वार फॉर वाटर 31 राज्यों में शुरू होगा

9 Aug 2010
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नई दिल्ली, झांसी में कहीं कुल जनसंख्या के हिसाब से पानी कम है तो कानपुर के एक हिस्से में पानी को क्रोमियम दूषित कर रहा है। उन्नाव का एक इलाका फ्लोराइड के जहर से जूझ रहा है तो गाजियाबाद में पानी को कीटनाशक प्रदूषित कर रहे हैं।

पानी की गुणवत्ता की यह सिर्फ झलक है और वह भी सिर्फ उत्तर प्रदेश में। देश के अन्य राज्यों में हाल इससे बेहतर नहीं है। यही वजह है कि पूरे देश में जल प्रदूषण की समस्या से निबटने के लिए सरकार 'वार फॉर वाटर' नाम का मिशन शुरू करने जा रही है। पहले चरण में पंजाब, हरियाणा, बिहार, उत्तराखंड सहित 31 राज्यों में ऐसे 86 स्थानों पर पायलट परियोजनाएं लगाई जाएंगी। इनके लिए कंपनियों को ठेका देने की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है।

केन्द्र सरकार जल समस्या से निबटने के लिए वार फॉर वाटर (विनिंग, ऑगमेंटेशन एंड रिनोवेशन फॉर वाटर) नाम का तकनीकी मिशन शुरू कर रही है। विज्ञान एवं तकनीक मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर यह प्रगति रिपोर्ट दाखिल की है, जिसमें मिशन की तैयारियों का ब्यौरा दिया गया है। रिपोर्ट बताती है कि भारत में पानी से जुड़ी 26 तरह की समस्याएं हैं। इनमें से 10 समस्याओं से निपटने के लिए 31 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में 86 जगहों (शहर, ब्लॉक, जिला, बस्ती) पर पायलट प्रोजेक्ट शुरू किए जाएंगे। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय निविदाएं आमंत्रित की गई हैं। सामुदायिक हल खोजने के लिए गैर-सरकारी संगठनों से भी सुझाव मांगे गए हैं।

करीब 45 कंपनियों ने निविदाएं भेजी हैं जबकि 187 स्वयंसेवी संस्थाओं ने अपने सुझाव भेजे हैं। पायलेट प्रोजेक्ट के लिए चार कंपनियों को चुना गया है जिनमें से दो कंपनियों को आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में चार जगह प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए आशय पत्र भी जारी किए गए हैं। स्वयंसेवी संस्थाओं में से 94 को चुनकर उनसे विस्तृत ब्यौरा मांगा गया है।

पानी से जुड़ी दस समस्याएं

1- प्रति व्यक्ति उपलब्धता की कमी
2- विशेष कामों के लिए खराब गुणवत्ता
3- फ्लोराइड प्रदूषण
4- विभिन्न प्रकार के स्थानीय प्रदूषण
5- जैविक प्रदूषण
6- खारापन
7- मौसमी जल संचय क्षमता
8- भौगोलिक स्थिति के कारण बर्बादी
9- तटीय इलाकों में नुकसान
10- सिलिका और सल्फर से प्रदूषण

इन पर भी हो रहा है विचार

- वाटर साइकिल मैनेजमेंट में सुधार
- अनुपयोगी हो चुके जलाशय
- कृषि क्षेत्र में पानी का भरपूर

इंस्तेमाल

- जल दोहन और रिचार्ज में समायोजन
- वेट लैंड प्रबंधन
- मौसमी जल संरक्षण क्षमता
- बाढ़ प्रबंधन
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