यमुना नहीं तो धर्म, इतिहास, ताज सब मिटेंगे!

यमुना का जल हो गया है जहरीला, आचमन तो दूर हाथ लगाने से भी खतरा: अरुण त्रिपाठी
.आगरा। यमुना देश की पवित्र नदी ही नहीं ब्रज वसुंधरा की एक ऐसी पुण्य सलिला है। जिसका आचमन जन-जन के आराध्य श्री कृष्ण से लेकर तुगलक, लोदी और मुगल बादशाहों ने किया। उस यमुना का जल वर्तमान में इतना खतरनाक हो चुका है कि उसका आचमन करना तो दूर उसको हाथ लगाना ही खतरे से खाली नहीं है। इसके कारण मानव के साथ ऐतिहासिक विरासत और प्राचीन संस्कृति नष्ट होने की कगार पर पहुंच चुकी है। इन सब विषयों के साथ सरकार को शीघ्र यमुना सफाई के लिए प्रेरित करने व जनता को नदी प्रदूषण के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से शुक्रवार को कोठी मीना बाजार में यमुना सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें यमुना आन्दोलन से जुड़े कार्यकर्ता, पर्यावरणविद् व संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

यमुना प्रदूषण व पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं से जनता को जोड़ने के लिए कोठी मीना बाजार में कृष्ण कालिंदी कथा के समापन पर यमुना सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसका शुभारंभ मां यमुना के चित्र पर मुख्य अतिथि संत गोपाल कृष्ण सत्यम, कल्पतरु एक्सप्रेस के कार्यकारी सम्पादक अरुण कुमार त्रिपाठी, यमुना सत्याग्रही पं. अश्विनी मिश्र, प्रख्यात पर्यावरणविद् व विचारक केसरजी, महेन्द्रनाथ चतुर्वेदी, नेत्रपाल सिंह व राहुल राज ने संयुक्त रूप से माल्यार्पण व दीप प्रज्ज्वलित कर किया।

सम्मेलन को संबोधित करते कल्पतरु एक्सप्रेस के कार्यकारी सम्पादक अरुण कुमार त्रिपाठी ने कहा कि सबका अपना धर्म है, यमुना का भी अपना धर्म है। वर्तमान में यमुना सफाई कोई मुद्दा नहीं है। इसकी शुरुआत बहुत पहले से हो गई थी। आज से 30 साल पहले कामथ जी का लेख छपा, जिसमें लिखा था कि गंगा एक पवित्र नदी है यह कभी मैली नहीं हो सकती, लेकिन नदियां मैली हो रही है। यमुना मिथकों से लेकर स्मृतियों में रही है और स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि पानी न मानव के लिए शुद्ध है न पशु और खेती-बाड़ी के लिए।

इन दिनों नदी में मल-मूत्र में तब्दील हो गई है। उन्होंने डॉ. राममनोहर लोहिया के उस वक्तव्य का उदाहरण दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि मैं नास्तिक हूं मतलब धार्मिक लोगों के साथ-साथ अधार्मिक लोगों के लिए भी यमुना सफाई आवश्यक विषय है। जिस यमुना ने भगवान की लीला मुगलों का समराज्य देखा अगर वह यमुना नहीं रहेगी तो सभी मिथक, धर्म, इतिहास, ताजमहल और यहां तक कि वृन्दावन भी नहीं बचेगा। 1958 से अभी तक नदियों की सफाई की बातें बहुत हुई, लेकिन नहीं हुई तो केवल सफाई। इन दुष्चक्रों से निपटने के लिए व्यावहारिक शिक्षा व विज्ञान को समझते हुए इसके मूल दर्शन को समझना होगा।

सम्मेलन में मथुरा से आए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता व 23 सालों से यमुना प्रदूषण पर कानूनी लड़ाई लड़ रहे महेन्द्रनाथ चतुर्वेदी ने कहा कि एक राज्य दूसरे राज्य के पानी पर डाका डाल रहा है। गोकुल बैराज में आगरा और मथुरा के पेय जल को संचय करने के लिए बनाया गया था, लेकिन वह दिल्ली की गंदगी के कारण कीचड़ का बैराज बन चुका है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी यमुना प्रदूषण को लेकर सरकार व प्रशासन अपनी चुप्पी तोडनें को राजी नहीं है। 2012 में सुप्रीम कोट ने एक प्रस्ताव के तहत आईआईटी रुड़की व दिल्ली के विशेषज्ञों के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई थी जिसने यमुना प्रदूषण पर अपनी सिफ़ारिशें कोर्ट में जमा भी करा दी। लेकिन वह सिफ़ारिशें अभी न्यायालय में ही पड़ी है। महेन्द्रनाथ ने सम्मेंलन में कहा सुप्रीम कोर्ट के उस वक्तव्य पर निराशा जताई जिसमें कोर्ट ने अभी हाल ही में कहा था कि गंगा-यमुना 200 सालों में भी साफ नहीं होगी। जबकि 21 साल से खुद सुप्रीम कोर्ट इस केस पर कोई फैसला नहीं ले पा रहा है।

प्रख्यात पर्यावरण विद् केसर जी ने कहा कि केवल घोषणाओं से यमुना साफ नहीं हो सकती, बल्कि यमुना से जुड़ी नदियों को जीवित करना होगा, अन्यथा यमुना को साफ करने का सपना केवल घोषणा बनकर रह जाएगा। दिल्ली में भी यमुना को साफ रखने के लिए अनवरत बहाव जारी रखना होगा। कार्यक्रम संयोजक पं. अश्विनी शर्मा ने कहा कि सरकार को सबसे पहले यमुना के बहाव को जारी रखना होगा। इसके अलावा यमुना एक्शन प्लान को ठीक ढंग से लागू करते हुए सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट पर विशेष ध्यान देना होगा। सम्मेलन में उप्र माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष नेत्रपाल सिंह, राहुल राज, श्रवन कुमार, अनुल कुलर्शेष्ठ, सुमन बंसल, नीरज परिहार ने भी विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर ललित कला संस्थान के छात्रों ने यमुना प्रदूषण पर प्रदर्शनी भी लगाई। सम्मेलन में बड़ी संख्या में यमुना प्रेमी व स्कूली छात्र मौजूद थे।

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