विकास, पर्यावरण और हमारा स्वास्थ्य (Development, Environment and Health)


पर्यावरण तथा मानव स्वास्थ्य के बीच सम्बंध एक निर्विवाद सत्य है। स्वस्थ जीवन के लिये स्वच्छ वायु, जल तथा मिट्टी अतिआवश्यक तत्व है। पर्यावरण की गिरावट हमारे स्वास्थ्य के लिये नष्टकारक है। समुचित, सुरक्षित तथा स्वस्थ वातावरण में रहने और काम करने का प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार है।

राष्ट्र का विकास, उसके औद्योगिकीकरण पर निर्भर करता है जो मानव जाति के उच्च एवं महत्त्वकांक्षी जीवन-यापन के लिये अत्यावश्यक है, परन्तु तीव्र औद्योगीकरण के फलस्वरूप, हमारा स्वास्थ्य खतरे में पड़ गया है, और प्रदूषण से उत्पन्न खतरों के कारण, समस्त मानव जाति का अस्तित्व भी खतरे में पड़ गया है। इसी कारण पर्यावरण से जूड़े इंजीनियर, डाक्टर, अनुसंधानकर्ता और योजनाकार इस प्रयास में लगे हुए हैं कि किस प्रकार हवा, पानी और वातावरण को दूषित होने से बचाया जाए।

हमारी शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कुशलता हमारे स्वस्थ रहने पर निर्भर करती है। हमारा स्वास्थ्य बहुत हद तक जो पानी हम प्रयोग में लाते हैं, उसकी गुणवत्ता पर, जहाँ हम अपना अन्न पैदा करते हैं, उस मिट्टी पर तथा हमारे कूड़ा करकट निपटाने के तरीकों पर, हमारे आस-पास के पशु तथा पेड़ पौधों पर जहाँ हम सांस लेते हैं, उस हवा पर और जहाँ हम रहते है या कार्य करते हैं उस जगह पर निर्भर करता है। केवल सुरक्षित जल उपलब्ध करवाने से स्वास्थ लाभ प्राप्त नहीं किया जा सकता, जब तक कि इसकों स्वच्छता में सुधार के साथ जोड़ा न जाए। इसलिये संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1981-90 में अन्तरराष्ट्रीय पेयजल और स्वच्छता दशक सुरक्षित तथा पर्याप्त पेयजल और बेहतर स्वच्छता को समुन्नत करने के उद्देश्य के साथ चलाया था।

हमारी सरकार सभी ग्रामों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के लिये वचनबद्ध है। इसी उद्देश्य के तहत गंगा कार्य योजना नदी के जल प्रदूषण को साफ करने के लिये चलाई गई है। गंगा का प्रदूषण उसके किनारे बसे 200 शहरों और कस्बों से है। इस योजना में वर्तमान सीवरों का नवीनीकरण तथा नए सीवर बनाना। गंगा में सीवरों के पानी को रोकने के लिये अवरोधकों का निर्माण तथा सीवर उपचार संयंत्र का पूर्व नवीनीकरण और निर्माण मुख्य है। पिछले दशकों में अव्यवस्थित और बड़ी संख्या में पेड़ों के काटने से भी हिमालय के आस-पास के क्षेत्र संवेदनशील बन गए हैं और पहाड़ी क्षेत्रों में भूमि कटाव बढ़ गया है। वनों की संख्या बढ़ाकर और नए पौधों को लगाकर लगातार वनों की संख्या बढ़ानी होगी जिससे कि वातावरण में प्रदूषण प्रक्रिया कार्बनडाई ऑक्साइड के दूषण को कम किया जा सके और तेजी से नष्ट हो रही ऑक्सीजन को बनाए रखा जा सके।

