विफ्लोरिडीकरण

1. जल में फ्लोराइड का उद्भव


व्यक्ति की आवश्यकता के अनुकूल बनाने हेतु घरेलू उपचार विधि को और सरल बनाया गया है। इसके लिए 20-60 लीटर क्षमता का कोई बर्तन प्रयुक्त किया जा सकता है। बर्तन के तल से 3-5 सेंटीमीटर ऊंचाई पर एक नल लगाया जाता है। जिसके द्वारा संसाधित जल को बाहर निकाला जा सके। अपरिष्कृत जल को बर्तन में भर कर उसमें उचित मात्रा में चूना, फिटकरी एवं विरंजक चूर्ण भी मिलाया जाता है। पूर्व उल्लेख के अनुसार, फ्लोरीन सर्वाधिक ऋण-विद्युती एवं अत्यंत सक्रिय तत्व है, अतः प्रकृति में स्वतंत्र तत्व के रूप में कभी नहीं पाया जाता। फ्लोरीन, क्लोरीन, ब्रोमीन एवं आयोडीन हैलोजन समूह के तत्व हैं। सतही जल में फ्लोराइड यदा-कदा ही पाया जाता है, परंतु अनेक क्षेत्रों में भूजल में प्रचुर मात्रा में फ्लोराइड मिला हुआ है। फ्लोरीन प्रकृति में कैल्शियम, सिलिका एवं एल्यूमीनियम के साथ मिल कर विभिन्न प्रकार के यौगिक बनाती है। फ्लोराइड के मुख्य प्राकृतिक स्रोत फ्लोरेपिट्यूट [(CaF2CaCO3(PO4)2], फ्लोरोस्पार (CaF2), क्रायोलाइट (AIF3 3NaF) तथा एपेटाइट हैं। भूजल में फ्लोराइड की मात्रा अधिक होती है क्योंकि उप-स्तरीय जल, फ्लोराइड युक्त चट्टानों के सम्पर्क में अधिक रहता है।

2 क्षारीयता से संबंध


यह एक सामान्य तथ्य है कि फ्लोराइड युक्त जल में कैल्शियम की मात्रा कम होने के कारण वह अधिकतर मृदु होता है। इसकी उच्च क्षारीयता सोडियम एवं पोटेशियम बाई-कार्बोनेट की उपस्थिति को प्रदर्शित करती है। इसकी कठोरता भी क्षारीय ही होती है। जौली आदि के अनुसार, जल में फ्लोराइड की सांद्रता समान होते हुए भी कठोर जल युक्त क्षेत्रों की अपेक्षा मृदु जल वाले क्षेत्रों में हड्डियों को प्रभावित करने वाली फ्लोरोसिस अधिक पाई जाती है। उन्होंने पंजाब के ग्रामीण क्षेत्रों के एक अध्ययन में पाया कि 1.00 पी पी एम से भी कम फ्लोराइड युक्त जल वाले क्षेत्रों में दांतों की फ्लोरोसिस दर 10 प्रतिशत तक है, यद्यपि उक्त सभी क्षेत्रों में क्षारीयता 300 पी पी एम से कहीं अधिक है। थरगाओंकर ने फ्लोराइड एवं क्षारीयता में धनात्मक सह-संबंध पाया। इसमें फ्लोराइड हेतु 1.8 पी पी एम मानक त्रुटि सहित, सहसंबंध गुणांक 0.008 पाया गया।

3 जल से फ्लोराइड का विस्थापन


पेयजल से फ्लोराइड के आधिक्य को पृथक करने हेतु अनेक सुझाव दिए गए हैं। इन्हें मुख्यतः दो भागों में विभक्त किया जा सकता है –

(1) जो विनिमय अथवा अधिशोषण प्रक्रिया पर आधारित है, तथा (2) जो अभिक्रिया के दौरान रसायनों के योग पर आधारित हैं।

सम्पर्क तल पर प्रयुक्त होने वाली सामग्री में संसाधित अस्थि, प्राकृतिक अथवा संश्लेषित ट्राई-कैल्शियम बाई फॉस्फेट, हाइड्रॉक्सी एपेटाइड मैग्नीशिया, उत्प्रेरित एलयूमिना, उत्प्रेरित कार्बन तथा आयन विनिमयक सम्मिलित हैं।

रासायनिक अभिक्रिया युक्त विधियों में चूना एलयूमिनियम लवण प्रयुक्त किए जाते हैं। चूने का प्रयोग मैग्नीशियम के साथ अथवा अकेले किया जाता है। इसी प्रकार, केवल एल्यूमिनियम अथवा किसी स्कंदक के साथ एल्यूमिनियम का प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार केवल मैग्नीशिया, कैल्शियम फॉस्फेट, बेन्टोनाइट तथा फुलर अर्थ जैसे पदार्थों को फ्लोराइड युक्त जल में मिलाने के पश्चात छान लेना विफ्लोरिडीकरण की अन्य विधियों में शामिल है। उपरोक्त सभी विधियों में कुछ कमियां हैं जैसे प्रारंभिक उच्च लागत, फ्लोराइड हेतु चयनात्मकता में कमी, फ्लोराइ पृथक्करण क्षमता में कमी तथा जटिल एवं महंगी प्रक्रिया।

3.1 संसाधित अस्थि


अस्थियों को साफ करके सुखाया जाता है तथा 40-60 मैश तक पीसा जाता है। इस चूर्ण को एक बंद रिटार्ट में 7500-9500 डिग्री सेंटीग्रेड तक कार्बनीकृत किया जाता है। प्राप्त उत्पाद में ट्राई-कैल्शियम फॉस्फेट होता है जो प्रति लीटर माध्यम द्वारा 1000-1500 मि.ग्रा. फ्लोरीन पृथक करने की क्षमता रखता है। इसके फ्लोराइड संतृप्त हो जाने के पश्चात इसकी क्षीण अवशोषण क्षमता को पुनः स्थापित करने हेतु 4000 डिग्री सेंटीग्रेड पर सीमित वायु आपूर्ति की अवस्था में इसका पुनः कैल्सीकरण किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त सम्पर्क तल को सोडियम हाइड्रॉक्साइड विलयन द्वारा सक्रिय किया जा सकता है।

3.2 अस्थि चारकोल


हड्डी का संसाधन उसे वायु में जलाने के पश्चात 100 मैश तक पीस कर किया जाता है। इस उत्पाद की फ्लोराइड पृथक्करण क्षमता 1000 मिली ग्रा. प्रति लीटर है।

3.3 संश्लेषित /कृत्रिम ट्राइ-कैल्शियम फॉस्फेट


फास्फोरिक अम्ल की चूने के साथ क्रिया होने पर ट्राई कैल्शियम-बाई-फॉस्फेट प्राप्त होता है। इसकी फ्लोराइ विस्थापन क्षमता 700 मि.ग्रा. प्रति ली. है। इस माध्यम पर 1 प्रतिशत सोडियम हाइड्रॉक्साइड विलयन की क्रिया तथा उसके पश्चात तनु अम्लीय प्रक्षालन के द्वारा इसे सक्रिय किया जा सकता है।

