आ रहे हैं। आज सामाजिक, आर्थिक व संस्कृति में परिवर्तन के कारण यह प्राचीन ज्ञान प्रणाली समाप्ति के कगार पर खड़ी है आधुनिकीकरण के शिकार से इस ज्ञान को बचाने की अत्यंत आवश्यकता है।

Abstract


Indigenous Traditional Knowledge (ITK) on herbal medicines is gaining importance continuosly, due to their efficiency, rare chances of side effects in the treatment, good faith of society on herbal meidicine and their products. The state of Uttarakhand which falls under Central Himalayan Region of India is fully recongnized for its rich biodiversity and traditional health care knowledge. Himalayan Region has a rich tradtion of plant based knowledge on primary health care and remedies are also well known here since time immemorial. The present study has been carried out on the tribal communities, i.e. the Bhotias and Gangwals. The Bhotias resides in the high altitude area of district Pithoragarh and Chamoli and Gangwals in district Tehri on way Khatling glacier. A non-Participant observation method was used to extract the knowledge from the local grassroot innovator involved in making such medicines. An interview schedule was also used to record the responses of the local grassroot innovator and other elderly knowledgable persons. Ethnomedicinal used of local plants by the natives of Bhotias and Gangwal tribes were also recorded. In this paper, a total of 78 plants belonging to 39 families and 61 genera have been recorded which were used for the treatment of 66 diseases. Out of 78 plants, roots and rhizomes of 26 are used for medicine preparation followed by leaves (20) fruits (03), whole plant/aerial parts (10/04) seeds (07), stem (01), aerial bulbs (01), latex (02), resin (01). About 07 species were commonly used for treating wounds/sores followed by 05 species for treating fever and 05 species for headache, 04 species each for pregnancy problems, sprains urine problem and cold and cough. Twenty one species were found using for curing more than one aillment while 57 species were reported for single therapeutic application. 12 species are also used as dyes, species, condiments, flavouring agent and food itms and play a significant role in rural economy of the region. This study is useful in providing basic information for further studies on the documentation and conservation of traditional medicinal system which is very important for economic welfare of rural societies. Now, due to change of socio-economy and culture, the traditional knowledge of these communities is also diminishing. It needs to be preserved before the onslaught of modernisation. There is also an urgent need of conservation and resource augumentation of these medicinal plants in their natural habital as well as their plantation in suitable agro-climate conditions. Thus, it was concluded that the tribes, Bhotias and Gangwals possess a good knowledge of herbal medicines that are used in pratice successfully.

प्रस्तावना


समस्त हिमालय क्षेत्र अपनी दोनों प्रकार की वनस्पति व जीव जंतुओं की जैवविविधता के लिये जाना जाता है। वनस्पति जगत में अनेक प्रजातियाँ मानव को जीवन प्रदान करती हैं। एक बुद्धिमान जीव होने के कारण मानव ने अनेक पादप प्रजातियों की पहचान की है, जो उसकी आवास, भोजन, रेशा, ईंधन, औषधि व उसके पालतू पशुओं के लिये चारा आदि की जरूरतों की पूर्ति करते हैं। आदिकाल से आज तक मानव व समाज के जीवन स्तर के विकास के लिये अनेक विकास कार्य हो चुके है। विकास प्रक्रिया में प्राकृतिक संसाधन व उनके आस-पास के वातावरण की गहन भूमिका होती है। सभ्यता, समाज व उसके सामाजिक-आर्थिक व सांस्कृतिक विकास में इन संसाधनों की गहरी छाप होती है। आदि मानव ने इस ब्रह्माण्ड में उन्हीं स्थानों को चुना जहाँ उसे अनुकूल परिस्थितियाँ मिलीं। यह ध्यान देने योग्य विशेषता है कि जनजातीय व प्राचीन जनजातीय समुदाय अपना आवास स्थल जैवविविधता से धनी क्षेत्रों में ही चुनते है। विश्व के जनजातीय समुदायों में से भारत एक विशाल बस्ती है, जो 6.8 करोड़ आबादी 227 जातीय वर्गों व 573 जनजातीय समुदायों का प्रतिनिधित्व करती है, और ये देश के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में वास करते हैं। भारत के संदर्भ में जनजाति का अर्थ एक वर्ग जिसका एक पारंपरिक भू-क्षेत्र, विशिष्ट नाम, एक भाषा, मजबूत सगोत्र संबद्धता, वंश संरचना से दृढ़ता, धर्म और विश्वास के प्रति मजबूत झुकाव। भारत के कुल 573 जनजातीय समुदायों में से 175 से अधिक हिमालयी भू-भाग में बसते हैं। मध्य हिमालयी क्षेत्र अपने हिंदू संस्कृति के लिये जाना जाता है। यहाँ की 3.54 प्रतिशत आबादी जोकि 5 प्राचीन जनजातीय समुदायों भोटिया जौनसारी थारू बुक्सा व राजी या वन रावत की है। भोटिया समुदाय दूसरे देश से आये हुए मंगोल मूल के लोग हैं, जो मध्य हिमालय में भारत-तिब्बत व भारत-नेपाल सीमा पर बसे हैं। व्युत्पत्ति की दृष्टि से भोटिया शब्द का अर्थ है भोट। जिसे अधिक शुद्ध रूप में बोद कहा जाता है, जिसका अर्थ है तिब्बत। उत्तराखण्ड में भोटिया समुदाय के लोग जोहारी, जीठोरिया, दार्मी, चौंदासी, ब्यासी मार्छा, तोल्चा व जाद हैं जो आठ नदी घाटियों जोहार, दारमा, ब्यांस, चौंदास जनपद पिथौरागढ़ तथा माणा व नीति जनपद चमोली, मिलंग और जौनसारी जनपद उत्तरकाशी में वास करते है। ये समुदाय पुनः अनेक गोत्र व कुलों में विभाजित हैं जो कि उनकी विवाह व्यवस्था व पूर्वजों के साथ संबद्धता को प्रदर्शित करते हैं।

