यमुना की सफाई गंगा की स्वच्छता की दिशा में कारगर कदम


पर्यावरणविदों की बरसों से माँग थी कि सहायक नदियों को साफ किये बिना गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने का सपना कभी पूरा नहीं हो सकता। देर से ही सही, जल संसाधन मंत्रालय को भी यह बात समझ में आई है। गंगा की सबसे बड़ी और पौराणिक नदियों में तीन का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। कान्हा के बचपन की अठखेलियों, किशोरावस्था की खेली क्रीड़ाओं और गोपियों के संग रास को लेकर यमुना जन-जन में विख्यात है।

गंगा की दूसरी सहायक नदी घाघरा है। त्रेता युग के प्रतापी अयोध्या राज के शासक रघुवंश की संस्कृति की यह नदी गवाह रही है। हिन्दुओं के आराध्य राम की क्रीड़ा स्थली रही घाघरा- जिसे जन-जन सरयू के रूप में जानता है, संयोगवश अभी वैसी प्रदूषित नहीं है।

उस पर कोई बड़ा बाँध भी नहीं है। लिहाजा उत्तर प्रदेश-बिहार सीमा पर जब वह गंगा में विलीन होती है टिहरी के बाद से कृषकाय बन चुकी गंगा में नया आवेग आता है और यहीं से उसका प्रदूषण भी कम होता है। गंगा की तीसरी बड़ी सहायक नदी गंडक है। इनमें सबसे ज्यादा बुरी हालत में यमुना है। इसके बावजूद भाई दूज पर हर साल उत्तर प्रदेश स्थित कृष्ण जन्मभूमि मथुरा में स्नान के लिये लाखों लोग आते हैं।

यमुना के किनारे स्थित वृंदावन में तो रोजाना ही देशी-विदेशी तीर्थ यात्रियों का जनसमुद्र आता ही रहता है। बेशक मथुरा में कुछ लोग यमुना में स्नान कर लेते हैं, लेकिन वृंदावन में तो भूले-भटके ही लोग यमुना में डुबकी लगाते हैं। यमुना मैली तो यहाँ भी है, लेकिन वह सबसे ज्यादा बुरी हालत में देश की राजधानी दिल्ली के नजदीक नजर आती है।

दिल्ली की नगरी संस्कृति का विकास यमुना के किनारे स्थित होने के ही चलते हुआ था। लेकिन दिल्ली में अब यमुना मरणासन्न है। आगे चलकर चम्बल-बेतवा उसे कुछ पानी का उपहार दे देती हैं तो वह थोड़ी जीवन्त होती है, लेकिन अपनी बड़ी बहन गंगा में समाहित होते-होते प्रयाग में जाकर एक बार फिर वह गन्दगी का ही पर्याय नजर आती है।

हरियाणा से लेकर दिल्ली होते हुए फिर हरियाणा के उद्योगों का प्रदूषित कचरा लेकर गुजरती यह नदी ना सिर्फ अपने किनारे की जमीन को भी प्रदूषित कर चुकी है, बल्कि गंगा को भी कचरे का प्रवाह बनाने में मददगार साबित हो रही है। यह बात और है कि गंगा खुद भी कानपुर में जमकर प्रदूषित होती है। उसके बाद तमाम शहरों का मल-जल भी उसी में प्रवाहित हो रहा है।

बहरहाल यमुना की सफाई के लिये भारत सरकार ने यमुना कार्य योजना की शुरुआत की है। जिसके तीसरे चरण की शुरुआत इसी चार मई को हुई। इस योजना के तहत नदी के मूल चरित्र को बरकरार रखने की तैयारी है। दिलचस्प बात यह है कि यमुना कार्य योजना के पहले और दूसरे चरण 15 अरब रुपए खर्च हो चुके हैं। लेकिन खुद जलसंसाधन मंत्रालय ही मानता है कि इससे हालात में कोई बदलाव नहीं आया।

बहरहाल नई कार्य योजना में यमुना में लखवाड़-व्‍यासी परियोजना को भी जोड़ा गया है। जल संसाधन मंत्रालय का मानना है कि यह परियोजना पूरी तरह से लागू हुई तो दिल्‍ली में यमुना में अतिरिक्‍त पानी आ सकेगा और मथुरा वृंदावन तक यमुना को प्रदूषण मुक्‍त किया जा सकेगा।