3.4 फ्लोरेक्स


ट्राई कैल्शियम फॉस्फेट तथा हाइड्रॉक्सी एपेटाइट के मिश्रण का व्यावसायिक नाम फ्लोरेक्स है। माध्यम की फ्लोराइड विस्थापन क्षमता लगभग 600 किग्रा. फ्लोरीन प्रति लीटर है तथा इसका सक्रियण 1.5 प्रतिशत सोडियम हाइड्रोक्साइड विलयन द्वारा किया जाता है।

3.5 उत्प्रेरित एल्यूमिना


माध्यम की फ्लोराइड विस्थापन क्षमता लगभग 1400 मि.ग्रा. फ्लोरीन प्रति लीटर एल्यूमिना है। सम्पर्क तल को 1% NaOH से सम्पोषित करने के पश्चात क्षार आधिक्य का उदासीनीकरण किया जाता है। फ्लोराइड विनिमय क्षमता को प्रभावित करने वाला एकमात्र सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक क्षारीयता है।

3.6 उत्प्रेरित कार्बन


इस माध्यम की क्षमता लगभग 320 मि.ग्रा. फ्लोरीन प्रति किलोग्राम (150 मि.ग्रा. फ्लोरीन/लीटर) है, जो 7pH पर सर्वाधिक होती है। प्रयुक्त सामग्री को 2 प्रतिशत फिटकरी में 12-14 घंटे तक भिगो कर रखने पर कार्बन सम्पोषित हो जाता है।

3.7 आयन विनिमय रेजिन


(अ) ऋणायन विनिमय रेजिन


पॉलिस्टायरॉन धनायन विनिमय रेजिन से फ्लोराइड, निष्कासित करने के साथ अन्य ऋणायनों को भी विस्थापित कर देते हैं। राष्ट्रीय पर्यावरणीय अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) के द्वारा कुछ ऋणायन विनिमय रेजिनों का अध्ययन किया गया है, जैसे-

पॉली ऋणायन विनिमय रेजिन (NCL)
टुलिस्यान – A-27
ड्येकेडाइट FF-1P
लीवेटिट MIH-59
एम्बरलाइट IRA 400

22 मि.मी. व्यास वाले कांच के स्तम्भों को 60 मि.मी. रेजिन द्वारा 0.5 लीटर प्रति मिनट की प्रवाह दर से भरा गया, संसाधित जल को एक लीटर के समभागों में एकत्रित किया गया तथा 0.16 कि.ग्रा. NaC1 प्रति लीटर अथवा 0.12-0.16 कि.ग्रा. प्रति लीटर NaOH द्वारा स्तम्भों को सम्पोषित किया गया। प्राप्त परिणामों से यह निष्कर्ष निकाला गया कि इन रेजिनों की फ्लोराइड विस्थापन क्षमता अपेक्षाकृत कम होती है तथा इस उपचार की लागत बहुत अधिक है।

यह इंगित करता है कि ऋणायन विनिमय रेजिन द्वारा जल से फ्लोराइड विस्थापित करने करने की विधि एक महंगी विधि है इसके अतिरिक्त ऋणायन विनिमय रेजन एक तीव्र क्षारक होता है, जो संसाधित जल को एक विशिष्ट स्वाद प्रदान करता है, जिसे सम्भवतः उपभोक्ता पसंद ना करें।

रेजीन

प्रकार

परिकालित क्षमता मिग्रा / लीटर

परीक्षण जल फ्लोराइड मिग्रा / लीटर

संसाधन कीमत

टुलसियान 1.27

हाइड्राक्सिल

32

2.8

7.95

डिएसियोडाइट

FF-1P

हाइड्रॉक्सिल

130

2.8

2.35

लिवेटीट

MIH-59

हाइड्राक्सिल

96

2.8

3.00

एमबरलाइट

IRA-400

हाइड्राक्सिल

232

2.8

1.55

 



3.7 (ब) धनायन विनिमय रेजिन


‘नीरि’ द्वारा अनेक धनायन विनिमय रेजिनों तथा लकड़ी के बुरादे के कार्बन का अध्ययन/तुलनात्मक अध्ययन किया गया। इसके लिए 4.3 पी पी एम फ्लोरीन पर 270 मि.ली. प्रति मिनट की जल प्रवाह दर एवं 33 मि.मी. व्यास युक्त कांच के स्तम्भ का उपयोग किया गया। जब फ्लोराइड की सांद्रता 1.5 मि.ग्रा. प्रति लीटर पर पहुंच गई तो सम्पर्क तल का सम्पोषण फिटकरी के 1 प्रतिशत विलयन की 200 मि.ली. मात्रा द्वारा किया गया। फिर इसे नल के पानी से धोया गया। जिन धनायन विनिमय रेजिनों का अध्ययन किया गया वे थे –

(1) डिफ्ल्यूरॉन-1 (2) कार्बियॉन (3) बेजोरेजिन-14 (4) पॉली धनायन विनिमय रेजिन।

(ब) 1. लकड़ी के बुरादे का कार्बन


आरा मशीनों से सागौन एवं शीशम की लकड़ियों का बुरादा प्राप्त किया जाता है। इसे बंद बर्तन में ऊष्मा प्रदान करते हैं तथा धुएं को बाहर निकलने दिया जाता है। इस कार्बनीकृत बुरादे को फिटकरी के 2 प्रतिशत विलयन में भिगोया जाता है इसके बाद फिटकरी के आधिक्य को हटाने हेतु पानी से धोया जाता है। इसकी क्षमता में कमी हो जाने पर कार्बन को दो तलों के आयतन के बराबर फिटकरी के 0.5 प्रतिशत विलयन द्वारा सम्पोषित किया जाता है। कार्बन की विफ्लोरीकरण क्षमता प्रारंभिक 18 चक्रों तक उत्तरोत्तर कम होती जाती है, तत्पश्चात लगभग 350 मिग्रा. फ्लोरीन प्रति किलो ग्राम कार्बन की अवस्था आने पर एवं इसके बाद तक यह क्षमता स्थिर रहती है। इस पदार्थ में अत्यधिक घर्षणजनित क्षति एवं पर्याप्त मात्रा में मूल क्षति की समस्या थी।