इसी तरह एक जनजातीय समुदाय जनपद टिहरी में भिलंगना घाटी के गंगी क्षेत्र में वास करता है जिन्हें आमतौर पर गंगवाल कहते हैं गंगी खतलिंग ग्लेशियर के रास्ते में अंतिम पड़ाव है, यह सम्प्रदाय भौगोलिक बाधाओं व सुविधाओं के अभाव में अलग-थलग रहने को मजबूर है, ये भी मंगोल मूल के ही लोग हैं, और अपना भरण-पोषण प्राकृतिक संसाधनों से ही करते हैं, इन्हें प्राकृतिक संसाधन व उनके उपयोग से संबद्ध गहरी जानकारी होती है। इसी ज्ञान के आधार पर भरण-पोषण हेतु अपनी सामाजिक विरासत, आर्थिक स्थिति व पारिस्थितिकीय विशेषताओं के अनुरूप यंत्र, प्रौद्योगिकी व संबद्ध पारंपरिक स्थानीय ज्ञान उनके इसी कठिन पर्वतीय अंचल में रहने हेतु आवश्यक है। यह पारंपरिक ज्ञान उत्पादन संसाधनों जैसे कृषि मत्स्य पालन, पशुपालन और हथकरघा कार्यों का संचालन करता है। यह पारंपरिक ज्ञान जनजातीय समुदायों की सांस्कृतिक व प्राकृतिक पूँजी है, जो ऐतिहासिक काल से ही प्राकृतिक पूँजी है। जो ऐतिहासिक काल से प्रकृति के साथ संतुलन के अनुरूप व्यवहार व जटिल पारिस्थितिकीय तंत्र पर आधारित ज्ञान है। जनजातीय लोगों के जीवन में पारंपरिक स्थानीय ज्ञान, भोजन, औषधि, आवास, वस्त्र आदि की व्यवस्था हेतु महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इन कठिन पर्वतीय परिस्थतियों में पारंपरिक ज्ञान ही एक औजार की भाँति काम करता है और उन्हें आजीविका प्रदान करता है। आज के आधुनिक युग में भी जनजातीय समुदाय के लोग उच्च हिमालयी भू-भाग में प्राकृतिक संसाधनों और पारंपरिक तकनीकी ज्ञान के आधार पर आजीविका का निर्वहन करते हैं। यह ज्ञान उन्हें अपने पूर्वजों व लंबी अवधि के परीक्षण व अनुभव से प्राप्त हुआ। इस अध्ययन में अनुसंधानकर्ताओं ने इन जनजातियों के द्वारा देशी औषधि में प्रयुक्त जड़ी-बूटियों, जिनका प्रयोग वे अपने प्राथमिक स्वास्थ्य की देखभाल के लिये करते हैं, का अन्वेषण किया गया। इस अध्ययन का मुख्य उद्देश्य उन पादप प्रजातियों की पहचान करना, पौधों के औषधीय गुण वाले भागों, बीमारियाँ जिनका वे निवारण करते हैं, और पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण था, जिनकी उनको जानकारी है। प्राथमिक स्वास्थ्य उपचार के विषय में पारंपरिक ज्ञान और प्रयुक्त जड़ी-बूटियों का विस्तृत प्रलेखन इस अध्ययन के द्वारा किया गया है।

सामग्री एवं विधि


भोटिया व गंगवाल जनजातियों द्वारा प्रयुक्त जड़ी-बुटियों से संबंधित पारंपरिक ज्ञान की खोज के लिये अनुसंधानकर्ताओं द्वारा एक सुनियोजित व असंरचित साक्षात्कार विवरणिका की मदद से संपूर्ण क्षेत्र का सर्वेक्षण किया गया। नमूना सर्वेक्षण विधि का उपयोग करते हुए जनपद पिथौरागढ़ के पाँच भोटिया बाहुल्य गाँवों का जोहार, चौदांस, दारमा, व्यास घाटियों व जनपद टिहरी के भिलांगना घाटी के गंगी गाँव में वर्ष 2008-11 के दौरान अध्ययन किया गया। प्रत्येक गाँव में एक या दो बुजुर्ग व्यक्ति ही औषधि निर्माण व प्रदिष्ट करते हैं। कुछ बुजुर्ग महिलायें भी औषधियों के विषय में जानकारी रखती हैं।

अध्ययन के दौरान अनुसंधानकर्ताओं द्वारा ग्रामीण लोगों की मदद से गाँव में औषधीय जानकारी प्रदिष्ट करने वाले व्यक्तियों के बारे में जानकारी प्राप्त की फिर उनसे संपर्क किया गया। गाँवों में इन बुजुर्गों को लामा या पुजारी कहा जाता है जो कि समस्त धार्मिक अनुष्ठानों को भी सम्पन्न करते हैं। हमने उन्हें अपने उद्देश्य के विषय में बताया। इन नमूनों हेतु चयनित गाँवों के लामाओं से जड़ी-बूटियों व औषधि निर्माण के विषय में गहन वार्ता की गई। उनके द्वारा बताये गये जड़ी-बूटियों, बीमारियों व उनके उपचार हेतु प्रयुक्त तौर-तरीकों का साक्षात्कार विवरणिका में अभिलेखन किया गया। ग्रामीण समाज के लोग विश्वास करते हैं कि लामा या पुजारी द्वारा शुभ मौके पर संग्रहित जड़ी-बूटियों का औषधीय उपयोग प्रभावी होता है इसिलिये वे अपने धर्मगुरू लामा या पुजारी से ही दवाईयाँ लेते हैं। लामाओं द्वारा स्थानीय नाम से बताये गये जड़ी-बूटियों के वैज्ञानिक/वानस्पतिक नाम की पहचान की गई। पादप के साथ ही औषधि-निर्माण विधि का भी अभिलेख किया गया। जो जानकारी उनके द्वारा प्रदान की गई इसे गाँव के ही या आस-पास के गाँव के बुजुर्गों द्वारा अधिप्रमाणित किया गया। इस प्रकार अनुसंधानकर्ताओं द्वारा कुल 78 जड़ी-बूटियों की पहचान की गई।

 

सारणी 1- विभिन्न रोगों के उपचार हेतु भोटिया व गंगवाल जनजातियों द्वारा प्रयुक्त पादप प्रजातियाँ

क्र.सं.