विकासशील देशों में असुरक्षित दूषित जल और अन्य पर्यावरणीय कारकों का परिणाम अधिकांश संचारी और जलवाही रोग है। समूचे विश्व में 10 अरब 60 करोड़ से भी अधिक लोगों को सुरक्षित पीने का पानी नहीं मिलता तथा 10 अरब 20 करोड़ लोगों को पर्याप्त स्वच्छता सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। स्वस्थ पर्यावरण की प्रथम वरीयता कीटाणुओं के कारण होने वाले रोगों से मुक्त पेयजल आपूर्ति है। अस्वस्थ पर्यावरण में स्वस्थ जल भी आसानी से दूषित हो जाता है। केवल स्वस्थ जल प्रदान करने से ही स्वास्थ्य लाभ नहीं होगा जब तक कि इसकी स्वच्छता को सुधार नहीं किया जाए।

जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, मलनिपटान और वनों की समाप्ति ऐसी समस्या है जोकि प्रौद्योगिकी के तेजी से प्रयोग और आधुनिकीकरण प्रक्रिया के परिणामस्वरूप उत्पन्न हो रही है। पर्यावरण पतन से मानव स्वास्थ्य को नुकसान और विकास को क्षति होती है। शहरीकरण और औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप अधिक लोग शहरों में आ रहें हैं। जिनके कारण घनी बस्तियाँ, अस्वास्थ्यप्रद अवस्था, कीट और चूहों की समस्या से बीमारियाँ बढ़ रही हैं। ऐसी बस्तियों में उचित आवास और स्वास्थ्यप्रद जीवन के लिये आवश्यक सेवाओं की कमी होती है। आवासों की रूप-रेखा और बनावट इस प्रकार की होनी चाहिए कि उसमें पर्याप्त हवा और धूप आ सकें, तथा सुरक्षित पेयजल की व्यवस्था हो, कूड़े करकट के उचित निपटान और शौचालयों की उचित व्यवस्था निहित हो।

यह प्रदूषण अधिकांश औद्योगिक कचरे के कारण होता है जिसे उपचारित किए बिना ही जलस्रोत या नदी आदि में बहा दिया जाता है। इस औद्योगिक कचरे में तेजाब, क्षार, तेल और कुछ ऐसे रसायन होते हैं जो स्वास्थ्य के लिये विषैले और नुकसानदायक होते हैं।

स्वस्थ पर्यावरण के लिये रोगोत्पादक कीटाणुओं रहित शुद्ध और सुरक्षित जल नितांत सर्वोपरि है। सुरक्षित और स्वस्थ जल न होने से टाइफाइड, हैजा, पीलिया, पोलियो, पेचिस, सूक्ष्म कीटाणु आदि रोगों को सहज ही बढावा मिलता है। ये रोग व्यक्ति से व्यक्ति को लगते हैं जबकि रोगी व्यक्ति का मल अन्य स्राव उसके परिणाम जाने बिना पानी में मिला दिए जाते हैं। नगरपालिका और पंचायतें शुद्ध और स्वास्थ्यप्रद पानी की आपूर्ति कर सकती हैं किन्तु गाँव में लोग पानी के लिये कुएँ तालाब, झील या बावड़ी पर निर्भर रहते हैं, ये ऐसे जलस्रोत हैं जो रोगाणुओं से दूषित हो सकते हैं। तंग बस्तियों औद्योगिक क्षेत्रों के पास बसी बस्तियों में जल का अयोजनाबद्ध निकास भी प्रदूषण के मुख्य कारणों में से एक है। इसके लिये इन बस्तियों में पक्की नालियों का विकास व मलमूत्र के तरीकेबद्ध शौचालय होने चाहिए। सीलन वाले आवास स्वास्थ्य के लिये खतरे की घंटी हैं। गीलापन से वायुरोग गठिया, शीतलता आदि रोग पैदा होते हैं। हमारे देश में प्रदूषण का मूल कारण गरीबी है। अधिकसंख्य जनता की गरीबी और कुछ संपन्न व्यक्तियों के द्वारा प्राकृतिक साधनों का अविवेकपूर्ण दोहन, प्रदूषण के कोढ़ में खुजली का काम करती है।