(ब) डिफ्ल्यूरॉन-1


डिफ्ल्यूरॉन गंधक युक्त लकड़ी का बुरादा है जो फिटकरी के 2 प्रतिशत विलयन से भरा हुआ रहता है। इसके लिए 20-40 मैश बुरादे की क्रिया सल्फ्यूरिक अम्ल से करवाई जाती है। अम्ल के आधिक्य को जल द्वारा धो कर इस उत्पाद को फिटकरी के 2 प्रतिशत विलयन में भिगोकर रखा जाता है और अंत में फिटकरी के आधिक्य को धोकर दूर किया जाता है। इस प्रकार लकड़ी के सुखे बुरादे का 56.3 से 69.3 प्रतिशत सल्फोनीकृत उत्पाद प्राप्त होता है। स्तम्भ को दो तल आयतन फिटकरी के 2 प्रतिशत विलयन द्वारा सम्पोषित किया जाता है और फिर धोया जाता है। इसकी विफ्लोरीकरण क्षमता 600 मि.ग्रा. फ्लोरीन प्रति किलोग्राम पाई गई. इस माध्यम की जल-चालक क्षमता बहुत कम है तथा यह घर्षण जनित क्षति की समस्या से ग्रस्त है।

(ब) 3. कार्बियॉन


कार्बियॉन एक धनायन विनमय रेजिन है। प्रयोगशाला परीक्षणों के अनुसार इसकी फ्लोराइड विस्थापन क्षमता 470 मिग्रा फ्लोरीन प्रति किलोग्राम है। माध्यम का सम्पोषण फिटकरी के 1 प्रतिशत विलयन द्वारा किया जाता है।

3.8 मैग्नीशिया


मैग्नीशिया लवण चने के दूध से क्रिया करने पर क्रिस्टलीय मैग्नीशियम हाइड्रॉक्साइड देता है। इस अवक्षेप को छान कर, धोकर सुखा लिया जाता है। इस शुष्क उत्पाद से मैग्नीशिया प्राप्त करने के लिए 1000 डिग्री सेंटीग्रेड पर तीन घंटे तक इसका कैल्सीकरण किया जाता है। एक लीटर के सम भागों में विभक्त परीक्षण जल में भिन्न-भिन्न मात्राओं में मैग्नीशिया मिलाया जाता है और एक जार परीक्षण मशीन के द्वारा इसे 30 मिनट तक विलोडित (लगातार हिलाना) किया जाता है। इस घंटे पश्चात प्राप्त नमूने से फ्लोराइड की मात्रा का अनुमान लगाया जाता है। लगभग 10 मिग्रा. प्रति लीटर फ्लोराइड युक्त जल में फ्लोरीन का सांद्रण 1 मिग्रा प्रति लीटर तक घटाने हेतु 1500 मिग्रा प्रति लीटर मैग्नीशिया तथा तीन घंटे के स्थिरीकरण समय की आवश्यकता होती है। इस संसाधित जल का pH 9 से अधिक होता है।

अध्ययन द्वारा प्रमाणित हुआ कि मैग्नीशिया, फ्लोराइड के आधिक्य को विस्थापित करता है लेकिन इसकी अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त संसाधित जल का -10 से अधिक हो जाता है तथा इसे कम करने के लिए अम्लीकरण या पुनः कार्बनीकरण की आवश्यकता है। ये सभी कारण इसे अधिक खर्चीली एवं जटिल प्रक्रिया बना देते है। इस पर किया गया व्यय अनुमानतः रु. 1.34 प्रति घन मीटर पाया गया।

3.9 सर्पेन्टाइन


सर्पेन्टाइन वह पदार्थ है जिसमें क्रिस्टोलाइट एवं एंटीगोराइट दोनों प्रकार के खनिज पाए जाते है। इसकी संरचना सूत्र Mg6Si4O10 (OH) के अनुरूप है। यह हरा अथवा पीला होता है। जार परीक्षण, बोतल एवं स्तम्भ परीक्षण किए गए। यह पाया गया कि 6.2 मि.ग्रा. प्रति लीटर फ्लोरीन की मात्रा को 1 मि.ग्रा. प्रति लीटर तक घटाने के लिए एक बार में औसतन 80 ग्राम प्रति लीटर पदार्थ की आवश्यकता होती है। यह पदार्थ संपोषणीय नहीं है तथा उपयोग के पश्चात् फेंक दिया जाता है। अंततः यह निष्कर्ष निकाला गया कि इस पदार्थ द्वारा विफ्लोरीकरण अधिक व्ययकारी है।

3.10 डिफ्लोरॉन – 2


लकड़ी के बुरादे के कार्बन डिफ्लोरॉन के प्रयोग में उत्पन्न समस्या के समाधान हेतु ‘नीरी’ द्वारा एक अन्य माध्यम डिफ्लोरॉन-2 का निर्माण किया गया। सम्पोषण हेतु एक तल आयतन फिटकरी के 4 प्रतिशत (भार/आयतन) विलयन का प्रयोग किया गया। माध्यम की आयु 2-4 वर्ष पाई गई। संसाधन की कीमत जल में फ्लोराइड की मात्रा एवं क्षारीयता पर निर्भर करती है। लगभग 160 से 900 मिगग्रा. प्रति लीटर क्षारीयता तथा 3 से 10 मि.ग्रा. प्रति लीटर फ्लोराइड की उपस्थिति में विफ्लोरीकरण की कीमत रू. 0.4 से रू. 2.1 प्रति घन मीटर पई गई।

केंद्रीय प्रशिक्षण संस्थान हैदराबाद में स्थित संयंत्र का लगातार चार वर्ष तक उपयोग करने पर, माध्यम पर सफेद पदार्थ जम गया और उसकी विफ्लोरीकरण क्षमता 60 प्रतिशत तक कम हो गई। माध्यम का आयतन 40 प्रतिशत तक बढ़ गया। इसकी औसत फ्लोरीन विस्थापन क्षमता 484 मि.ग्रा. प्रति लीटर (597 मि.ग्रा./किग्रा.) थी जिसमें 1.15 प्रति लीटर रिसाव सम्मिलित है।

3.11 नालगोंडा तकनीक


यद्यपि डिफ्लोरॉन-2 प्रक्रिया फ्लोराइड विस्थापन में सफल रही, परंतु इसके सम्पोषण एवं संयंत्र के रख-रखाव हेतु अम्ल/क्षार के कुशल प्रयोग एवं संचालन की आवश्यकता की आवश्यकता है। इन समस्याओं से बचने के लिए ‘नीरी’ ने एक अन्य विधि विकसित की जो साधारण एवं अनुकूल है तथा जिसका उपयोग एक निरक्षर व्यक्ति भी कर सकता है। संयोगवश इसके द्वारा विफ्लोरीकरण की कीमत भी काफी कम हो गई। इस नालगोंडा नामक तकनीक में दो साधारण एवं सहज रूप से प्राप्त रसायनों, यथा 1. चूना, 2. फिटकरी का उपयोग होता है, इसके अंतर्गत फ्लॉक्यूलेशन (फुलाने), सेडीमेंटेशन (स्कंदन एवं जमाने ) एवं फिल्ट्रेशन (छानने) की प्रक्रियाएं क्रमिक रूप से सम्पन्न की जाती है। ये प्रक्रियाएं साधारण हैं तथा अभियंता इनसे पूर्ण रूप से परिचित है।