पादप प्रजातियाँ

स्थानीय नाम

कुल

1

एकीरैन्थीज ऐस्परा एल.

लटजीरा

अकैंथेसी

2

एकोनाइटम एट्रोक्स ब्रुचल

मीठा विष, पतीस

रेननकुलेसी

3

एकोनाइटम हीटरोफिलम वॉल एक्स रॉयल

अतीस

रेननकुलेसी

4

एकोनोगोम टोर्टुओसम डी डॉन

बक्रोलिया, बक्राण्डा

पोलीगोनेसी

5

एकोरस कैलामस एल.

गुरबच, बच

अरेसी

6

ऐडियेण्टम जाति

सुनकिया

टेरीगेसी

7

ऐलियम ऑरीकुलेटम कुंथ

फरण, जम्बू

ऐलीयेसी

8

ऐलियम कैरोबिनिएनम डी.सी.

लदम, दूमा

ऐलीयेसी

9

ऐलियम ह्यूमाइल कुंथ

कनम, परगोनी

ऐलीयेसी

10.

ऐलियम सैटाइवम एल.

कनम, परगोनी

ऐलीयेसी

11.

ऐलियम वालिशियाना हुंट

गोबका, लैंका

ऐलीयेसी

12.

ऐजेलिका ग्लाका एडग्यू

छिपा

एपीएसी

13.

ऐरिसीमा जाति

यालब

अरेसी

14.

ऐरिसीमा टार्टुओसम वॉल. स्काट.

बाख

अरेसी

15.

आर्नेबिया बेन्थामई डी.सी. एक्स जोहेंस्टन

बालछड़

बोरगोनेसी

16.

आर्टीमीजिया नीलगिरिका सी एल

पाती

ऐस्टरएसी

17.

ऐस्ट्रागेलस क्लोरोस्टेकिस एल.

रूद्रवंती

फेबियेसी

18.

बेरबरिस ऐरिस्टेटा डी सी

किलमोडा, दारूहल्दी

बरबेरिडियेसी

19.

बरबेरिस चित्रियां एडवार्ड्स

किरमोलो फचरगें, सिरकुटी

बरबेरिडियेसी

20.

बर्जीनिया स्ट्रेचाई एच एच बी एण्ड टी एच

सिलफाड़ा

सैक्सीफ्रेगेसी

21.

बेटूला यूटीलिस डी डान

भोज पत्र

बेटुलेयीएसी

22.

ब्यूटिया फ्रॉण्डोसा

धन

फेबियेसी

23.

कैलोट्रॉपिस प्रोसेरा एट आर बी आर

आक

एक्सलेपीडेसी

24.

सिनेमोनम टमाला बुक हैम

तेजपात

लॉरेसी

25.

कलीमेटिस मोंटाना बुक हैम डी.सी.

बुलबुली

रेननकुलेसी

26.

डाक्टिलोरहिजा हटाजीरिया डी डॉन

सालमपंजा गरूड़ पंजा

ओरेचीडेसो

27.

डल्फिनियम डेनुडेटम वॉल

निर्बिर्षी

रेननकुलेसी

28.

डल्फिनियम वेस्टीटम वॉल एक्स. रॉयल

निर्बिर्षी

रेननकुलेसी

29.

डल्फिनियम ब्रुनोनिएनम रॉयल

जड़वार

रेननकुलेसी

30.

डाइऑस्कोरिया बल्बीफेरा एल.

गेंठी

डाइस्कोरिएसी

31.

हायोसायमस नाइजर एल.

खुरसानी, अजवाइन, लंगटंग

अम्ब्रेलीफेरेसी

32.

आइरिस कुमाऊनेसिस डी. डॉन

बखारी

इरीडेसी

33.

जुगलैंस रीजिया एल.

अखरोट

जुग्लेंडेसी

34.

जुरीनिया डोलोमिया बोइस

धूप

ऐस्टरऐसी

35.

मैगाकार्पा पॉलीएण्ड्रा बैंथ

रूकी

ब्रैसीकेसी

36.

महारंगा एमोडी वॉल डी.सी.

सांखुली

बोरगोनेसी

37.

मेकोनॉप्सिस रोबस्टा

थांस, कैलहारी

पेपेवेरेसी

38.

मिरिका एस्कुलेंटा बुक हेम. एक्स. डी.डॉन

काफल

टोमेरियेसी

39

मायरिस्टीका फ्रेगरेंस

जायफल

मायरिस्टीएसी

40.

नार्डोस्टेकिस ग्रैण्डीफ्लोरा डी.सी.

जटामांसी

बेलेरिएनेसी

41.

ऑर्किस हेबेनेरिआइड किंग.

सालम मिश्री

ओर्चेडिएसी

42.

ऑक्सीरिया डाइजिना एल.

हिल कैलाश

पोलीगोनेसी

43.

पीओनिया एमोडी वाल. एक्स रॉयल

टोनकन्या

रेननकुलेसी

44.

पिक्रोराइज़ा कुर्रोआ रॉयल एण्ड बैंथ.

कूटकी

स्क्रेफुलेरिएसी

45.

पिक्रोराइज़ा स्क्रोफ्लुरीफ्लोरा पैनल

कूट

स्क्रेफुलेरिएसी

46.

पाइनस वालिशियाना ए.बी. जैक्स,

कैल

पाइनेसी

47.

प्लाण्टेगो इरोज़ा

चित्रक

प्लाण्टोगिनेसी

48.

पोडोफिलम हेक्सैण्ड्रम रॉयल

बनककड़ी

पोडोफाइलेसी

49.

पॉलीगोनम नेपालेंस मईसिन

भोटिया चाय

पोलीगोनेसी

50.

