वानिकी में रोजगार के अवसर

22 Nov 2009
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वानिकी एक ऐसा रोचक अध्ययन क्षेत्र है जो उन सब सिद्धांतों तथा व्यवहारों से मिलकर बना है जिनमें वनों के सृजन, संरक्षण तथा वैज्ञानिक प्रबंधन और उनके संसाधनों का उपयोग शामिल है।भारत में वैज्ञानिक वानिकी की शुरुआत सबसे पहले 1864 में वन प्रबंधन के लिए वानिकी व्यावसायिकों को प्रशिक्षित करने के वास्ते हुई थी। देश में विश्वविद्यालय स्तर पर वानिकी शिक्षा वर्ष 1985 में उस समय आरंभ हुई जब राज्य कृषि विश्वविद्यालयों-वाईएसपी यूएचएफ, सोलन तथा पीडीकेवी, अकोला में चार वर्ष के डिग्री कार्यक्रम के रूप में बीएससी वानिकी पाठ्यक्रम शुरु किया गया। बाद में यह कार्यक्रम 1986 में जीबीपीयूएटी, पन्त नगर तथा टीएनएयू, कोयम्बत्तूर में तथा इसके बाद 1987 में ओयूएटी, भुवनेश्वर तथा जेएनकेवीवी, जबलपुर में शुरु किया गया। अब यह कार्यक्रम बहुत से राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में संचालित किया जा रहा है। इसके अलावा कुछ कृषि विश्वविद्यालयों में वानिकी से संबंधित विशेष विषय में विशेषज्ञता के साथ वानिकी/कृषि-वानिकी में मास्टर और डॉक्टरल डिग्री पाठ्यक्रम संचालित किए जाते हैं। हाल के दिनों में कुछ परंपरागत विश्वविद्यालयों ने भी वानिकी शिक्षा की शुरुआत की है। ताजा अनुमानों से यह सिद्ध होता है कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वानिकी क्षेत्र का उल्लेखनीय योगदान और महत्व है। विपरीत वन्य स्थिति से निपटने के लिए कुशल मानवशक्ति की आवश्यकता होती है ताकि शोध कार्यों और निर्देशक सिद्धांतों के आधार पर उपर्युक्त कार्य योजनाएं तैयार की जा सकें। इस प्रकार नीति और अनुप्रयोग की दृष्टि से वानिकी/कृषि वानिकी प्रबंधन से जुड़े पाठ्यक्रमों का बहुत महत्व है। वर्ष 2007 में भारत में कृषि (वानिकी सहित) शिक्षा पर बनाई गई भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की चौथी डीन कमेटी की सिफ़ारिशों पर स्नातकपूर्व-स्तर पर वानिकी कार्यक्रम हेतु समय की मांग के अनुरूप पाठ्यक्रम और निर्देशन व्यवस्था में संशोधन किए गए हैं। सामान्यतः वानिकी शिक्षा, अनुसंधान, प्रशिक्षण और विस्तार पर्यावरण और वन मंत्रालय, भारत सरकार के पर्यवेक्षणाधीन है। पर्यावरण और वन मंत्रालय के अधीन सर्वोच्च संस्था के रूप में कार्यरत भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आईसी एफआरई) वानिकी अनुसंधान, प्रशिक्षण, विस्तार और शिक्षा में सक्रियता के साथ जुड़ा हुआ है। मंत्रालय के अधीन विभिन्न आठ वन संस्थान कार्यरत हैं। ये हैं ईसीएफआरई, देहरादून,इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी, हेदरादून, जो सर्वोच्च वन प्रशासक (आईएफएस) तैयार करती है, वन शिक्षा निदेशालय, जिसके अधीन चार राज्य वन सेवा महाविद्यालय (राज्य स्तर के) हैं, भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून, भारतीय प्लाइवुड उद्योग अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान, बंगलौर तथा वन और पर्यावरण मंत्रालय से संबद्ध जीबी पंत हिमालयन पर्यावरण और विकास संस्थान।स्नातकपूर्व कार्यक्रम स्तर पर वानिकी शिक्षा वर्तमान में वानिकी में स्नातकपूर्व, स्नातकोत्तर और डॉक्टरल कार्यक्रम विभिन्न राज्य कृषि विश्वविद्यालयों तथा कुछ अन्य परंपरागत विश्वविद्यालयों/संस्थानों में संचालित किए जाते हैं। ज्यादातर राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में चार वर्षीय व्यावसायिक डिग्री कार्यक्रम बीएससी वानिकी संचालित किए जा रहे हैं तथा शेष संस्थान भी यह कार्यक्रम बहुत जल्दी ही शुरू करने की योजना बना रहे हैं। वानिकी स्नातक तकनीकी रूप से योग्य, कुशल तथा पर्यावरण और जीवन की सुरक्षा से जुड़े वानिकी क्षेत्र की उभरती चुनौतियों तथा मुद्दों से निपटने के लिए तैयार होते हैं। वानिकी स्नातकों को तैयार करने का मूल उद्देश्य वानिकी क्षेत्र के विकास तथा इसकी उद्यमशीलता हेतु वर्तमान स्थितियों तथा अपेक्षाओं के अनुरूप मानव शक्ति तैयार करना तथा दूसरी तरफ वानिकी स्नातकों को पर्यावरण सुरक्षा, वानिकी उत्पादों के मूल्य संवर्द्धन और वानिकी किसानों को वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी बनाने के वास्ते सुयोग्य प्रबंधक माना जाता है। बीएससी वानिकी के छात्रों को वानिकी के सभी क्षेत्रों से संबंधित विभागवार पाठ्यक्रमों का अध्ययन कराया जाता है तथा वे सही अर्थों में वनपाल बनकर उभरते हैं। हाल में भारत में कृषि शिक्षा पर चौथी डीन कमेटी, आईसीएआर, 2007 ने निम्न प्रकार वानिकी स्नातकों के लिए विभाग-वार पाठ्यक्रमों की अनुशंसा की है :-

