विरासत-स्वराज यात्रा (2021-22) दस दिन के लिए अफ्रीका में

6 Dec 2021
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विरासत-स्वराज यात्रा दस दिन के लिए अफ्रीका में
विरासत-स्वराज यात्रा दस दिन के लिए अफ्रीका में

तरुण भारत संघ के संयोजन में विरासत स्वराज यात्रा 2021- 22 चलाई जा रही है। जिसका नेतृत्व राजेन्द्र सिंह कर रहे हैं। 30 नवंम्बर से राजेन्द्र सिंह के नेतृत्व में विरासत-स्वराज यात्रा नैरोबी (केन्या) पहुँची। 30 नवंबर 2021 को  विरासत स्वराज यात्रा सुबह अहमदाबाद से नैरोबी के लिए रवाना हुई और दोपहर में यात्रा नैरोबी पहुँची। यहाँ केन्या राष्ट्रपति के स्टॉफ हेड मुख्तार ऐंगले, स्वीड़न से हसन और ऋषभ जैन के साथ जलपुरुष राजेन्द्र सिंह  की बैठक आयोजित हुई। इस बैठक में केन्या में नदी पाठशाला कार्यक्रम को आयोजित करना तय किया। यह यात्रा दस दिन तक केन्या, ईथोपिया और सोमालिया बॉर्डर के गांवों में जाएगी। इस दौरान केन्या के जल प्रबंधन, जल-विवाद समाधान और छोटी नदियों से जुड़े गांवों को कैसे पानीदार बना सकते है? आदि विषयों पर बातचीत करेगी। 

केन्या के कैमूर जिले के कमोदई गांव में 

दिनांक 4 दिसंबर 2021 को विरासत स्वराज यात्रा केन्या में कैमूर जिले के कमोदई गांव में पहुंची। यहां रास्ते में कमुदाई नदी को देखा। यह नदी पानी से पूरी लबालब भरी हुई थी। इस इलाके में केले की खेती और कॉफी का बड़ा व्यापार हो रहा है। यह ईलाका हेबीस्विंग के बिल्कुल विपरीत है। यहां अच्छी बारिश होती है, हरियाली है, नदी बह रही है। यह इलाका देखकर बहुत आनंदित हुआ।

यहां के नागरिक "सेम" के पूरे परिवार और पड़ोसी लोगों से लंबी वार्ता चली। इस वार्ता में हम लोगों ने यही जानने की कोशिश कि, केन्या की सुख, शांति, समृद्धि कैसे कायम हो सकती है! केन्या का विस्थापन कैसे रूक सकता है! केन्या आत्मनिर्भर कैसे बन सकता है!

यहां जलपुरुष राजेंद्र सिंह ने विरासत यात्रा के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि, आज जो दुनिया उजड़कर विस्थापित हो रही है। इस विस्थापन को रोके बिना, दुनिया में शांति स्थापित नहीं की जा सकती। अफ्रीका के सभी देशों में विस्थापन बहुत तेजी से बढ़ रहा है, इस विस्थापन को रोकना होगा। इसे रोकने हेतु हमें सबसे ज्यादा रोजगार के अवसर सृजित करने के लिए यहां खेती की जमीन बहुत अच्छी है और नदी भी बह रही है। तो यहां खेती में अनुशासित होकर खेती करने व जल उपयोग दक्षता बढ़ाने का काम करने की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहे बाढ़-सुखाड़ से लोग विस्थापित हो रहे है। यह विस्थापन ही तीसरे विश्वयुद्ध का कारण है। इसलिए इस देश में जलवायु परिवर्तन की साक्षरता और जल साक्षरता की जरूरत है। तीसरे विश्व युद्ध से सभी देशों को बचाना है, तो पानी का प्रबंधन भी करना होगा। 

आगे जल के महत्व को बताते हुए राजेन्द्र सिंह ने कहा कि, मैं उस देश का वासी हूं। जो जय जगत, 'वसुधैव कुटुम्बकम' में विश्वास रखता है। जो ब्रह्मांड को ब्रह्मा द्वारा निर्मित मानता हैं, जो जल को ब्रह्मा मानता है, यह देश चाहता है कि, तीसरा विश्व युद्ध न हो।