पॉलीगोनम टार्टुओसम डी. डॉन

सिरजुम

पोलीगोनेस

51.

पोटेंटिला फल्जेंस हुक

वज्रदन्ती

रोजेसी

52.

पोर्टुलेका ओलिरेसिया एल.

जर्क/जरग

पोर्टुलेसी

53.

सीडियम गुआजावा एल.

अमरूद

ओनेग्रेसी

54.

प्युनिका ग्रेनेटम एल.

अनार

प्यूनिकेसी

55.

रेननकुलस हिर्टेलस रॉयल

वलकसीन

रेननकुलेसी

56.

रिअम पल्चेलस

नताका

पोलीगोनेसी

57.

रिअम ऑस्ट्रेल डी. डॉन

डोलू

पोलगोनेसी

58.

रिअम एमोडी वाल. एक्स. मईसिन

डोलू

पोलीगोनेसी

59.

रिअम मूक्रोफटिएनम रॉयल

डोलू

पोलगोनेसी

60.

रोजा सेरीसिया लिंडाल

रंगोल सइपली, धूरकुर्जा

रोजेसी

61.

रुबिया कार्डीफोलिया लिन.

मंजिष्ठा

रुबिएसी

62.

सॉसुरिया कॉस्टस एल.

कूट

ऐस्टरएसी

63.

सॉसुरिया गॉसिपीफ्लोरा डी. डॉन

गैफूल

ऐस्टरएसी

64.

सॉसुरिया औब्वैलेटा डी सी एडग्यू

ब्रहमकमल

ऐस्टरएसी

65.

स्कोपोलिया स्ट्रेमोनीफोलिया वालिच

ल्ंगतंग

सोलेनेसी

66.

सीडम एवसी लेडेब

पुस्यामानानो

क्रेसुलेसी

67.

सेलीनम वालीशेयेनम

भूतकेशी

ऐपीऐसी

68.

स्टीफेनिया एलीगेंस हुक. एफ. लि. थॉमस

गंगेरी

मेरिस्परमेसी

69.

स्वेर्टिया चिराटा डी.डॉन

चिरायता

जेनिएसी

70.

सिरिंगा एमोडी एक्स रॉयल

घिया

ओलिएसी

71.

टैनेसीटम न्यूबीजौनम वॉल. एक्स. डी.सी.

गुग्गल

ऐस्टरएसी

72.

टैरेक्सेकम ऑफिसिनेलिस नूची

कनफुलिया, करेटू

ऐस्टरएसी

73.

टैक्सस बैकेटा जका. एक्स. पिल्जर.

थुनेर

टेक्सेसी

74.

थाइमस लीनिएरिस बैंथ

धार, अजवाइन वन अजवाइन

लैमीएसी

75.

वैल्नस वालिशियाना प्लांच

चम्मड़मेवा

उल्नेसी

76.

वैलेरियाना जटामांसी जोन्स

सम्यो, मासी धूप

वेलेरिएनेसी

77.

वायोला बाइफ्लोरा एल.

बनपासा

वेलेरिएनेसी

78.

जैन्थॉक्सिलम आर्मेटम डी.सी.

तिमूर

रूटेसी

 

 

सारणी 2- विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ, समस्याएं व उनके उपचार में प्रयुक्त पादप प्रजातियाँ

क्र.सं.

बीमारियों के नाम

प्रयुक्त पादप प्रजातियाँ

1.

छाती का दर्द

अंजेलिका ग्लाका एडग्यू, सॉसुरिया कोस्टस एल.

2.

शीत अनुकूलन

ऐरिसीमा स्पी.

3.

एलर्जी

ऑक्सीरिया डाइजिना एल.

4.

विषमारक

बेरबेरिस चित्रिया एडवार्ड्स

5.

मूकता

बेरबेरिस चित्रिया एडवार्ड्स

6.

जोड़ों का दर्द

माहारंगा एमोडी वॉल. डी.सी.

7.

दमा

आर्नेबिया बेन्थमाई डी.सी. एक्स जोहेंस्टन, पिक्रोराइजा कुर्रोआ रॉयल एण्ड बैंथ

8.

मुँह के छाले

सीडियम डेनुडेटम वॉल

9.

खुन का शुद्धिकरण

डेल्फिनियम डेनुडेटम वॉल

10.

हड्डी में दरार

पाइनस वालिशियाना ए.बी. जैक्स, रिअम ऑस्ट्रेल डी.डॉन, वैल्नस वालिशियाना प्लांच

11.

श्वास की समस्या

सॉसुरिया गॉसिपीफ्लोरा डी. डॉन

12.

जलना

ऐडियेण्टम स्पी., डेल्फिनियम ब्रुनोनिएनम रॉयल

13.

कैंसर

पोडोफिलम हेक्सैण्ड्रम रॉयल, टैक्सस बैकेटा जका. एक्स. पिल्जर.

14.

नजला

सिरिंगा एमोडी एक्स रॉयल, टैक्सस बैकेटा जका. एक्स. पिल्जर.

15.

हैजा

पिक्रोराइज़ा स्क्रोफ्लुरीफ्लोरा पैनल.

16.

सर्दी

ऐलियम ऑरीकुलेटम कुंथ, ऐलियम कैरोबिनिएनम डी.सी.

17.

सर्दी व जुकाम

वायोला बाइफ्लोरा एल.

18.

शूल

सिरिंगा एमोडी एक्स रॉयल, टैक्सस बैकेटा जका. एक्स. पिल्जर, थाइमस लीनिएरिस बैंथ

19.

कब्ज

स्वेर्टिया चिराटा डी. डॉन

20.

गुमचोट, अतः क्षति

एकोरस कैलामस एल. ऐलियम वालिशियाना हुंट, रिअम मूक्रोफटिएनम रॉयल, वैलेरियाना जटामांसी जोन्स

21.

खाँसी

मियरिस्टीका फ्रेगरेंस

22.

दाँत दर्द

पोटेंटिया फल्जेंस हुक

23.

