विश्व तापमान में वृद्धि : समस्या और समाधान

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ग्रीन हाउस प्रभाव के लिए यह भी एक कारण है, जो क्लोरीन और कार्बन के संयोग से बनता है। इसका प्रयोग रेफ्रिजरेटरों, एयर-कंडीशनर, सोफा और सीट के लिए काम आने वाले फोम, रेक्सीन, खुश्बूदार कॉस्मेटिक स्प्रे के निर्माण में किया जाता है। अब तो इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की सफाई में भी इसका प्रयोग होने लगा है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस गैस का प्रभाव इतना है कि ग्रीन हाउस के लिए यह 90 प्रतिशत कारणीभूत हो सकता है। ये गैस वायुमंडल में स्थित प्राणरक्षक ओजोन को नष्ट कर रही है। मानव और प्रकृति का अभिन्न संबंध है। धरती पर आंख खोलते ही उसे प्रथम दर्शन प्रकृति का ही होता है। जन्म के बाद पहली सांस से ही मनुष्य पर प्रकृति का ऋण चढ़ना आरंभ हो जाता है और जैसे-जैसे वह विकसित होता जाता है, वैसे-वैसे प्रकृति का और अधिक ऋणी होता जाता है। अपने जीवन को सुख-समृद्धि से पूर्ण बनाने के लिए वह प्रकृति से नित्य ही दान लेता रहता है। यही नहीं बल्कि अपनी बाह्य और आंतरिक संपन्नता के लिए भी वह प्रकृति के प्रांगण में आश्रय पाता है। मनुष्य और प्रकृति के संबंधों को परिभाषित करना हो तो यह कहा जा सकता है कि जैसे बच्चा पहले अपनी मां की कोख में और फिर उसकी गोंद में सुरक्षा पाता है, उसी तरह मनुष्य प्रकृति के क्रोड़ में सुरक्षित होता है। उसके विभिन्न घटकों से संतुलन बनाकर वह समन्वय सीख जाता है।

परिवर्तन-सृष्टि का नियम है। परिवर्तन को सहज रूप से लेकर मनुष्य सदैव अपने अस्तित्व को बनाए रखने का प्रयास करता है। यह परिवर्तन यदि प्राकृतिक रूप से हुए तो विभिन्न जीव और मनुष्य स्वयं को परिवर्तन के अनुरूप ढाल लेते हैं, परंतु कई परिवर्तन प्राकृतिक न होकर मानव निर्मित होते हैं तो उसकी गति अस्वाभाविक हो जाती है। जीव एवं कुछ प्राकृतिक घटकों को उस गति से अपने गुणों का विकास करना कठिन हो जाता है। ऐसी स्थिति में प्रकृति अपना संतुलन नहीं रख पाती, जिसका परिणाम समस्त भूमंडल को भोगना पड़ सकता है।

भारतीय समाज में प्रत्येक मनुष्य के लिए तीन आवश्यकताएं मानी गई है,- अन्न, वस्त्र और मकान। ये हमारी मूलभूत आवश्यकताएं हैं, लेकिन आज आधुनिकता के दौर में और वैश्विक होड़ में अपनी प्रभुसत्ता बनाए रखने के लिए प्रकृति का बड़ी मात्रा में दोहन और शोषण दोनों हो रहा है। तीव्र गति से हो रहा औद्योगीकरण, बढ़ती जनसंख्या, परमाणु अस्त्रों का अनियंत्रित परीक्षण एवं निर्माण, यातायात के साधनों की भरमार, अकृत्रिम साधनों का दैनंदिन जीवन में प्रयोग निरंतर बढ़ रहा है, जिसकी आपूर्ति करने तथा व्यवसाय को और बढ़ाने के लिए जंगलों की कटाई, पहाड़ों तथा छोटी-बड़ी टेकड़ियों को ध्वंस किया जा रहा है। कल-कारखनों के निर्माण में लगने वाली रेत के लिए नदी किनारों का उत्खनन, नदी के स्वाभाविक प्रवाह को रोकना, इस प्रकार प्राकृतिक संपदा को नष्ट कर रहा है। परिणामस्वरूप आज हम वायुमंडलीय परिवर्तन तथा विश्व तापमान की वृद्धि से चिंतित हैं।