वन-वृक्ष विज्ञान एवं कृषि-वानिकी विभाग-

ये पाठ्यक्रम हैं : वन-वृक्ष विज्ञानके सिद्धांत एवं व्यवहार; भारतीय वृक्षों संबंधी वन-वृक्ष विज्ञान; कृषि वानिकी प्रणाली एवं प्रबंधन; बागान वानिकी; वन-वृक्ष विज्ञान प्रणाली; नर्सरी प्रबंधन; विश्व वानिकी प्रणाली; पशुधन प्रबंधन; वन मापन; पर्यावरणीय विज्ञान; बागवानी के मूल तत्व।

वन जीवविज्ञान एवं वृक्ष सुधार विभाग-

वन पारिस्थितिकी विज्ञान, जैव-विविधता एवं संरक्षण; वृक्ष-विज्ञान; वृक्ष सुधार के सिद्धांत; वृक्ष बीज प्रौद्योगिकी; वन्य जीव के मूल तत्व; वन पैथोलॉजी; वन्य जीव प्रबंधन; वन कीट-विज्ञान और कृषि विज्ञान।वन्य उत्पाद एवं उपयोग विभाग : काठ संरचना; लॉगिंग एवं अर्गनोमिक्स; काठ उत्पाद एवं उपयोग; काठ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी; एथनोबॉटनी; गैर-टिम्बर उत्पादों का उपयोग; औषधीय और सुगन्धित पौधे। प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन विभाग : जल विज्ञान, मृदा एवं जल संरक्षण; मृदा सर्वेक्षण, दूर-संवेदन तथा परती भूमि विकास के सिद्धांत; भू-विज्ञान एवं मृदा विज्ञान के मूल तत्व; रेंजलैंड मैंनेजमेंट; वन प्रबंधन; नीति एवं विधायन; एग्रोमीटिरोलॉजी; वन व्यवसाय प्रबंधन; वन उत्पादों का विपणन और व्यापार; वन्य अर्थशास्त्र के सिद्धांत; परियोजना नियोजन एवं मूल्यांकन, वन मिट्टी की कैमिस्ट्री और ऊपजाऊपन; वन्य इंजीनियरिंग।