वायु प्रदूषण


जहाँ शुद्ध जल से स्वास्थ्य की रक्षा होती है, वहाँ रोगों से बचाव के लिये हमें अपने आस-पड़ोस को भी साफ सुथरा रखना होगा। क्योंकि वातावरण की स्वच्छता जन स्वास्थ्य के लिये महत्त्वपूर्ण कड़ी है। हमारा वातावरण तभी अशुद्ध होता है जब वायु अशुद्ध हो। वायु की अशुद्धि जीवों के मरने, वस्तुओं के सड़ने गलने, आग के जलने, धूल, धुएँ तथा कार्बनडाई ऑक्साइड के कारण होती है। वातावरण में विषाक्त गुबार, गैसें, धुआँ आदि छोड़ने से वायु प्रदूषण हो जाता है। इसलिये पेड़ पौधों और जंगलों को काटने से रोका जाए, कारण वनस्पति दिन के समय ऑक्सीजन प्राप्त वायु छोड़ते हैं और हमारी कार्बनआक्साइड वे ग्रहण करते हैं। वनस्पति वायु की अशुद्धता दूर करके स्वास्थ्य के खतरों को कम करती हैं।

शुद्ध वायु की ऑक्सीजन से हमारे रक्त की शुद्धि होती है। शुद्ध रक्त में स्वास्थ्य की वृद्धि होती है। बन्द कमरे, घुटन का वातावरण, दूषित गैसों, बदबूदार हवा, चिमनियों से निकलने वाली विषैली गैसें स्वास्थ के लिये हानिप्रद हैं। वातावरण प्रकृति की महान देन है। प्रकृति हमें वह सब कुछ देती है, जिसकी हमें जरुरत है। हवा, पानी, धूप, भोजन खाना पकाने तथा मकान बनाने के लिये तथा उद्योगों के लिये कच्चा माल आदि। केवल हम ही नहीं बल्कि पेड़-पौधे तथा जीव-जन्तु भी जो हमारे साथ इस पृथ्वी पर रहते हैं अपने अस्तित्व के लिये प्राकृतिक पर्यावरण पर निर्भर हैं, इसलिये हमें उनको क्षति, प्रदूषण तथा शोषण से अवश्य बचाना होगा क्योंकि यदि हम पृथ्वी को नष्ट करेंगे तो एक प्रकार से हम खुद को ही नष्ट कर डालेंगे।

पर्यावरण संरक्षण समाज के हर व्यक्ति का सामाजिक दायित्व है। व्यक्ति स्तर से पर्यावरण का संरक्षण जरूरी है। गंदीबस्तियाँ समस्त गंदे पानी के गड्ढ़े सड़ता हुआ कूड़ा करकट, मरे हुए पशुओं आदि का नियोजित ढंग से सफाई आदि सामाजिक पर्यावरण के अंतर्गत आता है। सरकार के कानून व्यक्तिगत दायित्व को निभाने में सहायक हो सकते हैं परन्तु कानून बनने से अपने दायित्व से व्यक्ति नकार नहीं सकता है। व्यक्ति सरकारी कानूनों और निर्देशों का उल्लंघन न करें यह भी व्यक्ति का सामाजिक दायित्व है।

प्रकृति के अध्ययन तथा उसके बारे में जानकारी को पाठ्यक्रमों में विशेष महत्व दिया जाए। हमारे देश में लगभग 22.8 प्रतिशत इलाके में जंगल है। राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार 33 प्रतिशत क्षेत्र में वन होना जरूरी है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये हमें वनों को नष्ट होने व काटने से बचाना होगा। कुछ औद्योगिक क्षेत्रों में बढ़ती आबादी के घनत्व को कम करने के ल्ये कुछ उद्योगों के स्थानातंरण पर भी विचार करना होगा।