तीसरे चरण की इस कार्य योजना के लिये केन्द्र सरकार ने करीब 8 अरब रुपए के खर्च का अनुमान लगाया है। जिसका 85 प्रतिशत हिस्‍सा केन्द्र सरकार वहन करेगी जबकि बाकी का 15 प्रतिशत दिल्‍ली सरकार वहन करेगी। इसके तहत दिल्ली के ओखला, कोंडली और रिठाला में मौजूद 814 एमएलडी की क्षमता वाले मल शोधन संयंत्रों का आधुनिकीकरण किया जाएगा। इसके साथ ही ओखला में 136 एमएलडी क्षमता वाले एक अतिरिक्‍त मल शोधन संयंत्र लगाने की भी तैयारी है।

दिल्ली में घनी आबादी वाले आनंद विहार, झिलमिल कॉलोनी, अशोक विहार और जहाँगीर पुरी जैसे इलाकों में सीवर लाइन बेहद बुरी हालत में हैं। जिसकी वजह से सीवर का गन्दा मल-जल नजदीकी नालों में जाता है और वह फिर बहकर यमुना में पहुँच जाता है। इस कार्य योजना के तहत इसकी भी मरम्‍मत की जाएगी।

दिल्ली की नगरी संस्कृति का विकास यमुना के किनारे स्थित होने के ही चलते हुआ था। लेकिन दिल्ली में अब यमुना मरणासन्न है। आगे चलकर चम्बल-बेतवा उसे कुछ पानी का उपहार दे देती हैं तो वह थोड़ी जीवन्त होती है, लेकिन अपनी बड़ी बहन गंगा में समाहित होते-होते प्रयाग में जाकर एक बार फिर वह गन्दगी का ही पर्याय नजर आती है। हरियाणा से लेकर दिल्ली होते हुए फिर हरियाणा के उद्योगों का प्रदूषित कचरा लेकर गुजरती यह नदी ना सिर्फ अपने किनारे की जमीन को भी प्रदूषित कर चुकी है, बल्कि गंगा को भी कचरे का प्रवाह बनाने में मददगार साबित हो रही है। हाल के कुछ वर्षों में प्रवासी बिहारियों ने यमुना के तट पर दिल्ली में जोर-शोर से छठ पर्व मनाना शुरू किया है। यमुना कार्य योजना में इसे भी ध्यान में रखते हुए छठ घाटों के पुनरुद्धार का भी कार्यक्रम बनाया गया है। इसके साथ ही श्रद्धालुओं के वस्‍त्र बदलने के लिये बेहतर कक्ष और प्रसाधन की बेहतर सुविधाएँ उपलब्‍ध कराने की तैयारी है। इसके साथ ही जल संसाधन मंत्रालय और दिल्‍ली सरकार मिलकर वजीराबाद से ओखला तक यमुना तटों के सौन्दर्यीकरण पर काम करेंगे।

नदी किनारे पैदल यात्रियों के लिये रास्ता बनाने की भी योजना है, ताकि लोग सुबह-शाम यमुना के किनारे पैदल घूमते हुए नदी के सौन्दर्य का आनन्द ले सकें। फिलहाल इस योजना के तहत यमुना की सतह पर कचरा उठाने वाली स्‍वचालित नौका यानी ट्रैश स्‍कीमर के जरिए काम शुरू भी हो चुका है। इस मशीन की कीमत साढ़े चार करोड़ रुपया है, जिसकी क्षमता रोजाना 10 टन कचरा उठाने की है। भारत सरकार का दावा है कि दिल्ली सरकार की मदद से वह तीन वर्षों में दिल्‍ली में यमुना का स्‍वरूप बदल देगी।

गंगा सफाई चूँकि केन्द्र सरकार का चुनावी वादा है। फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि काम करने वाले की है। लिहाजा केन्द्र सरकार अपने वादे को पूरा करने के लिये पूरे जोशो-खरोश के साथ जी-जान से जुटी हुई है। नमामि गंगे मिशन की कामयाबी के लिये सात मंत्रालय, जैसे जल संसाधन, शहरी विकास, ग्रामीण विकास, पेयजल व स्वच्छता, पर्यटन, मानव संसाधन विकास, आयुष व नौवहन मंत्रालय इस चुनौती का मुकाबला करने की दिशा में कोई कोर-कसर भी नहीं रख रहे हैं।

गंगा की शुद्धि के लिये केन्द्र सरकार ने बजट में 20 हजार करोड़ की राशि आवंटित कर ही चुकी है। लेकिन अब तक खास प्रगति होती नजर नहीं आ रही है। वैसे प्रगति जल्द नजर आएगी भी नहीं, क्योंकि यह काम बड़ा और दीर्घ काल में नतीजे देने वाला है।

