यमुना के लिये अनुरोध पत्र

28 Feb 2016
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28.02.2016
प्रतिष्ठा में

श्री श्री रविशंकर जी
आर्ट ऑफ लिविंग भारत
सन्दर्भ : विश्व सांस्कृतिक उत्सव आयोजन (11-13 मार्च,2016)
स्थल : यमुना खादर
विषय : स्थान परिवर्तन हेतु अनुरोध


श्रद्धेय गुरूदेव,
प्रणाम।



माननीय, नदी जीवन्तता के सिद्धान्तों के आधार पर न्यूजीलैंड और इक्वाडोर जैसे आधुनिक मान्यता वाले देशों ने हाल के वर्षों में नदी को ‘नैचुरल पर्सन’ का संवैधानिक दर्जा दिया है, किन्तु भारत, तो बहुत पहले नदियों को माँ (नैचुरल मदर) मानने वाला देश हैं। विश्व सांस्कृतिक उत्सव में हमें 155 देशों से लोगों केे आने की सूचना है। दुनिया के तमाम ऐसे देश जो नदियों को माँ नहीं कहते, किन्तु वे भी आज नदियों के साथ शुचिता का व्यवहार सुनिश्चित करने में लग गए हैं। उन्हें क्या सन्देश देंगे हम? यमुना जी की जीवन्तता के घटकों के साथ दुर्व्यवहार कर, क्या आप भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक सोच का उचित प्रतिबिम्ब, दुनिया के सामने पेश करेंगे? हमने आपको हमेशा शान्ति और प्रेम के मार्ग पर चलने और चलाने वाले आध्यात्मिक पुरुष के रूप में जाना है। जहाँ अशान्ति हुई, वहाँ शान्तिदूत के रूप में आपको अपनी भूमिका निभाते देखा है। आपकी पहल पर आयोजित विश्व सांस्कृतिक उत्सव को लेकर अशान्ति का माहौल बनता देख हम चिन्तित हैं।

चिन्ता इसलिये भी है कि कई वर्ष पूर्व आपने स्वयं यमुना निर्मलीकरण में सहयोगी दिल्ली आयोजन का नेतृत्व किया था और आज आप स्वयं यमुना नदी की अविरलता-निर्मलता के सिद्धान्तों को भूलते अथवा जानबूझकर नजरअन्दाज करने की मुद्रा में दिखाई दे रहे हैं।

माननीय, आप एक आध्यात्मिक शक्ति हैं।

1. आखिरकार आप कैसे भूल सकते हैं कि...दिल्ली की यमुना में आज भले ही जल की जगह मल बहता दिखता हो, किन्तु ऊपर बहता मल ही सिर्फ नदी नहीं है?

2. कैसे भूल सकते हैं कि सिर्फ बहने वाला जल, नदी नहीं होता; जबकि नदी, एक सम्पूर्ण जीवन्त प्रणाली के रूप में परिभाषित की गई है?

3. कैसे भूल सकते हैं कि तल, तलछट, गाद, रेत, ढाल, बाढ़ क्षेत्र, वनस्पति, जीव और पंचतत्वों से सम्पर्क मिलकर ही प्रत्येक नदी के गुण व जीवन्तता तय करते हैं?

4. कैसे भूल सकते हैं कि एक नदी के जीवन में बाढ़ भूमि की भूमिका उन फेफड़ों की तरह होती है, जिन पर अधिक दाब अथवा उनकी अशुद्धि होने पर जीव के साँस पर संकट आ जाता है?