3.11 (अ) घरेलू उपचार


व्यक्ति की आवश्यकता के अनुकूल बनाने हेतु घरेलू उपचार विधि को और सरल बनाया गया है। इसके लिए 20-60 लीटर क्षमता का कोई बर्तन प्रयुक्त किया जा सकता है। बर्तन के तल से 3-5 सेंटीमीटर ऊंचाई पर एक नल लगाया जाता है। जिसके द्वारा संसाधित जल को बाहर निकाला जा सके। अपरिष्कृत जल को बर्तन में भर कर उसमें उचित मात्रा में चूना, फिटकरी एवं विरंजक चूर्ण भी मिलाया जाता है। जिससे विफ्लोरीकरण के साथ-साथ विसंक्रमण भी हो सके। (सारणी 2 में प्रति 40 लीटर जल में प्रयुक्त फिटकरी की ग्राम मात्रा दर्शायी गई है।) उपरोक्त मिश्रण को 10 मिनट तक विलोड़ित (हिलाना) किया जाता है और फिर स्थिर होने के लिए एक घंटे तक छोड़ दिया जाता है। साफ पानी को नल के द्वारा निकाल लिया जाता है अथवा निथार लिया जाता है एवं तलछट की गंदगी को फेंक दिया जाता है।

यहां फिटकरी का अर्थ एल्यूमिना फैरिक (फिल्टर एलम) है। यह धूसर (ग्रे) रंग का एल्यूमिनियम सल्फेट है तथा बाजार में लगभग 20 कि.ग्रा. के ठोस टुकड़ों के रूप में मिलती है। फिटकरी को पहले थोड़े से पानी में घोल कर फिर पानी से भरे बर्तन में मिलाना ज्यादा अच्छा है। इसमें प्रयुक्त चूने की मात्रा, फिटकरी की मात्रा का लगभग 1/20 भाग होता है। इसे चूर्ण रूप में अपरिष्कृत जल में फिटकरी डालने से पहले मिलाया जाता है। राजस्थान में अधिकांशतः स्थानों पर अपरिष्कृत जल पर्याप्त मात्रा में क्षारीय होता है, अतः चूने के प्रयोग को टाला जा सकता है।

अपरिष्कृत जल के विसंक्रमण हेतु केवल एक चुटकी (200 मि.ग्रा.) विरंजक चूर्ण (ब्लीचिंग पाउडर) की आवश्यकता होती है। इसे भी फिटकरी मिलाने से पहले मिलाया जाता है।

सारिणी 3.1 विभिन्न क्षारकताओं की स्थिति में 40 लीटर जल हेतु घरेलू विफ्लोरीडीकरण


फ्लोराइड (मिग्रा / लीटर)

क्षारकता (मिग्रा / लीटर)

 

125

200

300

400

500

600

800

1000

2

5.8

8.8

11.0

12.4

14.4

16.2

18.8

20.8

3

8.8

12.0

14.0

16.2

20.4

20.8

23.4

28.0

4

 

16.0

16.6

18.8

22.4

24.0

27.6

37.4

5

  

20.4

24.4

27.6

28.6

33.4

40.4

6

  

24.4

28.6

31.2

37.4

42.6

48.4

8

    

39.6

44.8

52.0

57.2

10

      

60.4

67.6

 



3.11 (ब) छोटे समुदाय हेतु फिल एंड ड्रॉ विधि


लगभग 200 व्यक्तियों वाले समुदाय हेतु इस बैच विधि का प्रयोग किया जाता है। इसके संयंत्र में हस्तचलित अथवा विद्युत संचालित यंत्र युक्त 2 मीटर गहरे टैंक का उपयोग किया जाता है। अपरिष्कृत जल इसमें भर दिया जाता है तथा उसमें आवश्यक मात्रा में विरंजक चूर्ण एवं चूना अथवा सोडियम कार्बोनेट मिलाया जाता है। इस विलयन को 10 मिनट तक हिलाते रहते हैं और इस दौरान इसमें फिटकरी मिलाते जाते हैं। इसके पश्चात इसे 2 घंटे तक स्थिर होने के लिए छोड़ देते हैं। अधिपृष्ठीय अथवा ऊपरी निथरे हुए जल को टैंक से उपयोग हेतु निकाल लिया जाता है और नीचे बचे हुए तलछट को फेंक दिया जाता है। 200 व्यक्तियों की जनसंख्या हेतु 40 Lpcd के आधार पर संयंत्र का माप है-

जल की गहराई - 1.5 मीटर
फ्री बोर्ड - 0.3 मीटर
तलछट शंकु की गहराई- डी/10
शैफ्ट का व्यास - 50 मि.मी.

जनसंख्या

जल आयतन घन मीटर

संयंत्र व्यास मीटर

मोटर हेतु प्रस्तावित HP

50

2

1.3

1.0

100

4

1.85

2.0

200

8

2.6

2.0

 



फिटकरी की आवश्यकता मात्रा = जल का आयतन ग फिटकरी की मिग्रा./लीटर में मात्रा ताजा विरंजक चूर्ण (ब्लीचिंग पाउडर) Kg/1a cL=1.5x1x10 के पावर 5x4 =0.6 kg/1a c1.
10 के पावर 6
चूना = क्षारीयता पर निर्भर करता है (सामान्यतः राजस्थान में आवश्यक नहीं है)

विचारणीय तथ्य


1. उचित क्षमता वाले पंप के द्वारा संपूर्ण प्रक्रिया 2-3 घंटों में पूर्ण हो जाती है और एक दिन में कई बैच प्राप्त किए जा सकते हैं।
2. अधिकांशतः जिन वस्तुओं की आवश्यकता होती है वह सरलतापूर्वक प्राप्त हो जाती हैं। जैसे फिटकरी, चूना अथवा सोडियम कार्बोनेट तथा विरंजक चूर्ण घोलने हेतु एक 20 लीटर की बाल्टी तथा एक भारमापी तुला।
3. संयंत्र को खुले स्थान पर स्थापित किया जा सकता है परंतु मोटर को ढकने का कोई साधन होना आवश्यक है।
4. अर्द्ध-कुशल कार्यकर्ता भी इस पर बिना किसी सहायता के काम कर सकते हैं।
5. अधिकांश जल स्रोतों में इस कार्य हेतु आवश्यक क्षारीयता, प्राकृतिक रूप से पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। अतः ऐसे स्थानों पर चूने की आवश्यकता नहीं होती।