उल्टी-दस्त

टाइरिस कुमाऊनेंसिस डी. डॉन

24.

मूत्र संबंधी

एकोनोगोम टोर्टुओसम डी. डॉन

25.

जलशोध

पिक्रोराइज़ा स्क्रोफ्लुरीफ्लोरा पैनल.

26.

पेचिश

रिअम एमोडी वाल.एक्स. मईसिन, जैन्थॉक्सिलम आर्मेटम डी.सी.

27.

कान का दर्द

ऐलियम सैटाइवम एल.

28.

खाज खुजली

एकीरैन्थीज ऐस्परा एल.

29.

मिर्गी

नार्डोस्टेकिस ग्रैण्डीफ्लोरा डी.सी., प्यूनिका ग्रेनेटम एल.

30.

आँख का दर्द

बेरबेरिस ऐरिस्टेटा डी.सी. बेरबेरिस चित्रिया एड्वार्ड्स

31.

बाल वृद्धि

आर्नेबिया बैन्थामाई डी सी एक्स जोहंस्टन

32.

बुखार

एकोनाइटम हीटरोफिलम वॉल एक्स रॉयल, मैगाकार्पा पॉलीएण्ड्रा बैंथ, पिक्रोराइज़ा कुर्रोआ रॉयल एण्ड बैंथ

33.

विषाक्त भोजन

एकोनाइटम हीटरोफिलम वॉल एक्स रॉयल

34.

जठरीय

वायोला बाइफ्लोरा एल.

35.

सिरदर्द

सिनेमोनम टमाला बुक. हैम, मिरिका एस्कुलेंटा बुक. हेम. एक्स. डी.डॉन, रिअम एमोडी वॉल

 

 

एक्स मईसिन, सॉसुरिया औब्वैलाटा डी.सी. एडग्यू सीडम एवसी लेडेब

36.

हिस्टीरिया

प्यूनिका ग्रेनेटम एल.

37.

अपचन

एंजेलिका ग्लाका एडग्यू

38.

आँतो के कृमि

एकोनाइटम हीटरोफिलम वॉल. एक्स. रॉयल, हायोसायमस नाइजर एल.

39.

नशा

स्कोपोलिया स्ट्रेमोनोफीलिया वालिच

40.

पीलिया

बेरबेरिस चित्रिया एडवार्ड्स, पोर्टुलेका ओलिरेसिया एल., टैरेक्सेकम ऑफिसिनेलिस नूची

41.

यकृत की पथरी

बर्जीनिया स्ट्रेचाई एच एच बी. एण्ड टी एच

42.

आँव

आइरिस कुमाऊनेंसिस डी. डॉन

43.

फेफड़े की बीमारी

स्टीफेनिया एलीगेंस हुक. एफ. लि. थॉमस

44.

मइग्रेन दर्द

कैलोट्रॉपिस प्रोसेरा एट आर बी आर

45.

मुँह में घाव

हायोसायमस नाइजर एल.

46.

मादक पदार्थ

मेकोनॉप्सिस रोबस्टा

47.

नाक बहना

रेननकुलस पल्चेलस

48.

औप्थालिमया

रोजा सेरीसिया लिंडाल

49.

फोड़े

डेल्फिनियम ब्रुनोनिएयम रॉयल

50.

गर्भ संबंधी

बेटुला यूटीलिस डी. डान, जुगलैंस रीजिया एल., ऑर्किस हेबेनेरिआइड किंग, पॉलीगोनम नेपालेंस मईसिन

51.

मोनोऔषधि

एकोनाइटम एट्रोक्स ब्रुचल

52.

जोड़ों का दर्द

ऐलियम ह्यूमाइल कुंथ, आर्नेबिया बेन्थमाई डी.सी. एक्स. जोहेंस्टन, सिंरिंगा एमोडी एक्स रॉयल

53.

त्वचा की देखभाल

रुबिया कार्डीफोलिया लिन.

54.

त्वचा की बीमारी

बेरबेरिस चित्रिया एडवार्ड्स

55.

साँप व बिच्छू का डंक

ऐरिसीमा टार्टुओसम वॉल. स्काट, आर्नेबिया बेन्थमाई डी.सी. एक्स. जोहेंस्टन

56.

मोछ

एकोरस कैलामस एल., ऐलियम वालिशियाना हुंट, रिअम मूक्रोफटिएनम रॉयल, वैलेरियाना जटामांसी जोन्स

57.

पेट दर्द

पिक्रोराइज़ा कुर्रोआ रॉयल एण्ड बैंथ.

58.

सूजन

टैक्सस बैकेटा जका. एक्स. पिल्जर.

59.

प्यास बुझाना

पॉलीगोनम टार्टुओसम डी. डॉन.

60.

गले का दर्द

पॉलीगोनम नेपालेंस मईसिन

61.

दाँत का दर्द

हायोसायमस नाइजर एल., जैन्थॉक्सिलम आर्मेटम डी.सी.

62.

गांठ

डेक्टिलोरहिजा हटाजीरिया डी.डॉन, रिअम एमोडी वॉल, एक्स. मईसिन, रिअम मूक्रोफटिएनम रॉयल

63.

पेशाब की समस्या

बर्जीनिया स्ट्रेचाई एच एच बी एण्ड टी एच, ब्यूटिया फ्राण्डोसा कोइन एक्स रॉक्स, जुरीनिया डोलोमिया बोइस, सॉसुरिया औव्वैलाटा डी.सी. एडग्यू

64.

पित्त अग्निमान्ध

पोडोफि़लम हेक्सैण्ड्रम रॉयल

65.

उल्टी

एकोनाइटम हिटरोफिलम वॉल. एक्स. रॉयल, पीओनिया एमोडी वॉल. एक्स. रॉयल

66.

काली खाँसी

हायोसायमस नाइजर एल. पीओनिया एमोडी वॉल. एक्स रॉयल

67.

कृमि

ऐलियम ऑरीकुलेटम कुंथ

68.