पृथ्वी का वायुमंडल सूर्य, वातावरण, सागरीय पृष्ठभाग, धरती और जैव विविधता इन तत्वों की परस्पर क्रिया का होने वाला परिणाम है। प्राचीन युग से आधुनिक युग तक इसमें अनेक परिवर्तन हुए हैं। हिम युग से लेकर आज तक पृथ्वी का तापमान किस प्रकार बढ़ता गया, इसका विस्तृत अध्ययन भूगर्भशास्त्री करते आ रहे हैं। इस परिवर्तन के लिए प्राकृतिक घटक और मानवीय घटक दोनों जिम्मेदार होते हैं। आज तो यह परिवर्तन चरमसीमा पर है, जिससे हमारे अस्तित्व को ही खतरा उत्पन्न हो गया है, भू-वैज्ञानिकों के अनुसार सन् 2050 में लगभग 1.5 सेंटीग्रेड से लेकर 4.5 सेंटीग्रेड तक वृद्धि होने का अनुमान है। यदि ऐसा हुआ तो पृथ्वी पर मानव-जीवन ही नष्ट हो जाएगा।विश्व तापमान में वृद्धि हो रही, के कारण इस प्रकार बताए जाते हैं-

1. हरित गृह प्रभाव- ग्रीन हाउस अथवा पौधा घर नाम से जाना जाने वाला यह प्रभाव वायुमंडल का तापमान बढ़ाने का एक प्रमुख कारण औद्योगिक क्रांति के पश्चात् पृथ्वी के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, ओजोन, क्लोरो- फ्लोरो कार्बन और हेलोजेंस आदि कृत्रिम गैसों की मात्रा बढ़ गई है। वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी का वातावरण ग्रीन हाउस के समान है। सूर्य का प्रकाश, सूक्ष्म किरणों के विकिरण के लिए पारदर्शी होता है। सूर्य की विकीरणों का कुछ भाग वायुमंडल की परतों द्वारा अवशोषित हो जाता है और कुछ भाग पृथ्वी से परिवर्तित होकर वापस लौट जाता है। परंतु अत्यधिक औद्योगीकरण से कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, मोनोक्लोराइड आदि का उत्सर्जन अधिक मात्रा में होता है, तथा वायुमंडल में इसका जमाव हो जाता है। यह प्रभाव एक कांच के पर्दे के समान होता है, जिसमें से सूर्य किरणें आ तो सकती है, पर लौट नहीं सकतीं, इसे ही हरित गृह प्रभाव कहते हैं। इस प्रभाव के कारण धरती एक सौर कुकर में परिवर्तित हो रही है, जो घातक है।

2. कार्बन डाइऑक्साइड- धरती के तापमान को संतुलित बनाए रखने में इस गैस की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सूर्य की गर्म किरणें वायुमंडल को भेदकर पृथ्वी तक पहुंचती हैं, जो पृथ्वी को गर्म कर देती हैं। कुछ गरमी धरती द्वारा सोख ली जाती है तो कुछ वायुमंडल में वापस चली जाती है, लेकिन गर्मी उत्पन्न करने वाली अवरक्त किरणें कार्बन डाइऑक्साइड को नहीं भेद पातीं और धरती के वातावरण को गर्म कर देती हैं। यद्यपि कार्बन डाइऑक्साइड को संतुलित बनाए रखने में समुद्र, ज्वालामुखी और वनस्पति अपनी शक्ति का उपयोग करते हैं, ये हर संभव उपाय से इस गैस को सोखने में अपनी ऊर्जा खर्च करते हैं, परंतु तीव्र औद्योगीकरण, ईंधन के रूप में लकड़ी जलाने और वनों की लगातार हो रही कटाई के कारण वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में लगातार वृद्धि हो रही है।

3. मीथेन- पर्यावरण में दलदली क्षेत्र तथा चावल के खेतों के आस-पास ऑक्सीजन का अभाव होता है, जिससे वातावरण में जीवाणु उत्पन्न होते हैं जो वनस्पतियों का ह्रास करते हैं। इस कारण मीथेन गैस का निर्माण होता है। लकड़ी को खाने वाले छोटे जीव-जंतु जैसे दीमक आदि इस गैस का निर्माण करते हैं। पशुओं की आंतों से भी यह गैस निकलती है और वायुमंडल में मिलती है।