बाढ़ भूमि को आप नदी माँ के उन स्तनों की तरह भी मान सकते हैं, जो शिशु को उतना और तब तक ही लेने की इज़ाजत देते हैं, जब तक कि शिशु के जीवन के लिये जरूरी हो।

5. क्या यह भूलने की बात है कि बाढ़, नदी की सम्पूर्ण जीवन्त प्रणाली का शोधन करने के अलावा बाढ़ क्षेत्र और आसपास के भूजल की समृद्धि भी सुनिश्चित करती है।
अतः बाढ़ को आजादी चाहिए, निर्माण की बन्दिशें नहीं।

6. दिल्ली के पास भूजल रिचार्ज के ढाँचों पर हमने पहले ही कब्जा कर लिया है। ले-देकर यमुना जी की बाढ़ भूमि बची है। मोटे स्पंज की भाँति अपने गहरे एक्विफर में संजोकर रखने की क्षमता के कारण ही वजीराबाद से ओखला बैराज के बीच की बाढ़ भूमि, दिल्लीवासियों की जन-जरूरत की जलापूर्ति हेतु एक बड़े ‘रिजर्व ग्राउंड वाटर बैंक’ की तरह है। इसे दूषित कर.. स्पंज पर दबाव डालकर, क्या आयोजन इस ग्राउंड वाटर बैंक को कंगाल बनाने का काम नहीं करेगा? क्या इससे दिल्लीवासियों के लिये जल स्वावलम्बन की पहले से कम सम्भावनाएँ और कम नहीं हो जाएँगी?

7. क्या आप दावा कर सकते हैं कि यमुना बाढ़ भूमि पर आयोजन के एक हजार एकड़ तक के फैलाव, निर्माण, विशाल स्टेज, पार्किंग, कचरा, आने वालों के मल-मूत्र विसर्जन का इन्तजाम, तीन दिन के समय में 35 लाख लोगों की आवाजाही व करीब सुनिश्चित कर आर्ट ऑफ लिविंग, नदी जीवन्तता के सिद्धान्तों की रक्षा करने का काम करने जा रहा है?

8. उत्सव के तैयारी कार्य, पहले ही नदी बाढ़ भूमि की वनस्पति और माटी में मौजूद लाखों जीवन्त प्राणियों को रौंदने का काम शुरू कर चुके हैं। आखिरकार आप कैसे दावा कर सकते हैं कि आयोजन, नदी जीवन्त प्रणाली के घटकों को कोई नुकसान नहीं पहुँचाएगा?

9. आप कैसे दावा कर सकते हैं कि उत्सव आयोजन स्थल का चुनाव, नदी जीवन्तता के प्राकृतिक सिद्धान्तों का उल्लंघन नहीं है; जबकि यह नदी जीवन्तता के प्राकृतिक सिद्धान्तों का ही नहीं, बल्कि यह माननीय राष्ट्रीय हरित पंचाट व देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए नदी संरक्षण सम्बन्धी पूर्व आदेशों का भी उल्लंघन है?

10. ज्ञात हुआ है कि याचिका पर पंचाट के आदेश पर तैयार मौका मुआयना रिपोर्ट ने भी माना है कि उत्सव तैयारी हेतु किया जा चुका विध्वंस व निर्माण, हरित पंचाट के जनवरी, 2015 के आदेश की अवमानना है; फिर भी आप आयोजन स्थल के चुनाव को उचित कैसे ठहरा सकते हैं?

माननीय, नदी जीवन्तता के सिद्धान्तों के आधार पर न्यूजीलैंड और इक्वाडोर जैसे आधुनिक मान्यता वाले देशों ने हाल के वर्षों में नदी को ‘नैचुरल पर्सन’ का संवैधानिक दर्जा दिया है, किन्तु भारत, तो बहुत पहले नदियों को माँ (नैचुरल मदर) मानने वाला देश हैं। विश्व सांस्कृतिक उत्सव में हमें 155 देशों से लोगों केे आने की सूचना है। दुनिया के तमाम ऐसे देश जो नदियों को माँ नहीं कहते, किन्तु वे भी आज नदियों के साथ शुचिता का व्यवहार सुनिश्चित करने में लग गए हैं। उन्हें क्या सन्देश देंगे हम?

यमुना जी की जीवन्तता के घटकों के साथ दुर्व्यवहार कर, क्या आप भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक सोच का उचित प्रतिबिम्ब, दुनिया के सामने पेश करेंगे?