मौलिक विज्ञान और मानविकी : पादप

जैव रसायन विज्ञान और जैव-प्रौद्योगिकी; कोशिका विज्ञान और आनुवंशिकी के सिद्धांत; उद्यमशीलता विकास और संचार कौशल; तत्वीय सांख्यिकी और कम्प्यूटर अनुप्रयोग; पादप शरीर विज्ञान; वृक्ष शरीर विज्ञान; शुरुआती वन अर्थशास्त्र; वन ट्रिबोलॉजी एवं मानव विज्ञान; विस्तार शिक्षा के मूल तत्व;बुनियादी व्याकरण और उच्चारित अंग्रेजी; शारीरिक शिक्षा तथा कुछ अपूर्ण पाठ्यक्रम जैसे कि शुरुआती वनस्पति विज्ञान (गणित वर्ग); बी.एससी. वानिकी कार्यक्रम में मौलिक गणित (जीव विज्ञान वर्ग) भी पढ़ाया जाता है। इसके अतिरिक्त ग्रामीण वानिकी में बी.एससी. वानिकी छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान से रूबरू कराने के उद्देश्य से टप्प्वें और टप्प्प्वें सेमेस्टर में २० सप्ताह की अवधि का कार्य अनुभव कार्यक्रम भी संचालित किया जाता है। इस कार्यक्रम में वानिकी स्नातकों के लिए सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण-ग्राम संबद्धता, वानिकी कार्यों, औद्योगिक प्लेसमेंट, रिपोर्ट-लेखन हेतु राज्य वन विभाग के साथ संबद्धता और प्रस्तुतिकरण आदि प्रमुख उपलब्धियां होती हैं।

स्नातकोत्तर कार्यक्रम :

कई राज्य कृषि विश्वविद्यालय तथा कुछेक परंपरागत विश्वविद्यालयों/संस्थानों द्वारा वन-वृक्ष विज्ञान, वन उत्पाद, अर्थशास्त्र एवं प्रबंधन, काष्ठ विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी, वृक्ष आनुवंशिकी और प्रजनन में विशेषज्ञता के साथ वानिकी में दो वर्षीय व्यावसायिक मास्टर डिग्री (एमएससी वानिकी) तथा कृषिवानिकी में एम.एससी. उिग्री प्रदान की जाती है। भारतीय वन प्रबंध संस्थान (आईआई एफएम) भोपाल भारत में एकमात्र संस्थान है जो वन-प्रबंधन में मास्टर डिग्री प्रदान करता है। वानिकी में स्नातकोत्तर छात्र अपने विषय के विशेषज्ञ होते हैं तथा वे विशेषीकृत पाठ्यक्रमों के साथ अनुसंधन कार्य करते हैं। उन्हें सौंपा गया अनुसंधान कार्य वे सुयोग्य गाइड के पर्यवेक्षण में सम्पन्न करते हैं तथाअन्ततः शोध-पत्र/शोध प्रकाशन के रूप में अपने कार्यों को संकलित करते हैं। विशेषज्ञता क्षेत्र और पाठ्यक्रम, जिनका वे अध्ययन करते हैं सामान्यतः स्नातकपूर्व पाठ्यक्रमों का उन्नत रूपान्तरण पी.एचडी. होता है।

डॉक्टरल कार्यक्रम :

