उत्तराखंड में जल संसाधनों के वितरण एवं जल आपूर्ति की किल्लत एवं निदान

उत्तराखंड 28053’ उत्तरी अक्षांश से 31023’ उत्तरी अक्षांश तथा 77057’ से 80005’ पूर्वी देशांतर में स्थित है। इसका विस्तार दक्षिण में तराई भावर क्षेत्र से उत्तर में हिमाद्री की इन्डोतिब्बत की सीमा का निर्माण करती है। पश्चिम में यमुना नदी एवं इसकी सहायक नदी टोंस हिमाचल प्रदेश से सीमा निर्धारित करती है पूर्व दिशा में काली-शारदा इसकी सीमा निर्धारित करती है। इस क्षेत्र को गढ़कूम के नाम से जाना जाता है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित 11 जनपद सम्मिलित है – देहरादून, हरिद्वार, पौड़ी, उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी, नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ तथा चम्पावत हैं, जिसके अंतर्गत 39 तहसी, 89 ब्लाग 633 पंचायत एवं 6237 ग्राम सभायें सम्मिलत हैं।

इस पूर्ण क्षेत्र का क्षेत्रफल 53,000 वर्ग किमी. है जो उत्तर प्रदेश का 17.36 प्रतिशत है। अधिकतम पूर्व से पश्चिम का विस्तार 290 किमी. तथा 307 किमी. उत्तर से दक्षिण हैं। इस क्षेत्र में जलसंख्या का घनत्व 125 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी. है। इस क्षेत्र में 5,15,000 पुरुष तथा 4,85,000 स्त्रियां हैं जो कि उत्तर प्रदेश की जनसंख्या का 4.34 प्रतिशत भाग है। जनसंख्या की वृद्धिदर 22.25 लाख (1991), अनुसूचित जाति 14.25 लाख एवं अनुसूचित जनजाति 2.75 लाख है। जलवायु के दृष्टिकोण से इस क्षेत्र में वर्षा 200 सेमी. से 260 सेमी. होती है तथा औसत तापमान 25 सें.ग्र.अंकित किया गया है। 2001 की जनसंख्या के अनुसार यहां पर 65 प्रतिशत साक्षरता तथा 55,00,000 हें. भूमि पर वन पाये जाते हैं। 63 प्रतिशत भूमि में कृषि 12.8 प्रतिशत अन्य उपयोगी भूमि, 2.5 प्रतिशत कृषि अयोग्य, 11.5 प्रतिशत, 4.25 प्रतिशत शुद्ध सिंचित भूमि हैं। यहां पर 2,500 डाकघर 20,000 टेलीफोन, 10,000 शिक्षा विद्यालय अंकित किये गये हैं।

शिंडिनी बुराई ने (1907) इस सम्पूर्ण क्षेत्र को कुमांयु हिमालय के नाम से संबोधित किया था। तत्पश्चात इसे डॉ. नित्यानंद जी ने इसे गढ़कूम के नाम से सम्बोधित किया और अब यह उत्तराखंड के नाम से विख्यात है, जिसे उत्तरप्रदेश हिमालय के नाम से जाना जाता था।

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