(स) फिल एंड ड्रॉ विधि द्वारा अंशों में जल आपर्ति


यह विधि भी मूलतः पहली विधि के समान है, परंतु इसमें दो बड़े संयंत्रों की आवश्यकता होती है। दोनों संयंत्र सामानान्तर स्थापित किए जाते हैं। प्रत्येक में 10 घनमीटर क्षमता वाला एक टैंक होता है। जिसका तल गहरा होता है तथा जिसमें जल प्रवेश एवं निकास मार्ग एवं तलछट निकास मार्ग होता है। प्रत्येक टैंक में एक विलोडक होता है। जिसके निम्न भाग होते हैं। (1) 3 फेज 50Hz 1440 घूर्णन प्रति मिनट एवं 415 धनात्मक/ऋणात्मक 0.6% वोल्टेज विचलन युक्त 5HP मोटर (2) गियर बॉक्स, जो 1440 घूर्णन प्रति मिनट की प्रारंभिक गति प्रदान कर सके और 24 घूर्णन प्रति मिनट गति प्राप्त करने हेतु 60:1 का रिडक्शन अनुपात हो और जिसमें विलोडक पैडलों को पकड़ने हेतु एक शैफ्ट हो। टैंक के निचले भाग में स्टील के मजबूत बुशिंग्स की सहायता से विलोडक जुड़े रहते हैं।

अपरिष्कृत जल दोनों संयंत्रों में पंप किया जाता है और नालगोंडा विधि से शोधित किया जाता है। इस जल को एक छोटी टंकी में एकत्रित किया जाता है और फिर ओवर हैड टैंक में पंप कर दिया जाता है जहां से इसकी आपूर्ति की जाती है।

3.11 (द) अवक्षेपण, स्थिरीकरण एवं निस्पंदन (छानना) योजना द्वारा निरंतर विफ्लोरीडीकरण


इस योजना का उद्देश्य गांव हेतु अपरिष्कृत जल का शोधित करना है। इसमें चैनल मिक्सर फ्लॉक्यूलेशन, सेडीमेंटेशन टैंक और रेपिड सैंड फिल्टर्ज सम्मिलित हैं। ओवर हैड टैंक को भरने और संसाधित जल युक्त टंकी से जल वितरण के अतिरिक्त यह योजना गुरूत्व संचालित है। इसके प्रारूप 500, 1000, 2000 एवं 5000 जनसंख्या इकाइयों हेतु उपलब्ध है। जल उपभोग की दर 70 Lpcd है।

(द.1) रेपिड मिक्स


सोडियम कार्बोनेट विलयन, चूना, एल्यूमिनियम लवण तथा विरंजक चूर्ण के घोल को अपरिष्कृत जल के साथ मिलाने हेतु चैनल मिक्सर उपलब्ध है। इस तंत्र में जल प्रवाहित करते समय ही उपरोक्त रसायन उसमें मिला दिए जाते हैं। इनके तात्क्षणिक मिश्रण हेतु अवरोधक समय 30 सेकेंड तथा गति 0.6 प्रति सेकेंड रखी जाती है।

(द.2) फ्लॉक्यूलेशन (ऊर्णन)


अपरिष्कृत जल एवं रसायन के मिश्रण का फ्लॉक्यूलेशन (ऊर्णन) – उसके तलछट अथवा अवसादन टैंक में प्रवेश से पूर्व एक मंद विलोडन प्रदान करता है। इसके दौरान तंत्र में निर्मित पॉलीएलम पदार्थ एवं जल में उपस्थित फ्लोराइड के मध्य सम्पर्क रहता है। विफ्लोरीकरण एक जटिल, प्रक्रिया है जहां पॉलीहाइड्रॉक्सी एल्यूमिनियम स्पीशीज, फ्लोराइड के साथ संयुग्मित होकर, पॉलीमेरिक एल्यूमिनो हाइड्रॉक्साइड के फ्लॉक (गुच्छों) पर अधिशोषत हो जाती है। फ्लोराइड के अतिरिक्त धुंधला रंग, गंध, कीटाणुनाशक एवं कार्बनिक पदार्थ भी पृथक हो जाते है। बैक्टीरिया का भार भी सार्थक रूप से कम हो जाता है। विद्युत आपूर्ति पर निर्भर ना रहना पड़े, इसके लिए परंपरागत फ्लॉक्यूलेटर के स्थान पर पैबल बैड फ्लॉक्यूलेशन का प्रयोग किया जाता है।

अवरोधन काल – 30 मिनिट
माध्यम का माप – 20-40 मि.मी.
माध्यम की गहराई – 1.2 मीटर
जल प्रतिक्षेपन दर – 0.5 मीटर/मिनट

(द.3) अवसादीकरण/तलछटीकरण


फ्लोराइड, गंदगी, बैक्टीरिया तथा अन्य अशुद्धियों युक्त फ्लॉक तल में जम जाते हैं। इससे जल में प्रलम्बित ठोस पदार्थों में कमी आ जाती है।

ऊर्ध्व गहराई - 3 मीटर
वीयर लोडिंग – 300 मीटर क्यूब /मीटर/डी
पृष्ठीय अधिभार दर – 20 मीटर क्यूब/मीटर स्कावयर/डी

(द.4) फिल्ट्रेशन (निस्पंदन)


स्थिर एवं स्वच्छ जल प्राप्त करने के लिए द्रुत ग्रेविटी फिल्टर प्रयुक्त किए जाते हैं। प्रलम्बित अस्थिर जिलेटिन युक्त फ्लॉक रोक लिए जाते है, जिन पर प्लोराइड एवं बैक्टीरिया के अवशिष्ट अधिशोषित रहते हैं।

रेत से ऊपर कुल हैड – 2 मीटर
फिलट्रेशन की दर – 4.88 मीटर क्यूब/मीटर स्कावयर / घंटा
जल प्रतिक्षेपण हेतु कुल हैड – 12 मीटर
न्यूनतम जल प्रतिक्षेपण दर – 0.73 मीटर क्यब / मीटर स्कावयर /मी.मी.
रेत की गहराई – 1.0
कंकड़ीय स्तर की गहराई – 0.45 मीटर
रेत का प्रभावी माप – 0.6 से 0.8 मि.मी.

(द.5) विसंक्रमण


फिल्टर किए गए जल को एक संग्रहण टैंक में एकत्रित कर के विरंजक चूर्ण द्वारा उसका पुनः क्लोरीकरण किया जाता है तथा आवश्यकता के अनुसार वितरण किया जाता है।

3.11 (य) पी.ए.सी. द्वारा जल का विफ्लोरीकरण


पॉली एल्यूमिनियम क्लोराइड (PAC) चूर्ण द्वारा अधिशोषण के माध्यम से जल का विफ्लोरीकरण सफल रहा है। इसके द्वारा जल में उपस्थित फ्लोराइड की उच्च मात्रा को किसी भी आवश्यक स्तर तक कम किया जा सकता है। कुछ प्रत्यक्ष जैव-तत्वीय कारकों के कारण आर.सी.सी./स्टील पर विपरीत प्रभाव, निम्न pH, उच्च सल्फेट एल्यूमिनियम अवशिष्ट तथा उचित मात्रा आदि जैसी समस्याएं विफ्लोरीकरण में एल्यूमिना फेरिक के प्रयोग को बाधित करती हैं। अध्ययन इंगित करते हैं कि पी.ए.सी. ही एकमात्र उपलब्ध सर्वोत्तम एवं सस्ता उपाय है। इसका प्रयोग एल्यूमिना फेरिक की भांति ही होता है। अध्ययन यह भी बताते हैं कि पी.ए.सी. अवशिष्ट को हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में घोल कर द्वितीय चक्र में प्रयुक्त किया जा सकता है।

