वरुणा-मोरवा: पानी नहीं रसायन का प्रवाह

7 Aug 2011
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ज्ञानपुर (भदोही)। गंगा प्रदूषण किसी एक जिले, प्रदेश की नहीं वरन पूरे देश के लिए एक अहम मुद्दा बन चुका है। गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के नाम पर अब तक करोड़ों रुपये फूंके जा चुके हैं लेकिन इन सबके बावजूद जनपद के नगरीय क्षेत्रों से निकलकर गंगा व अन्य नदियों में बहकर जाने वाले गंदे पानी को प्रदूषण मुक्त कर छोड़ने की कोई योजना नहीं बन पायी है। कोई ऐसे ट्रीटमेंट प्लांट की योजना में अवरोध तो दूर बल्कि यहां तो कोई सफर ही नहीं शुरू हो सका है। यूं तो जनपद के दक्षिणी सीमा से सटकर बह रही राष्ट्रीय नदी घोषित हो चुकी गंगा समेत उत्तरी छोर पर वरुणा नदी एवं जनपद के बीचोबीच मोरवा नदी बहती है। अब देखा जाय तो कालीन उद्योग से जुड़े भदोही नगर से कालीनों की धुलाई आदि के बाद निकलने वाला केमिकल युक्त गंदा पानी बजरिये मोरवा नदी होते वरूणा नदी में पहुंच जा रहा है तो जनपद के दक्षिणी तरफ स्थित प्रमुख व्यावसायिक नगर गोपीगंज सहित खमरिया, घोसिया आदि नगरों का पानी नालों से होते हुए गंगा में पहुंचकर समाहित हो जाता है लेकिन जनपद स्थापना के लगभग डेढ़ दशक बाद आजतक किसी ऐसे ट्रीटमेंट प्लांट के स्थापना की योजना नहीं तैयार हो सकी है जिससे प्रदूषित पानी को शोधित कर नदियों में छोड़ा जा सके। इतना जरूर है कि यदा-कदा होने वाली उद्योग बंधु की बैठकों आदि में कालीन व्यवसायियों व अन्य औद्योगिक प्रतिष्ठानों के स्वामियों को अपने यहां से निकलने वाले गंदे पानी को शोधित करने के लिए दिशा-निर्देश अवश्य जारी कर दिया जाते हैं। वैसे इस संबंध में अधिशासी अभियंता बंधी हरेन्द्र कुमार ने बताया कि ऐसे किसी ट्रीटमेंट प्लांट की योजना जिले में नहीं बनी है।

नगर की सीमा क्षेत्र से होकर गुजरने वाली मोरवा नदी की स्थिति बेहद खराब है। स्थिति यह है कि नदी भी पूरी तरह सूख चुकी है कहीं-कहीं गढ्डों में थोड़ा बहुत जो पानी जमा है वह कालीन कारखानों से निकला रसायन युक्त गंदा पानी है। बारिश के कुछ माह बाद तक पानी से लहलहाने वाली मोरवा नदी अब पूरी तरह सूख गयी है। भदोही नगर के पास तो नदी में पानी है ही नहीं यदि थोड़ा बहुत पानी है भी तो वह डाइंग व वाशिंग प्लांटों का दूषित रसायन युक्त पानी। इस विषैले पानी का सेवन कर पशुओं के मुंह में फफोले तो पड़ जा रहे हैं साथ ही उनकी पाचन शक्ति भी खराब हो जा रही है।

नहीं लग सका सभी डाइंग प्लांटों में ईटीपी
भदोही नगर में कालीनों के डाइंग व वाशिंग प्लांटों से निकलने वाले प्रदूषित केमिकल युक्त पानी के शोधन के लिए अधिकांश कारखानों में ईटीपी नहीं लगाया गया है। जिन कारखानों में ईटीपी है भी तो उसे बिजली व अन्य खर्च के बचत के लिए बंद करके रखा जाता है। कार्पेट सिटी में पानी के शोधन के लिए बीडा द्वारा ईटीपी तो लगाया गया है किंतु वर्षो से बंद पड़ा है। जिससे कार्पेट सिटी के डाइंग व वाशिंग प्लांटों का पानी सीधे मोरवा नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है। कालीन कारखानों में लगी ईटीपी के चलाये जाने के प्रश्रन् पर सीईओ बीडा रीता विशाल ने स्पष्ट किया कि यदि प्लांट की क्षमता के अनुरूप पर्याप्त पानी शोधन के लिए नहीं मिलता तो प्लांट ठीक से शोधन का कार्य नहीं कर सकेगा। कार्पेट सिटी में स्थापित डाइंग व वाशिंग प्लांटों से पर्याप्त पानी नहीं उपलब्ध हो पा रहा है कि प्लांट को चलाया जा सके। प्लांट न चलने के पीछे पर्याप्त दूषित पानी की कम उपलब्धता ही गतिरोध है।

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