इस पर विचार करने से पहले गंगा के प्रदूषण को लेकर कुछ आँकड़ों पर भी गौर किया जाना चाहिए। सरकार भी मान चुकी है कि औद्योगिक रसायन युक्त अवशेष, शहरी सीवेज, ठोस विषैला कचरा, रेत व पत्थर की चुनाई और बाँधों से गंगा तिल-तिलकर धीमी मौत मर रही है। नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी के मुताबिक जगह-जगह बाँध बनने से गंगा का पानी सुरंगों में गायब हो रहा है। गंगा में सीवर के साथ-साथ उद्योगों का विषैला कचरा जाने से संकट और गहरा गया है। देश के 25 फीसदी जल की अकेली स्रोत वाली गंगा के किनारे ही देश की तकरीबन 26 फीसदी आबादी ना सिर्फ बसी हुई है, बल्कि 13 करोड़ लोगों की रोजी-रोटी भी सीधे तौर पर गंगा नदी से ही जुड़ी हुई है।

ऐसी नदी में तमाम योजनाओं के बावजूद रोजाना बिना शोधित 1,2051 मिलियन लीटर सीवेज गंगा में गिराया जा रहा है। गंगा में दिनोंदिन घटती ऑक्सीजन के लिये यह भी एक बड़ा कारक है। जलीय जीव तो गायब हो चुके हैं। कानपुर की जाजमऊ की 425 टेनरियों का 41 एमएलडी रसायन युक्त कचरा और सीसामऊ सहित 14 बड़े नालों की गन्दगी सीधे गंगा में जा रही है। इसके चलते गंगाजल में क्रोमियम लेड और अन्य घातक रसायन मिल रहे हैं।

केन्द्र सरकार को पेश गंगा पर स्टेटस रिपोर्ट के अनुसार नदी नरौरा से बलिया तक सबसे ज्यादा प्रदूषित है। पटना में 172 नालों का गन्दा पानी सीधे गंगा में गिर रहा है। यहाँ 186 एमएलडी सीवेज बिना ट्रीटमेंट के गंगा में जा रहा है। यहाँ केवल 109 एमएलडी सीवेज की रोजाना ट्रीटमेंट की व्यवस्था है लेकिन होता केवल 64 एमएलडी ही है।

गंगा के प्रदूषण की शुरुआत तो हरिद्वार से ही हो जाती है। बिजनौर की फैक्टरियाँ गंगा में विषैला रसायन घोल रही हैं। उसके बाद बिहार और पश्चिम बंगाल से रोजाना गंगा में दो करोड़ 90 लाख लीटर प्रदूषित कचरा गिरता है। गंगा में गन्दे पानी के चिन्हित 26 नाले उत्तराखण्ड में, 68 नाले उत्तर प्रदेश में गिरते हैं, जबकि उत्तराखण्ड के दो, उत्तर प्रदेश के 40, बिहार के 23 और पश्चिम बंगाल के 22 नाले गंगा में गिरते हैं।

एनजीटी के कड़े रुख के बावजूद हालात में कोई बदलाव नहीं आया है। हालात यह है कि गोमुख से उत्तरकाशी तक छोटे-बड़े तकरीब दस कस्बों में से एक में भी सीवर ट्रीटमेंट प्लांट नहीं है। इसी तरह गंगोत्री से लेकर हरिद्वार तक गंगा के किनारे सैकड़ों की तादाद में बसे साधु-सन्यासियों के मठों-आश्रमों का मल-मूत्र और गन्दगी भी गंगा में ही बहाई जा रही है। कुम्भ, मेला, पर्व आदि के समय तो स्थिति और भयावह हो जाती है।

प्रदूषित यमुना नदीदेवप्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी के मिलने के बाद ही गंगा अपनी यात्रा शुरू करती है। वहाँ पर भागीरथी और अलकनन्दा में सीधे तौर पर छह नाले मिलते हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक हरिद्वार में गंगा में ऑक्सीजन की मात्रा घट रही है। हरिद्वार से नरौरा तक कुछेक जगहों पर प्रदूषण के चलते गंगाजल काला हो जाता है।

इन आँकड़ों की जानकारी इसलिये जरूरी है, ताकि हम जान सकें कि गंगा किस हालत में है। बहरहाल यमुना कार्य योजना को जहाँ गति दी जा रही है। वहीं दूसरे मोर्चों पर सरकार तेजी से काम कर रही है।

राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण की अधिकार प्राप्‍त संचालन समिति ने उत्‍तराखण्ड में हरिद्वार से उत्‍तराखण्ड की सीमा तक, उत्‍तर प्रदेश में गढ़मुक्‍तेश्‍वर, बिहार में बक्‍सर, हाजीपुर और सोनपुर, झारखण्ड में साहेबगंज, राजमहल और कन्‍हैया घाट में गंगा के किनारे साथ ही दिल्‍ली में यमुना पर घाटों और श्मशान स्‍थलों के विकास की परियोजनाओं को मंजूरी दे दी है। जिन पर करीब 2446 करोड़ रुपए खर्च होंगे। यह पूरी रकम केन्द्र सरकार देगी। जिसकी सहायता से गंगा के किनारों को सुन्दर और बेहतर बनाना इसका लक्ष्य है।