रसायन


फिल्टर एलम के समान विक्रम पावर पी.ए.सी. ए.सी. /100s जल अपघटन पर निम्न उत्पाद देते हैं-
एलम फिल्टर समीकरण
उपरोक्त वर्णित पॉलिमेरिक स्पीशीज, उदासीन स्पीशीज A1(OH)3, में परिवर्तित हो जाती है। फेरिक एलम (फिल्टर एलम) के स्थान पर पी.ए.सी. का उपयोग नालगोंडा तकनीक में किया गया सुधार है। फील्ड से प्राप्त परिणामों के अनुसार यदि रिएक्टर टैंक भरते समय उसमें पी.ए.सी. मिला दिया जाए फ्लॉक (गुच्छ) जल्दी बनते हैं। जैसे ही टैंक में पानी जाना बंद होता है, फ्लोराइड शोषित फ्लॉक 45 मिनट के अंदर स्थिर हो जाते हैं और समय की बचत हो जाती है।

पी.ए.सी का प्रयोग एल्यूमिना फेरिक से अधिक लाभकारी है क्योंकि-

विफ्लोरीकरण में प्रयुक्त फिल एंड ड्रॉ संयंत्रों में विलोडक के प्रयोग की आवश्यकता नहीं होती। इससे ऊर्जा और विलोडक के रक-रखाव पर व्यय में बचत होती है।
स्थिरीकरण समय 3 घंटे से घट कर 45 मिनट रह जाता है।
सल्फेट आयनों के कारण उत्पन्न होने वाले संकट से बचत होती है।
संसाधित जल में एल्यूमिनियम आयन की सांद्रता कम होती है।pH का मान अल्प मात्रा में घटता है।
क्षारीयता में कमी अत्यधिक न्यून होने के कारण प्राकृतिक स्वाद बना रहता है।
संशोधित जल में 1 एन.टी.यू. से कम गंदलापन होता है।

सारांश


भारतीय परिस्थितियों तथा विफ्लोरीकरण की सभी उपलब्ध तकनीकों को ध्यान में रखते हुए पी ए सी सर्वोत्तम विफ्लोरीकरण साधन है। यह नालगोंडा तकनीक का सुधरा हुआ रूप है। इसे फिल एंड ड्रॉ (एफ एंड डी) तथा हैंड पम्प युक्त विफ्लोरीकरण संयंत्रों में सुविधापूर्वक प्रयुक्त किया जा सकता है।

घरेलू विफ्लोरीकरण हेतु भी यह उपयुक्त विधि है।

विगत 2-3 वर्षों में संपूर्ण भारत में अनेक विफ्लोरीकरण इकाइयां (एफ एंड डी) विकसित हुई है। चौबीस घंटों में टैंक का उपयोग फेरिक एलम के प्रयोग के साथ केवल तीन चक्रों के लिए किया जा सकता है जबकि पी.ए.सी. के साथ सात चक्र पूर्ण हो सकते हैं।

3.11 (र) नालगोंडा तकनीक की अन्य विधियों से श्रेष्ठ है क्योंकि –

1. कोई सम्पोषणीय माध्यम नहीं हैं।
2. अम्ल एवं क्षार का प्रयोग नहीं होता।
3. पारंपरिक म्यूनिसिपल जल शोधन विधि में प्रयुक्त किए जाने वाले सुविधापूर्वक उपलब्ध रसायनों की ही आवश्यकता होती है।
4. घरेलू उपयोग के लिए उपयुक्त एवं सुविधापूर्ण है।
5. प्रतिदिन हजारों घन मीटर जल संशोधन हेतु सक्षम।
6. निरंतर संचालन एवं अंशों में क्रियान्वित करने योग्य।
7. साधारण प्रारूप, रचना, संचालन एवं रख-रखाव।
8. स्थानीय कौशल का सुविधापूर्वक उपयोग हो सकता है।
9. 2 से 20 मिग्रा/लीटर फ्लोराइड की मात्रा को किसी भी स्तर तक कम करने में सक्षम।

10. रंग, गंध, गंदलापन, बैक्टीरिया एवं कार्बनिक अशुद्धियों को एक साथ विस्थापित करती है।
11. साधारणतः संबद्ध क्षारकता फ्लोराइड विस्थापन को निश्चित करती है।
12. न्यूनतम जल अपव्यय।
13. यांत्रिक एवं वैद्युत उपकरणों की न्यूनितम आवश्यकता।
14. घरेलू संसाधन हेतु केवल शारीरिक शक्ति की आवश्यकता
15. मूल्य प्रभाव – 40 Lpcd पर जल का वार्षिक विफ्लोरीकरण मूल्य घरेलू संशोधन हेतु 15 रुपए तथा 5000 व्यक्तियों की जनसंख्या पर आधारित, 5 मि.ग्रा./लीटर फ्लोरीन तथा 400 मि.ग्रा./लीटर क्षारकता वाले जल के सामुदायिक संसाधन हेतु 30 रूपये पाई गई। इसमें 600 मि.ग्रा./लीटर फिटकरी की आवश्यकता होती है।

16. समान रूप से स्वीकार्य गुणों युक्त विफ्लोरीकृत जल प्रदान करती है।

3.11 (ल) नालगोंडा तकीक की कमियां


1. ‘नीरी’ के दावे के विपरीत घरेलू विफ्लोरीकरण के दौरान फ्लॉक (गुच्छे) 1 घंटे पश्चात पूर्ण रूप से स्थिर नहीं होते। एफ एंड डी विधि में फ्लॉक पूर्ण स्थिर होने में 2 घंट के स्थान पर 4 घंटे तक का समय ले लेते हैं।
2. जैव रासायनिक कारणों से जल का स्वाद खराब हो जाता है।
3. ग्रामीण 2 घंटे तक इस प्रक्रिया पर ध्यान नहीं दे सकते। उन्हें कोई तैयार संसाधन चाहिए।
4. फिटकरी की मात्रा बढ़ाने से सल्फेट का सांद्रण 35 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। कई बार संशोधित जल में 400 मिग्रा/ लीटर से अधिक सल्फेट पाया जाता है जिससे जल पीने योग्य नहीं रहता।
5. इसके अतिरिक्त, सल्फेट की अधिक मात्रा आर.सी.सी. में छेद कर देती है।
6. असावधानी पूर्वक किए गए उपचार में एल्यूमिनियम आयन की सांद्रता 0.2 मिग्रा/लीटर से अधिक हो सकती है जिसके कारण विक्षिप्तता आ सकती है।
7. एफ एंड डी संयंत्रों में विलोडक के गियर का उचित रख रखाव आवश्यक है।
8. ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युत कटौती एक आम बात है। अचानक विद्युत अवरोध के कारण क्रिया अपूर्ण रहती है और संभव है कि जनता को फिटकरी मिश्रित जल की आपूर्ति हो जाए।
सारीणी 3.2 विफ्लोरीकरण हेतु नालगोंडा तकनीक PAC-10(DSCL) द्वारा ये मात्राएँ (मिग्रा / लीटर) अनुमानित है तथा 1 पी पी एम फ्लोराइड युक्त संसाधित जल प्राप्त करने हेतु निर्देशिका के रूप में सहायक हो सकती है।