4. क्लोरो-फ्लोरो कार्बन- ग्रीन हाउस प्रभाव के लिए यह भी एक कारण है, जो क्लोरीन और कार्बन के संयोग से बनता है। इसका प्रयोग रेफ्रिजरेटरों, एयर-कंडीशनर, सोफा और सीट के लिए काम आने वाले फोम, रेक्सीन, खुश्बूदार कॉस्मेटिक स्प्रे के निर्माण में किया जाता है। अब तो इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की सफाई में भी इसका प्रयोग होने लगा है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस गैस का प्रभाव इतना है कि ग्रीन हाउस के लिए यह 90 प्रतिशत कारणीभूत हो सकता है। ये गैस वायुमंडल में स्थित प्राणरक्षक ओजोन को नष्ट कर रही है। क्लोरो कार्बन का एक परमाणु कार्बन डाइऑक्साइड के एक अणु की तुलना में 20 हजार गुणा अधिक गर्मी उत्पन्न करता है और क्लोरो-फ्लोरो कार्बन का एक अणु ओजोन के एक लाख अणुओं को तोड़ सकता है। विशेष बात यह है कि यह गैस दिर्घजीवी है। इसकी मात्रा यदि यूं ही बढ़ती रही तो वायुमंडल से ओजोन परत गायब हो जाएगी।

वायुमंडल/में बढ़ता ताप आज विश्वव्यापी पर्यावरणीय समस्या है। भविष्य में इस खतरे से कोई भी सुरक्षित नहीं रह पाएगा। आज ही ग्रीन हाउस प्रभाव को कम करने के उपायों पर हम सबको गंभीरता से सोचना चाहिए। मनुष्य की सेहत पर भी इसका घातक परिणाम हम देख रहे हैं। त्वचा रोग, कैंसर तथा अन्य विकृतियों का महत्वपूर्ण कारण ग्रीन हाउस प्रभाव भी है। वर्षा चक्र पर प्रभाव, उत्पादन पर प्रभाव, वायुदाब पर प्रभाव, हिमनद पर प्रभाव, समुद्री जल-स्तर पर प्रभाव तथा अन्य प्रभाव हम सबको आने वाले संकट की ओर संकेत कर रहे हैं। इसलिए हमें इसके उपायों पर गंभीरता से चिंतन करना चाहिए और व्यक्तिगत सक्रियता दिखानी चाहिए। इसके लिए-

1. जीवाश्म ईधनों के दहन में कमी लानी चाहिए।
2. वनों की ओर लौटना चाहिए, वन कटाई करके जो नुकसान हमने किया है, उसकी भरपाई भी हम करें।
3. जिस प्रकार आधुनिकता के नाम पर हम धरती का उपयोग कर रहे हैं, उसके घटकों का बेजा उपयोग कर रहे हैं, उस पर कानूनन रोक लगाई जाए। जैसे आज की सम्राट अशोक ने वृक्ष कटाई को दंडनीय अपराध घोषित किया था, वही प्रावधान सरकार भी करे। केवल प्रावधान नहीं बल्कि उसे अमली जामा भी पहनाए।

4. परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा दे।1990 से पृथ्वी दिवस मनाने का संकल्प इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम है, पर मंजिल अभी दूर है। आज की युवा पीढ़ी को यह सोचना होगा कि हमारे पूर्वजों ने वेदों में जो प्रकृति की आराधाना की है, स्मृतियों और ऋचाओं में वनों का महत्व प्रतिपादित किया, वृक्षारोपण को सिधे धर्म से जोड़ दिया, वह क्यों? क्योंकि वे जानते थे कि यदि मनुष्य ने पर्यावरण की चिंता नहीं की तो एक दिन पर्यावरण भी मनुष्य की चिंता करना छोड़ देगा।

संदर्भ


1. पर्यावरणीय प्रदूषण, हरीश खत्री, पृ. 104
2. पर्यावरण प्रदूषण, विजय तिवारी, पृ. 42

विभाग प्रमुख/रीडर/ शोध-निर्देशिका स्नातकोतर हिंदी, विभाग,
श्रीमती केशरबाई लाहोटी महाविद्यालय, अमरावती (महाराष्ट्र)

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