इस बीच गंगा के किनारे जंगल लगाने की भी योजना बनाई गई है। गंगा नदी विकास प्राधिकरण को इस सिलसिले में सौंपी रिपोर्ट के मुताबिक गंगा किनारे बड़ी मात्रा में वन लगाकर नदी का ना सिर्फ जल प्रवाह बढ़ाया जा सकेगा, बल्कि प्रदूषण को कम भी किया जा सकेगा।

इसके अलावा इसमें गंगा के किनारे के पाँच राज्‍यों में गंगा से सम्बन्धित विभिन्न‍ अध्‍ययनों को बढ़ावा देना और इस परियोजना की कामयाबी को अन्‍य नदियों के सम्बन्ध में इस्‍तेमाल किया जाना शामिल है। इस परियोजना पर पाँच वर्ष की अवधि के दौरान 2294 करोड़ रुपए खर्च किये जाएँगे।

मंजूर की गई सभी परियोजनाओं की समीक्षा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्‍थानों के समूह द्वारा गठित स्‍वतंत्र इकाईयों द्वारा की गई। गंगा के किनारे वन लगाने के उपायों की समीक्षा वन और पर्यावरण मंत्रालय के महानिदेशक की अध्‍यक्षता में गठित समिति ने की।

अधिकार प्राप्‍त संचालन समिति की अध्‍यक्षता केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के सचिव करते हैं। समिति के अन्‍य सदस्‍यों में केन्द्रीय वन और पर्यावरण, वित्‍त, शहरी विकास और विद्युत मंत्रालय के प्रतिनि‍धियों के अलावा गंगा किनारे के पाँच राज्‍यों के प्रतिनिधि भी शामिल हैं।

गंगा की सफाई के लिये किनारे वाले इलाकों में खास स्वच्छता अभियान भी चलाने की तैयारी है। इसकी शुरुआत नौ मई को झारखण्ड के साहिबगंज में नौ परियोजनाओं के साथ की गई है। इसके तहत झारखण्ड में 83 किलोमीटर तक बहने वाली गंगा के किनारे बसे सभी 78 गाँवों की खुले में मुक्त बनाया जाना है।

गौरतलब है कि झारखण्ड में गंगा नदी बेसिन में 78 गाँवों में 45,000 परिवार बसे हैं। इन परियोजनाओं के तहत ना सिर्फ गंगा की सफाई की जा रही है, बल्कि यहाँ के निवासियों के स्वास्थ्य और रोजगार को भी बढ़ावा देने का काम किया जाना है।

इसके तहत इन गाँवों में डिग्रेडेबल यानी नष्ट करने योग्य ठोस अपशिष्ट के संग्रह, भण्डारण और कम्पोस्ट खाद बनाने और बायोडिग्रेडेबल सामग्री के लिये छोटे उद्योगों 78 इकाइयाँ स्थापित की जानी हैं। इसके साथ ही करीब 5,460 परिवारों को पशु और कृषि अपशिष्ट के लाभदायक उपयोग के लिये कीड़े वाली खाद के इस्तेमाल के लिये कम्पोस्ट खाद बनाने की ट्रेनिंग और सुविधा देने की भी तैयारी है।

पशुओं का गोबर बहकर गंगा में ना जाए, इसके लिये 1,860 परिवारों को बायोगैस संयंत्र लगाने के लिये मदद भी देने की तैयारी है। इन 78 गाँवों में सामुदायिक भागीदारी से 10,000 से अधिक सोख्ता गड्ढों को भी बनाया जाना है। नमामि गंगे मिशन की झारखण्ड की इस योजना को यूएनडीपी, सामुदायिक संगठनों और गैर सरकारी संगठनों के सहयोग से जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय की देखरेख में चलाया जाना है।

गंगा की सफाई के लिये जितने जरूरी किनारे बसे सामुदायिक इलाकों की सफाई और कचरा के साथ मल-निपटान व्यवस्था को सुव्यवस्थित बनाना है, उतना ही जरूरी है गंगा की सहायक नदियों की सफाई। यमुना कार्य योजना अगर कामयाब होगी तो तय है कि गंगा की सफाई का एक महत्त्वपूर्ण चरण पूरा हो जाएगा।

लेखिका स्वतंत्र पत्रकार और सामाजिक-पर्यावरण मुद्दों पर लिखती रही हैं।

ईमेल : Geetac77@gmail.com

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