फ्लोराइड (मिग्रा / लीटर)

अपरिष्कृत जल में प्रति लीटर CaCo3 की उपस्थिति के अनुसार प्रदर्शित क्षारकता

 

80

125

200

310

400

510

600

820

1070

2

208

286

442

546

624

702

806

936

1040

3

 

442

598

702

806

1014

1040

1170

1534

4

  

606

812

936

1118

1196

1378

1872

5

   

1014

1196

1378

1430

1768

2020

6

   

1222

1430

1560

1872

2132

2418

8

     

1976

2236

2600

2860

10

       

3016

3380

 



सारिणी 3.3 PAC-18(DSCL) द्वारा ये मात्राएँ (मिग्रा / लीटर) अनुमानीत है तथा 1 पी पी एम फ्लोराइड युक्त जल प्राप्त करने हेतु निर्देशिका के रूप में सहायक हो सकती है।

फ्लोराइड (मिग्रा / लीटर)

अपरिष्कृत जल में प्रति लीटर CaCo3 की उपस्थिति के अनुसार प्रदर्शित क्षारकता

 

80

125

200

310

400

510

600

820

1070

2.

75

103

159

197

225

253

290

337

374

3.

 

159

215

253

290

365

374

421

552

4.

  

290

292

337

402

431

496

674

5.

   

365

431

496

515

636

727

6.

   

440

515

562

674

768

870

8.

     

711

805

936

1030

10.

       

1086

1217

 



सारिणी 3.4 ... फिल्टर एलम द्वारा 14-15 प्रतिशत मात्राएँ (मिग्रा/लीटर) अनुमानीत एवं सांकेतिक हैं। साधारणत: रेखांकीत मात्राओं का परामर्श नहीं दिया जाता। फिल्टर एलम के 1/20 भाग के बराबर चूने की आवश्यकता होती है (निम्न क्षारकता की स्थिति में)

फ्लोराइड (मिग्रा / लीटर)

अपरिष्कृत जल में प्रति लीटर CaCo3 की उपस्थिति के अनुसार प्रदर्शित क्षारकता

 

80

125

200

310

400

510

600

820

1070

2

114

157

243

300

343

386

443

515

572

3

                *

243

319

386

443

558

572

643

844

4

  

443

458

515

615

658

758

1030

5

  

                *

558

658

758

786

972

1111

6

   

672

786

858

1030

1173

1330

8

   

                *

                *

1087

1230

1430

1573

10

     

                *

                *

1658

1859

 



* परिक्षण जल की क्षारकता प्राप्त करना सम्भव नहीं है।

सारिणी 3.5 तीस प्रतिशत एल्यूमिना युक्त पी ए सी चूर्ण (ग्रसिम) द्वारा ये मात्राएँ (मिग्रा/लीटर) अनुमानित है तथा 1 पी पी एम फ्लोराइडयुक्त जल प्राप्त करने हेतु निर्देशिका के रूप में सहायक हो सकती है।

फ्लोराइड (मिग्रा / लीटर)

अपरिष्कृत जल में प्रति लीटर CaCo3 की उपस्थिति के अनुसार प्रदर्शित क्षारकता

1

80

125

200

310

400

510

600

820

1070

2

66

90

139

172

197

221

254

295

328

3

 

139

183

221

254

319

328

369

483

4

  

254

256

295

352

377

434

590

5

   

319

377

434

450

557

636

6

   

385

450

491

590

672

762

8

     

622

704

819

901

10

       

950

1065

 



भारत में साधारणतः फ्लोराइड की उच्च मात्रा एवं कम क्षारकता की स्थिति नहीं पाई जाती। जहां ऐसा है, वहां अपरिष्कृत जल की क्षारकता चूने द्वारा बढ़ाई जा सकती है।

3.11 हैंडपंप युक्त विफ्लोरीकरण संयंत्र (डी.एफ.एच.पी)


राजस्थान में ये संयंत्र NIDC द्वारा स्थापित एवं राजीव गांधी पेयजल मिशन द्वारा प्रायोजित किए गए थे।

कार्यविधि सिद्धांत


विलयन टैंक में 15 दिन हेतु आवश्यक मात्रा में फिटकरी डाल दी जाती है। विलयन टैंक की क्षमता 100 लीटर होती है और वह फाइबर ग्लास का बना होता है। जब हैंडपंप का हत्था दबाया जाता है तो मध्य पटल के पंप में निर्वात उत्पन्न होता है जिससे फिटकरी का विलयन खिंच कर अपरिष्कृत जल में मिल जाता है। इस मिश्रण के स्थान एवं फ्लॉक्यूलेटर के मध्य फ्लैश मिक्सिंग हो जाती है। यह जल पेबल बैड फ्लॉक्यूलेटर वाले कक्ष में जाता है जहां फिटकरी का फ्लोक्यूलेशन (ऊर्णन) होता है। यहां से अवसादन (सेडीमेंटेशन) टैंक में जाने से पहले मंद विलोडन हो जाता है। ऊर्णन समय में जल में उपस्थित फ्लोराइड एवं तंत्र में निर्मित फिटकरी के सूक्ष्म फ्लॉक (गुच्छे) एक दूसरे के सम्पर्क में आते हैं।

फ्लोराइड विस्थापन एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें पॉलीहाइड्रॉक्सी एल्यूमिनियम स्पीशीज फ्लोराइड के साथ संयोजित होकर पॉलीमेरिक एल्यूमिनो हाइड्रॉक्साइड फ्लॉक पर अवशोषित हो जाते हैं। फ्लोराइड के अतिरिक्त गंदलापन, रंग, कीटनाशक, रंग, गंध कीटनाशक तथा कार्बनिक पदार्थ भी विस्थापित हो जाते हैं। बैक्टीरियल लोड भी सार्थक रूप से कम हो जाता है। यहां अवरोधन काल 15 मिनट एवं कंकड़ों का माप 20-40 मिमी होता है।