घाव

कलीमेटिस मोंटाना बुक. हैम डी.सी., डेक्टिलोरहिजा हटाजीरिया डी. डॉन, डल्फिनियम  वेस्टीटम वॉल एक्स. रॉयल, पोटेंटिला फल्जेंस हुक, रेननकुलस हिर्टेलस रॉयल, रिअम एमोडी वॉल एक्स मईसिन, सिरिंगा एमोडी एक्स रॉयल

 

 

सारणी 3- भोटिया व गंगवाल जनजातीय द्वारा प्रयुक्त पादप प्रजातियों के भाग

प्रयुक्त पादप भाग

पादप प्रजातियों का नाम

जड़ व कंद

एकोनाइटम हीटरोफिलम वॉल एक्स रॉयल, एकोरस कैलामस एल., एंजेलिका ग्लाका एडग्यू, ऐरिसीमा स्पी. आर्नेबिया बेन्थामई डी. सी. एक्स जोहेंस्टन, ऐस्ट्रागेलस क्लोरोस्टेकिस एल., बेरबेरिस ऐरिस्टेटा डी सी, बेरबेरिस चित्रिया एडवार्डस, बर्जीनिया स्ट्रेचाई एच एच बी एण्ड टी एच, डक्टिलोरहिजा हटाजीरिया डी डॉन, डेल्फिनियम वेस्टीटम वॉल एक्स. रॉयल, आइरिस कुमाऊनेंसिस डी. डॉन, जुरीनिया डोलोमिया बोइस., मैगाकार्पा पॉलीएण्ड्रा बैंथ, नार्डोस्टेकिस ग्रैण्डीफ्लोरा डी.सी., ऑर्किस हेबेनेरिआइड किंग., पिक्रोराइजा कुर्रोआ रॉयल एण्ड बैंथ, पिक्रोराइज़ा स्क्रोफ्लुरीफ्लोरा हेक्सैण्ड्रम रॉयल, पीओनिया एमोडी वाल. एक्स., रॉयल, रिअम एमोडी वाल. एक्स. मईसिन, रिअम मूक्रोफटिएनम रॉयल, सॉसुरिया कॉस्टस एल., स्टीफेनिया एलीगेंस हुक., एफ.लि. थॉमस, वैलेरियाना जटामांसी जोन्स

पत्तियाँ

एकोनोगोम टोर्टुओसम डी डॉन, ऐडियेण्टम स्पी., आर्टीमीजि़या नीलगिरिका सी एल., सिनेमोनम टमाला बुक हैम, डेल्फिनियम डेनुडेटम वॉल, हायोसायमस नाइजर एल., आइरिस कुमाऊनेंसिस डी.डॉन, मैगाकार्पा पॉलीएण्ड्रा बैंथ, प्लाण्टेगो इरोज़ा, प्लाण्टेगो इरोज़ा वॉल, पॉलीगोनम नेपालेंस मईसिन, पॉलीगोनम टार्टुओसम डी.डॉन, पोर्टुलेका ओलिरेसिया एल., सीडियम गुआजावा एल., प्यूनिका ग्रेनेटम एल., स्कोपोलिया स्ट्रेमोनीफोलिया वालिच, सेनीनम वालीशेयेनम डी सी, सिरिंगा एमोडी एक्स रॉयल, टैक्सस बैकेटा जका. एक्स. पिल्जर., थाइमस लीनिएरिस बैंथ., वायोला बाइफ्लोरा एल.

सम्पूर्ण पादप

एकोनाइटम एट्रोक्स ब्रुचल, ऐलियम सैटाइवम एल., ऐलियम ऑरीकुलेटम कुंथ, ऐलियम कैरोबिनिएनम डी.सी., ऐलियम ह्यूमाइल कुंथ, ऐलियम वालिशियाना हुंट, माहारंगा एमोडी वॉल डी.सी., ऑक्सीरिया डाइजिना एल., पोटेंटिला फल्जेंस हुक, र्स्वेर्टिया चिराटा डी. डॉन

वायवीय भाग

एकीरैन्थीज ऐम्परा एल., रुबिया कार्डीफोलिया लिन., टैनेसीटम न्यूबीजौनम वॉल. एक्स. डी.सी. टैरेक्सेकम ऑफिसिनेलिस नूची,

पुष्प

रेननकुलम हिर्टेलस रॉयल, रोजा सेरीसिया लिंडाल, सॉसुरिया गॉसिपीफ्लोरा डी. डॉन, सॉसुरिया औब्वैलेटा डी.सी. एडम्यू सीडम एवसी लेडेब, थाइमस लीनिएरिस बैंथ, वायोला बाइफ्लोरा एल.

तना

पिक्रोराइज़ा कुर्रोआ रॉयल एण्ड बैंथ

फल

मियरिस्टीका फ्रेगरेंस, पोडोफिलम हेक्सैण्ड्रम रॉयल, टैक्सस बैकेटा जका. एक्स. पिल्जर.

बीज

हायोसायमस नाइजर एल., मेकोनॉप्सिस रोबस्टा, प्लाण्टेगो इरोज़ावॉल, पीओनिया एमोडी वाल, एक्स. रॉयल, औब्वैलेटा डी सी एडम्यू, सिरिंगा एमोडी एक्स रॉयल, जैन्थॉक्सिलम आर्मेटम डी.सी.

वायुवीय प्रकंद

डाइऑस्कोरिया बल्बीफेरा एल.

रेजिन

पाइनस वालिशियाना ए.बी. जैक्स.

लेटेक्स

कैलोट्रॉपिस प्रोसेरा एट आर बी आर, कलीमेटिस मोंटाना बुक हैम डी.सी.