चार राज्य कृषि विश्वविद्यालयों दो डीम्ड विश्वविद्यालयों तथा तीन परंपरागत विश्वविद्यालयों द्वारा वानिकी/कृषि वानिकी में पी.एचडी. के रूप में न्यूनतम तीन वर्षीय डॉक्टरल कार्यक्रम भी संचालित किए जाते हैं। पी.एचडी. स्तर पर किया जाने वाला शोध कार्य वानिकी और संबद्ध क्षेत्रों के विशेषीकृत विषयों के बारे में होता है। राज्य कृषि विश्वविद्यालयों और अन्य संस्थानों/विश्वविद्यालयों में वानिकी कार्यक्रमों में प्रवेश/चयन प्रक्रिया : बी.एससी. वानिकी (चार वर्षीय डिग्री) में प्रवेश/चयन प्रक्रिया के लिए पीसीबी/पीसीएम/पीसीएमबी/कृषि समूह के छात्र १०(+)२ के बाद आवेदन कर सकते हैं। इसमें प्रवेश विश्वविद्यालय/संस्थान द्वारा आयोजित प्रवेश-परीक्षा के आधार पर प्रदान किया जाता है। कुछ विश्वविद्यालयों में प्रवेश उम्मीदवारों की मैरिट तथा सीटों की उपलब्धता के आधार पर प्रदान किया जाता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले राज्य के बाहरी उम्मीदवारों के लिए विशेष कोटे की व्यवस्था होती है। यह परीक्षा वानिकी में बैचलर डिग्री तथा अन्य कृषि विज्ञानों में बैचलर डिग्री हेतु राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में कुल सीटों की संख्या का 15% भरने के लिए आयोजित की जाती है। बी.एससी. वानिकी पूरी करने के उपरांत उम्मीदवार वानिकी में मास्टर डिग्री संचालित करने वाले राज्य कृषि विश्वविद्यालयों या अन्य संस्थानों/विश्वविद्यालयों में एम. एससी. वानिकी/कृषि-वानिकी के लिए आवेदन कर सकते हैं। मास्टर डिग्री में चयन या तो प्रवेश-परीक्षा में सफल होने पर अथवा विश्वविद्यालय/संस्थान की मैरिट के आधार पर होता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा वानिकी सहित कृषि एवं संबद्ध विज्ञानों के क्षेत्र में आईसीएआर की कनिष्ठ अनुसंधान अध्येतावृत्ति (जेआरएफ) तथा सभी राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में मास्टर डिग्री कार्यक्रमों की 25% सीटों में प्रवेश हेतु एक अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया जाता है। इसी प्रकार पी.एचडी. वानिकी कार्यक्रम में राज्य कृषि विश्वविद्यालयों या अन्य विश्वविद्यालयों/संस्थानों में प्रवेश सीधे संस्थान/ विश्वविद्यालयों के नियमों के अनुरूप या प्रवेश-परीक्षा उत्तीर्ण करने के आधार पर प्राप्त किया जा सकता है। वानिकी में राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) भी लेक्चररशिप के लिए एक महत्वपूर्ण प्रमाण-पत्र है जिसे कृषि वैज्ञानिक भर्ती बोर्ड, भा.कृ.अ.प., पूसा, नई दिल्ली द्वारा हर वर्ष आयोजित परीक्षा के जरिए उत्तीर्ण किया जा सकता है।

छात्रवृत्तियां :

वानिकी में स्नातक तथा स्नातकोत्तर अध्ययन के लिए छात्रवृत्ति भी उपलब्ध है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा वानिकी सहित कई कृषि विषयों में आयोजित अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा में उत्कृष्ट स्थान प्राप्त करने वाले उम्मीदवारों को भा.कृ.अप./रु. 1200 प्रति माह की दर से स्नातकपूर्व पाठ्यक्रम के अध्ययन हेतु राष्ट्रीय प्रतिभा छात्रवृत्ति प्रदान करती है, बशर्ते कि उम्मीदवार ने अपने गृह राज्य के बाहर किसी संस्थान में प्रवेश लिया हो। स्नातकोत्तर स्तर पर संबंधित संबंधित राज्य सरकारें तथा भा.कृ.अ.प. कई तरह की छात्रवृत्तियां प्रदान करती है। भा.कृ.अप.वानिकी सहित कृषि विज्ञानों के क्षेत्र में कनिष्ठ अनुसंधान अध्येतावृत्ति (जेआरएफ) प्रदान करने के लिए अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा का आयोजन करती है। वर्तमान में भा.कृ.अ.प. अध्येतावृत्ति एमएससी छात्रों के लिए दो वर्ष की अवधि हेतु / रु. 5760 प्रतिमाह है तथा 6000 रु. वार्षिक आकस्मिक खर्च अनुदान के रूप में प्रदान किए जाते हैं। इसी प्रकार पी.एचडी छात्रों के लिए अध्येतावृत्ति वर्तमान में / रु. 7000 प्रतिमाह, तीन वर्ष की अवधि के लिए है तथा साथ में 10000 रु. वार्षिक आकस्मिक खर्च अनुदान के रूप में दिए जाते हैं। इसके अलावा वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) द्वारा भी पादप विज्ञानों में स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट छात्रों को छात्रवृत्तियां प्रदान की जाती हैं।
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