फ्लॉक्यूलेटर से जल अवसादन टैंक में शंकुरुपी तल के कुछ ऊपर की ओर से प्रवेश करता है। इस कक्ष में सूक्ष्म फ्लॉक परस्पर सम्पर्क कर भारी फ्लॉक बनाते हैं, जो गुरूत्वाकर्षण से नीचे तले में बैठ जाते हैं। स्थिर होते समय में ये अन्य सूक्ष्म फ्लॉकों के साथ मिल कर अधिक घने हो जाते हैं। ये फ्लॉक फ्लोराइड, गंदगी, बैक्टीरिया एवं अन्य अशुद्धियों से युक्त होते हैं। लगातार पम्प करने पर, इस कक्ष का अवरोधन काल 2 घंटे होता है। लॉड्रल की सहायता से जल फिलट्रेशन कक्ष में प्रवेश करता है। फिलट्रेशन कक्ष में एक फिल्टर तल होता है जहां फ्लॉक अवशिष्ट अलग किए जाते हैं। छना हुआ जल तले में एकत्रित हो जाता है जो फिल्टर तल के ऊपर की ओर स्थित पाइप के द्वारा साइफन क्रिया से निकाल लिया जाता है।

प्रत्येक 2-3 माह पश्चात् अवशिष्ट को निष्कासन पाइप द्वारा निकाल लिया जाता है। रख-रखाव के दौरान वॉल्व V1 को बंद कर दिया जाता है एवं वॉल्व V2 को जल प्रतिक्षेपण हेतु खोल दिया जाता है। संचालन के दौरान यदि जल को एक ओर से लगातार पम्प किया जाए तो यह दूरी ओर से 2 घंटे बाद बाहर निकलता है। संपूर्ण संयंत्र के अंदर की ओर एफ.आर.पी. लाइनिंग है एवं बाहर की ओर प्रतिक्षयकारी पेंट किया गया है।

विफ्लोरीडीकरण हैंडपंप की विशेषताएं


1. दैनिक रख-रखाव हेतु अर्द्धकुशल संचलाक भी उपयुक्त होता है।
2. यह तंत्र ग्रामीण क्षेत्रों हेतु उपयुक्त है।
3. फैब्रिकेशन के पश्चात परिवहन एवं स्थापन सुविधाजनक होता है।
4. विद्युत आपूर्ति की आवश्यकता नही हैं।

विफ्लोरीकरण (हैंडपम्प) की कमियां


1. उपयुक्त मात्रा में फिटकरी मिलाना एक बड़ी समस्या है। अनेक प्रयत्नों के बाद भी फिटकरी विलयन की निश्चित मात्रा प्रयुक्त नहीं होती इसकी मात्रा अधिक हो जाने पर जल अम्लीय हो जाता है जिससे उच्च एल्यूमिनियम सांद्रण के कारण स्वाद धात्विक हो जाता है। ग्रामीणों ने ऐसे पानी को पीने हेतु प्रयुक्त करना बंद कर दिया।

2 अतिरिक्त पुर्जोंकी उपलब्धता विशेषतः मध्यपटल के पम्प की उपलब्धता एक समस्या है।

ग्रामीण ताजे जल का उपयोग करना चाहते हैं वे अधिक समय से संग्रही जल के प्रयोग से डरते हैं।
ग्रीष्म ऋतु में पानी गर्म हो जाता है।
हत्थे को दबाने में अतिरिक्त शक्ति की आवश्यकता होती है।
नट बोल्ट व ½ (इंच) रबर पाइप की आवश्यकता के कारण ग्रामीण संयंत्र को क्षति पहुंचा सकते हैं।

3.12 सक्रिय/उत्प्रेरित एल्यूमिना फिल्टर द्वारा घरेलू विफ्लोरीकरण (ए.ए. फिल्टर)


उत्प्रेरित एल्यूमिना (ए.ए) घरेलू विफ्लोरीकरण इकाई का रेखांकन में किया गया है। इसमें मुख्यतः दो कक्ष होते हैं। ऊपर के कक्ष में साधारण प्रवाह नियंत्रण यंत्र (विस्थापनीय वर्तुलाकार कड़ी) होता है जो इसके तल में लगा रहता है। यह प्रवाह की औसत 10 लीटर/घंटा बनाए रखता है। इसका मुख्य अवयव पी.वी.सी. निर्मित बॉक्स है जिसमें 3 किग्रा. उत्प्रेरित एल्यूमिना भरा रहता है जो तल के ऊपर 17 सेमी की ऊंचाई तक रहता है। यह बॉक्स ऊपर के कक्ष में रखा जाता है। स्टेनलैस स्टील अथवा टिन की छलनी उत्प्रेरित एल्यूमिना तल पर रखी जाती है जिससे अपरिष्कृत जल का वितरण समान रूप से हो सके। ऊपर के कक्ष को ढक्कन द्वारा ढक दिया जाता है।

निचले कक्ष में परिष्कृत जल संग्रहित किया जाता है। इसमें एक नल लगा होता है जिससे पानी को बाहर निकाला जा सकता है। एक घंटे में लगभग 10 लीटर जल एकत्रित किया जा सकता है। एक किलोग्राम उत्प्रेरित एल्यूमिना से लगभग 1500 मि.ग्रा. फ्लोराइड विस्थापित की जा सकती है। जब इसमें फ्लोराइड का स्तर 1.5 मि.ग्रा./लीटर के निर्देशित मान से अधिक हो जाता है तो इसे पुनः सक्रिय करने की आवश्यकता होती है। इसके लिए डिप (डुबोना) संपोषण विधि का प्रयोग किया जाता है। फ्लोराइड युक्त उत्प्रेरित एल्यूमिना के बॉक्स को 8 लीटर NaOH (1%) से भरी प्लास्टिक की एक बाल्टी में 4 घंटे तक रखते हैं फिर इस बॉक्स को पानी से भरी बाल्टी में बार-बार डुबो कर धोते हैं। इसके पश्चात इसे 2% H2So4 के 8 लीटर विलयन में 4 घंटे तक रखते हैं। चार घंटे बाद इस बॉक्स को अपरिष्कृत जल से तब तक धोते हैं जब तक कि pH 7.0 से ऊपर नहीं हो जाए। इस प्रकार उत्प्रेरित एल्यूमिना तल द्वितीय चक्र पुनः तैयार हो जाता है।

3.13 उत्प्रेरित एल्यूमिना आधारित विफ्लोरीडीकरण (हैंडपंप)


संयंत्र के विभिन्न भागों को रेखाचित्र द्वारा दर्शाया गया है। इस संयंत्र को स्थापित करने हेतु इसके हैंडपंप का स्तर सामान्य ऊंचाई से 1.5 मीटर अधिक रखा गया है। इसके लिए अतिरिक्त ऊंचाई का आधार प्रदान किया गया है। पीने के अतिरिक्त अन्य काम में प्रयोग करने हेतु सीधे ही जल प्राप्त करने के लिए इसमें एक उपमार्ग की व्यवस्था भी की गई है।

जब जल में फ्लोराइड सांद्रता 1.5 पीपीएम से अधिक होती है तो इसके सम्पोषण हेतु इसमें 1% NaOH तथा 0.4NH2So4 मिला देते हैं। उत्प्रेरित एल्यूमिना पर आधारित विफ्लोरीकरण नालगोंडा तकनीक पर आधारित विफ्लोरीकरण से बेहतर होता है।

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