जलपुरुष राजेन्द्र सिंह जी के साथ सोमालिया से हसन, सेम, मेरी, नॉर्वे से महमूद, स्वीडन से ऋषभ खन्ना साथ थे। आज के पूरे दिन में हमने एक परिवार के पूरे प्रबंधन को समझा। तो समझ आया कि, इस देश का विस्थापन रोका जा सकता है। यहां सभी लोगों ने अपनी अपनी बातें रखी है। यहां सेम परिवार के गांव को भी देखा, इनके खेती करने का तरीका भी देखा। जब हम लोग यहां से निकले तो इन्होंने अपने खेत के केले, कॉफी और बहुत सारी चीजे बांध कर दे दी थी।

इसके उपरांत यात्रा नैरोबी पहुंची। यहाँ नैरोबी काउंसिल के साथी तथा राष्ट्रपति के सलाहकार मुख्तार ओंगले और नैरोबी के बहुत लोगों के साथ होटल में बैठक हुई। इस बैठक में केन्या का विस्थापन रोकने हेतु बहुत गंभीर चर्चा हुई। इस चर्चा में ओंगले ने अपनी सरकार की मंसा बताई। केन्या हेबीस्विंग के मूल निवासी व नॉर्वे में लम्बे समय तक काम करने वाले युवा महमूद ने अपनी नौकरी छोड़कर, यह काम करने का समर्पण बताया। उसके बाद जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि, यदि आपका समर्पण है तो, हेबीस्विंग में पानी का काम करके, कैमूर जिले के कमोदई गाँव की तरह हरियाली लायी जा सकती है, क्यों यह केन्या का ही हिस्सा है। यह हेबीस्विंग से थोडी ही दूर है। लेकिन जितनी यहाँ वर्षा होती है, उससे कई गुना ज्यादा लोग यहाँ रहते है। लेकिन इन्होंने अपने जल का प्रबंधन ठीक से किया इसलिए यहाँ हरियाली है और खेती भी हो रही है। हम समझते है कि, इस प्रकार की खेती तो हेबीस्विंग, बजीर, गरिसा में जल का प्रबंधन करके खेती तो नहीं की जा सकती, लेकिन जंगल बनाकर पशुपालन किया जा सकता है।

जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने बताया कि, हेबीस्विंग में जो जानवर यहाँ मर रहे है, वह सभी निवासी अपने पशुओं को विरासत मानते है। इसलिए अकाल के समय भी बेचते नहीं है। इसलिए वो अपने पशुओं को बचाकर कर रखना चाहते है, लेकिन अकाल के कारण मर रहे है। यहाँ बहुत बुरी तरह से मरने का दौर चल रहा है। यदि 10 से 15 दिन में वर्षा नहीं हुई तो सब समाप्त हो जायेगा। इसलिए हमें देखना है कि, हम कैसे वहाँ टैंकर से पानी पहुँचा सकते है। यह काम सरकार को करना चाहिए। जिस प्रकार मराठवाड़ा महाराष्ट्र में जब भी ऐसा अकाल पड़ता है, तो वहाँ के पशुओं को बचाने के लिए सरकार कैंप लगाती है और टैंकर से पानी पहुँचाती है। हेबीस्विंग, गरिसा में केन्या सरकार कोई प्रयास नहीं कर रही है। सरकार को इसके जीवन को बचाने के लिए जल्दी से जल्दी प्रयास करना चाहिए।

राजेन्द्र सिंह ने कहा कि, यहाँ पाँच तरह के कामों को करने की आवश्यकता है- 

  • पहला, यहाँ मरते हुए पशुओं को बचाने के लिए तत्काल पानी पहुँचाना चाहिए। 

  • दूसरा, राज्य में वर्षा जल को जगह-जगह रोकने की व्यवस्था करनी चाहिए। 

  • तीसरा, अब यहां के लोग खेती करना चाहते हैं, इसलिए वर्षा चक्र के अनुसार खेती करना चाहिए। 

  • चौथा, इस इलाके को बचाने हेतु यहाँ की प्राकृतिक घास का संरक्षण और जंगल का संरक्षण बहुत आवश्यक है। 

  • पांचवा, जल और जलवायु परिवर्तन की साक्षरता की आवश्यकता है।

 

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