 

परिणाम एवं विवेचना


क्षेत्र में पारंपरिक तकनीकी ज्ञान की जानकारी प्राप्त करने हेतु किये गये अनुसंधान के आधार पर पाया गया कि भोटिया व गंगवाल जनजातियों के लोग स्वास्थ्य उपचार के विषय में गहरी जानकारी रखते हैं। वहॉ पर 78 पादप प्रजातियों की जड़ी-बूटियों के बारे में ज्ञान प्राप्त किया गया जिनमें 39 कुल व 61 वंश सम्मिलित हैं (सारणी 1) औषधि हेतु जड़ी-बूटियों के संग्रहण में निश्चित नियमों का पालन किया जाता है जैसे कि कीट व रोग ग्रस्त पौधों को नहीं लेना पौधों/ जड़ी-बूटियों जिनमें विषाक्तता, सूर्य की गर्मी, ओलावृष्टि, तेज वायु, अग्नि, बाढ़ आदि से ग्रसित हों, को नहीं लिया जाता है। गहन परीक्षण व त्रुटि विधि द्वारा व लम्बे अनुभव के आधार पर जनजातियों ने पादप के विभिन्न अंगों की उपयोगिता की सही जानकारी हासिल की है। औषधियों का निर्माण व उपयोग की विधियों का भी निर्धारण किया है। व्याधियों के उपचार में अनेक जड़ी-बूटियों का उपयोग किया जाता है।

जिनका कई व्याधियों के निराकरण में भी उपयोग होता है। सर्वाधिक 07 प्रकार की जड़ी-बूटियों का उपयोग घाव के उपचार में किया जाता है। इसी प्रकार बुखार व सिरदर्द प्रत्येक में 05, सर्दी जुकाम, मोच, गर्भावस्था समस्या व पेशाब की परेशानी के लिये प्रत्येक में 04, हड्डी जोड़ने गठिया, शरीर में गांठ व पीलिया प्रत्येक में 03, पेट दर्द, श्वास की बीमारी, जलना, कैंसर, मोतिया बिंद, वृहदान्त्र दर्द, डायरिया, दस्त, मिर्गी, आँखों की समस्या साँप व बिच्छू के डंक, दाँत दर्द, उल्टी व सूखी खाँसी प्रत्येक में 02, जड़ी-बूटियों का उपयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त 51 रोगों में एक-एक जड़ी-बूटी का इस्तेमाल करते हैं (सारणी 2) । इसके विपरीत कुछ पादप प्रजातियाँ ऐसी हैं जिनका उपयोग एक से अधिक व्याधियों के उपचार हेतु किया जाता है। इनमें प्रमुख हैं बेरबेरिस चित्रिया, जिसका उपयोग 05 रोगों के उपचार में किया जाता है; एकोनाइटम हीटरोफिलम, रीअम एमोडी, सिरिंगा एमोडी, टैक्सस बैकेटा प्रत्येक का 04; पिक्रोराइजा स्क्रोफ्लुरीफ्लोरा, जैन्थॉक्सिलम आर्मेटम प्रत्येक का 03; एकोरस कैलामस, एंजेलिका ग्लॉका, बर्जीनिया स्ट्रेचई, डेक्लिोरहिजा हटाजीरिया, पीओनिया एमोडी, पोडोफिलम हेक्सैण्ड्रम, पॉलीगोनम नेपालेंस, सौसुरिया कॉसटस, सौसुरिया औब्वेलेटा, स्वेर्टिया चिराटा, वैलेरियाना जटामांसी प्रत्येक का दो-दो बीमारियों के उपचार हेतु उपयोग किया जाता है। जड़ी-बूटियों व उनके विभिन्न भागों जिनका कि औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है, की जानकारी महत्त्वपूर्ण होती है। भोटिया व गंगवाल इनका बहुत अच्छा ज्ञान रखते हैं। औषधि निर्माण में 26 प्रकार के कंदो व जड़ों, 20 पादप प्रजातियों की पत्तियों सम्पूर्ण पादप वाले 10, फूल, बीज व छाल वाले प्रत्येक 07, वायुवीय भाग वाले 04, फल 03, लेटैक्स 02, तना व रेजिन वाले एक-एक पौधे का इस्तेमाल किया जाता है (सारणी 3)।

औषधीय उपयोगिता के अतिरिक्त अनेक जड़ी-बूटियों का उपयोग रंग, मसाले, सुगंध व दूसरे खाद्य पदाथों के रूप में भी महत्त्वपूर्ण है जो बाजार में बिक्री कर उनकी आर्थिकी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह देखा गया है कि बाजार कीमत के हिसाब से ये जड़ी-बूटियाँ मुद्रा अर्जन करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है। भोटिया जनजाति में सामाजिक संबंध काफी मजबूत व बहुस्तरीय पाये जाते हैं। वे बुजुर्गों विशेष रूप से लामा का बहुत सम्मान करते हैं जोकि उनके धर्मगुरू भी होते हैं। किसी महत्त्वपूर्ण या नए कार्य को प्रारम्भ करने से पूर्व इन धर्मगुरुओं की सहमति जरूर ली जाती है। जड़ी-बूटियों का संग्रहण व औषधि निर्माण का समय भी वे ही प्रदिष्ट करते हैं। सामाजिक सम्मान व स्तरीकरण के कारण लामा ही संपूर्ण गाँव वालों के लिये औषधि निर्माण का कार्य करते हैं, चाहे वे स्वयं भी जानकारी रखते हों।

जनजातीय समुदाय आमतौर पर सड़क परिवहन, संचार साधनों, बाजार अर्थव्यवस्था, शिक्षा केन्द्रों, आधुनिक सुविधाओं आदि से काफी दूर रहते हैं। भोटिया जनजाति पहाड़ों पर चढने वाली मानी जाती है, जो अपना व्यवसाय भी पारंपरिक तौर-तरीकों से ही करती है। वे पर्वतीय क्षेत्रों व आस-पास के पर्यावरण से जड़ी-बूटियों व प्राकृतिक उत्पादों का संग्रहण कर प्रमुख व्यापार केन्द्रों तक पहुँचाकर बेचते हैं। वे लोग जिन वस्तुओं का व्यापार करते हैं वे विशुद्ध, मूल रूप में तथा गुणों के आधार पर व बाजार कीमत के हिसाब से महत्त्वपूर्ण होते हैं दूरस्थ क्षेत्रों में आधुनिक संसाधनों के अभाव के करण वे स्वयं स्वास्थ्य उपचार संबंधी उपायों के स्थानीय रूप से संचालन हेतु मजबूर होते हैं।