अब हमें यह देखना है कि हम अपने स्वास्थ्य की रक्षा दूषित पर्यावरण से कैसे कर सकते हैं। पानी को 10-12 मिनट तक उबालने से उसमें विद्यमान किसी रोग के कीटाणु मर जाते हैं और जल सुरक्षित बन जाता है। पानी को जमा करने के लिये उसे साफ और शुद्ध बर्तन में ढक कर रखें। इन बर्तनों से पानी निकालते समय पानी में हाथ न डुबाएं।

अगर कुआँ का पानी हो तो उसके लिये भी कुछ बातों को ध्यान में रखना जरूरी है। कुएँ के निकट या उसकी जगह पर नहाना या कपड़े नहीं धोने चाहिए। शौचालय के गड्ढ़े या कूड़ेकरकट के गड्ढ़े कुएँ के आस-पास नहीं होने चाहिए। कुएँ के आस-पास जमा होने वाले पानी को बहाने के लिये नालियाँ बनवा दें। कुएँ से पानी निकालने के लिये ही बर्तन और रस्सी का प्रयोग करें। कुएँ के बाहर का पानी कुएँ में न जाने पाए।

जहाँ तक हो सके आप तालाब, नाले या नहर के प्रयोग से बचे। ऐसे पानी को दुहरे कपड़े से छानकर उसे थोड़ी देर वैसे ही छोड़ दें। छने हुए पानी को ब्लीचिंग पाउडर से शुद्ध कर लें। एक बाल्टी पानी को शुद्ध करने के लिये एक गिलास पानी में एक चाय का चम्मच ब्लीचिंग पाउडर अच्छी तरह घोल लें। यह तीन चम्मच घोल एक बाल्टी पानी में मिला दीजिए और एक घंटा उसे वैसे ही छोड़ दीजिए क्योंकि क्लोरीन को अपना काम करने में समय लगता है। क्लोरीन की आधेग्राम की एक टिकिया 20 लीटर पानी को साफ करने में पर्याप्त है। गदले पानी को शीघ्र साफ करने की प्रकिया के लिये फिटकरी का प्रयोग कर सकते हैं।

जहाँ शुद्ध जल से स्वास्थ्य की रक्षा होती है वहाँ रोगों से बचाव के लिये हमें अपने पास पड़ौस को भी साफ सुथरा रखना है। वातावरण की स्वच्छता के लिये मलमूत्र, गोबर, कूड़े करकट तथा जूठन आदि को ढ़ंग से निपटाने की जरूरत है। कूड़े करकट और दूसरी गंदगी को निपटाने की उपयुक्त व्यवस्था शुद्ध जल प्राप्त करने में सहायक है। अपने कूड़े करकट को हमेशा किसी बन्द कनस्तर में ही डालिये। इसे इधर-उधर मत फेंकिए। कूड़े-करकट को मक्खियों और चूहों से बचाकर रखिए। कूड़े-करकट के ढेर में ही मक्खियाँ पनपती हैं। ये मक्खियाँ ही भोजन तक कीटाणु ले जाकर रोग फैलाती हैं। चूहे भी रोग फैलाते हैं और भोजन विषाक्त कर सकते हैं।

पर्यावरण तथा मानव स्वास्थ्य के बीच सम्बंध एक निर्विवाद सत्य है। स्वस्थ जीवन के लिये स्वच्छ वायु, जल तथा मिट्टी अतिआवश्यक तत्व है। पर्यावरण की गिरावट हमारे स्वास्थ्य के लिये नष्टकारक है। समुचित, सुरक्षित तथा स्वस्थ वातावरण में रहने और काम करने का प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार है। लेकिन व्यक्ति के अनेक कर्त्तव्य भी होते हैं, जिनका पालन स्वास्थ्य के लिये, तथा स्वास्थ्यप्रद वातावरण के लिये अत्यावश्यक है। प्रकृति की इस महान देन को सुरक्षित रखने के लिये हमें संभव कोशिश करते रहना होगा तभी हम पर्यावरण प्रदूषण की नदी में बहने से बच सकेंगे।

फ्लैट नं. 4, सी.जी.एच.एस. डिस्पेंसरी, मोतीबाग, नई दिल्ली-21

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