माननीय, हमने सुना है कि आयोजन के दौरान एक सर्वधर्म सत्र भी होगा।

इस सत्र के जरिए क्या हम दुनिया को यह बताने जा रहे हैं कि नदियों को माँ मानने वाले देश-भारत के आध्यात्मिक गुरू और सभी धर्मों के प्रमुख, सिर्फ नाम के लिये माँ मानते हैं; असल में उनका व्यवहार कुछ और है?

क्या हमारा यह व्यवहार, दुनिया का आध्यात्मिक-सांस्कृतिक नेतृत्व करने के पेश भारतीय दावे का विरोधाभास पेश नहीं करेगा?

बगल में बहता मल और उसके सामने भारतीय सांस्कृतिक उत्सव की झलक कितनी उचित होगी?

यदि यमुना प्रेमियों ने मौके पर पहुँचकर विरोध किया और उसे रोकने के लिये बल प्रयोग करना पड़ा, तो यह आपकी ओर से शान्ति और प्रेम का सन्देश होगा अथवा अशान्ति और हिंसा का?

माननीय, आयोजन के लिये ग्रेटर नोएडा में जे पी, बुराड़ी में निरंकारी समाज आयोजन का स्थान आदि कई स्थान विकल्प हो सकते हैं; फिर यमुना जी की छाती पर ही आयोजन की जिद क्यों?

हो सकता है कि यमुना भूमि को आयोजन के लिये चुनने में आयोजक व आयोजन को कोई सुविधा हो, किन्तु क्या आप अपनी जिद के पक्ष में कोई एक तर्क दे सकते हैं कि आर्ट ऑफ लिविंग के आयोजन से यमुना नदी माँ को कोई सुविधा मिलेगी? एंजाइम लाकर दिल्ली के नालों में डालने के आपके तर्क और यमुना माँ की छाती को रौंदने के इस कृत्य का आपस में कोई लेना-देना नहीं है; यह सच स्वयं आपका अन्तर्मन जानता ही होगा।

माननीय, आप समर्थ हैं। आपको सत्ता का समर्थन प्राप्त है। भारत सरकार का संस्कृति मंत्रालय, स्वयं इस आयोजन के साथ है। हो सकता है कि तमाम विरोध के बावजूद, आप इस आयोजन को सम्पन्न भी कर लें, किन्तु क्या यह एक आध्यात्मिक शक्ति के सोचने के लिये यह प्रश्न हमेशा शेष नहीं रह जाएगा कि आपके लिये एक नदी माँ बड़ी है या व्यक्तिगत जिद? एक बार आपने आयोजन कर लिया, तो यह एक नजीर हो जाएगी। इस नजीर की आड़ में यमुना जी की छाती एक बार नहीं बार-बार रौंदी जाएगी। क्या आपको यह स्वीकार्य होगा? कैसी नजीर पेश करने जा रहे हैं आप??

माननीय, आपसे अनुरोध है कि स्थान चयन को निजी सुविधा और प्रतिष्ठा का मुद्दा न बनाएँ। संस्कृति का उत्सव है; माँ यमुना का उल्लास बना रहने दें; स्थान बदले; उचित स्थान चुने। उदार मन की एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करें कि वर्तमान इससे प्रेरित हो सके; गुणगान कर सके।

माननीय, आस्थाओं का टूटना अच्छा नहीं होेता।

भारत इस वक्त लोकतंत्र के सभी स्तम्भों के प्रति आस्था के टूटने के दौर से गुजर रहा है। आपसे अनुरोध है कि कृपया आध्यात्मिक-धार्मिक शक्तियों के प्रति आस्था टूटने का एक और माध्यम न बनें आप। आयोजन स्थल को लेकर आपकी जिद से जो सबसे बुरा होगा, वह यही होगा।

क्या आप यह चाहेंगे?
सदाचार की अपेक्षा सहित


निवेदक
सूचनार्थ एवं विचारार्थ प्रतिलिपि सादर प्रेषित
प्रति...................................................

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