प्रत्येक गाँव में स्वास्थ्य उपचार हेतु वैद्य/लामा होता है। स्वास्थ्य उपचार प्रक्रिया को अपनाते हुए उन्होंने अनेक पादप प्रजातियों की पहचान की, जो उनके उपचार हेतु उपयोगी होती हैं उत्तराखण्ड में किये गये एक अध्ययन के अनुसार लगभग 300 पादप प्रजातियों का उपयोग 114 रोगों के निवारण हेतु किया जाता हैं वर्तमान अध्ययन के अनुसार भोटिया जनजाति के लोग ही अकेले 78 पादप प्रजातियों का उपयोग करते हैं। वन्य पादप प्रजातियों के अतिरिक्त कुछ कृषि उपयोगी पादप प्रजातियों का उपयोग भी रोग निदान हेतु किया जाता है। एक लंबी अवधि में उनकी आवश्यकताओं व अनुभवों के आधार पर देशी औषधि प्रणाली भोटिया व गंगवाल जनजातियों की ज्ञान प्रणाली का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। ये विकास प्रक्रिया में सहायक, कीमत प्रभावी, सहभागी व निरंतर चलने वाले प्राकृतिक संसाधन है, जो संसाधनों के संरक्षण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जड़ी-बूटी आधारित स्वास्थ्य प्रणाली केवल भारतीय प्रणाली में ही नहीं बल्कि अनेक देशों में प्रचलित हैं। केन्या में अधिकांश लोग स्थानीय जड़ी-बूटियों पर आधारित देशी दवाओं का ही सेवन करते हैं इंग्लैण्ड में पादप आधारित औषधियों में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जड़ी-बूटियों के महत्व को ध्यान में रखते हुए इनमें काफी तेजी से वुद्धि हुो रही है। हाल के वर्षो में मानव की बहुआयामी गतिविधियों जैसे बढ़ता शहरीकरण, गैर-कानूनी जंगलों का कटान, वनों में खेती करना, स्थानीय ग्रामीण आबादी का रोजगार हेतु पलायन, परंपराओं, जातीय विविधता, पारंपरिक संपदा व संबंधित ज्ञान प्रणाली के विलुप्त होने की संभावनाये बढ़ रही हैं।

अति दोहन, निर्वनीकरण, कम प्रजनन, आग, ज्यादा पशुओं द्वारा चरान, भू-स्खलन, पर्यावास क्षति, पौधों का चारा, ईंधन, इमारती लकड़ी आदि में उपयोग मुख्य कारक हैं, जो हिमालयी क्षेत्र जहाँ जनजातीय समुदाय बसते हैं के औषधीय पौधों का क्षरण कर रहे हैं।

प्राचीन काल से स्थानीय वैद्य अपने-अपने रिश्तेदार व संबंधियों के उपचार हेतु जड़ी-बूटियों का संग्रहण करते थे, परंतु आज ये गैर-कानूनी दोहन के कारण हिमालयी क्षेत्र के विभिन्न भागों से विलुप्त हो रहे हैं लगातार और अवांछित दोहन के कारण आर्थिक उपयोगी वनस्पतियों, उनके प्राकृतिक पर्यावास व संरक्षण को खतरा पैदा हो गया है। इसके कारण सदियों पुराने पारंपरिक ज्ञान जो कि उनके दूर दराज के क्षेत्रों में आजीविका का मुख्य साधन हैं, को भी गंभीर खतरा पैदा हो गया हैं अंधाधुंध-संग्रहण के कारण विरल व संकटग्रस्त पादप प्रजातियों जैसे पिक्रोराइजा स्क्रोफ्लुरीफ्लोरा, एकोनाइटम हीटरोफिलम, ऑर्किस लेटीफोलिया, पोडोफिलम हैक्ससैण्ड्रम, स्बेर्टिया चिराटा आदि की आबादी काफी तेजी के साथ कम हो रही है।

आज समाज के आधुनिकीकरण पादप प्रजातियों के दोहन व अन्तरराष्ट्रीय बाजारों में इनके गैर-कानूनी व्यापार के कारण पारंपरिक ज्ञान प्रणाली जो कि भोटिया व गंगवाल जनजातियों के जीवन यापन हेतु महत्त्वपूर्ण है, समाप्ति के कगार पर है। इस ज्ञान व विलुप्तप्राय पादप प्रजातियों के अभिलेखीकरण व संरक्षण हेतु स्थानीय निवासियों, सरकारी व गैर-सरकारी अभिकरणों को एक साथ मिलकर, जागरूकता अभियान चलाने की सख्त जरूरत है। कानून के पालन कराने वाले अभिकरणों को भी आवश्यकता है कि सख्त नियमों द्वारा इन गैर-कानूनी गतिविधियों व दोहन पर लगाम लगायें। प्राकृतिक जैव-संसाधनों व पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण मानव जाति को सतत विकास की राह प्रदर्शित करता है। ये संसाधन, अनुसंधान हेतु आवश्यक व महत्त्वपूर्ण आगत के रूप में प्रयोग किये जाते हैं। अतः विकास की अंध-आंधी से पूर्व इनका संरक्षण करना चाहिए।

संदर्भ


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सम्पर्क


पूरन सिंह मेहता, कुलदीप सिंह नेगी, सरस्वती नन्दन ओझा, अनुपम रयाल एवं सुरेश कुमार वर्मा, Pooran Singh Metha, Kuldeep Singh Negi, Saraswati Nandan Ojha, Anupam Rayal & Suresh Kumar verma
राष्ट्रीय पादप आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो, क्षेत्रीय केन्द्र, भवाली नैनीताल 263132 (उत्तराखण्ड), National Bureau of Plant Genetic Resources, Regional Station, Bhowali, Nainital 263132 (Uttarakhand)


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